Wednesday, May 29, 2019

सेमिनार -सोशल मीडिया का भविष्य ?

23 नवम्बर 2018 - देहरादून
न्‍यू मीडिया पर हिमगिरी ज़ी यूनिवर्सिटी, देहरादून में आयोजित संगोष्‍ठी के दौरान। 
#HimgiriZeeUniversity






सानिध्य- भारत सरकार के गृहमंत्री आदरणीय श्री राजनाथ सिंह!


अटल रत्न सम्मान


25-12-2018

ABP NEWS LIVE



Tuesday, May 28, 2019

संवाद का स्वराज


देशहित में चर्चा होना संवाद का स्वराज 

इंदौर। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल और इंदौर प्रेस क्लब के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय संविमर्श 'संवाद का स्वराज' का आयोजन इंदौर प्रेस क्लब स्थित सभागार में शुक्रवार,11 मार्च 2016 को अपरान्ह 03.30 बजे किया गया।इस राष्ट्रीय संविमर्श के मुख्य अतिथि केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) के कुलपति डॉ. कुलदीपचन्द्र अग्निहोत्री जी थे 


11 march 2016

सौरभ मालवीय


धारा 370


भारतीय शोध दृष्टि


राष्ट्रीय संविमर्श
भारतीय शोध दृष्टि,22-23 अप्रैल-भोपाल
'अध्ययन और अनुसंधान में प्रमाण का भारतीय अधिष्ठान' इस विषय पर पुनरुत्थान विद्यापीठ -अहमदाबाद की कुलपति आदरणीया इन्दुमति काटदरे जी का व्यख्यान और मेरे द्वारा सत्र संचालन।

राष्ट्रवाद और मीडिया


मन की बात

प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम का सीधा प्रसारण और समीक्षा देखिये लोक सभा टीवी पर आज सुबह 10.50 से 12 बजे तक.
30,4,2017

मोदी सरकार की योजनाओं पर जमीनी नजर डालने वाली किताब है ‘विकास के पथ पर भारत’



भाजपा मुखपत्र 

कलम संदेश 
विकास के पथ पर भारत’ तथ्यात्मक सामग्री एवं गहन आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर लिखी गई किताब है। समसामयिक विषयों पर नजर रखने वाले पाठकों के लिए यह किताब किसी गोल्डन सोर्स से कम नहीं है।
किताब को डॉ. सौरभ मालवीय ने लिखा है जो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक हैं। किताब में लेखक ने मोदी सरकार की 34 योजनाओं की जमीनी हकीकत का विश्लेषण किया है। सभी योजनाओं पर संबंधित मंत्रालयों से मिले आंकड़ों के आधार पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
पुस्तक में डॉ. मालवीय ने राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, परंपरागत खेती विकास योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-नाम, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, दीनदयाल अंत्योदय योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय आयुश मिशन, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना, प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, सेतु भारतम योजना, ग्राम उदय से भारत उदय अभियान, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, स्मार्ट सिटी योजना, शादी शगुन योजना, हज नीति, नमामि गंगे योजना, स्मार्ट गंगा सिटी परियोजना, श्रमिक कल्याण की योजनाएं, पूर्वोत्तर के लिए योजनाएं, प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना, वन धन योजना, दिव्यांगों के लिए योजनाएं, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान और संकल्प से सिद्धी योजनाओं का उल्लेख किया है।

सरकार की योजनाओं के मूल्यांकन का दावा

दैनिक जागरण 
देश में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं। ऐसे में सरकार व प्रधानमंत्री के कामकाज का मूल्यांकन करती पुस्तकों के आने का क्रम जारी है। इसी कड़ी में डॉ सौरभ मालवीय की पुस्तक ‘विकास के पथ भारत’ भी आई है। ये वर्तमान केंद्र सरकार की योजनाओं और नीतियों के विषय में न केवल सरल ढंग से विस्तृत जानकारी देती है, बल्कि उनके क्रियान्वयन और परिणाम का मूल्यांकन भी करती है। मई 2014 में आकार लेने के बाद इस सरकार ने अनेक योजनाए शुरू की हैं, जिनको लेकर कई तरह के दावे भी उसकी तरफ से किए जाते रहे हैं, डॉ मालवीय की यह पुस्तक उन दावों की पड़ताल करती हुई प्रतीत होती है।
160 पन्नों की इस किताब में कुल 34 अध्याय हैं, जिनमें कृषि, स्वास्थ्य, सुरक्षा, आवास, आधारभूत ढांचे के निर्माण, रोजगार आदि विविध क्षेत्रों से सम्बंधित सरकार की अलग-अलग योजनाओं पर बात की गयी है। ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’ के अध्याय से पुस्तक की शुरुआत होती है और आगे भी कृषि क्षेत्र से सम्बंधित योजनाओं पर लेखक ने विशेष ध्यान दिया है। इसके अलावा महिलाओं से जुड़ी योजनाओं जैसे बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, मातृत्व वंदना योजना, मातृत्व सुरक्षा अभियान, महिला शक्ति केंद्र योजना, शादी शगुन योजना आदि का भी सविस्तार वर्णन किया गया है। इस पुस्तक का एक मजबूत पक्ष यह है कि इसमें कई ऐसी छोटी-छोटी योजनाओं के विषय में बताया गया है, जिनका शायद बहुत से आम लोगों को नाम भी न मालूम हो। लेकिन इसी के साथ किताब का एक कमजोर पक्ष भी है, वो ये कि इसमें कई प्रमुख योजनाओं पर अपेक्षित विस्तार के साथ चर्चा नहीं की गयी है जैसे कि मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मुद्रा योजना आदि। ये योजनाएं अपने आप में बहुत महत्व रखती हैं और इनको लेकर सरकार की तरफ से दावे भी खूब किए जाते हैं, अतः इनपर एक-एक स्वतंत्र अध्याय रखा जा सकता था जो कि नहीं है। स्वच्छ भारत अभियान पर भी एक स्वतंत्र और विस्तृत अध्याय की कमी खलती है।
बहरहाल, सरकार की योजनाओं और नीतियों पर लिखते वक्त किसी भी लेखक के लिए संतुलित दृष्टिकोण रखना एक बड़ी चुनौती होती है। डॉ मालवीय अपनी पुस्तक में इस गुण का संतोषजनक ढंग से निर्वाह करते हैं। वे हवा में कोई बात नहीं कहते, बल्कि हर बात के साथ तथ्यात्मक आधार भी प्रस्तुत करते हैं। सरकार की योजनाओं के सकारात्मक पक्षों के साथ-साथ नकारात्मक पक्षों को भी उनकी कलम बाखूबी उजागर करती है। चुनाव के इस दौर में पिछले पांच साल में वर्तमान सरकार ने क्या किया, इस प्रश्न की पड़ताल करने के इच्छुक लोगों के लिए यह पुस्तक विशेष रूप से पठनीय है।  
– पीयूष द्विवेदी
समीक्ष्य कृति – विकास के पथ पर भारत
लेखक– सौरभ मालवीय
मूल्य– 185 रुपये
प्रकाशक – यश पब्लिकेशन्स, दिल्ली

