Monday, May 1, 2023


 

        

 

 “राष्ट्रबोध की अनुभूति है मन की बात"

-डॉ. सौरभ मालवीय  

किसी भी राष्ट्र की उन्नति के लिए आवश्यक है कि उसके प्रधानमंत्री की बात जनता तक पहुंचे तथा जनता की बात प्रधानमंत्री तक पहुंचे। इससे दोनों के मध्य तालमेल बना रहता है। इससे जनता को पता चलता है कि उनका प्रधानमंत्री उनके लिए क्या सोचता है तथा उनके लिए क्या कार्य कर रहा है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री को ज्ञात होता है कि जनता को उससे क्या अपेक्षाएं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विचारों के धनी हैं। उनकी वाक्पटुता अद्भुत है। उनके भाषणों में उनके इस सदगुण को देखा जा सकता है। वह ‘मन की बात’ नामक रेडियों  कार्यक्रम के माध्यम से विभिन्न विषयों पर जनता से बात करते हैं। महीने के अंतिम रविवार को इस कार्यक्रम का प्रसारण किया जाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आकाशवाणी

उल्लेखनीय है कि मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री नरेंद्र मोदी ने जनता से सीधा संपर्क करने के लिए आकाशवाणी पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम प्रारम्भ किया था। प्रथम बार अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से जनता को संबोधित किया गया। 30 अप्रैल को 100वां एपिसोड का महत्वपूर्ण पड़ाव है। इस कार्यक्रम में वह सरकार की उपलब्धियों की जानकारी देते हैं तथा इसके अतिरिक्त जनकल्याण के लिए कार्य कर रहे लोगों के बारे में भी विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवाते हैं। इस कार्यक्रम की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि प्रधानमंत्री द्वारा ‘मन की बात’ के विषय के लिए जनता से आग्रह किया जाता है कि वे विषय भेजें तथा उन विषयों में से प्रधानमंत्री द्वारा कोई एक विषय का चयन किया जाता है। तत्पश्चात उस विषय पर प्रधानमंत्री द्वारा जनता को संबोधित किया जाता है। लोग अपने सुझाव सोशल मीडिया के माध्यम से प्रधानमंत्री तक पहुंचाते हैं। यह कार्यक्रम दूरदर्शन एवं आकाशवाणी द्वारा सीधा प्रसारित किया जाता है। यह यूट्यूब पर भी देखा जा सकता है। यह कार्यक्रम लगभग 20 मिनट का होता है। देश के अधिकांश लोगों के पास रेडियो है। आकाशवाणी पर इस कार्यक्रम का प्रसारण होने के कारण अधिक से अधिक लोग इसे सुन पाते हैं। इसके अतिरिक्त दूरदर्शन की पहुंच भी अधिकांश जनसंख्या तक है।   

 

संचार क्रांति के इस युग में संचार माध्यमों का उपयोग करते हुए संचार माध्यमों के द्वारा मोदी जी प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। सर्व सुलभ रेडियो आज अपनी सार्थकता सिद्ध करने में सफल है। इसके द्वारा कहीं भी किसी भी रूप में भारत का आम आदमी दूरवर्ती पर्वत, मैदान, खेत-खलिहान, ट्रक चालक, बस चालक, खेतों में काम करने वाले किसान, मजदूर या दफ्तर में काम करने वाले कर्मचारी, अधिकारी सभी के लिए रेडियो उपयोगी है। रेडियो बिना तार के सर्व सुलभ है। इस माध्यम से मोदी जी भारत के मन की बात करते हैं, भारत के जीवन की बात करते हैं, समाज एवं जीवन की बात करते हैं, भारतीय ज्ञान परंपरा की बात करते हैं, भारतीय संस्कृति की बात करते हैं। भारतबोध का यह मंत्र तथा भारतबोध का दर्शन प्रधानमंत्री द्वारा मन की बात में मोदी मंत्र के रूप में जनता को प्राप्त हो रहा है।                                                                                                               प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनेक विषयों पर अपने मन की बात जनता से साझा की है। इन विषयों में भारत की जी-20 अध्यक्षता, अंतरिक्ष में निरंतर प्रगति, वाद्य यंत्रों के निर्यात में वृद्धि, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, ड्रोन उद्योग, कौशल विकास, स्वच्छ भारत अभियान, कृषि एवं किसानों से संबंधित समस्याएं, विज्ञान से संबंधित मिशन, दिव्यांग बच्चों के लिए छात्रवृत्ति, विद्यार्थियों को परीक्षा के समय होने वाले तनाव तथा परीक्षा में सफल होने वाले बच्चों को बधाई, युवाओं से मद पदार्थों से दूर रहने का आग्रह, योग के लाभ, कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों के समग्र विकास पर चर्चा, सैनिकों की सराहना, जन धन योजना एवं सरकार की अन्य विकास योजनाओं की सफलता, खिलाड़ियों की प्रशंसा एवं बधाई, प्राकृतिक आपदा आदि सम्मिलित हैं।

