पुस्तक भेंट
-
प्रिय ईशान प्रताप सिंह से सुखद भेंट. इस अवसर पर उन्हें अपनी पुस्तक 'भारतीय
संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप' भेंट की.
ईशान प्रताप सिंह,
पूर्ति निरीक...
skip to main |
skip to sidebar
पुस्तक की प्रस्तावना वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सिन्हा
सीनियर डिप्टी एडिटर
द हिंदू बिजनेस लाइन की कलम से....
विकास के आंकड़ों में आम आदमी हमेशा ही एक सवाल का जवाब ढ़ूंढता है। सवाल ये है कि इन आंकड़ों का ‘मेरे’ लिए क्या मतलब है? सवाल तब और भी अहम बन जाता है कि एक ही दिन अखबार की दो सुर्खियां अलग-अलग कहानी कहती हैं। पहली सुर्खी है, ‘भारत दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाला देश बना’ या फिर ‘भारत अगले दो वर्षों तक सबसे तेजी से विकास करने वाला बना रहेगा देश,’ वहीं दूसरी सुर्खी है ‘अरबपतियों की संपत्ति रोजाना औसतन 2200 करोड़ रुपये बढी, भारी गरीबी में जी रही 10 फीसदी आबादी लगातार 14 सालों से कर्ज में है डूबी’। ऐसे में ये सवाल और भी अहम बन जाता है कि 7.3, 7.5 या 7.7 फीसदी की सालाना विकास दर के मायने आबादी के एक बहुत ही छोटे हिस्से तक सीमित है, या फिर इनका फायदा समाज में आखिरी पायदान के व्यक्ति को भी मिल पा रहा है या नहीं?
ऐसे ही सवालों का जवाब जानने के लिए ये जरुरी हो जाता है कि विकास को सुर्खी से आगे जन-जन तक पहुंचाने के लिए आखिरकार सरकार ने किया क्या, या फिर जो किया वो पहले से किस तरह से अलग था? इस सवाल का जवाब जानने के लिए आइए आपको 2014 में वापस लिए चलते हैं। लालकिले की प्राचीर से अपने पहले स्वतंत्रता दिवस भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तीय समावेशन की नयी योजना की घोषणा की। इसके तहत हर परिवार के लिए कम से कम एक बैंक खाता खोले जाने की बात कही गयी। घोषणा के ठीक 14 दिन के भीतर योजना की शुरुआत भी हो गयी। ऐसा नहीं था कि वित्तीय समावेशन की पहले कोई योजना नहीं थी, लेकिन पहले जहां जोर निश्चित आबादी वाले गांव के लिए बैंकिंग सुविधा शुरु करने की बात थी, वहीं नयी योजना में पहले हर परिवार (ग्रामीण व शहरी, दोनो) और अब हर वयस्क को बैंकिंग के दायरे में लाने का लक्ष्य है।
बैंक खाता तो खुला ही, ये भी सुनिश्चित करने की पहल हुई कि खाते में पैसा आता रहे। इसीलिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का पैसा सीधे-सीधे लाभार्थियों तक पहुंचाने के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल किया जाने लगा। फायदा लक्ष्य तक पहुंचने, इसके लिए जैम (जनधन-आधार-मोबाइल) को अमल में लाया गया। याद कीजिए, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के उस बयान का जिसमें कहा गया था कि दिल्ली से चलने वाला एक रुपये में महज 15 पैसा ही जरुरतमंदों तक पहुंच पाता है। अब कहानी ये है कि जैम के जरिए सरकार ने अपने कार्यकाल में 31 दिसंबर 2018 तक विभिन्न सरकारी योजनाओं में 92 हजार करोड़ रुपये बचाने में कामयाबी हासिल की है और ये संभव हो पाया जैम के सहारे चलने वाले प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण यानी डीबीटी के जरिए। मतलब योजनाएं सिर्फ बनी ही नहीं या फिर पुरानी में बदलाव ही नहीं किया गया, बल्कि कोशिश ये कही गयी कि दिल्ली से चले रुपये का एक-एक पाई लक्ष्य तक पहुंचे। साथ ही सीमित संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो सके।