Monday, May 27, 2019

‘विकास के पथ पर भारत’


पुस्तक की प्रस्तावना वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सिन्हा
सीनियर डिप्टी  एडिटर
द हिंदू बिजनेस लाइन की कलम से....
विकास के आंकड़ों में आम आदमी हमेशा ही एक सवाल का जवाब ढ़ूंढता है। सवाल ये है कि इन आंकड़ों का मेरे लिए क्या मतलब है? सवाल तब और भी अहम बन जाता है कि एक ही दिन अखबार की दो सुर्खियां अलग-अलग कहानी कहती हैं। पहली सुर्खी है, भारत दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाला देश बना या फिर भारत अगले दो वर्षों तक सबसे तेजी से विकास करने वाला बना रहेगा देश, वहीं दूसरी सुर्खी है अरबपतियों की संपत्ति रोजाना औसतन 2200 करोड़ रुपये बढी, भारी गरीबी में जी रही 10 फीसदी आबादी लगातार 14 सालों से कर्ज में है डूबी। ऐसे में ये सवाल और भी अहम बन जाता है कि 7.3, 7.5 या 7.7 फीसदी की सालाना विकास दर के मायने आबादी के एक बहुत ही छोटे हिस्से तक सीमित है, या फिर इनका फायदा समाज में आखिरी पायदान के व्यक्ति को भी मिल पा रहा है या नहीं?
ऐसे ही सवालों का जवाब जानने के लिए ये जरुरी हो जाता है कि विकास को सुर्खी से आगे जन-जन तक पहुंचाने के लिए आखिरकार सरकार ने किया क्या, या फिर जो किया वो पहले से किस तरह से अलग था? इस सवाल का जवाब जानने के लिए आइए आपको 2014 में वापस लिए चलते हैं। लालकिले की प्राचीर से अपने पहले स्वतंत्रता दिवस भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तीय समावेशन की नयी योजना की घोषणा की। इसके तहत हर परिवार के लिए कम से कम एक बैंक खाता खोले जाने की बात कही गयी। घोषणा के ठीक 14 दिन के भीतर योजना की शुरुआत भी हो गयी। ऐसा नहीं था कि वित्तीय समावेशन की पहले कोई योजना नहीं थी, लेकिन पहले जहां जोर निश्चित आबादी वाले गांव के लिए बैंकिंग सुविधा शुरु करने की बात थी, वहीं नयी योजना में पहले हर परिवार (ग्रामीण व शहरी, दोनो) और अब हर वयस्क को बैंकिंग के दायरे में लाने का लक्ष्य है।
बैंक खाता तो खुला ही, ये भी सुनिश्चित करने की पहल हुई कि खाते में पैसा आता रहे। इसीलिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का पैसा सीधे-सीधे लाभार्थियों तक पहुंचाने के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल किया जाने लगा। फायदा लक्ष्य तक पहुंचने, इसके लिए जैम (जनधन-आधार-मोबाइल) को अमल में लाया गया। याद कीजिए, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के उस बयान का जिसमें कहा गया था कि दिल्ली से चलने वाला एक रुपये में महज 15 पैसा ही जरुरतमंदों तक पहुंच पाता है। अब कहानी ये है कि जैम के जरिए सरकार ने अपने कार्यकाल में 31 दिसंबर 2018 तक विभिन्न सरकारी योजनाओं में 92 हजार करोड़ रुपये बचाने में कामयाबी हासिल की है और ये संभव हो पाया जैम के सहारे चलने वाले प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण यानी डीबीटी के जरिए। मतलब योजनाएं सिर्फ बनी ही नहीं या फिर पुरानी में बदलाव ही नहीं किया गया, बल्कि कोशिश ये कही गयी कि दिल्ली से चले रुपये का एक-एक पाई लक्ष्य तक पहुंचे। साथ ही सीमित संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो सके।
जन-धन से जन सुरक्षा का आधार तैयार हुआ। जन सुरक्षा यानी कम से कम प्रीमियम पर बीमा (जीवन और गैर-जीवन) सुरक्षा। महज एक रुपये प्रति महीने पर दुर्घटना बीमा और एक रुपये प्रति दिन से भी कम प्रीमियम पर जीवन बीमा ने सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में बडा बदलाव किया। और तो और इन सुरक्षा के लिए भारी-भरकम कागजी कार्रवाई या दफ्तर के लगातार चक्कर काटने की जरुरत नहीं। तकनीक के इस्तेमाल के जरिए सुरक्षा हासिल करने के लेकर दावे के निबटारे को आसान बना दिया गया है। जन सुरक्षा के बाद अब कोशिश है ज्यादा से ज्यादा लोगों को वित्तीय तौर पर साक्षऱ बनाने की।मतलब साफ है जन की योजनाएं सही मायने में जब तक जनता की जिंदगी के ज्यादा से ज्यादा पहलुओं को नहीं छुएगी, तब तक उसकी कोई सार्थकता नहीं होगी।