देश एवं समाज के हित के लिए उत्कृष्ट कार्य कर रहे लोगों पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि है। वह उन्हें बधाई देते हुए प्रोत्साहित करते हैं तथा मन की बात में उनका उल्लेख करके युवाओं को प्रेरित करते हैं। उल्लेखनीय है कि नवम्बर 2022 में प्रसारित ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि “कोई अगर विद्या का दान कर रहा है, तो वह समाज हित में सबसे बड़ा काम कर रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में जलाया गया एक छोटा सा दीपक भी पूरे समाज को रोशन कर सकता है। मुझे यह देखकर बहुत खुशी होती है कि आज देशभर में ऐसे कई प्रयास किए जा रहे हैं। यूपी की राजधानी लखनऊ से 70-80 किलोमीटर दूर हरदोई का एक गांव है बांसा। मुझे इस गांव के जतिन ललित सिंह जी के बारे में जानकारी मिली है, जो शिक्षा की अलख जगाने में जुटे हैं। जतिन जी ने दो साल पहले यहां सामुदायिक पुस्तकालय एवं संसाधन केंद्र शुरू किया था। उनके इस केंद्र में हिंदी और अंग्रेजी साहित्य, कंप्यूटर, लॉ और कई सरकारी परीक्षाओं की तैयारियों से जुड़ी तीन हजार से अधिक किताबें मौजूद हैं। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि “झारखंड के संजय कश्यप जी भी गरीब बच्चों के सपनों को नई उड़ाने दे रहे हैं। अपने विद्यार्थी जीवन में संजय जी को अच्छी पुस्तकों की कमी का सामना करना पड़ा था। ऐसे में उन्होंने ठान लिया कि किताबों की कमी से वे अपने क्षेत्र के बच्चों का भविष्य अंधकारमय नहीं होने देंगे। अपने इसी मिशन की वजह से आज वह झारखंड के कई जिलों में बच्चों के लिए ‘लाइब्रेरी मैन’ बन गए हैं। संजय जी ने जब अपनी नौकरी की शुरुआत की थी, तब उन्होंने पहला पुस्तकालय अपने पैतृक स्थान पर बनवाया था। नौकरी के दौरान उनका जहां भी ट्रांसफर होता था, वहां वे गरीब और आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के लिए लाइब्रेरी खोलने के मिशन में जुट जाते हैं। ऐसा करते हुए उन्होंने झारखंड के कई जिलों में बच्चों के लिए लाइब्रेरी खोल दी हैं। उनका उनका यह मिशन आज एक सामाजिक आंदोलन का रूप ले रहा है। ऐसे अनेक प्रयासों के लिए मैं उनकी विशेष सराहना करता हूं।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुसार- “किसी भी देश समाज की विकास की प्रक्रिया में युवाओं विशेषकर विद्यार्थियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। देश की उन्नति में, देश के नेतृत्व में और नए-नए नवाचार को सुदृढ़ करने के लिए युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है।“ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बात को भली-भांति समझते हैं, इसलिए वह देश के नवनिर्माण के लिए युवाओं से आगे आने का आह्वान करते हैं। अपने गौरवशाली अतीत, वैभवशाली संपन्न भारत का परिचय प्रधानमंत्री द्वारा मन की बात में समय-समय पर किया जाता है। वह जनता को जीवन के सभी क्षेत्रों से अवगत करवाते रहते हैं। उन्होंने अमृत काल में महान स्वतंत्रता सेनानियों, तीज-त्यौहारों, भारतीय जीवन पद्धति तथा भारतीय संस्कृति से जनता का परिचय करवाया। 

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागालैंड का उल्लेख करते हुए कहा कि “नागालैंड में नागा समाज की जीवनशैली, उनकी कला- संस्कृति और संगीत, ये हर किसी को आकर्षित करती है। ये हमारे देश की गौरवशाली विरासत का अहम हिस्सा है। इन परम्पराओं और स्किल को बचाकर अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए वहां के लोगों ने एक संस्था बनाई है, जिसका नाम है- ‘लिडि-क्रो-यू’। नागा संस्कृति के जो खूबसूरत आयाम धीरे-धीरे खोने लगे थे, ‘लिडि-क्रो-यू’ संस्था ने उन्हें फिर से पुनर्जीवित करने का काम किया है। इससे इन युवाओं का अपनी संस्कृति से जुड़ाव तो होता ही है, साथ ही उनके लिए रोजगार के नए-नए अवसर भी पैदा होते हैं। नागा लोक-संस्कृति के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोग जानें, इसके लिए भी लिडि-क्रो-यू के लोग प्रयास करते हैं’। आपके क्षेत्र में भी ऐसी सांस्कृतिक विधाएं और परम्पराएं होंगी। आप भी अपने-अपने क्षेत्र में इस तरह के प्रयास कर सकते हैं। अगर आपकी जानकारी में कहीं ऐसा कोई अनूठा प्रयास हो रहा है, तो आप उसकी जानकारी मेरे साथ भी जरूर साझा करिए।“

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश की जनता से संपर्क स्थापित करने के इस प्रयास की चारों ओर प्रशंसा हो रही है।

इस कार्यक्रम के माध्यम से वह देश के नागरिकों से राष्ट्र के विकास के लिए किए जा रहे कार्यक्रमों से जुड़ने का आह्वान करते हैं। उनका मानना है कि नागरिक इन कार्यक्रमों में भागीदारी करके देश की प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी कहते है- इस रविवार को मन की बात का 100वां एपिसोड प्रसारित होने जा रहा है। मन की बात की यह सेंचुरी राष्ट्र निर्माण में हर देशवासी के प्रयासों को समर्पित है। एक भारत- श्रेष्ठ भारत की भवन को समर्पित है।

