Monday, July 24, 2023

 

नये शिक्षा सत्र का उत्साह   



शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र प्रारंभ हो चुका है प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में प्राय: नया शिक्षा सत्र अप्रैल महीने में आरंभ हो जाता है, किन्तु उच्च शिक्षा के संस्थानों में जुलाई से ही नये शिक्षा सत्र का प्रारंभ होता है यदि देखा तो वास्तव में सभी शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र जुलाई महीने में ही आरंभ होता है इससे पूर्व का समय तो शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने, पुस्तकें, स्टेशनरी, बैग और यूनिफॉर्म आदि खरीदने में व्यतीत हो जाता हैजो समय मिलता है, उसमें विद्यार्थी अपनी नई पुस्तकों से परिचय करते हैं प्राय: विद्यार्थी भाषा की पुस्तकें पढ़ते हैं, क्योंकि उनमें कथाएं होती हैं, जो बच्चों को अति प्रिय हैं

 

कुछ समय विद्यालय जाने के पश्चात ग्रीष्म कालीन अवकाश आ जाता हैयह ग्रीष्म कालीन अवकाश ग्रीष्म ऋतु के मध्य में आता है। इस समयावधि में अत्यधिक भीषण गर्मी पड़ती हैप्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश मई के अंतिम सप्ताह से लेकर पूरे जून तक रहता है इस समयावधि में उच्च तापमान के कारण सभी विद्यालय एवं महाविद्याल बंद रहते हैं 

 

बच्चे ग्रीष्मकालीन अवकाश की वर्षभर प्रतीक्षा करते हैं, क्योंकि इसमें उन्हें सबसे अधिक दिनों का अवकाश प्राप्त होता हैबच्चों के लिए ग्रीष्म कालीन अवकाश किसी पर्व से कम नहीं होता इस समयावधि में उन्हें कोई चिंता नहीं होती अर्थात उन्हें न तो प्रात:काल में शीघ्र उठकर विद्यालय जाने की चिंता होती है और न ही गृहकार्य करने की कोई चिंता होती है प्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपनी नानी के घर जाते हैं वहां वे अपने ननिहाल के लोगों से मिलते हैंसब उन्हें बहुत लाड़-प्यार करते हैं नानी उन्हें बहुत सी कहानियां सुनाती हैंनाना और मामा उन्हें घुमाने के लिए लेकर जाते हैं और उन्हें उनके पसंद के खिलौने दिलवाते हैंआज के एकल परिवार के युग में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपने दादा-दादी के घर भी जाते हैंवहां भी उन्हें बहुत ही लाड़- प्यार मिलता हैनानी की तरह दादी भी बच्चों को कहानियां सुनाती हैं इन कथा- कहानियों के माध्यम से वे बच्चों में संस्कार पोषित करती हैं, जो उनके चरित्र का निर्माण करते हैं यही संस्कार जीवन में उनका मार्गदर्शन करते हैंअपने पैतृक गांव अथवा नगरों में जाने से वे वहां की संस्कृति से जुड़ते हैंअपने सगे-संबंधियों से मिलते हैं इससे उन्हें अपने संबंधों का पता चलता है उनमें अपने संबंधियों के प्रति स्नेह का भाव पैदा होता है वे अपने संबंधियों के प्रति अपने दायित्व को भी समझते हैं

 

ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान बच्चे अपने माता- पिता के साथ पर्यटन स्थलों पर भी जाते हैं अधिकतर लोग ऐसे स्थानों पर जाते हैं, जहां तापमान कम रहता है ये पहाड़ी क्षेत्र होते हैंइससे वे वहां की संस्कृति एवं रीति- रिवाजों के बारे में जान पाते हैंइसके अतिरिक्त वे धार्मिक स्थलों एवं ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों पर भी घूमने जाते हैंघूमने का अर्थ केवल सैर सपाटा और मनोरंजन करना नहीं है, अपितु पर्यटन से बहुत सी शिक्षाएं मिलती हैं धार्मिक स्थलों पर जाने से मन को शान्ति प्राप्त होती है तथा बच्चे अपने गौरवशाली संस्कृति से जुड़ पाते हैं उन्हें अपने ईष्ट देवी-देवताओं के बारे में जानने का अवसर मिलता हैउनमें आस्था का संचार होता है उनका आत्मबल एवं आत्म विश्वास बढ़ता हैऐतिहासिक स्थलों पर जाने से उन्हें अपने इतिहास को जानने का अवसर प्राप्त होता हैये व्यवहारिक ज्ञान है, जो उन्हें आने- जाने से प्राप्त होता है यह उनके लिए आवश्यक भी हैवे जिन चीजों के बारे में पुस्तकों में पढ़ते उनके बारे में उन्हें सहज जानकारी प्राप्त होती है इसका उनके मन- मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है          