जन-धन से जन सुरक्षा का आधार तैयार हुआ। जन सुरक्षा यानी कम से कम प्रीमियम पर बीमा (जीवन और गैर-जीवन) सुरक्षा। महज एक रुपये प्रति महीने पर दुर्घटना बीमा और एक रुपये प्रति दिन से भी कम प्रीमियम पर जीवन बीमा ने सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में बडा बदलाव किया। और तो और इन सुरक्षा के लिए भारी-भरकम कागजी कार्रवाई या दफ्तर के लगातार चक्कर काटने की जरुरत नहीं। तकनीक के इस्तेमाल के जरिए सुरक्षा हासिल करने के लेकर दावे के निबटारे को आसान बना दिया गया है। जन सुरक्षा के बाद अब कोशिश है ज्यादा से ज्यादा लोगों को वित्तीय तौर पर साक्षऱ बनाने की।मतलब साफ है जन की योजनाएं सही मायने में जब तक जनता की जिंदगी के ज्यादा से ज्यादा पहलुओं को नहीं छुएगी, तब तक उसकी कोई सार्थकता नहीं होगी।
जन-धन सरकारी योजनाओं के बदलते स्वरुप का एक उदाहरण है। सच तो यही है कि किसी भी सरकारी योजना की सार्थकता इस बात पर निर्भर करती है कि कितनी जल्दी वो सरकारी सोच से आम आदमी की सोच में अपनी जगह बना पाती है। साथ ही जरुरी ये भी है कि सरकारी योजनाओं को महज पैसा बांटने का एक माध्यम नही माना जाए, बल्कि ये देखना भी जरुरी होगा कि वो किस तरह व्यक्ति से लेकर समाज, राज्य और फिर देश की बेहतरी मे योगदान कर सके। ये भी बेहतर होगा कि मुफ्त में कुछ भी बांटने का सिलसिला बंद होना चाहिए।क्या ऐसा सब कुछ पिछले साढे चार साल के दौरान शुरु की गयी योजनाओं में देखने को मिला है, इसका जवाब काफी हद तक हां में होगा। एक और बात। राज्यों के बीच भी नए प्रयोगों के साथ योजनाएं शुरु करने की प्रतिस्पर्धा चल रही है और सुखद निष्कर्ष ये है कि चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ने शुरु की हो, उसकी उपयोगिता को दूसरी राजनीतिक दलों की सरकारों ने पहचाना। तेलंगाना की रायतु बंधु योजना और ओडीशा की कालिया योजना को ही ले लीजिए। किसानों की जिंदगी बदलने की इन योजनाओं का केद्र सरकार अध्ययन कर रही है, ताकि राष्ट्रीय स्तर की योजना में इन योजनाओं की कुछ खास बातों को शामिल किया जा सके।
विभिन्न सरकारी योजनाओं को शुरु करने का लक्ष्य यही है कि विकास का फायदा हर किसी को मिले यानी विकास समावेशी हो। कुछ ऐसे ही पैमानों के आधार पर यहां उल्लेखित 36 योजनाओं का आंकलन किया जाना चाहिए। फिर ये सवाल उठाया जा सकता है कि क्या ये योजनाएं कामयाब है? अगर सरकार कहे कामयाब तो असमानता को लेकर जारी नयी रिपोर्ट (उपर लिखित दूसरी सुर्खी का आधार) को सामने रख चर्चा करने से नहीं हिचकना चाहिए। देखिए एक बात तो तय है कोई कितना भी धर्म-जाति-संप्रदाय को आधार बनाकर राजनीति कर ले लेकिन मतदाता ईवीएम पर बटन दबाने के पहले एक बार जरुर सोचता है कि अमुक उम्मीदवार ने विकास के लिए क्या कुछ किया है, या फिर क्या वो आगे विकास के बारे में कुछ ठोस कर सकेगा। मत भूलिए सरकारी योजनाएं आपके ही पैसे से चलती हैं और इन योजनाओं की सार्थकता पर अपना पक्ष रखने के लिए हर पांच साल में आपको एक मौका तो मिलता ही है।
ऐसी सोच विकसित करने के लिए जरुरी है कि आपके समक्ष सरकारी योजनाओं का ब्यौरा सरल और सहज तरीके से पेश किया जाए। उम्मीद है कि प्रस्तुत पुस्तक ‘विकास के पथ पर भारत’ इस काम में मदद करेगा। उम्र से युवा लेकिन विचारों से प्रौढ़ डॉक्टर सौरभ मालवीय ने गहन अध्ययन के बाद केंद्र व राज्य सरकारों की 36 प्रमुख योजनाओं को समझाने की एक सार्थक पहल की है। सौरभ भाई ऊर्जावान हैं और निरंतर कुछ-ना-कुछ करते रहते हैं, इसीलिए यकिन रखिए वो जल्द ही बाकी कई दूसरी प्रमुख सरकारी योजनाओं को लेकर मार्गदर्शिका लेकर आपके समक्ष उपस्थित होंगे।
शुभकामनाएं!