जन-धन सरकारी योजनाओं के बदलते स्वरुप का एक उदाहरण है। सच तो यही है कि किसी भी सरकारी योजना की सार्थकता इस बात पर निर्भर करती है कि कितनी जल्दी वो सरकारी सोच से आम आदमी की सोच में अपनी जगह बना पाती है। साथ ही जरुरी ये भी है कि सरकारी योजनाओं को महज पैसा बांटने का एक माध्यम नही माना जाए, बल्कि ये देखना भी जरुरी होगा कि वो किस तरह व्यक्ति से लेकर समाज, राज्य और फिर देश की बेहतरी मे योगदान कर सके। ये भी बेहतर होगा कि मुफ्त में कुछ भी बांटने का सिलसिला बंद होना चाहिए।क्या ऐसा सब कुछ पिछले साढे चार साल के दौरान शुरु की गयी योजनाओं में देखने को मिला है, इसका जवाब काफी हद तक हां में होगा। एक और बात। राज्यों के बीच भी नए प्रयोगों के साथ योजनाएं शुरु करने की प्रतिस्पर्धा चल रही है और सुखद निष्कर्ष ये है कि चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ने शुरु की हो, उसकी उपयोगिता को दूसरी राजनीतिक दलों की सरकारों ने पहचाना। तेलंगाना की रायतु बंधु योजना और ओडीशा की कालिया योजना को ही ले लीजिए। किसानों की जिंदगी बदलने की इन योजनाओं का केद्र सरकार अध्ययन कर रही है, ताकि राष्ट्रीय स्तर की योजना में इन योजनाओं की कुछ खास बातों को शामिल किया जा सके।
विभिन्न सरकारी योजनाओं को शुरु करने का लक्ष्य यही है कि विकास का फायदा हर किसी को मिले यानी विकास समावेशी हो। कुछ ऐसे ही पैमानों के आधार पर यहां उल्लेखित 36 योजनाओं का आंकलन किया जाना चाहिए। फिर ये सवाल उठाया जा सकता है कि क्या ये योजनाएं कामयाब है? अगर सरकार कहे कामयाब तो असमानता को लेकर जारी नयी रिपोर्ट (उपर लिखित दूसरी सुर्खी का आधार) को सामने रख चर्चा करने से नहीं हिचकना चाहिए। देखिए एक बात तो तय है कोई कितना भी धर्म-जाति-संप्रदाय को आधार बनाकर राजनीति कर ले लेकिन मतदाता ईवीएम पर बटन दबाने के पहले एक बार जरुर सोचता है कि अमुक उम्मीदवार ने विकास के लिए क्या कुछ किया है, या फिर क्या वो आगे विकास के बारे में कुछ ठोस कर सकेगा। मत भूलिए सरकारी योजनाएं आपके ही पैसे से चलती हैं और इन योजनाओं की सार्थकता पर अपना पक्ष रखने के लिए हर पांच साल में आपको एक मौका तो मिलता ही है।
ऐसी सोच विकसित करने के लिए जरुरी है कि आपके समक्ष सरकारी योजनाओं का ब्यौरा सरल और सहज तरीके से पेश किया जाए। उम्मीद है कि प्रस्तुत पुस्तक विकास के पथ पर भारत इस काम में मदद करेगा। उम्र से युवा लेकिन विचारों से प्रौढ़ डॉक्टर सौरभ मालवीय ने गहन अध्ययन के बाद केंद्र व राज्य सरकारों की 36 प्रमुख योजनाओं को समझाने की एक सार्थक पहल की है। सौरभ भाई ऊर्जावान हैं और निरंतर कुछ-ना-कुछ करते रहते हैं, इसीलिए यकिन रखिए वो जल्द ही बाकी कई दूसरी प्रमुख सरकारी योजनाओं को लेकर मार्गदर्शिका लेकर आपके समक्ष उपस्थित होंगे।
शुभकामनाएं!
शिशिर सिन्हा
सीनियर डिप्टी  एडिटर
द हिंदू बिजनेस लाइन


शोध उपाधि

विषय - 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया'
मा.वेंकैया नायडू जी { उपराष्ट्रपति -भारत सरकार }
श्री शिवराज सिंह चौहान (मख्यमंत्री मध्यप्रदेश )


सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

2,5,2016 -भोपाल 

जीवन ना तो भविष्य में है ना ही अतीत में, जीवन तो केवल वर्तमान में है.


Wednesday, May 22, 2019

सांस्‍कृतिक राष्‍ट्रवाद और मीडिया'

   बौद्धिक बैठकी जाने-माने स्‍तंभकार  Awadhesh Kumar जी अवधेश जी ने  समसामयिक गतिविधियों के बारे में विस्‍तार से बताया। 

मीडिया की दृष्टि "तथ्य और सत्य"



मुक्तांगन के आंगन से
मीडिया की दृष्टि "तथ्य और सत्य"
सईद अंसारी (आजतक),सुजीत ठाकुर (इंडिया टुडे),सरोज सिंह(बीबीसी), सन्तोष कुमार(दैनिक भास्कर),नीलू रंजन(दैनिक जागरण )