 

शिक्षकों द्वारा ग्रीष्मकालीन अवकाश के लिए भी विद्यार्थियों को गृहकार्य दिया जाता है इस दौरान विद्यालय अवश्य बंद रहते हैं, किन्तु ट्यूशन सेंटर खुले रहते हैं बच्चे ट्यूशन के लिए जाते हैं और अपना गृहकार्य भी करते हैं इसके अतिरिक ग्रीष्म कालीन अवकाश के दौरान बहुत से संस्थान अनेक प्रकार के कम समयावधि वाले कोर्स प्रारंभ करते हैं, उदाहरण के लिए चित्रकला, संगीत, गायन, नृत्य, मिट्टी के खिलौने बनाने, सजावटी सामान बनाना आदिइस समयावधि में बच्चों को अपनी रुचि के अनुसार कार्य करने एवं नई- नई चीजें सीखने का अवसर प्राप्त होता हैबहुत से बच्चे खेलों की ओर रुझान करते हैं समय अभाव के कारण वे खेल नहीं पाते थे, किन्तु अवकाश में उन्हें अपनी पसंद के खेल खेलने का अवसर मिल जाता है क्षेत्र के बच्चे अपनी-अपनी टीमें बना लेते हैं और आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं. इससे उनमें खेल भावना का विकास होता है किसी भी खिलाड़ी के खेल का प्रारंभ इसी प्रकार होता है पहले वे अपने मित्रों के साथ खेलता है. फिर इसी प्रकार वह खेल स्पर्धाओं में खेलने लगता है इस प्रकार एक दिन वह देश के लिए पदक जीतने वाला खिलाड़ी बन जाता है वास्तव में यह समय बच्चों के नैसर्गिक गुणों को निखारने का कार्य करता है                     

 

ग्रीष्म कालीन अवकाश व्यतीत होने के पश्चात विद्यालय व अन्य शिक्षण संस्थान पुन: खुल जाते हैंविद्यार्थियों की दिनचर्या पुनः पूर्व की भांति हो जाती है वे प्रात:काल में शीघ्र उठ जाते हैं नित्य कर्म से निपटने के पश्चात विद्यालय जाने के लिए तैयार होते हैं वे नाश्ता करके घर से निकल जाते हैंदिनचर्या केवल बच्चों की ही परिवर्तित नहीं होती, अपितु उनके साथ- साथ उनके माता- पिता की दिनचर्या भी परिवर्तित हो जाती है उनकी माता प्रातः काल में शीघ्र उठकर उनके लिए नाश्ता बनाती है उनके लिए टिफिन तैयार करती है उन्हें विद्यालय या स्कूल बस तक छोड़ने जाती हैबहुत सी माताएं बच्चों को विद्यालय लेकर भी जाती हैं और उन्हें वापस भी लाती हैं बहुत से विद्यालयों के बाहर दोपहर में महिलाएं अपने बच्चों की प्रतीक्षा में खड़ी रहती हैंबहुत से बच्चों को उनके पिता विद्यालय छोड़ने जाते हैं                            

 

