Tuesday, November 20, 2018

स्वच्छ तन, स्वस्थ मन

डॊ. सौरभ मालवीय
जिस प्रकार स्वच्छ तन में स्वच्छ मन रहता है, ठीक उसी प्रकार स्वच्छ स्थान पर स्वस्थ लोग रहते हैं। स्वच्छता और स्वास्थ्य का गहरा संबंध है। गंदगी के कारण अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। कई बार ये रोग महामारी का कारण भी बन जाते हैं। रोगों के कारण मनुष्य दुर्बल तो होता ही है, साथ ही धन और समय की भी हानि होती है। राष्ट्र की उन्नति के लिए उसके जन का स्वस्थ होना अति आवश्यक है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार देशव्यापी स्वच्छ भारत अभियान चला रही है। इस अभियान के माध्यम से सरकार ने एक ऐसा रचनात्मक और सहयोगात्मक मंच प्रदान किया है, जिसका उद्देश्य गली-मुहल्लों, सड़कों, सार्वजनिक स्थलों तथा अपने आसपास के स्थानों को स्वच्छ रखना है। यह अभियान प्रौद्योगिकी के माध्यम से नागरिकों और संगठनों के अभियान संबंधी प्रयासों के बारे में जानकारी प्रदान करता है। कोई भी व्यक्ति, सरकारी संस्था या निजी संगठन इसमें भागीदार बन सकते हैं। वे अपने दैनिक कार्यों में से कुछ समय निकालकर देश में स्वच्छता संबंधी कार्यों में योगदान दे सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि आधिकारिक रूप से 1 अप्रैल 1999 से केंद्र सरकार ने व्यापक ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का पुनर्गठन कर पूर्ण स्वच्छता अभियान आरंभ किया था। इसके पश्चात 1 अप्रैल 2012 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा इसे निर्मल भारत अभियान का नाम दिया गया। स्वच्छ भारत अभियान के रूप में 24 सितंबर 2014 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की स्वीकृति से निर्मल भारत अभियान का पुनर्गठन किया गया था। केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने इस अभियान के प्रचार-प्रसार पर विशेष बल दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गांधी की 145वीं जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर 2014 को दिल्ली के राजघाट से स्वच्छ भारत अभियान का प्रारंभ किया था। केंद्र सरकार ने 2 अक्टूबर 2019 तक ग्रामीण क्षेत्रों में 1.96 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के 1.2 करोड़ शौचालयों का निर्माण करके खुले में शौच मुक्त भारत को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा था।
प्रधानमंत्री ने कहा था कि गांधीजी के दो सपनों भारत छोड़ो और स्वच्छ भारत में से एक को साकार करने में लोगों ने सहायता की। अपितु स्वच्छ भारत का दूसरा सपना अब भी पूरा होना शेष है। उन्होंने कहा कि एक भारतीय नागरिक होने के नाते यह हमारा सामाजिक दायित्व है कि हम उनके स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करें। प्रधानमंत्री ने देश की सभी पिछली सरकारों और सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों द्वारा स्वच्छता को लेकर किए गए प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि भारत को स्वच्छ बनाने का काम किसी एक व्यक्ति या अकेले सरकार का नहीं है, यह काम तो देश के 125 करोड़ लोगों द्वारा किया जाना है जो भारत माता के पुत्र-पुत्रियां हैं। स्वच्छ भारत अभियान को एक जन आंदोलन में परिवर्तित करना चाहिए। लोगों को ठान लेना चाहिए कि वह न तो गंदगी करेंगे और न ही करने देंगे। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार साफ-सफाई न होने के कारण भारत में प्रति व्यक्ति औसतन 6500 रुपये व्यर्थ हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि इसके दृष्टिगत सवच्छ भारत जन स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव डालेगा और इसके साथ ही गरीबों की गाढ़ी कमाई की बचत भी होगी, जिससे अंतत: राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान होगा। उन्होंने लोगों से साफ-सफाई के सपने को साकार करने के लिए इसमें हर वर्ष 100 घंटे योगदान करने की अपील की थी। प्रधानमंत्री ने शौचालय बनाने की अहमियत को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि साफ-सफाई को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे देशभक्ति और जन स्वास्थ्य के प्रति कटिबद्धता से जोड़ कर देखा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री द्वारा मृदला सिन्हा, सचिन तेंदुलकर, बाबा रामदेव, शशि थरूर, अनिल अम्बानी, कमल हसन, सलमान खान, प्रियंका चोपड़ा जैसी नौ हस्तियों को आमंत्रित किया गया कि वे भी स्वच्छ भारत अभियान में अपना सहयोग प्रदान करें, इसके चित्र सोशल मीडिया पर साझा करें और अन्य नौ लोगों को भी अपने साथ जोड़ें, ताकि यह एक श्रृंखला बन जाएं। आम जनता को भी सोशल मीडिया पर हैश टैग #MyCleanIndia लिखकर अपने सहयोग को साझा करने के लिए कहा गया।