अमरकंटक यात्रा

पुण्य सलिला मां नर्मदा से साक्षात्कार
मातृत्व भारतीय संस्कृति में अतुलनीय स्थान है।मातृत्व केवल एक शरीर में नहीं बसता, अपितु एक भाव के रूप में संपूर्ण समाज में प्रभावित होता। मेकलसुता मां नर्मदा मातृत्व के भाव का एक ऐसा ही विराट प्रवाह है जो अनंतकाल सेअपनी भूमि और उस पर जन्म लेने वाली असंख्य संतानों को सभ्यता,संस्कारों,भक्ति,कला,प्रेम,स्वतंत्रता और समृद्धि के जीवन मूल्यों से पोषित करती है और अन्ततः अपनी सन्तानों के लिए मुक्ति का साधन भी बनती है।
22,5,2016

मोदी सरकार की योजनाओं पर जमीनी नजर डालने वाली किताब है 'विकास के पथ पर भारत'

'विकास के पथ पर भारत' तथ्यात्मक सामग्री एवं गहन आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर लिखी गई किताब है। समसामयीक विषयों पर नजर रखने वाले पाठकों के लिए यह किताब किसी गोल्डन सोर्स से कम नहीं है।

किताब में लेखक ने मोदी सरकार की 34 योजनाओं की जमीनी हकीकत का विश्लेषण किया है। सभी योजनाओं पर संबंधित मंत्रालयों से मिले आंकड़ों के आधार पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

किताब को डॉक्टर सौरव मालवीय ने लिखा है जो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक हैं। लेखक का मानना है कि अक्सर अज्ञानता और अशिक्षा के कारण लोगों को सरकार की जन हितैशी योजनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती, जिसके कारण वे इन योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं। किताब, इसी अज्ञानता की खाई को भरने के लिए लिखी गई है। इस पुस्तक का उद्देश्य यही है कि लोग उन सभी योजनाओं का लाभ उठाएं, जो सरकार उनके कल्याण के लिए चला रही हैं।

'विकास के पथ पर भारत' में वर्तमान सरकार द्वारा चलाई जा रही 34 प्रमुख योजनाओं का विस्तृत उल्लेख है। यह किताब सरकारी योजनाओं की प्लैनिंग से लेकर क्रियान्वयन और जमीनी हकीकत पर प्रकाश डालती है। अलग-अलग योजनाओं पर पैनी नजर रखते हुए उससे लोगों के होने वाले लाभ को रेखांकित करने साथ-साथ पुस्तक उपयुक्त  योजनाओं की समीक्षा भी करती है। कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि यह किताब सरकारी योजनाओं के सूचनात्मक, व्याख्यात्मक विवरण और तथ्यों पर आधारित है।

पुस्तक में डॉ मालवीय ने राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, परंपरागत खेती विकास योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-नाम, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, दीनदयाल अंत्योदय योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय आयुश मिशन, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना, प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, प्रधानमंत्री उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, सेतु भारतम योजना, ग्राम उदय से भारत उदय अभियान, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, स्मार्ट सिटी योजना, शादी शगुन योजना, हज नीति, नमामि गंगे योजना, स्मार्ट गंगा सिटी परियोजना, श्रमिक कल्याण की योजनाएं, पूर्वोत्तर के लिए योजनाएं, प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना, वन धन योजना, दिव्यांगों के लिए योजनाएं, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान और संकल्प से सिद्धी योजनाओं का उल्लेख किया है।

 
पुस्तकः विकास के पथ पर भारत
लेखकः डॉ सौरभ मालवीय
प्रकाशकः यश पब्लिकेशंस
मूल्यः 395 रुपए
पृष्ठ संख्याः 160

पुस्तक समीक्षाः विकास के पथ पर भारत, केंद्र-राज्य सरकारों की योजनाओं का ब्योरा

माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. सौरभ मालवीय ने गहन अध्ययन के बाद 'विकास के पथ पर भारत' नामक किताब के माध्यम से केंद्र व राज्य सरकारों की 36 प्रमुख योजनाओं को समझाने की पहल की है.