शिशिर सिन्हा
सीनियर डिप्टी एडिटर
द हिंदू बिजनेस लाइन
Monday, May 27, 2019
द हिंदू बिजनेस लाइन की कलम से
पुस्तक की प्रस्तावना वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सिन्हा
सीनियर डिप्टी एडिटर
द हिंदू बिजनेस लाइन की कलम से....
विकास के आंकड़ों में आम आदमी हमेशा ही एक सवाल का जवाब ढ़ूंढता है। सवाल ये है कि इन आंकड़ों का ‘मेरे’ लिए क्या मतलब है? सवाल तब और भी अहम बन जाता है कि एक ही दिन अखबार की दो सुर्खियां अलग-अलग कहानी कहती हैं। पहली सुर्खी है, ‘भारत दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाला देश बना’ या फिर ‘भारत अगले दो वर्षों तक सबसे तेजी से विकास करने वाला बना रहेगा देश,’ वहीं दूसरी सुर्खी है ‘अरबपतियों की संपत्ति रोजाना औसतन 2200 करोड़ रुपये बढी, भारी गरीबी में जी रही 10 फीसदी आबादी लगातार 14 सालों से कर्ज में है डूबी’। ऐसे में ये सवाल और भी अहम बन जाता है कि 7.3, 7.5 या 7.7 फीसदी की सालाना विकास दर के मायने आबादी के एक बहुत ही छोटे हिस्से तक सीमित है, या फिर इनका फायदा समाज में आखिरी पायदान के व्यक्ति को भी मिल पा रहा है या नहीं?
ऐसे ही सवालों का जवाब जानने के लिए ये जरुरी हो जाता है कि विकास को सुर्खी से आगे जन-जन तक पहुंचाने के लिए आखिरकार सरकार ने किया क्या, या फिर जो किया वो पहले से किस तरह से अलग था? इस सवाल का जवाब जानने के लिए आइए आपको 2014 में वापस लिए चलते हैं। लालकिले की प्राचीर से अपने पहले स्वतंत्रता दिवस भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तीय समावेशन की नयी योजना की घोषणा की। इसके तहत हर परिवार के लिए कम से कम एक बैंक खाता खोले जाने की बात कही गयी। घोषणा के ठीक 14 दिन के भीतर योजना की शुरुआत भी हो गयी। ऐसा नहीं था कि वित्तीय समावेशन की पहले कोई योजना नहीं थी, लेकिन पहले जहां जोर निश्चित आबादी वाले गांव के लिए बैंकिंग सुविधा शुरु करने की बात थी, वहीं नयी योजना में पहले हर परिवार (ग्रामीण व शहरी, दोनो) और अब हर वयस्क को बैंकिंग के दायरे में लाने का लक्ष्य है।
बैंक खाता तो खुला ही, ये भी सुनिश्चित करने की पहल हुई कि खाते में पैसा आता रहे। इसीलिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का पैसा सीधे-सीधे लाभार्थियों तक पहुंचाने के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल किया जाने लगा। फायदा लक्ष्य तक पहुंचने, इसके लिए जैम (जनधन-आधार-मोबाइल) को अमल में लाया गया। याद कीजिए, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के उस बयान का जिसमें कहा गया था कि दिल्ली से चलने वाला एक रुपये में महज 15 पैसा ही जरुरतमंदों तक पहुंच पाता है। अब कहानी ये है कि जैम के जरिए सरकार ने अपने कार्यकाल में 31 दिसंबर 2018 तक विभिन्न सरकारी योजनाओं में 92 हजार करोड़ रुपये बचाने में कामयाबी हासिल की है और ये संभव हो पाया जैम के सहारे चलने वाले प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण यानी डीबीटी के जरिए। मतलब योजनाएं सिर्फ बनी ही नहीं या फिर पुरानी में बदलाव ही नहीं किया गया, बल्कि कोशिश ये कही गयी कि दिल्ली से चले रुपये का एक-एक पाई लक्ष्य तक पहुंचे। साथ ही सीमित संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो सके।