लेखक –

सहायक प्राध्यापक, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय –भोपाल

मो. 8750820740

Friday, April 28, 2023

 

 



पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष 

अमृत सरोवर योजना : जल संरक्षण से बदलेगी स्थिति 

 

-डॉ. सौरभ मालवीय  

पृथ्वी हमारा निवास स्थान है। मनुष्य सहित सभी प्राणी इसी धरती पर जन्म लेते हैं और इसी पर जीवन यापन करते हैं। पृथ्वी हमारे जीवन का आधार है। पृथ्वी से हमें वायु, जल और भोजन प्राप्त होता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पृथ्वी ने मनुष्य व अन्य सभी प्राणियों को जीवन प्रदान किया है। किन्तु मनुष्य ने पृथ्वी को क्या दिया? इस प्रश्न का उत्तर यही है कि मनुष्य ने पृथ्वी को कुछ नहीं दिया, अपितु उसे दूषित करने का कार्य किया है। वायु प्रदूषित होकर विषैली हो गई है और जल भी दूषित हो रहा है। स्थिति इतनी भयंकर है कि यमुना सहित अनेक नदियों का जल पीने योग्य नहीं है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के एक अध्ययन के अनुसार 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 221 जिलों के कुछ स्थानों का जल आर्सेनिक युक्त पाया गया है। 

दूषित पेयजल के सेवन से उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे क्षेत्रों के लोग दूषित जलजनित रोगों की चपेट में आ जाते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भूजल संकट के कारण देश के लगभग 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को आज भी  स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। ऐसे में वे दूषित जल पीने को विवश हैं।  देश में लोगों को पर्याप्त जल नहीं मिल पा रहा है। देश में प्रति व्यक्ति पानी की वार्षिक 1700 घन मीटर से कम उपलब्धता है। अंतरिक्ष से लिए गए आंकड़ों के आधार पर  देश में पानी की उपलब्धता का पुनर्मूल्यांकन के अध्ययन के आधार पर आशंका व्यक्त की गई है कि वर्ष 2031 के लिए प्रति व्यक्ति पानी की औसत वार्षिक उपलब्धता घटकर 1367 घन मीटर रह जाएगी, जिससे जल संकट और गंभीर हो जाएगा।   

 

एक रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल वैश्विक जल स्रोत का मात्र 4 प्रतिशत ही उपलब्ध है, जबकि यहां विश्व की कुल वैश्विक जनसंख्या का 18 प्रतिशत भाग निवास करता है। केंद्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 में देश में उपलब्ध कुल जल स्रोतों में से 78 प्रतिशत का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा रहा था। जल संकट के कारण वर्ष 2050 तक यह दर घटकर लगभग 68 प्रतिशत रह जाएगी। यह शुभ संकेत नहीं है। 

उल्लेखनीय है कि देश के लगभग 198 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्र के लगभग आधे भाग की सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। इसमें से 63 प्रतिशत क्षेत्र में भूमिगत जल से सिंचाई की जाती है, जबकि 24 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई के लिए नहरों के जल का उपयोग किया जाता है। इसमें 2 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई तालाब एवं कुंओं के जल से की जाती है तथा 11 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई के लिए अन्य स्रोत का उपयोग किया जाता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय कृषक आज भी सिंचाई के लिए भूमिगत जल पर निर्भर करते हैं। इसलिए भूजल का अत्यधिक दोहन किया जाता है। इससे भूमिगत जल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है।   जल प्राणियों के जीवन का आधार है। जल के बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता। सूखे एवं भूमि का जल स्तर नीचे गिरने के कारण अनेक क्षेत्रों में जल संकट व्याप्त हो गया है। इससे निपटने के लिए जल संरक्षण अति आवश्यक है। भीषण गर्मी के समय देश के प्राय: समस्त क्षेत्रों में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जल की समस्या उत्पन्न हो जाती है। तालाब भी शुष्क हो जाते हैं। कुंओं का जल बहुत नीचे उतर जाता है अथवा वे भी सूख जाते हैं। 

इसके कारण ग्रामीणों को उपयोग के लिए पर्याप्त जल प्राप्त नहीं होता है। इस समस्या के दृष्टिगत केंद्र सरकार ने अमृत सरोवर योजना प्रारम्भ की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल 2022 को आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में इसका शुभारंभ किया था। इस योजना का उद्देश्य देश के प्रत्येक जिले में कम से कम 75 जल निकायों का विकास एवं कायाकल्प करना है। देशव्यापी इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक राज्य के प्रयेक जिले में 75 से अधिक तालाबों का निर्माण करवाना है। 

अमृत सरोवर योजना से राज्यों को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकेंगे। तालाबों का निर्माण होने तथा पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार होने से क्षेत्रीय लोगों की जल की समस्या का समाधान हो सकेगा। इससे गर्मी के समय भूजल स्तर को बनाए रखने में सहायता प्राप्त हो सकेगी। इन तालाबों के जल का उपयोग कृषि कार्यों के लिए किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त पशु पालन में भी इस जल का उपयोग हो पाएगा। आवारा पशुओं एवं पक्षियों को भी पीने के लिए जल उपलब्ध हो सकेगा। इसके अतिरिक्त तालाबों का निर्माण होने से उस स्थान पर सुंदरीकरण होगा। तालाबों के तट पर पीपल, बरगद, नीम, अशोका, सहजन, महुआ, जामुन एवं कटहल आदि के पौधे लगाए जाएंगे। इससे जहां पर्यावरण स्वच्छ होगा तथा हरियाली में वृद्धि होगी, वहीं इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकेगा। इससे ग्रामीण क्षेत्र में अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो सकेगी। इन तालाबों का उपयोग मछली पालन, मखाने एवं सिघाड़े की खेती में भी किया जा सकेगा।   

इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में 50 हजार से अधिक तालाबों का निर्माण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रत्येक तालाब एक एकड़ क्षेत्र में होगा, जिसमें 10 हजार घन मीटर पानी की धारण करने की क्षमता होगी। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि इसमें वर्ष भर जल भरा रहे। इस अमृत सरोवर योजना के माध्यम से ग्रामीण वासियों को मनरेगा योजना के अंतर्गत रोजगार उपलब्ध करवाया जा सकेगा। इससे बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध होगा।   

विगत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत सरोवर योजना के अंतर्गत विगत 11 माह में लगभग  40 हजार तालाबों को विकसित करने की उपलब्धि की सराहना की है। उन्होंने ट्वीट में लिखा कि 'बहुत-बहुत बधाई! जिस तेजी से देशभर में अमृत सरोवरों का निर्माण हो रहा है, वो अमृतकाल के हमारे संकल्पों में नई ऊर्जा भरने वाली है।‘. केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने एक ट्वीट करके जानकारी दी कि देश में अभी तक 40 हजार से अधिक अमृत सरोवर राष्ट्र को समर्पित किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 2023 तक 50 हजार अमृत सरोवर बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

उल्लेखनीय है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को विश्वभर में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका के पर्यावरणविद जेराल्ड नेल्सन ने 22 अप्रैल 1970 को इसका शुभारम्भ किया था। वह विस्कॉन्सिन के एक अमेरिकी राजनेता थे. उन्होंने संयुक्त राज्य के सीनेटर और गवर्नर के रूप में कार्य किया। वह पृथ्वी दिवस के संस्थापक थे। उन्होंने पर्यावरण सक्रियता के एक नये अभियान का प्रारम्भ किया था। वर्ष 1969 में सैन फ्रांसिस्को में यूनेस्को सम्मेलन के दौरान 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाने की घोषणा की गई थी। इसके पश्चात से यह दिवस मनाया जा रहा है। अब इसे विश्व के 192 से अधिक देशों में मनाया जाता है। इस अवसर पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें पृथ्वी के समक्ष उत्पन्न समस्याओं को उठाया जाता है तथा इनके समाधान के बारे में चर्चा होती है। आज जब पर्यावरण के समक्ष अनेक प्रकार के संकट उत्पन्न हो गए हैं, ऐसी स्थिति में इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। 

उल्लेख करने योग्य बात यह भी है कि देशभर में पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इसमें सरकारी स्तर के कार्यक्रम भी हैं तथा पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यक्रम भी सम्मिलित हैं।  

नि:संदेश केंद्र सरकार की अमृत सरोवर योजना जल संरक्षण के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करेगी। इससे जल संरक्षण के अभियान को प्रोत्साहन भी मिलेगा। अपनी पृथ्वी को बचाने के लिए हम सबको मिलकर कार्य करना होगा।

(लेखक- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार वि.वि.- भोपाल में सहायक प्राध्यापक है।)  

मोबाइल- 8750820740

Wednesday, April 5, 2023

 


मूल्य आधारित शिक्षा है सुख की अनुभूति का आधार 




-डॉ. सौरभ मालवीय  

हमारी प्राचीन गौरवशाली भारतीय संस्कृति समस्त   विश्व के सुख, समृद्धि एवं शान्ति की कामना करती है। भारतीय चिन्तन में व्यष्टि से समष्टि तक का विचार किया गया है। भारतीय पर्व इस बात का प्रतीक हैं। यहां पर प्राय: प्रतिदिन कोई न कोई लोकपर्व, व्रत, पूजा एवं अनुष्ठान का दिवस होता है, जो इस बात का प्रतीक है कि भारतीय अपने जीवन में कितने प्रसन्न रहते हैं। हमारे धर्म ग्रन्थों में भी सुख पर अनेक श्लोक एवं मंत्र हैं।  

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

अर्थात सभी सुखी रहें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुख का भागी न बनना पड़े।

किन्तु आज भारतीय प्रसन्नता के मामले बहुत पिछड़ गए हैं। अब भारतीय पूर्व की भांति प्रसन्न नहीं रहते। वे दुखी रहने लगे हैं। एक सर्वे में यह बात सामने आई है।     

उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस पर जारी वार्षिक प्रसन्नता रिपोर्ट के अनुसार 137 देशों की सूची में भारत 125वें स्थान पर है। वर्ष 2022 में भारत इस सूची में 144वें स्थान पर था तथा वर्ष 2021 में 139वें स्थान पर था। प्रसन्नता के संबंध में पड़ोसी देशों की स्थिति भारत से अच्छी है। पाकिस्तान 108वें स्थान पर है, जबकि म्यांमार 72वें, नेपाल 78वें, बांग्लादेश 102वें और चीन 64वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड विश्व का सर्वाधिक प्रसन्नता वाला देश है। विगत छह वर्षों से वह अपने इस स्थान पर बना हुआ है। डेनमार्क द्वितीय और आइसलैंड तृतीय स्थान पर है। इस सूची में इजराइल चौथे स्थान पर है, जबकि नीदरलैंड्स पांचवें, स्वीडन छठे, नार्वे सातवें, स्विटजरलैंड आठवें, लक्जमबर्ग नौवें और न्यूजीलैंड दसवें स्थान पर है। सबसे कम प्रसन्न देशों की सूची में लेबनान, जिम्बॉब्वे, द डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो आदि देश सम्मिलित हैं। इस सूची में अफगानिस्तान अंतिम स्थान पर है। उसे 137वां स्थान प्राप्त हुआ है।

उल्लेखनीय है कि विगत एक वर्ष से रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध चल रहा है। फिर भी इन देशों की स्थिति भारत से अच्छी है। इस सूची में रूस 70वें स्थान पर है, जबकि यूक्रेन को 92वें स्थान पर है। यह रिपोर्ट यूएन सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क द्वारा जारी की गई है। यह रिपोर्ट 150 से अधिक देशों के लोगों पर किए गए ग्लोबल सर्वे डाटा के आधार पर बनाई जाती है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस

प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने जुलाई 2011 में प्रसन्नता के संबंध में एक प्रस्ताव अपनाया था। इसके पश्चात संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली ने 12 जुलाई 2012 को प्रस्ताव के अंतर्गत प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस संबंध में अप्रैल 2012 में भूटान की राजसी सरकार ने विश्वभर के प्रतिनिधियों की एक बैठक बुलाई थी। इसमें इस बात पर चर्चा की गई कि लोगों की प्रसन्नता और कल्याण को भी आर्थिक दृष्टिकोण की तरह देखने की आवश्यकता है। बैठक में इसके लिए एक आयोग नियुक्त करने की भी अनुशंसा की गई। भूटान के प्रधानमंत्री जिग्मे थिनले ने इस अनुशंसा को स्वीकार किया। उनका कहना था कि सभी देशों की सरकारों को लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ उनकी प्रसन्नता और कल्याण को भी अधिक से अधिक महत्त्व देना चाहिए। 

उन्होंने बैठक में प्रस्ताव रखा कि संयुक्त राष्ट्र भी इस आयोग का सह-स्वामित्व करे और यह आयोग यूएन महासचिव के सहयोग से इस दिशा में कार्य करे। 

विश्वभर के प्रसन्नता वाले नगरों में उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर सम्मिलित है। यहां के लोग प्रसन्न रहने वाले तथा मित्र बनाने वाले हैं। यह नगर समस्त भारत के लिए प्रेरणा बन गया है। इससे यह बात सामने आती है कि मित्रों के साथ रहने से व्यक्ति प्रसन्न रहता है। मित्र दुख- सुख के साथी होते हैं। मित्रों से बात करने पर मन हल्का हो जाता है। मित्र निराशा के समय आशा की किरण दिखाते हैं। मित्र प्रोत्साहित करते हैं। मित्रों के साथ व्यक्ति अपने जीवन का बहुत अच्छा समय व्यतीत करता है। मित्रों के साथ रहने से प्रसन्नता प्राप्त होती है।             

प्रसन्नता क्या है?

प्रसन्नता एक अनुभूति है। यह मानव मस्तिष्क में पाई जाने वाली भावनाओं में सबसे सकारात्मक अनुभूति है। इस अनुभूति के उत्पन्न होने के अनेक कारण हैं। इनमें अपनी किसी इच्छा की पूर्ति होने पर होने वाली संतुष्टि की अनुभूति सर्वोपरी है। 

प्राय: जीवन बहुत विशाल होता है। जीवन से सदैव सुख प्राप्त नहीं होता। मनुष्य को अनेक कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है। यह अतिशय नहीं है कि जीवन में सुख कम और दुख अधिक होता है। इसके अनेक कारण है। मनुष्य जीवन में सदैव सुख की कामना करता है। वह समृद्धि प्राप्त करना चाहता है। वह अपार धनराशि संचय करना चाहता है, अर्थात वह जीवन में सबकुछ प्राप्त करना चाहता है, परन्तु सदैव ऐसा नहीं होता। उसकी कुछ इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं तथा कुछ इच्छाएं पूर्ण नहीं होतीं। उसकी जो इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं, वह उसके बारे में विचार नहीं करता, अपितु उससे अधिक की कामना करने लगता है। ऐसी परिस्थितियों में वह दुख का भागीदार बन जाता है। इसके अतिरिक्त उसकी जो इच्छाएं पूर्ण नहीं होतीं वह उनके बारे में भी चिंता करता रहता है। इस चिंता के कारण वह मानसिक तनाव से ग्रस्त हो जाता है। यह मानसिक तनाव उसे अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त कर देता है। इस प्रकार के मानसिक तनाव से ग्रस्त व्यक्ति आत्महत्या करके अपना जीवन भी समाप्त कर लेता है। उल्लेखनीय है कि आत्महत्या की सभी घटनाओं के पीछे मानसिक तनाव ही कारण होता है। यह स्थिति दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती जा रही है। वयस्क ही नहीं, अपितु बालक भी आत्मह्त्या जैसा जघन्य अपराध कर रहे हैं। ऐसी अनेक घटनाएं सामने आती रहती हैं। 

तनाव के कारण -

मानसिक तनाव के क्या कारण हैं? इस पर चिंतन मनन किया जाना चाहिए। बाल्यकाल जीवन का सबसे उत्तम समय होता है। यह तनाव मुक्त होता है। बच्चों पर किसी भी प्रकार का कोई दायित्व नहीं होता। उन्हें केवल शिक्षा प्राप्त करनी होती है तथा अपना शेष समय खेलकूद में व्यतीत करना होता है। फिर आज के बच्चे तनाव ग्रस्त क्यों हैं? इसके अनेक कारण हो सकते हैं।    

प्राय: देखने में आता है कि माता-पिता बच्चों पर अधिक से अधिक अंक लाने का दबाव बनाते हैं। सभी बच्चे पढ़ाई में श्रेष्ठ नहीं हो सकते। बच्चे प्रातःकाल में अपने विद्यालय जाते हैं। वहां से आने के पश्चात ट्यूशन के लिए जाते हैं। वहां से आने पर विद्यालय एवं ट्यूशन का कार्य करते हैं। ऐसे में बच्चों के पास अपने स्वयं के लिए समय ही नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त बच्चों को जबरन अन्य गतिविधियों में डालना एवं उन पर श्रेष्ठ प्रदर्शन का दबाव डालना भी उन्हें मानसिक तनाव से ग्रस्त कर देता है। 

माता-पिता के लिए अत्यावश्यक है कि वे अपने बच्चों की मनोस्थिति को समझें तथा उनकी पसंद एवं नापसंद का ध्यान रखें। वे बच्चों को विपरीत परिस्थितियों में भी सुख से रहने की शिक्षा दें। वे बच्चों को बताएं कि सुख और दुख दोनों ही जीवन के अभिन्न अंग हैं। हमें दुखों से घबराना नहीं चाहिए, अपितु ऐसे समय में संयम और धैर्य बनाए रखना चाहिए। यदि हम दुखों को चुनौती मानेंगे तथा स्वयं को योद्धा मानकर उसका सामना करेंगे, तो अवश्य ही हम विजय प्राप्त कर सकेंगे तथा विजेता सिद्ध होंगे। बच्चों को धार्मिक कथाएं सुनानी चाहिए कि किस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्टों का सामना किया। इसी प्रकार भगवान राम का उदाहरण भी है कि किस प्रकार उन्होंने अपने पिता का वचन पूर्ण करने के लिए चौदह वर्षों का वनवास सहर्ष स्वीकार किया, किस प्रकार उन्होंने रावण का संहार किया। सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की कथा भी प्रेरणा देने वाली है कि किस प्रकार राजा हरिश्चंद्र ने अनेक कष्टों का सामना किया, परन्तु सत्य को नहीं त्यागा। इसी प्रकार पंचतंत्र की कहानियां बच्चों के लिए बहुत ही उपयोगी हैं तथा प्रेरक प्रसंग एवं महापुरुषों की जीवनी का ज्ञान बच्चों को करानी चाहिए। 

आज के वातावरण में बच्चे टीवी या मोबाईल में ही अधिक लगे रहते हैं। ऐसे में बच्चों को टीवी पर ऐसे कार्यक्रम देखने के लिए प्रोत्साहित करें, जो उनके लिए उपयोगी हैं। दूरदर्शन के अनेक चैनलों पर शिक्षा से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित होते हैं, विद्यार्थियों के लिए बनाए गए हैं। इसके अतिरिक्त बच्चे मोबाईल पर भी केवल शिक्षा संबंधी चीजें ही देखें। कोरोना काल से मोबाइल भी बच्चों की शिक्षा का एक अंग बन चुका है। माता-पिता को चाहिए कि वे इस पर पूर्ण दृष्टि बनाए रखें कि उनके बच्चे मोबाईल में क्या देख रहे हैं, क्योंकि बहुत से ऐसे खेल सामने आ रहे हैं, जो बच्चों को मानसिक तनाव से ग्रस्त कर रहे हैं। इस खेलों के कारण बच्चों द्वारा आत्महत्या करने के अनेक मामले में भी सामने आ चुके हैं। इतना ही नहीं, यूट्यूब पर अनेक ऐसी चीजें हैं, जो बच्चों के मन-मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालती हैं। उदाहरण के लिए हंसी-मजाक के अनेक वीडियो ऐसे हैं, जिनमें अशिष्टता के साथ-साथ अश्लीलता भी है।             

मानव को बाल्यकाल से ही जीवन मूल्यों की शिक्षा देना हमारी भारतीय परम्परा का अंग रहा है। यह हमारी सांस्कृतिक विशिष्टता है। विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा दी जाए, जो उन्हें अक्षर ज्ञान के साथ-साथ जीवन मूल्यों को समझने में भी सहायक सिद्ध हो। बच्चे जीवन में प्रसन्न रहना सीखें। बच्चा विद्यालय में कम समय व्यतीत करता है, परन्तु अधिक समय अपने घर में ही परिवारजनों के साथ रहता है। इसलिए यह अत्यावश्यक है कि माता- पिता स्वयं भी प्रसन्न रहें तथा अपने बच्चों को प्रसन्न रहना सिखाएं।

(लेखक – माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल में सहायक प्रोफेसर है )

Tuesday, March 21, 2023

सृष्टि की उत्पत्ति का दिन है नव संवत्सर



 

   नव सम्वत् पर संस्कृति का सादर वन्दन करें 

 -डॉ. सौरभ मालवीय


नवरात्र हवन के झोंके, सुरभित करते जनमन को।

है शक्तिपूत भारत, अब कुचलो आतंकी फन को॥

नव सम्वत् पर संस्कृति का, सादर वन्दन करते हैं।

हो अमित ख्याति भारत की, हम अभिनन्दन करते हैं॥ 

22 मार्च से विक्रम सम्वत् 2080 का प्रारम्भ गया है। विक्रम सम्वत् को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर पांच प्रकार के होते हैं, जिनमें सौर, चन्द्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास सम्मिलित हैं। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ एवं मीन नामक बारह राशियां सूर्य वर्ष के महीने हैं। सूर्य का वर्ष 365 दिन का होता है। इसका प्रारम्भ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने से होता है।  चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अग्रहायण, पौष, माघ और फाल्गुन चन्द्र वर्ष के महीने हैं। चन्द्र वर्ष 355 दिन का होता है। इस प्रकार इन दोनों वर्षों में दस दिन का अंतर हो जाता है। चन्द्र माह के बढ़े हुए दिनों को ही अधिमास या मलमास कहा जाता है। नक्षत्र माह 27 दिन का होता है, जिन्हें अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र कहा जाता है। सावन वर्ष में 360 दिन होते हैं। इसका एक महीना 30 दिन का होता है।      

 भारतीय संस्कृति में विक्रम सम्वत् का बहुत महत्त्व है। चैत्र का महीना भारतीय कैलेंडर के हिसाब से वर्ष का प्रथम महीना है। नवीन संवत्सर के संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। वैदिक पुराण एवं शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को आदिशक्ति प्रकट हुई थीं। आदिशक्ति के आदेश पर ब्रह्मा ने सृष्टि की प्रारम्भ की थी। इसीलिए इस दिन को अनादिकाल से नववर्ष के रूप में जाना जाता है। मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसी दिन सतयुग का प्रारम्भ हुआ था। मान्यता है कि इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने अपना राज्य स्थापित किया था। श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र भी इसी दिन से प्रारम्भ होते हैं। इसी तिथि को राजा विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी। विजय को चिर स्थायी बनाने के लिए उन्होंने विक्रम सम्वत् का शुभारंभ किया था, तभी से विक्रम सम्वत् चली आ रही है। इसी दिन से महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करके पंचांग की रचना की थी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्त्व भी है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी। इस दिन महर्षि गौतम जयंती मनाई जाती है। इस दिन संघ संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिवस भी मनाया जाता है।

 सृष्टि की सर्वाधिक उत्कृष्ट काल गणना का श्रीगणेश भारतीय ऋषियों ने अति प्राचीन काल से ही कर दिया था। तदनुसार हमारे सौरमंडल की आयु लगभग चार अरब 32 करोड़ वर्ष हैं। आधुनिक विज्ञान भी कार्बन डेटिंग और हॉफ लाइफ पीरियड की सहायता से इसे लगभग चार अरब वर्ष पुराना मान रहा है। इतना ही नहीं, श्रीमद्भागवद पुराण, श्री मारकंडेय पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार अभिशेत् बाराह कल्प चल रहा है और एक कल्प में एक हजार चतुरयुग होते हैं। जिस दिन सृष्टि का प्रारम्भ हुआ, वह आज ही का पवित्र दिन था। इसी कारण मदुराई के परम पावन शक्तिपीठ मीनाक्षी देवी के मंदिर में चैत्र पर्व मनाने की परंपरा बन गई।

 भारतीय महीनों का नामकरण भी बड़ा रोचक है अर्थात जिस महीने की पूर्णिमा जिस नक्षत्र में पड़ती है, उसी के नाम पर उस महीने का नामकरण किया गया है, उदाहरण के लिए इस महीने की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में हैं, इसलिए इसे चैत्र महीने का नाम दिया गया। क्रांति वृत पर 12 महीने की सीमाएं तय करने के लिए आकाश में 30-30 अंश के 12 भाग किए गए और उनके नाम भी तारा मंडलों की आकृतियों के आधार पर रखे गए। इस प्रकार बारह राशियां बनीं।चूंकि सूर्य क्रांति मंडल के ठीक केंद्र में नहीं हैं, अत: कोणों के निकट धरती सूर्य की प्रदक्षिणा 28 दिन में कर लेती है और जब अधिक भाग वाले पक्ष में 32 दिन लगते हैं। इसलिए प्रति तीन वर्ष में एक मास अधिक हो जाता है। 

भारतीय काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि शताब्दियों तक एक क्षण का भी अंतर नहीं पड़ता, जबकि पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक चार वर्ष में फरवरी महीने को लीप ईयर घोषित कर देते हैं। तब भी नौ मिनट 11 सेकेंड का समय बच जाता है, तो प्रत्येक चार सौ वर्षों में भी एक दिन बढ़ाना पड़ता है, तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता। अभी कुछ वर्ष पूर्व ही पेरिस के अंतर्राष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक सेकेंड स्लो कर दिया गया। फिर भी 22 सेकेंड का समय अधिक चल रहा है। यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है, जहां के सीजीएस सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय किए जाते हैं। रोमन कैलेंडर में तो पहले 10 ही महीने होते थे। किंगनुमापाजुलियस ने 355 दिनों का ही वर्ष माना था, जिसे जुलियस सीजर ने 365 दिन घोषित कर दिया और उसी के नाम पर एक महीना जुलाई बनाया गया। उसके एक सौ वर्ष पश्चात किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट अर्थात अगस्त भी बढ़ाया गया। चूंकि ये दोनों राजा थे, इसलिए इनके नाम वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गए। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद बात है कि लगातार दो महीने के दिनों की संख्या समान हैं, जबकि अन्य महीनों में ऐसा नहीं है। यही नहीं, जिसे हम अंग्रेजी कैलेंडर का नौवां महीना सितम्बर कहते हैं, दसवां महीना अक्टूबर कहते हैं, ग्यारहवां महीना नवम्बर और बारहवां महीना दिसम्बर हैं। इनके शब्दों के अर्थ भी लैटिन भाषा में 7,8,9 और 10 होते हैं। भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय काल गणना पूरे विश्व में व्याप्त थी और सचमुच सितम्बर का अर्थ सप्ताम्बर था, आकाश का सातवां भाग, उसी प्रकार अक्टूबर अष्टाम्बर, नवम्बर तो नवमअम्बर और दिसम्बर दशाम्बर है।

 वर्ष 1608 में एक संवैधानिक परिवर्तन द्वारा एक जनवरी को नववर्ष घोषित किया गया। जेनदअवेस्ता के अनुसार धरती की आयु लगभग 12 हजार वर्ष है। चीनी कैलेंडर लगभग एक करोड़ वर्ष पुराना मानता है। चालडियन कैलेंडर धरती को लगभग दो करोड़ 15 लाख वर्ष पुराना मानता है। फीनीसयन इसे लगभग 30 हजार वर्ष की बताते हैं। सीसरो के अनुसार यह लगभग चार लाख 80 हजार वर्ष पुरानी है। सूर्य सिद्धांत और सिद्धांत शिरोमाणि आदि ग्रंथों में चैत्रशुक्ल प्रतिपदा रविवार का दिन ही सृष्टि का प्रथम दिन माना गया है।

 संस्कृत के होरा शब्द से ही, अंग्रेजी का आवर (Hour) शब्द बना है। इस प्रकार यह सिद्ध हो रहा है कि वर्ष प्रतिपदा ही नववर्ष का प्रथम दिन है। एक जनवरी को नववर्ष मनाने वाले दोहरी भूल के शिकार होते हैं, क्योंकि भारत में जब 31 दिसम्बर की रात को 12 बजता है, तो ब्रिटेन में सायंकाल होता है, जो कि नववर्ष की पहली सुबह हो ही नहीं सकती। और जब उनका एक जनवरी का सूर्योदय होता है, तो यहां के Happy New Year मनाने वाले रात्रि भर जागने कारण सो रहे होते हैं। ऐसी स्थिति में उनके लिए सवेरे नहा धोकर भगवान सूर्य की पूजा करना तो अत्यंत दुष्कर कार्य है। परन्तु भारतीय नववर्ष में वातावरण अत्यंत मनोहारी रहता है। केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु जड़ चेतना नर-नाग यक्ष रक्ष किन्नर-गंधर्व, पशु-पक्षी लता, पादप, नदी नद, देवी, देव, मानव से समष्टि तक सब प्रसन्न होकर उस परम शक्ति के स्वागत मंर सन्नध रहते हैं।

नववर्ष पर दिवस सुनहले, रात रूपहली, उषा सांझ की लाली छन-छन कर पत्तों में बनती हुई चांदनी जाली कितनी मनोहारी लगती है। शीतल मंद सुगंध पवन वातावरण में हवन की सुरभि कर देते हैं। ऐसे ही शुभ वातावरण में अखिल लोकनायक श्रीराम का अवतार होता है। 

उल्लेखनीय है कि ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है। मान्यता है कि नव संवत्सर के दिन नीम की कोमल पत्तियों और पुष्पों का मिश्रण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, मिश्री, जीरा और अजवाइन मिलाकर उसका सेवन करने से शरीर स्वस्थ रहता है। इस दिन आंवले का सेवन भी बहुत लाभदायक बताया गया है। माना जाता है कि आंवला नवमीं को जगत पिता ने सृष्टि पर पहला सृजन पौधे के रूप में किया था। यह पौधा आंवले का था। इस तिथि को पवित्र माना जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।

निसंदेह, जब भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ प्रारंभ होता है, तो चहुंओर प्रकृति चहक उठती है। भारत की बात ही निराली है।

कवि श्री जयशंकर प्रसाद के शब्दों में-

अरुण यह मधुमय देश हमारा

जहां पहुंच अनजान क्षितिज को

मिलता एक सहारा

अरुण यह मधुमय देश हमारा

इसमें संदेह नहीं कि आज हमारे दैनिक जीवन में अंग्रेजी कैलेंडर का बहुत प्रचलन है, परन्तु हमारे तीज-त्यौहार, व्रत, उपवास, रामनवमी जन्माष्टमी, गृह प्रवेश, विवाह तथा अन्य शुभ कार्यों के शुभमुहूर्त आदि सभी आयोजन भारतीय कैलेंडर अर्थात हिन्दू पंचांग के अनुसार ही देखे जाते हैं।  

आइए इस शुभ अवसर पर हम भारत को पुन: जगतगुरु के पद पर आसीन करने में कृत संकल्प हों।

(लेखक- सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया विषय पर पीएचडी किए है। )

भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है