जय प्रकाश पाण्डेय
लोकसभा चुनाव के दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करने वाले लेखकों में उनकी तारीफ करने की होड़ सी लगी है. उन पर लिखी किताबों की बाढ़ सी आ गई है. कुछ लोग उनके व्यक्तित्व पर लिख रहे, तो कुछ कृतित्व पर, कुछ जीवनी लिख रहे तो कुछ उनके व्याख्यान सहेज रहे. पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. सौरभ मालवीय की किताब 'विकास के पथ पर भारत' इससे  थोड़ी अलग है. हालांकि किताब के कवर पर संसद भवन के साथ प्रधानमंत्री मोदी की खिलखिलाती तस्वीर देख यह लगता है कि यह किताब भी उनका प्रचार करने वाली ही है, पर इसके अध्याय व पृष्ठ पलटने के बाद यह मान्यता बदलती सी लगती है, और यह स्पष्ट सा हो जाता है कि यह किताब सरकारी योजनाओं के सूचनात्मक, व्याख्यात्मक विवरण और तथ्यों पर आधारित है न कि तारीफ पर. सौरभ मालवीय ने गहन अध्ययन के बाद इस किताब के माध्यम से केंद्र व राज्य सरकारों की 36 प्रमुख योजनाओं को समझाने की पहल की है.
इस किताब की प्रस्तावना में सौरभ मालवीय ने लिखा भी है कि 'देश के लोगों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास के लिए सरकार अनेक योजनाएं चला रही हैं. हर योजना का उद्देश्य होता है कि उसका लाभ हर व्यक्ति तक पहुंचे. जब योजना का लाभ व्यक्ति तक पहुंचता है, वह योजना सफल होती है. इस समय देश में लगभग डेढ़ सौ योजनाएं चल रही हैं. इनमें अधिकतर पुरानी योजनाएं हैं. इनमें कई ऐसी पुरानी योजनाएं भी हैं, जिनके नाम बदल दिए गए हैं. इनमें कई ऐसी योजनाएं भी हैं, जो लगभग बंद हो चुकी थीं और उन्हें दोबारा शुरू किया गया है. इनमें कुछ नई योजनाएं भी सम्मिलित हैं. देश में दो प्रकार की सरकारी योजनाएं चल रही हैं. पहली योजनाएं वे हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाती हैं. इस तरह की योजनाएं पूरे देश या देश के कुछ विशेष राज्यों में चलाई जाती हैं. दूसरी योजनाएं वे हैं, जो राज्य सरकारें चलाती हैं. इस पुस्तक के माध्यम से सरकारी की कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए उन्हें पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है. अकसर ऐसा होता है कि अज्ञानता और अशिक्षा के कारण लोगों को सरकार की जन हितैषी योजनाओं की जानकारी नहीं होती, जिसके कारण वे इन योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं. इस पुस्तक का उद्देश्य यही है कि लोग उन सभी योजनाओं का लाभ उठाएं, जो सरकार उनके कल्याण के लिए चला रही है।. इन योजनाओं की जानकारी संबंधित मंत्रालयों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. उल्लेखनीय है कि समय-समय पर योजनाओं में आंशिक रूप से परिवर्तन भी होता रहता है.
प्रकाशक यश पब्लिकेशंस ने भी अपनी बात कही है. प्रकाशक ने लिखा है कि देश की केंद्र सरकार और राज्य सरकारें जनता के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं चला रही हैं. इन योजनाओं का मुख्य उद्देश्य जनता के जीवन स्तर में सुधार लाना तथा सभी क्षेत्रों का समान विकास सुनिश्चित बनाना है. सरकार द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को लक्षित समूहों की स्थिति के अनुरूप तैयार किया जाता है, ताकि लक्षित वर्ग इन से लाभान्वित हो सके. सरकार महिला सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दे रही है और इसके लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं. सरकार द्वारा  बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, प्रधानमंत्री उज्जवला योजना, जन धन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना, डिजीटल इंडिया तथा स्वच्छ भारत मिशन आदि महत्वकांक्षी योजनाएं चलाई जा रही हैं. यह पुस्तक केंद्र और राज्य सरकारों की ऐसी ही कुछ योजनाओं पर प्रकाश डालती है. इस पुस्तक के माध्यम से सरकार की जनहितैषी योजनाओं की जानकारी जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है. निश्चित रूप से यह पुस्तक  अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करेगी.
किताब की भूमिका में वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सिन्हा ने लिखा है कि विकास के आंकड़ों में आम आदमी हमेशा ही एक सवाल का जवाब ढ़ूंढता है. सवाल ये है कि इन आंकड़ों का 'मेरे' लिए क्या मतलब है? सवाल तब और भी अहम बन जाता है कि एक ही दिन अखबार की दो सुर्खियां अलग-अलग कहानी कहती हैं. पहली सुर्खी है, 'भारत दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाला देश बना' या फिर 'भारत अगले दो वर्षों तक सबसे तेजी से विकास करने वाला बना रहेगा देश,' वहीं दूसरी सुर्खी है 'अरबपतियों की संपत्ति रोजाना औसतन 2200 करोड़ रुपए बढ़ी, भारी गरीबी में जी रही 10 फीसदी आबादी लगातार 14 सालों से कर्ज में है डूबी.' ऐसे में ये सवाल और भी अहम बन जाता है कि 7.3, 7.5 या 7.7 फीसदी की सालाना विकास दर के मायने आबादी के एक बहुत ही छोटे हिस्से तक सीमित है, या फिर इनका फायदा समाज में आखिरी पायदान के व्यक्ति को भी मिल पा रहा है या नहीं?
ऐसे ही सवालों का जवाब जानने के लिए ये जरुरी हो जाता है कि विकास को सुर्खी से आगे जन-जन तक पहुंचाने के लिए आखिरकार सरकार ने किया क्या, या फिर जो किया वो पहले से किस तरह से अलग था?.... इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश यह किताब करती है...अपनी भूमिका में उन्होंने आगे लिखा है कि सच तो यही है कि किसी भी सरकारी योजना की सार्थकता इस बात पर निर्भर करती है कि कितनी जल्दी वो सरकारी सोच से आम आदमी की सोच में अपनी जगह बना पाती है. साथ ही जरुरी ये भी है कि सरकारी योजनाओं को महज पैसा बांटने का एक माध्यम नहीं माना जाए, बल्कि ये देखना भी जरुरी होगा कि वो किस तरह व्यक्ति से लेकर समाज, राज्य और फिर देश की बेहतरी मे योगदान कर सके. ये भी बेहतर होगा कि मुफ्त में कुछ भी बांटने का सिलसिला बंद होना चाहिए. क्या ऐसा सब कुछ पिछले साढ़े चार साल के दौरान शुरु की गयी योजनाओं में देखने को मिला है, इसका जवाब काफी हद तक हां में होगा. एक और बात. राज्यों के बीच भी नए प्रयोगों के साथ योजनाएं शुरु करने की प्रतिस्पर्धा चल रही है और सुखद निष्कर्ष ये है कि चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ने शुरु की हो, उसकी उपयोगिता को दूसरी राजनीतिक दलों की सरकारों ने पहचाना. तेलंगाना की रायतु बंधु योजना और ओड़िशा की कालिया योजना को ही ले लीजिए. किसानों की जिंदगी बदलने की इन योजनाओं का केंद्र सरकार अध्ययन कर रही है, ताकि राष्ट्रीय स्तर की योजना में इन योजनाओं की कुछ खास बातों को शामिल किया जा सके.
विभिन्न सरकारी योजनाओं को शुरू करने का लक्ष्य यही है कि विकास का फायदा हर किसी को मिले यानी विकास समावेशी हो. कुछ ऐसे ही पैमानों के आधार पर यहां उल्लेखित 36 योजनाओं का आंकलन किया जाना चाहिए. फिर ये सवाल उठाया जा सकता है कि क्या ये योजनाएं कामयाब हैं? अगर सरकार कहे कामयाब तो असमानता को लेकर जारी नई रिपोर्ट को सामने रख चर्चा करने से नहीं हिचकना चाहिए. एक बात तो तय है कोई कितना भी धर्म-जाति-संप्रदाय को आधार बनाकर राजनीति कर ले लेकिन मतदाता ईवीएम पर बटन दबाने के पहले एक बार जरुर सोचता है कि अमुक उम्मीदवार ने विकास के लिए क्या कुछ किया है, या फिर क्या वो आगे विकास के बारे में कुछ ठोस कर सकेगा. मत भूलिए सरकारी योजनाएं आपके ही पैसे से चलती हैं और इन योजनाओं की सार्थकता पर अपना पक्ष रखने के लिए हर पांच साल में आपको एक मौका तो मिलता ही है. ऐसी सोच विकसित करने के लिए जरुरी है कि आपके समक्ष सरकारी योजनाओं का ब्यौरा सरल और सहज तरीके से पेश किया जाए. पुस्तक 'विकास के पथ पर भारत' इस काम में मदद करेगी.
पुस्तकः विकास के पथ पर भारत
लेखकः डॉ सौरभ मालवीय
प्रकाशकः यश पब्लिकेशंस
मूल्यः 395 रुपए
पृष्ठ संख्याः 159

फागुन आते ही चहुंओर होली के रंग दिखाई देने लगते हैं

डॊ. सौरभ मालवीय
फागुन आते ही चहुंओर होली के रंग दिखाई देने लगते हैं. जगह-जगह होली मिलन समारोहों का आयोजन होने लगता है. होली हर्षोल्लास, उमंग और रंगों का पर्व है. यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इससे एक दिन पूर्व होलिका जलाई जाती है, जिसे होलिका दहन कहा जाता है. दूसरे दिन रंग खेला जाता है, जिसे धुलेंडी, धुरखेल तथा धूलिवंदन कहा जाता है. लोग एक-दूसरे को रंग, अबीर-गुलाल लगाते हैं. रंग में भरे लोगों की टोलियां नाचती-गाती गांव-शहर में घूमती रहती हैं. ढोल बजाते और होली के गीत गाते लोग मार्ग में आते-जाते लोगों को रंग लगाते हुए होली को हर्षोल्लास से खेलते हैं. विदेशी लोग भी होली खेलते हैं. सांध्य काल में लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं और मिष्ठान बांटते हैं.

पुरातन धार्मिक पुस्तकों में होली का वर्णन अनेक मिलता है. नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख है. विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से तीन सौ वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी होली का उल्लेख किया गया है. होली के पर्व को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित हैं. सबसे प्रसिद्ध कथा विष्णु भक्त प्रह्लाद की है. माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था. वह स्वयं को भगवान मानने लगा था.  उसने अपने राज्य में भगवान का नाम लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था. जो कोई भगवान का नाम लेता, उसे दंडित किया जाता था. हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था. प्रह्लाद की प्रभु भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने भक्ति के मार्ग का त्याग नहीं किया. हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में भस्म नहीं हो सकती. हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि कुंड में बैठे. अग्नि कुंड में बैठने पर होलिका तो जल गई, परंतु प्रह्लाद बच गया. भक्त प्रह्लाद की स्मृति में इस दिन होली जलाई जाती है. इसके अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी संबंधित है. कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था. इससे प्रसन्न होकर गोपियों और ग्वालों ने रंग खेला था.

देश में होली का पर्व विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है. ब्रज की होली मुख्य आकर्षण का केंद्र है. बरसाने की लठमार होली भी प्रसिद्ध है. इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएं उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं. मथुरा का प्रसिद्ध 40 दिवसीय होली उत्सव वसंत पंचमी से ही प्रारंभ हो जाता है. श्री राधा रानी को गुलाल अर्पित कर होली उत्सव शुरू करने की अनुमति मांगी जाती है. इसी के साथ ही पूरे ब्रज पर फाग का रंग छाने लगता है. वृंदावन के शाहजी मंदिर में प्रसिद्ध वसंती कमरे में श्रीजी के दर्शन किए जाते हैं. यह कमरा वर्ष में केवल दो दिन के लिए खुलता है. मथुरा के अलावा बरसाना, नंदगांव, वृंदावन आदि सभी मंदिरों में भगवान और भक्त पीले रंग में रंग जाते हैं. ब्रह्मर्षि दुर्वासा की पूजा की जाती है. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में भी वसंत पंचमी से ही लोग होली खेलना प्रारंभ कर देते हैं. कुल्लू के रघुनाथपुर मंदिर में सबसे पहले वसंत पंचमी के दिन भगवान रघुनाथ पर गुलाल चढ़ाया जाता है, फिर भक्तों की होली शुरू हो जाती है. लोगों का मानना है कि रामायण काल में हनुमान ने इसी स्थान पर भरत से भेंट की थी. कुमाऊं में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियां आयोजित की जाती हैं. बिहार का फगुआ प्रसिद्ध है. हरियाणा की धुलंडी में भाभी पल्लू में ईंटें बांधकर देवरों को मारती हैं. पश्चिम बंगाल में दोल जात्रा निकाली जाती है. यह पर्व चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है. शोभायात्रा निकाली जाती है. महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेला जाता है. गोवा के शिमगो में शोभा यात्रा निकलती है और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. पंजाब के होला मोहल्ला में सिक्ख शक्ति प्रदर्शन करते हैं. तमिलनाडु की कमन पोडिगई मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंत का उत्सव है. मणिपुर के याओसांग में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है, जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है. दक्षिण गुजरात के आदिवासी भी धूमधाम से होली मनाते हैं. छत्तीसगढ़ में लोक गीतों के साथ होली मनाई जाती है.  मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी भगोरिया मनाते हैं. भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी होली मनाई जाती है.