जन-धन से जन सुरक्षा का आधार तैयार हुआ। जन सुरक्षा यानी कम से कम प्रीमियम पर बीमा (जीवन और गैर-जीवन) सुरक्षा। महज एक रुपये प्रति महीने पर दुर्घटना बीमा और एक रुपये प्रति दिन से भी कम प्रीमियम पर जीवन बीमा ने सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में बडा बदलाव किया। और तो और इन सुरक्षा के लिए भारी-भरकम कागजी कार्रवाई या दफ्तर के लगातार चक्कर काटने की जरुरत नहीं। तकनीक के इस्तेमाल के जरिए सुरक्षा हासिल करने के लेकर दावे के निबटारे को आसान बना दिया गया है। जन सुरक्षा के बाद अब कोशिश है ज्यादा से ज्यादा लोगों को वित्तीय तौर पर साक्षऱ बनाने की।मतलब साफ है जन की योजनाएं सही मायने में जब तक जनता की जिंदगी के ज्यादा से ज्यादा पहलुओं को नहीं छुएगी, तब तक उसकी कोई सार्थकता नहीं होगी।
जन-धन सरकारी योजनाओं के बदलते स्वरुप का एक उदाहरण है। सच तो यही है कि किसी भी सरकारी योजना की सार्थकता इस बात पर निर्भर करती है कि कितनी जल्दी वो सरकारी सोच से आम आदमी की सोच में अपनी जगह बना पाती है। साथ ही जरुरी ये भी है कि सरकारी योजनाओं को महज पैसा बांटने का एक माध्यम नही माना जाए, बल्कि ये देखना भी जरुरी होगा कि वो किस तरह व्यक्ति से लेकर समाज, राज्य और फिर देश की बेहतरी मे योगदान कर सके। ये भी बेहतर होगा कि मुफ्त में कुछ भी बांटने का सिलसिला बंद होना चाहिए।क्या ऐसा सब कुछ पिछले साढे चार साल के दौरान शुरु की गयी योजनाओं में देखने को मिला है, इसका जवाब काफी हद तक हां में होगा। एक और बात। राज्यों के बीच भी नए प्रयोगों के साथ योजनाएं शुरु करने की प्रतिस्पर्धा चल रही है और सुखद निष्कर्ष ये है कि चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ने शुरु की हो, उसकी उपयोगिता को दूसरी राजनीतिक दलों की सरकारों ने पहचाना। तेलंगाना की रायतु बंधु योजना और ओडीशा की कालिया योजना को ही ले लीजिए। किसानों की जिंदगी बदलने की इन योजनाओं का केद्र सरकार अध्ययन कर रही है, ताकि राष्ट्रीय स्तर की योजना में इन योजनाओं की कुछ खास बातों को शामिल किया जा सके।
विभिन्न सरकारी योजनाओं को शुरु करने का लक्ष्य यही है कि विकास का फायदा हर किसी को मिले यानी विकास समावेशी हो। कुछ ऐसे ही पैमानों के आधार पर यहां उल्लेखित 36 योजनाओं का आंकलन किया जाना चाहिए। फिर ये सवाल उठाया जा सकता है कि क्या ये योजनाएं कामयाब है? अगर सरकार कहे कामयाब तो असमानता को लेकर जारी नयी रिपोर्ट (उपर लिखित दूसरी सुर्खी का आधार) को सामने रख चर्चा करने से नहीं हिचकना चाहिए। देखिए एक बात तो तय है कोई कितना भी धर्म-जाति-संप्रदाय को आधार बनाकर राजनीति कर ले लेकिन मतदाता ईवीएम पर बटन दबाने के पहले एक बार जरुर सोचता है कि अमुक उम्मीदवार ने विकास के लिए क्या कुछ किया है, या फिर क्या वो आगे विकास के बारे में कुछ ठोस कर सकेगा। मत भूलिए सरकारी योजनाएं आपके ही पैसे से चलती हैं और इन योजनाओं की सार्थकता पर अपना पक्ष रखने के लिए हर पांच साल में आपको एक मौका तो मिलता ही है।