नये शिक्षा सत्र में बच्चे बहुत प्रसन्न दिखाई देते हैं उनकी कक्षा का एक स्तर बढ़ जाता है वे स्वयं को पहले से श्रेष्ठ अनुभव करते हैं पिछली कक्षा में भी उन्होंने कड़ा परिश्रम किया था उसके कारण ही परीक्षा में वे सफलता प्राप्त कर पाए परिणामस्वरूप अब वह उससे अगली कक्षा में अर्थात उससे ऊंची कक्षा में हैंजब विद्यालय खुले थे, तब बहुत अधिक गर्मी थी बच्चे गर्मी से व्याकुल थे, किन्तु उनके चेहरे पर उत्साह के भाव दिखाई दे रहे थेबहुत से विद्यालयों में रोली एवं तिलक लगाकर बच्चों का स्वागत किया गया हैयह एक अच्छी पहल हैइससे बच्चों में अपनी संस्कृति के प्रति लगाव उत्पन्न होता है

लेखक –

-डॉसौरभ मालवीय 

सहायक प्राध्यापक, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय –भोपाल

मो. 8750820740

 

 

Monday, May 1, 2023


 

        

 

 “राष्ट्रबोध की अनुभूति है मन की बात"

-डॉ. सौरभ मालवीय  

किसी भी राष्ट्र की उन्नति के लिए आवश्यक है कि उसके प्रधानमंत्री की बात जनता तक पहुंचे तथा जनता की बात प्रधानमंत्री तक पहुंचे। इससे दोनों के मध्य तालमेल बना रहता है। इससे जनता को पता चलता है कि उनका प्रधानमंत्री उनके लिए क्या सोचता है तथा उनके लिए क्या कार्य कर रहा है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री को ज्ञात होता है कि जनता को उससे क्या अपेक्षाएं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विचारों के धनी हैं। उनकी वाक्पटुता अद्भुत है। उनके भाषणों में उनके इस सदगुण को देखा जा सकता है। वह ‘मन की बात’ नामक रेडियों  कार्यक्रम के माध्यम से विभिन्न विषयों पर जनता से बात करते हैं। महीने के अंतिम रविवार को इस कार्यक्रम का प्रसारण किया जाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आकाशवाणी

उल्लेखनीय है कि मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री नरेंद्र मोदी ने जनता से सीधा संपर्क करने के लिए आकाशवाणी पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम प्रारम्भ किया था। प्रथम बार अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से जनता को संबोधित किया गया। 30 अप्रैल को 100वां एपिसोड का महत्वपूर्ण पड़ाव है। इस कार्यक्रम में वह सरकार की उपलब्धियों की जानकारी देते हैं तथा इसके अतिरिक्त जनकल्याण के लिए कार्य कर रहे लोगों के बारे में भी विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवाते हैं। इस कार्यक्रम की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि प्रधानमंत्री द्वारा ‘मन की बात’ के विषय के लिए जनता से आग्रह किया जाता है कि वे विषय भेजें तथा उन विषयों में से प्रधानमंत्री द्वारा कोई एक विषय का चयन किया जाता है। तत्पश्चात उस विषय पर प्रधानमंत्री द्वारा जनता को संबोधित किया जाता है। लोग अपने सुझाव सोशल मीडिया के माध्यम से प्रधानमंत्री तक पहुंचाते हैं। यह कार्यक्रम दूरदर्शन एवं आकाशवाणी द्वारा सीधा प्रसारित किया जाता है। यह यूट्यूब पर भी देखा जा सकता है। यह कार्यक्रम लगभग 20 मिनट का होता है। देश के अधिकांश लोगों के पास रेडियो है। आकाशवाणी पर इस कार्यक्रम का प्रसारण होने के कारण अधिक से अधिक लोग इसे सुन पाते हैं। इसके अतिरिक्त दूरदर्शन की पहुंच भी अधिकांश जनसंख्या तक है।   

 

संचार क्रांति के इस युग में संचार माध्यमों का उपयोग करते हुए संचार माध्यमों के द्वारा मोदी जी प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। सर्व सुलभ रेडियो आज अपनी सार्थकता सिद्ध करने में सफल है। इसके द्वारा कहीं भी किसी भी रूप में भारत का आम आदमी दूरवर्ती पर्वत, मैदान, खेत-खलिहान, ट्रक चालक, बस चालक, खेतों में काम करने वाले किसान, मजदूर या दफ्तर में काम करने वाले कर्मचारी, अधिकारी सभी के लिए रेडियो उपयोगी है। रेडियो बिना तार के सर्व सुलभ है। इस माध्यम से मोदी जी भारत के मन की बात करते हैं, भारत के जीवन की बात करते हैं, समाज एवं जीवन की बात करते हैं, भारतीय ज्ञान परंपरा की बात करते हैं, भारतीय संस्कृति की बात करते हैं। भारतबोध का यह मंत्र तथा भारतबोध का दर्शन प्रधानमंत्री द्वारा मन की बात में मोदी मंत्र के रूप में जनता को प्राप्त हो रहा है।                                                                                                               प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनेक विषयों पर अपने मन की बात जनता से साझा की है। इन विषयों में भारत की जी-20 अध्यक्षता, अंतरिक्ष में निरंतर प्रगति, वाद्य यंत्रों के निर्यात में वृद्धि, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, ड्रोन उद्योग, कौशल विकास, स्वच्छ भारत अभियान, कृषि एवं किसानों से संबंधित समस्याएं, विज्ञान से संबंधित मिशन, दिव्यांग बच्चों के लिए छात्रवृत्ति, विद्यार्थियों को परीक्षा के समय होने वाले तनाव तथा परीक्षा में सफल होने वाले बच्चों को बधाई, युवाओं से मद पदार्थों से दूर रहने का आग्रह, योग के लाभ, कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों के समग्र विकास पर चर्चा, सैनिकों की सराहना, जन धन योजना एवं सरकार की अन्य विकास योजनाओं की सफलता, खिलाड़ियों की प्रशंसा एवं बधाई, प्राकृतिक आपदा आदि सम्मिलित हैं।

देश एवं समाज के हित के लिए उत्कृष्ट कार्य कर रहे लोगों पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि है। वह उन्हें बधाई देते हुए प्रोत्साहित करते हैं तथा मन की बात में उनका उल्लेख करके युवाओं को प्रेरित करते हैं। उल्लेखनीय है कि नवम्बर 2022 में प्रसारित ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि “कोई अगर विद्या का दान कर रहा है, तो वह समाज हित में सबसे बड़ा काम कर रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में जलाया गया एक छोटा सा दीपक भी पूरे समाज को रोशन कर सकता है। मुझे यह देखकर बहुत खुशी होती है कि आज देशभर में ऐसे कई प्रयास किए जा रहे हैं। यूपी की राजधानी लखनऊ से 70-80 किलोमीटर दूर हरदोई का एक गांव है बांसा। मुझे इस गांव के जतिन ललित सिंह जी के बारे में जानकारी मिली है, जो शिक्षा की अलख जगाने में जुटे हैं। जतिन जी ने दो साल पहले यहां सामुदायिक पुस्तकालय एवं संसाधन केंद्र शुरू किया था। उनके इस केंद्र में हिंदी और अंग्रेजी साहित्य, कंप्यूटर, लॉ और कई सरकारी परीक्षाओं की तैयारियों से जुड़ी तीन हजार से अधिक किताबें मौजूद हैं। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि “झारखंड के संजय कश्यप जी भी गरीब बच्चों के सपनों को नई उड़ाने दे रहे हैं। अपने विद्यार्थी जीवन में संजय जी को अच्छी पुस्तकों की कमी का सामना करना पड़ा था। ऐसे में उन्होंने ठान लिया कि किताबों की कमी से वे अपने क्षेत्र के बच्चों का भविष्य अंधकारमय नहीं होने देंगे। अपने इसी मिशन की वजह से आज वह झारखंड के कई जिलों में बच्चों के लिए ‘लाइब्रेरी मैन’ बन गए हैं। संजय जी ने जब अपनी नौकरी की शुरुआत की थी, तब उन्होंने पहला पुस्तकालय अपने पैतृक स्थान पर बनवाया था। नौकरी के दौरान उनका जहां भी ट्रांसफर होता था, वहां वे गरीब और आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के लिए लाइब्रेरी खोलने के मिशन में जुट जाते हैं। ऐसा करते हुए उन्होंने झारखंड के कई जिलों में बच्चों के लिए लाइब्रेरी खोल दी हैं। उनका उनका यह मिशन आज एक सामाजिक आंदोलन का रूप ले रहा है। ऐसे अनेक प्रयासों के लिए मैं उनकी विशेष सराहना करता हूं।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुसार- “किसी भी देश समाज की विकास की प्रक्रिया में युवाओं विशेषकर विद्यार्थियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। देश की उन्नति में, देश के नेतृत्व में और नए-नए नवाचार को सुदृढ़ करने के लिए युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है।“ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बात को भली-भांति समझते हैं, इसलिए वह देश के नवनिर्माण के लिए युवाओं से आगे आने का आह्वान करते हैं। अपने गौरवशाली अतीत, वैभवशाली संपन्न भारत का परिचय प्रधानमंत्री द्वारा मन की बात में समय-समय पर किया जाता है। वह जनता को जीवन के सभी क्षेत्रों से अवगत करवाते रहते हैं। उन्होंने अमृत काल में महान स्वतंत्रता सेनानियों, तीज-त्यौहारों, भारतीय जीवन पद्धति तथा भारतीय संस्कृति से जनता का परिचय करवाया। 

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागालैंड का उल्लेख करते हुए कहा कि “नागालैंड में नागा समाज की जीवनशैली, उनकी कला- संस्कृति और संगीत, ये हर किसी को आकर्षित करती है। ये हमारे देश की गौरवशाली विरासत का अहम हिस्सा है। इन परम्पराओं और स्किल को बचाकर अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए वहां के लोगों ने एक संस्था बनाई है, जिसका नाम है- ‘लिडि-क्रो-यू’। नागा संस्कृति के जो खूबसूरत आयाम धीरे-धीरे खोने लगे थे, ‘लिडि-क्रो-यू’ संस्था ने उन्हें फिर से पुनर्जीवित करने का काम किया है। इससे इन युवाओं का अपनी संस्कृति से जुड़ाव तो होता ही है, साथ ही उनके लिए रोजगार के नए-नए अवसर भी पैदा होते हैं। नागा लोक-संस्कृति के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोग जानें, इसके लिए भी लिडि-क्रो-यू के लोग प्रयास करते हैं’। आपके क्षेत्र में भी ऐसी सांस्कृतिक विधाएं और परम्पराएं होंगी। आप भी अपने-अपने क्षेत्र में इस तरह के प्रयास कर सकते हैं। अगर आपकी जानकारी में कहीं ऐसा कोई अनूठा प्रयास हो रहा है, तो आप उसकी जानकारी मेरे साथ भी जरूर साझा करिए।“

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश की जनता से संपर्क स्थापित करने के इस प्रयास की चारों ओर प्रशंसा हो रही है।

इस कार्यक्रम के माध्यम से वह देश के नागरिकों से राष्ट्र के विकास के लिए किए जा रहे कार्यक्रमों से जुड़ने का आह्वान करते हैं। उनका मानना है कि नागरिक इन कार्यक्रमों में भागीदारी करके देश की प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी कहते है- इस रविवार को मन की बात का 100वां एपिसोड प्रसारित होने जा रहा है। मन की बात की यह सेंचुरी राष्ट्र निर्माण में हर देशवासी के प्रयासों को समर्पित है। एक भारत- श्रेष्ठ भारत की भवन को समर्पित है।

लेखक –

सहायक प्राध्यापक, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय –भोपाल

मो. 8750820740

Friday, April 28, 2023

 

 



पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष 

अमृत सरोवर योजना : जल संरक्षण से बदलेगी स्थिति 

 

-डॉ. सौरभ मालवीय  

पृथ्वी हमारा निवास स्थान है। मनुष्य सहित सभी प्राणी इसी धरती पर जन्म लेते हैं और इसी पर जीवन यापन करते हैं। पृथ्वी हमारे जीवन का आधार है। पृथ्वी से हमें वायु, जल और भोजन प्राप्त होता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पृथ्वी ने मनुष्य व अन्य सभी प्राणियों को जीवन प्रदान किया है। किन्तु मनुष्य ने पृथ्वी को क्या दिया? इस प्रश्न का उत्तर यही है कि मनुष्य ने पृथ्वी को कुछ नहीं दिया, अपितु उसे दूषित करने का कार्य किया है। वायु प्रदूषित होकर विषैली हो गई है और जल भी दूषित हो रहा है। स्थिति इतनी भयंकर है कि यमुना सहित अनेक नदियों का जल पीने योग्य नहीं है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के एक अध्ययन के अनुसार 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 221 जिलों के कुछ स्थानों का जल आर्सेनिक युक्त पाया गया है। 

दूषित पेयजल के सेवन से उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे क्षेत्रों के लोग दूषित जलजनित रोगों की चपेट में आ जाते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भूजल संकट के कारण देश के लगभग 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को आज भी  स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। ऐसे में वे दूषित जल पीने को विवश हैं।  देश में लोगों को पर्याप्त जल नहीं मिल पा रहा है। देश में प्रति व्यक्ति पानी की वार्षिक 1700 घन मीटर से कम उपलब्धता है। अंतरिक्ष से लिए गए आंकड़ों के आधार पर  देश में पानी की उपलब्धता का पुनर्मूल्यांकन के अध्ययन के आधार पर आशंका व्यक्त की गई है कि वर्ष 2031 के लिए प्रति व्यक्ति पानी की औसत वार्षिक उपलब्धता घटकर 1367 घन मीटर रह जाएगी, जिससे जल संकट और गंभीर हो जाएगा।   

 

एक रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल वैश्विक जल स्रोत का मात्र 4 प्रतिशत ही उपलब्ध है, जबकि यहां विश्व की कुल वैश्विक जनसंख्या का 18 प्रतिशत भाग निवास करता है। केंद्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 में देश में उपलब्ध कुल जल स्रोतों में से 78 प्रतिशत का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा रहा था। जल संकट के कारण वर्ष 2050 तक यह दर घटकर लगभग 68 प्रतिशत रह जाएगी। यह शुभ संकेत नहीं है। 

उल्लेखनीय है कि देश के लगभग 198 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्र के लगभग आधे भाग की सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। इसमें से 63 प्रतिशत क्षेत्र में भूमिगत जल से सिंचाई की जाती है, जबकि 24 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई के लिए नहरों के जल का उपयोग किया जाता है। इसमें 2 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई तालाब एवं कुंओं के जल से की जाती है तथा 11 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई के लिए अन्य स्रोत का उपयोग किया जाता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय कृषक आज भी सिंचाई के लिए भूमिगत जल पर निर्भर करते हैं। इसलिए भूजल का अत्यधिक दोहन किया जाता है। इससे भूमिगत जल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है।   जल प्राणियों के जीवन का आधार है। जल के बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता। सूखे एवं भूमि का जल स्तर नीचे गिरने के कारण अनेक क्षेत्रों में जल संकट व्याप्त हो गया है। इससे निपटने के लिए जल संरक्षण अति आवश्यक है। भीषण गर्मी के समय देश के प्राय: समस्त क्षेत्रों में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जल की समस्या उत्पन्न हो जाती है। तालाब भी शुष्क हो जाते हैं। कुंओं का जल बहुत नीचे उतर जाता है अथवा वे भी सूख जाते हैं। 

इसके कारण ग्रामीणों को उपयोग के लिए पर्याप्त जल प्राप्त नहीं होता है। इस समस्या के दृष्टिगत केंद्र सरकार ने अमृत सरोवर योजना प्रारम्भ की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल 2022 को आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में इसका शुभारंभ किया था। इस योजना का उद्देश्य देश के प्रत्येक जिले में कम से कम 75 जल निकायों का विकास एवं कायाकल्प करना है। देशव्यापी इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक राज्य के प्रयेक जिले में 75 से अधिक तालाबों का निर्माण करवाना है। 

अमृत सरोवर योजना से राज्यों को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकेंगे। तालाबों का निर्माण होने तथा पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार होने से क्षेत्रीय लोगों की जल की समस्या का समाधान हो सकेगा। इससे गर्मी के समय भूजल स्तर को बनाए रखने में सहायता प्राप्त हो सकेगी। इन तालाबों के जल का उपयोग कृषि कार्यों के लिए किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त पशु पालन में भी इस जल का उपयोग हो पाएगा। आवारा पशुओं एवं पक्षियों को भी पीने के लिए जल उपलब्ध हो सकेगा। इसके अतिरिक्त तालाबों का निर्माण होने से उस स्थान पर सुंदरीकरण होगा। तालाबों के तट पर पीपल, बरगद, नीम, अशोका, सहजन, महुआ, जामुन एवं कटहल आदि के पौधे लगाए जाएंगे। इससे जहां पर्यावरण स्वच्छ होगा तथा हरियाली में वृद्धि होगी, वहीं इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकेगा। इससे ग्रामीण क्षेत्र में अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो सकेगी। इन तालाबों का उपयोग मछली पालन, मखाने एवं सिघाड़े की खेती में भी किया जा सकेगा।   

इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में 50 हजार से अधिक तालाबों का निर्माण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रत्येक तालाब एक एकड़ क्षेत्र में होगा, जिसमें 10 हजार घन मीटर पानी की धारण करने की क्षमता होगी। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि इसमें वर्ष भर जल भरा रहे। इस अमृत सरोवर योजना के माध्यम से ग्रामीण वासियों को मनरेगा योजना के अंतर्गत रोजगार उपलब्ध करवाया जा सकेगा। इससे बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध होगा।   

विगत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत सरोवर योजना के अंतर्गत विगत 11 माह में लगभग  40 हजार तालाबों को विकसित करने की उपलब्धि की सराहना की है। उन्होंने ट्वीट में लिखा कि 'बहुत-बहुत बधाई! जिस तेजी से देशभर में अमृत सरोवरों का निर्माण हो रहा है, वो अमृतकाल के हमारे संकल्पों में नई ऊर्जा भरने वाली है।‘. केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने एक ट्वीट करके जानकारी दी कि देश में अभी तक 40 हजार से अधिक अमृत सरोवर राष्ट्र को समर्पित किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 2023 तक 50 हजार अमृत सरोवर बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

उल्लेखनीय है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को विश्वभर में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका के पर्यावरणविद जेराल्ड नेल्सन ने 22 अप्रैल 1970 को इसका शुभारम्भ किया था। वह विस्कॉन्सिन के एक अमेरिकी राजनेता थे. उन्होंने संयुक्त राज्य के सीनेटर और गवर्नर के रूप में कार्य किया। वह पृथ्वी दिवस के संस्थापक थे। उन्होंने पर्यावरण सक्रियता के एक नये अभियान का प्रारम्भ किया था। वर्ष 1969 में सैन फ्रांसिस्को में यूनेस्को सम्मेलन के दौरान 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाने की घोषणा की गई थी। इसके पश्चात से यह दिवस मनाया जा रहा है। अब इसे विश्व के 192 से अधिक देशों में मनाया जाता है। इस अवसर पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें पृथ्वी के समक्ष उत्पन्न समस्याओं को उठाया जाता है तथा इनके समाधान के बारे में चर्चा होती है। आज जब पर्यावरण के समक्ष अनेक प्रकार के संकट उत्पन्न हो गए हैं, ऐसी स्थिति में इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। 

उल्लेख करने योग्य बात यह भी है कि देशभर में पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इसमें सरकारी स्तर के कार्यक्रम भी हैं तथा पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यक्रम भी सम्मिलित हैं।  

नि:संदेश केंद्र सरकार की अमृत सरोवर योजना जल संरक्षण के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करेगी। इससे जल संरक्षण के अभियान को प्रोत्साहन भी मिलेगा। अपनी पृथ्वी को बचाने के लिए हम सबको मिलकर कार्य करना होगा।

(लेखक- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार वि.वि.- भोपाल में सहायक प्राध्यापक है।)  

मोबाइल- 8750820740

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