होली सदैव ही साहित्यकारों का प्रिय पर्व रहा है. प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में होली का उल्लेख मिलता है. श्रीमद्भागवत महापुराण में रास का वर्णन है. अन्य रचनाओं में 'रंग' नामक उत्सव का वर्णन है. इनमें हर्ष की प्रियदर्शिका एवं रत्नावली और कालिदास की कुमारसंभवम् तथा मालविकाग्निमित्रम् सम्मिलित हैं. भारवि एवं माघ सहित अन्य कई संस्कृत कवियों ने अपनी रचनाओं में वसंत एवं रंगों का वर्णन किया है. चंद बरदाई द्वारा रचित हिंदी के पहले महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में होली का उल्लेख है. भक्तिकाल तथा रीतिकाल के हिन्दी साहित्य में होली विशिष्ट उल्लेख मिलता है. आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्तिकालीन सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर, जायसी, मीराबाई, कबीर और रीतिकालीन बिहारी, केशव, घनानंद आदि कवियों ने होली को विशेष महत्व दिया है. प्रसिद्ध कृष्ण भक्त महाकवि सूरदास ने वसंत एवं होली पर अनेक पद रचे हैं. भारतीय सिनेमा ने भी होली को मनोहारी रूप में पेश किया है. अनेक फिल्मों में होली के कर्णप्रिय गीत हैं.

होली आपसी ईर्ष्या-द्वेष भावना को बुलाकर संबंधों को मधुर बनाने का पर्व है, परंतु देखने में आता है कि इस दिन बहुत से लोग शराब पीते हैं, जुआ खेलते हैं, लड़ाई-झगड़े करते हैं. रंगों की जगह एक-दूसरे में कीचड़ डालते हैं. काले-नीले पक्के रंग एक-दूसरे पर फेंकते हैं. ये रंग कई दिन तक नहीं उतरते. रसायन युक्त इन रंगों के कारण अकसर लोगों को त्वचा संबंधी रोग भी हो जाते हैं. इससे आपसी कटुता बढ़ती है. होली प्रेम का पर्व है, इसे इस प्रेमभाव के साथ ही मनाना चाहिए. पर्व का अर्थ रंग लगाना या हुड़दंग करना नहीं है, बल्कि इसका अर्थ आपसी द्वेषभाव को भुलाकर भाईचारे को बढ़ावा देना है. होली खुशियों का पर्व है, इसे शोक में न बदलें.

पुस्तक समीक्षाः विकास के पथ पर भारत, केंद्र सरकार की योजनाओं का तथ्यात्मक विवरण

भोपाल. माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. सौरभ मालवीय ने 'विकास के पथ पर भारत' नाम की किताब लिखी है। इसमें उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों की 36 प्रमुख योजनाओं का व्याख्यात्मक और तथ्यों पर आधारित विवरण प्रस्तुत किया है। यश पब्लिकेशंस ने किताब को प्रकाशित किया है। 

प्रस्तावना में लेखक ने बताया कि वर्तमान में देश में करीब 150 योजनाएं चल रही हैं। ज्यादातर पुरानी हैं। कई के नाम भी बदले गए। कई करीब-करीब बंद हो चुकी योजनाओं को दोबारा शुरू किया गया। देश में दो प्रकार की सरकारी योजनाएं हैं। इन्हें केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से चलाया जाता है। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं पर प्रकाश डाला है और उन्हें पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास किया।
वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सिन्हा ने किताब की भूमिका में लिखा है कि विकास के आंकड़ों में आम आदमी हमेशा ही एक सवाल का जवाब तलाश करता है। इन आंकड़ों का 'मेरे' लिए क्या मतलब है? इस किताब की मदद से आम आदमी के इन जवाबों का तलाश करने की कोशिश करती है।
विभिन्न सरकारी योजनाओं को शुरू करने का लक्ष्य लक्षित वर्ग तक लाभ पहुंचाना है। हालांकि, सरकार के दावों के अतिरिक्त ये सवाल भी उठता है कि आम आदमी के नजरिए से क्या ये योजनाएं कामयाब हैं? एक अहम बात यह भी है कि वोटर जब वोट देने जाता है तो उसके दिमाग में कहीं न कहीं यह बात जरूर होती है कि फलां उम्मीदवार ने विकास के लिए क्या किया? ऐसे में इस किताब के माध्यम से लेखक ने सरकारी योजनाओं का ब्यौरा सरल तरीके से पेश किया है।
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Thursday, January 10, 2019

भारतीय पत्रकारिता का पिंड है राष्ट्रवाद, फिर इससे गुरेज क्यों?

सौरभ मालवीय ने कहा अटल बिहारी वाजपेयी जन्मजात वक्ता थे, जन्मजात कवि हृदय थे, पत्रकार थे, प्रखर राष्ट्रवादी थे. उनके बारे में कहा जाता था कि यदि वह पाकिस्तान से चुनाव लड़ते तो वहां से भी जीत जाते और पाकिस्तान का नेता कहे जाते.
जय प्रकाश पाण्डेय
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के सहयोग से प्रगति मैदान में लगे विश्व पुस्तक मेला 2019 में लेखक मंच पर 'साहित्य आजतक' का अगला सत्र था डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक 'राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष- अटल बिहारी वाजपेयी' पर चर्चा का. जहां सईद अंसारी से बातचीत के लिए मौजूद रहे पं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और इस किताब के लेखक डॉ. सौरभ मालवीय. सत्र के शुरू में सईद ने मालवीय की राजनीतिक और सामाजिक समझ की तारीफ करते हुए पूछा कि किस तरह वह अटल बिहारी वाजपेयी को एक पत्रकार और वह भी एक राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष के रूप में देखते हैं.