ऐसी सोच विकसित करने के लिए जरुरी है कि आपके समक्ष सरकारी योजनाओं का ब्यौरा सरल और सहज तरीके से पेश किया जाए। उम्मीद है कि प्रस्तुत पुस्तक ‘विकास के पथ पर भारत’ इस काम में मदद करेगा। उम्र से युवा लेकिन विचारों से प्रौढ़ डॉक्टर सौरभ मालवीय ने गहन अध्ययन के बाद केंद्र व राज्य सरकारों की 36 प्रमुख योजनाओं को समझाने की एक सार्थक पहल की है। सौरभ भाई ऊर्जावान हैं और निरंतर कुछ-ना-कुछ करते रहते हैं, इसीलिए यकिन रखिए वो जल्द ही बाकी कई दूसरी प्रमुख सरकारी योजनाओं को लेकर मार्गदर्शिका लेकर आपके समक्ष उपस्थित होंगे।
शुभकामनाएं!
शिशिर सिन्हा
सीनियर डिप्टी एडिटर
द हिंदू बिजनेस लाइन
मेरे प्रेरणास्रोत: स्वामी विवेकानंद

गिरकर उठना, उठकर चलना... यह क्रम है संसार का... कर्मवीर को फ़र्क़ न पड़ता किसी जीत और हार का... क्योंकि संघर्षों में पला-बढ़ा... संघर्ष ही मेरा जीवन है...
-डॉ. सौरभ मालवीय
डॉ. सौरभ मालवीय
अपनी बात
सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र-निर्माण की तीव्र आकांक्षा के कारण छात्र जीवन से ही सामाजिक सक्रियता। बिना दर्शन के ही मैं चाणक्य और डॉ. हेडगेवार से प्रभावित हूं। समाज और राष्ट्र को समझने के लिए "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया" विषय पर शोध पूर्ण किया है, परंतु सृष्टि रहस्यों के प्रति मेरी आकांक्षा प्रारंभ से ही है।
विषय
- Dr. Sourabh Malviya
- English
- अन्य लेखक
- आधी आबादी
- उत्तर प्रदेश चुनाव- 2022
- एकात्म मानवदर्शन
- काव्य
- कृषि
- केन्द्रीय बजट
- चित्र पेटिका से
- टीवी पर लाइव
- डॉ. सौरभ मालवीय
- दीक्षांत समारोह
- धरोहर
- धर्म
- पर्यटन
- पर्यावरण
- पर्व
- पापा
- पुरस्कार
- पुस्तक
- पुस्तक- अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश
- पुस्तक- भारत बोध
- पुस्तक- भारतीय पत्रकारिता के स्वर्णिम हस्ताक्षर
- पुस्तक- भारतीय राजनीति के महानायक नरेन्द्र मोदी
- पुस्तक- राष्ट्रवाद और मीडिया
- पुस्तक- राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी
- पुस्तक- विकास के पथ पर भारत
- पुस्तक-भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप
- प्रकाशन
- बेसिक शिक्षा यूपी
- भारतीय जनता पार्टी
- भाषा
- मार्क्सवादी कमुनिस्ट पार्टी
- मीडिया
- मेरा जीवन
- मेरी पुस्तक
- मेरी पुस्तकें
- यात्रा संस्मरण
- राजनीति
- राष्ट्र चिंतन
- राष्ट्रवाद
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
- लोकसभा चुनाव
- विचार दर्शन
- विविध
- वीडियो
- व्यक्तित्व
- व्याख्यान
- शिक्षा
- श्रीन्द्र मालवीय
- समाज
- सम्मान
- संविधान
- संस्कृति
- सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
- साहित्य
- सृष्टि मालवीय
- स्वास्थ्य
- हिन्दू संस्कृति पर माओवादी हमला
मेरे बलॊग
-
-
भारतीय पत्रकारिता का पिंड है राष्ट्रवाद, फिर इससे गुरेज क्यों? - *सौरभ मालवीय ने कहा अटल बिहारी वाजपेयी जन्मजात वक्ता थे, जन्मजात कवि हृदय थे, पत्रकार थे, प्रखर राष्ट्रवादी थे. उनके बारे में कहा जाता था कि यदि वह पाकिस्...