देश के सामने अस्वच्छता एक बड़ी समस्या है। खुले में शौच के कारण महिलाओं को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। उन्हें रात की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इसके कारण उन्हें शारीरिक और मानसिक कष्ट झेलना पड़ता है। वे कई रोगों की चपेट में आ जाती हैं। खुले में शौच के कारण महिलाओं के साथ आपराधिक घटनाएं भी होती रहती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने प्रथम 2014 के स्वतंत्रता दिवस के भाषण में शौचालयों की आवश्यकता पर बल दिया था। उन्होंने कहा था- क्या हमें कभी दर्द हुआ है कि हमारी मां और बहनों को खुले में शौच करना पड़ता है? गांव की गरीब महिलाएं रात की प्रतीक्षा करती हैं। जब तक अंधेरा नहीं उतरता है, तब तक वे शौच को बाहर नहीं जा सकती हैं। उन्हें किस प्रकार की शारीरिक यातना होती होगी, क्या हम अपनी मां और बहनों की गरिमा के लिए शौचालयों की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं?
इसी प्रकार उन्होंने 2014 के जम्मू और कश्मीर राज्य चुनाव अभियान के दौरान स्कूलों में शौचालयों की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था- विद्यालयों में शौचालयों की कमी के कारण छात्राओं को अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़ देनी पड़ती है। वे अशिक्षित रहती हैं। हमारी बेटियों को गुणवत्ता की शिक्षा का समान अवसर भी मिलना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य व्यक्ति, क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की समस्या को समाप्त करना है। यह अभियान शहरों और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में चलाया जा रहा है। शहरी क्षेत्रों के लिए स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य 1.04 करोड़ परिवारों को लक्षित करते हुए 2.5 लाख समुदायिक शौचालय और 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय का निर्माण कराना है। इसके साथ ही प्रत्येक शहर में एक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा प्रदान करना है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत आवासीय क्षेत्रों में सामुदायिक शौचालयों का निर्माण करना है, जहां व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का निर्माण करना कठिन है। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक स्थानों जैसे बाजार, बस अड्डे, रेलवे स्टेशन, पर्यटन स्थल आदि पर सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण करना है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत देश में लगभग 11 करोड़ 11 लाख शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया। इसका उद्देश्य लोगों को स्वच्छता का महत्व बताते हुए खुले में शौच की समस्या को समाप्त करना है। इसके साथ ही बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी का उपयोग कर ग्रामीण क्षेत्रों में कचरे से जैव उर्वरक और ऊर्जा के विभिन्न रूपों में परिवर्तित करना है। इसे स्वच्छता के साथ-साथ धन उपार्जन भी होगा।
स्कूलों में भी स्वच्छ्ता के लिए अभियान चलाया गया। स्वच्छ भारत स्वच्छ विद्यालय अभियान भारत का प्रारंभ तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने किया था। उन्होंने स्कूल के शिक्षकों और छात्रों के साथ मिलकर स्वच्छता अभियान में भाग भी लिया था।

स्वच्छता अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिए सर्वेक्षण भी कराया गया और विजेता शहरों को पुरस्कार भी दिए गए। स्वच्छ भारत अभियान (शहरी) के तत्वाधान में केन्द्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 का आयोजन किया था। इसमें 4203 शहरी स्थानीय निकायों का मूल्यांकन किया गया। इसके अंतर्गत 2700 मूल्यांकन कर्मियों ने पूरे देश के 40 करोड़ लोगों से संबंधित स्थानीय निकायों का सर्वेक्षण किया। इसके लिए 53.58 लाख स्वच्छता ऐप डाउनलोड किए गए तथा 37.66 लाख नागरिकों के फीडबैक का संग्रह किया गया। नागरिकों के फीडबैक तथा सेवा स्तर में हुई प्रगति में से प्रत्येक को 35 प्रतिशत की भारिता दी गई है, जबकि प्रत्यक्ष निरीक्षण को 30 प्रतिशत की भारिता दी गई है। यह कार्यक्रम 4 जनवरी 2018 से 10 मार्च 2018 तक जारी रहा। सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश के इंदौर को देश का सबसे स्वच्छ नगर होने का सम्मान मिला। इसी राज्य के भोपाल को दूसरा स्थान मिला। चंडीगढ़ तीसरे स्थान पर रहा। राज्यों में सबसे अधिक स्वच्छ रहने वालों में झारखंड पहले स्थान पर रहा, जबकि महाराष्ट्र को दूसरा और छत्तीसगढ़ को तीसरा स्थान मिला। राष्ट्रीय स्तर के कुल 23 और जोनल स्तर के 20 पुरस्कार घोषित किए गए। उल्लेखनीय है कि इसी प्रकार इससे पूर्व भी इस प्रकार के सर्वेक्षण किए गए थे। वर्ष 2017 में 434 नगरों में स्वच्छता सर्वेक्षण किया गया था तथा इंदौर को सर्वाधिक स्वच्छ शहर का पुरस्कार दिया गया था। वर्ष 2016 में 73 नगरों में स्वच्छता सर्वेक्षण किया गया था। इसमें मैसूर को सर्वाधिक स्वच्छ नगर होने का श्रेय प्राप्त हुआ था।

देश में स्वच्छ भारत अभियान के सुखद परिणाम देखने को मिल रहे हैं। सुलभ और सुरक्षित शौचालयों के कारण महिलाओं के जीवन में परिवर्तन आया है। लोग भी इस अभियान में महत्वपूर्ण भागीदारी निभा रहे हैं। लोग यहां-वहां कूड़ा कचरा फेंकने की बजाय कूड़ेदान का प्रयोग करने लगे हैं। बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भी अब सच्छता दिखाई देने लगी है। स्कूली बच्चे और कॊलेज के छात्र भी इस अभियान में भाग ले रहे हैं। वे रैलियों और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से स्वच्छता का संदेश जन-जन तक पहुंचा रहे हैं।

विदेशों में भी स्वच्छ भारत अभियान की प्रशंसा होने लगी है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के अनुसार जापान के प्रधानमंत्री शिन्जो आबे ने स्वच्छ भारत अभियान को अपनी सरकार का समर्थन देने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने अपने संदेश में कहा है कि साफ पानी को सुरक्षित रखना और स्वच्छता की स्थिति में सुधार करना पूरी दुनिया के सामने आम चुनौती है। हम उम्मीद करते हैं कि इस मिशन को आगे बढ़ाने के लिए हर देश प्रयास करेगा।
माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल गेट्स ने भारत में स्वच्छता अभियान चलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना की है. उन्होंने ट्वीट किया- नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और भारत सरकार ने स्वच्छता में सुधार की दिशा में अहम भूमिका निभाई है. अब स्वच्छ भारत को सफल बनाने का समय है।

निसंदेह, स्वच्छ भारत अभियान शीघ्र अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लोगों के जीवन को सुखद और समृद्ध बनाएगा।

Thursday, November 15, 2018

दिल्ली की विषैली हवा

डॊ. सौरभ मालवीय
हमारे देश में वायु प्रदूषण निरंतर बढ़ रहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण घातक स्तर तक पहुंच गया है। हाल में शहर का समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक 401 दर्ज किया गया। इसी प्रकार वायु में घुले हुए अतिसूक्ष्म प्रदूषक कण पीएम 2.5 को 215 दर्ज किया गया, जो कि स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2016 में प्रदूषण के कारण पांच वर्ष से कम आयु के एक लाख से अधिक बच्चों की मृत्यु हुई। इनमें भारत के 60,987, नाइजीरिया के 47,674, पाकिस्तान के 21,136 और कांगों के 12,890 बच्चे सम्मिलित हैं। रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण 2016 में पांच से 14 साल के 4,360 बच्चों की मत्यु हुई। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में पांच साल से कम उम्र के 98 प्रतिशत बच्चों पर वायु प्रदूषण का बुरा प्रभाव पड़ा, जबकि उच्च आय वाले देशों में 52 प्रतिशत बच्चे प्रभावित हुए। वायु प्रदूषण के कारण विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 70 लाख लोगों की अकाल मृत्यु होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएन) के अनुसार भारत में बढ़ता वायु प्रदूषण वर्षा को प्रभावित कर सकता है। इसके कारण लंबे समय तक मानसून कम हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि वायु में मौजूद पीएम 2.5 कणों के कारण कुछ स्थानों बहुत अधिक वर्षा हो सकती है, तो कुछ स्थानों पर बहुत कम होने की संभावना है।

दि एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार शीतकाल में 36 प्रतिशत प्रदूषण दिल्ली में ही उत्पन्न होता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से 34 प्रतिशत प्रदूषण यहां आता है। शेष 30 प्रतिशत प्रदूषण एनसीआर और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से यहां आता है। रिपोर्ट में प्रदूषण के कारणों पर विस्तृत जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदूषण के लिए वाहनों का योगदान लगभग 28 प्रतिशत है। इसमें भी भारी वाहन सबसे अधिक 9 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। इसके पश्चात दो पहिया वाहनों का नंबर आता है, जो 7 प्रतिशत प्रदूषण फैलाते हैं। तीन पहिया वाहनों से 5 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है। चार पहिया वाहन और बसें 3-3 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न करती हैं। अन्य वाहन एक प्रतिशत प्रदूषण फैलाते हैं।
धूल से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण का योगदान 18 प्रतिशत है। इसमें सड़क पर धूल से प्रदूषण 3 प्रतिशत प्रदूषण होता है। निर्माण कार्यों से एक प्रतिशत व अन्य कारणों से 13 प्रतिशत प्रदूषण है। औद्योगों के कारण भी वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी हो रही है। शहर के प्रदूषण में 30 प्रतिशत योगदान इनका भी है। इसमें पावर प्लांट 6 प्रतिशत तथा ईंट भट्ठे 8 प्रतिशत प्रदूषण फैलाते हैं। इसी प्रकार स्टोन क्रशर के कारण 2 प्रतिशत तथा अन्य उद्योगों से 14 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न होता है। आवासीय क्षेत्रों के कारण 10 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है।
शीतकाल में पीएम 10 के स्तर पर पहुंचने के कई कारण हैं। इस मौसम में उद्योगों से 27 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न होता है, जबकि वाहनों से 24 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है। इसी प्रकार धूल से 25 प्रतिशत तथा आवासीय क्षेत्रों से 9 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है। उल्लेखनीय है कि पराली जलाने के कारण और बायोमास से केवल 4 प्रदूषण उत्पन्न होता है, जबकि दिल्ली के प्रदूषण के लिए समीपवर्ती राज्यों पंजाब और हरियाणा को दोषी ठहराया जाता है। कहा जाता है कि पंजाब और हरियाणा के किसान अपने खेतों में पराली जलाते हैं, जिसका धुआं दिल्ली में प्रदूषण का कारण बनता है।

प्रदूषण को कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दीपावली में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाते हुए, केवल ग्रीन पटाखों की बिक्री को ही स्वाकृति दी है। इतना ही नहीं, पटाखे फोड़ने के लिए भी कोर्ट ने समयसारिणी जारी कर चुका है। इसके अनुसार दीपावली पर लोग रात 8 बजे से 10 बजे तक ही पटाखे जला पाएंगे। इसके अतिरिक्त ऑनलाइन पटाखों की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राज्य में सुबह साढ़े चार बजे से सुबह साढ़े छह बजे तक भी पटाखे फोड़ने की अनुमति मांगी थी। याचिका में कहा गया था कि दीपावली के उत्सव को लेकर हर राज्य की अपनी अलग-अलग परंपराएं और संस्कृति हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का प्रतिबंध लोगों के धार्मिक अधिकारों को खारिज करता है, परंतु कोर्ट ने प्रतिबंध को हटाने से इनकार करते हुए कहा कि ग्रीन पटाखे बनाने का उनका आदेश पूरे देश के लिए है। अर्थात अब देश मे कहीं भी सामान्य पटाखे नहीं बनेंगे। केवल कम प्रदूषण वाले ग्रीन पटाखे ही बनेंगे। कोर्ट ने यह भी कहा है कि प्रदूषण करने वाले जो पटाखे पहले बन चुके है, उन्हें भी दिल्ली-एनसीआर मे बेचे जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। अपितु दिल्ली एनसीआर के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर सामान्य पटाखे चलाए जा सकते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) भी प्रदूषण को लेकर कठोर कदम उठा रहा है। बोर्ड ने पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के राज्य प्रदूषण नियंत्रण निकायों को वायु प्रदूषण की जांच के लिए निर्देशों का पालन नहीं करने वाले लोगों या एजेंसियों के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने एक नवंबर से निर्माण कार्य जैसी कई गतिविधियों को प्रतिबंध दिया है। इसके अतिरिक्त लोगों से अगले 10 दिनों के लिए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के लिए आग्रह किया गया है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में कुल 35 लाख निजी वाहन हैं। वर्ष 2016 में भी ऑड-ईवन योजना को दो बार 1 से 15 जनवरी और 15 से 30 अप्रैल के बीच लागू किया गया था। जीआरपी वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक कारगर योजना है। इसे 15 अक्टूबर से लागू किया गया था। दिल्ली मेट्रो ने भी बुधवार से अपने नेटवर्क पर 21 अतिरिक्त ट्रेनें आरंभ की हैं।

चिकित्सकों के अनुसार वायु में मिले अति सूक्ष्म कण सांस के माध्यम से शरीर के भीतर चले जाते हैं, जिसके कारण अनेक शारीरिक और मानसिक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। ये कण गर्भ में पल रहे शिशु को भी अपनी चपेट में ले लेते हैं, जिससे जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ वातावरण नितांत आवश्यक है। इसके लिए प्रदूषण पर अंकुश लगाना होगा। इस अभियान में लोगों को भी आगे आना चाहिए।

भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है