डॉ. सौरभ मालवीय ने 'साहित्य आजतक' का आभार जताते हुए, 'तेरा तुझको अर्पण' की बात कही और कहा कि देश और समाज ने हमको जो दिया हमने उसे वही लौटाया. अटल बिहारी वाजपेयी इस सोच के महान नायक थे. मेरा मानना है कि राजनीति एक ऐसी विधा है, एक ऐसा क्षेत्र है, जो किसी भी समाज के विकास की प्रक्रिया के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है. परंतु दुर्भाग्य यह है कि आजादी के बाद राजनीति को देखने की दृष्टि संकुचित कर दी गई. राजनीति में काम करने वाला व्यक्ति, नेता बनने वाला व्यक्ति समाज में उस तरह से नहीं स्वीकार किया गया, जैसे कि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे पढ़ कर डॉक्टर बने, वकील बने, इंजीनियर बने पर कोई व्यक्ति यह नहीं कहना चाहता कि मैं राजनेता हूं. ऐसे सवालों के जवाब में जिस व्यक्ति ने अपनी पूरी उम्र दी उस व्यक्ति का नाम अटल बिहारी वाजपेयी था.

अटल बिहारी वाजपेयी जन्मजात वक्ता थे, जन्मजात कवि हृदय थे, पत्रकार थे, प्रखर राष्ट्रवादी थे. उनके बारे में कहा जाता था कि यदि वह पाकिस्तान से चुनाव लड़ते तो वहां से भी जीत जाते और पाकिस्तान का नेता कहे जाते. राजनीति को जब प्रश्नों के दायरे में खड़ा किया जा रहा है तब अटल जी की स्वीकार्यता जन-जन में थी. राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, नंबूदरीपाद, अटल बिहारी वाजपेयी, दीन दयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पं जवाहरलाल नेहरू तमाम ऐसे नेता थे, जिन्होंने पहले यह तय किया कि हमें आजादी, राष्ट्र का विकास चाहिए. इन सबने राष्ट्र को सर्वोपरि रखा.

राष्ट्रवादी पत्रकारिता की व्याख्या करते हुए डॉ. सौरभ मालवीय ने कहा कि इसका अर्थ है समाज के सभी वर्गों को, समाज में निचले स्तर पर जीने वाले हर व्यक्ति को सभी संसाधन उपलब्ध कराने में अपना सर्वस्व जीवन निछावर कर देना. अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना जीवन इसीलिए निछावर कर दिया. इसीलिए इस किताब को लिखने की जरूरत पड़ी. अटल बिहारी वाजपेयी केवल नेता भर नहीं थे. उनकी सभाएं देश भर में होती थीं, तो दूसरे दलों के नेता भी उनका भाषण एक नेता के तौर पर सुनने जाते थे, किसी दल के नेता विशेष के तौर पर नहीं.

अटल बिहारी वाजपेयी की पत्रकारिता की उम्र बहुत कम थी. वह आज की पत्रकारिता से अलग थी. उस समय के समाचारपत्रों में वैचारिक पत्रकारिता होती थी. अटल जी जितने भी पत्रपत्रिकाओं से जुड़े रहे उन्होंने अपने छोटे वैचारिक लेखों, संपादकीय से भी अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी. उन्हें पढ़ने के बाद मन झंकृत हो जाता है. मेला, राष्ट्रीय एकता, भाषा, हिंदी भाषा पर उनके अद्भुत लेख हैं.

आज के दौर की पत्रकारिता पर डॉ. सौरभ मालवीय का कहना था कि पहले की पत्रकारिता में राष्ट्र सर्वोपरि है. गुलामी से आजादी पाने के बाद कोई भी देश टूटा हुआ ही होता है. भारत की स्थिति भी उससे अलग नहीं थी. पर आज की पत्रकारिता जनोन्मुख है. आज की पत्रकारिता जनजागृति की पत्रकारिता है. अब आप चीजों को छुपा नहीं सकते. आज एक चीज बड़े संकट में है कि पत्रकार पक्षकार बन गया है. और जब पत्रकार पक्षकार बनेगा तो देश और मीडिया के सामने चुनौतियां रहेंगी ही. इसका समाधान जनता और मीडिया को खुद करना होगा. अटल बिहारी वाजपेयी ने वैचारिक प्रतिबद्धता होते हुए भी उसे अपनी पत्रकारिता पर हावी नहीं होने दिया. हर मीडिया घराने में न सही पर हर पत्रकार अपने विंडो टाइम में कहीं न कहीं अपने विचारों को ले ही आता है.

लोहिया, गांधी, नेहरू और अटल का जिक्र करते हुए उन्होंने प्राइम टाइम पत्रकारों पर आरोप लगाया कि वे पक्षकार हो गए हैं. इसीलिए पत्रकारिता को राष्ट्रवाद से जोड़ने की बात इस किताब में की गई. जिन्हें राष्ट्रवाद शब्द से दिक्कत है उन्हें पत्रकार कैसे कह सकते हैं, जबकि सच्चाई यही है कि जब कहीं किसी की बात नहीं सुनी जाती तो वह मीडिया के दरवाजे पर आता है. आपको कहीं न्याय न मिल रहा हो तो आप पत्रकार के पास जाइए वहां न्याय मिलेगा, क्योंकि पत्रकार दर्द से जीता है, लेकिन दूसरे के दर्द को पीता है. पत्रकार की जिंदगी मोमबत्ती के समान है, तिल तिल जलना और दूसरों को रोशनी देना. जहां यह मनोभाव है वहां, राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादिता से विरोध क्यों. बाल गंगाधर तिलक, गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी को देखिए. हमारी पत्रकारिता का पिंड है राष्ट्रवाद.

भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है