लोक दृष्टि
-
लखनऊ। विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के तत्वावधान में क्षेत्रीय दो दिवसीय पुस्तक लेखन कार्यशाला 17 अगस्त से 20 अगस्त को सम्पन्न ...
-
प्रिय ईशान प्रताप सिंह से सुखद भेंट. इस अवसर पर उन्हें अपनी पुस्तक 'भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप' भेंट की. ईशान प्र...
-
लखनऊ विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय बालिका शिक्षा की दो दिवसीय बैठक के समापन सत्र में विमर्श का अवसर प्राप्त हुआ. क्षेत्रीय ...
-
राधे राधे : जय श्री कृष्णा आज श्रीकृष्ण जी की छठी मनाई गयी. इस अवसर पर श्री महेन्द्र सिंह जी पूर्व मंत्री उत्तर प्रदेश एवं प्रभारी मध्य...
-
आज मेरे विप्रधाम निवास पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक श्री मान दीपक जी व जिला संघचालक माननीय डाक्टर मकसुदन मिश्रा जी व अर्जुन ज...
-
लोकेन्द्र सिंह भारत में लेखकों, साहित्यकारों एवं इतिहासकारों का एक ऐसा वर्ग रहा है, जिसने समाज को ‘भारत बोध’ से दूर ले जाने का प्रयास किया. ...
-
धर्मान्तरण अपराध है, एक गहरी साजिश है. इसमें संलिप्त अपराधियों को कठोर दण्ड मिलना चाहिए. समाज के नागरिकों को अब जागरूक होने की जरूरत है.
संप्रति
डॉ. सौरभ मालवीय
2/564, अवधपुरी खण्ड 2
खरगापुर, निकट प्राथमिक विद्यालय, गोमतीनगर विस्तार
2/564, अवधपुरी खण्ड 2
खरगापुर, निकट प्राथमिक विद्यालय, गोमतीनगर विस्तार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
पिन- 226010
मो- 8750820740
पिन- 226010
मो- 8750820740
ईमेल - malviya.sourabh@gmail.com
***
डॉ. सौरभ मालवीय
एसोसिएट प्रोफेसर
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मो- 8750820740
ईमेल - malviya.sourabh@gmail.com
जिन्हें पढ़ता हूं
-
शहर, कुत्ते और हमारी ज़िम्मेदारी - “पॉटी उठाना शर्म नहीं, संस्कार है, शहर की सड़कों पर पॉटी नहीं, जिम्मेदारी चाहिए” भारत में पालतू कुत्तों की संख्या 2023 में लगभग 3.2 करोड़ आंकी गई, और यह ...1 week ago
-
Read harcourt 3rd grade math Best Books of the Month PDF - *Download Kindle Editon harcourt 3rd grade math Download Now PDF* Read harcourt 3rd grade math Audio CD Open Library Rеаd thrоugh Frее Bооkѕ Onlіnе і...5 years ago
-
नमो-नमो.....आंखों ने जो देखा ! - अपन गांधी, लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय को आदर्श राजनेता मानकर राजनीति में सक्रिय हैं। सादगी, शुचिता, विनम्रता, अध्ययनशीलता...ये सब गुण ऐसे हैं, जो ज्यादा आ...11 years ago
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment