Tuesday, February 28, 2023

मातृभाषा पर गर्व करें



-डॉ. सौरभ मालवीय 


मातृभाषा का अर्थ है मातृ की भाषा अर्थात वह भाषा जो बालक अपनी माता से सीखता है। बाल्यकाल से ही मातृभाषा में बोलने और सुनने के कारण व्यक्ति अपनी भाषा में निपुण हो जाता है। मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की पहचान होती है। मातृभाषा का जीवन में अत्यंत महत्व होता है। कोई भी व्यक्ति अपनी मातृभाषा में अपने विचारों को सरलता से व्यक्त करने में सक्षम होता है, क्योंकि व्यक्ति सदैव अपनी मातृभाषा में ही विचार करता है। इसलिए उसे अपनी मातृभाषा में कोई भी विषय समझने में भी सुगमता होती है, जबकि किसी अन्य भाषा में उसे कठिनाई का सामना करना पड़ता है। मातृभाषा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की आधारशिला है।

 

मातृभाषा व्यक्ति को उसकी संस्कृति से जोड़ने में सक्षम होती है। मातृभाषा द्वारा व्यक्ति को अपनी मूल संस्कृति एवं संस्कारों का ज्ञान होता है। मातृभाषा द्वारा व्यक्ति अपने समाज से भी जुड़ा रहता है। उदाहरण के लिए यदि किसी की मातृभाषा भोजपुरी है, तो वह व्यक्ति उन लोगों से मिलकर अपनत्व का अनुभव करेगा, जो भोजपुरी बोलते हैं। लोग अपने दैनिक जीवन में अपनी मातृभाषा ही बोलते हैं। मातृभाषा के लिए कहा गया है कि

कोस-कोस पर पानी बदले, तीन कोस पर वाणी अर्थात पीने वाला पानी का स्वाद एक कोस की दूरी पर बदल जाता है। साथ ही मातृभाषा तीन कोस की दूरी पर बदलती है। लोग बचपन में स्थानीय भाषा में कहानियां-कथाएं सुनते हैं, जो उन्हें जीवन में सदैव याद रहती हैं। स्थानीय बोलचाल व्यक्ति को स्थान विशेष से जोड़कर रखती है। मातृभाषा का चिंतन हमें हमारे मूल्यों से जोड़ता है। मातृभाषा व्यक्ति के मानसिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है। मातृभाषा में ही विचारों का प्रवाह हो सकता है, जो किसी अन्य भाषा में संभव नहीं है।  

 

भारत ही नहीं, अपितु विश्वभर के विद्वान भी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान किए जाने को महत्व देते हैं। शिक्षा शास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मातृभाषा में सोचने से, विचार करने से, चिंतन मनन करने से बालकों में बुद्धि तीक्ष्ण होकर कार्य करती है। संवाद की सुगम भाषा मातृभाषा है। मातृभाषा व्यक्ति के आत्मिक लगावविश्वास मूल्य और संबंध मूल्य को मजबूत करती है। सर सीवी रमन के अनुसार- “हमें विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में देनी चाहिए, अन्यथा विज्ञान एक छद्म कुलीनता और अहंकार भरी गतिविधि बनकर रह जाएगा। और ऐसे में विज्ञान के क्षेत्र में आम लोग कार्य नहीं कर पाएंगे।“ भारतेंदु हरिश्चंद्र के अनुसार- “निज भाषा उन्नति अहैसब उन्नति को मूलबिन निज भाषा ज्ञान केमिटन न हिय के सूल।“

अर्थात मातृभाषा की उन्नति के बिना किसी भी समाज की उन्नति संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी कठिन है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित गिरधर शर्मा के अनुसार- “विचारों का परिपक्व होना भी तभी संभव होता हैजब शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो।“ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी मातृभाषा के महत्त्व से भली-भांति परिचित थे। वे कहते थे कि  "मनुष्य के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा उतनी ही जरूरी हैजितना की बच्चे के शारीरिक विकास के लिए माता का दूध। बालक पहला पाठ अपनी माता से ही पढ़ता हैंइसलिए उसके मानसिक विकास के लिए उसके ऊपर मातृभाषा के अतिरिक्त कोई दूसरी भाषा लादना मैं मातृभूमि के विरुद्ध पाप समझता हूं।"  नेल्सन मंडेला के अनुसार- “यदि आप किसी से ऐसी भाषा में बात करते हैं जो उसे समझ में आती है तो वह उसके मस्तिष्क तक पहुंचती है, परन्तु यदि आप उससे उसकी मातृभाषा में बात करते हैं तो बात उसके हृदय तक पहुंचती है।“ ब्रिघम यंग के अनुसार “हमें अपने बच्चों को पहले उनकी मातृभाषा में समुचित शिक्षा देनी चाहिएउसके पश्चात ही उन्हें उच्च शिक्षा की किसी भी शाखा में जाना चाहिए।“

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट से भी यह सिद्ध होता है कि अपनी मातृभाषा में चिकित्सा एवं विज्ञान आदि विषयों में पढ़ाई करवाने वाले देशों में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत अच्छी स्थिति में है। देश के पड़ोसी देश चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस एवं जापान आदि देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। ये सभी देश लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी हैं एवं उन्नति के शिखर को छू रहे हैं। इन सभी देशों ने अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करके ही सफलता प्राप्त की है। यदि स्वतंत्रता के पश्चात हमारे देश में भी क्षेत्रीय भाषाओं में चिकित्सा, विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा प्रदान की जाती तो आज भारत भी उन्नति के शिखर पर होता। परन्तु अब भी समय है।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश की क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहित कर रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषाओं को अत्यंत महत्त्व दिया जा रहा है। देश में हिंदी में चिकित्सा की पढ़ाई प्रारंभ होना भी इसी दिशा में उठाया हुआ एक कदम है। आशा है कि इससे देश में बड़ा सकारात्मक परिवर्तन आएगा। लाखों छात्र अपनी भाषा में अध्ययन कर सकेंगे तथा उनके लिए कई नए अवसरों के द्वार भी खुलेंगे।  

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि मां और मातृभाषा मिलकर जीवन को मजबूती प्रदान करते हैं तथा कोई भी इंसान अपनी मां एवं मातृभाषा को न छोड़ सकता है और न ही इनके बिना उन्नति कर सकता है। मैं तो मातृभाषा के लिए यही कहूंगा कि जैसे हमारे जीवन को हमारी मां गढ़ती हैवैसे ही मातृभाषा भी हमारे जीवन को गढ़ती है। मां और मातृभाषा दोनों मिलकर जीवन के आधार को मजबूत बनाते हैंचिरंजीव बनाते हैं। जैसे हम अपनी मां को नहीं छोड़ सकतेवैसे ही अपनी मातृभाषा को भी नहीं छोड़ सकते। मुझे बरसों पहले अमेरिका में एक बार एक तेलुगू परिवार में जाना हुआ और मुझे एक बहुत खुशी का दृश्य वहां देखने को मिला। उन्होंने मुझे बताया कि हम लोगों ने परिवार में नियम बनाया है कि कितना ही काम क्यों न हो, लेकिन अगर हम शहर के बाहर नहीं हैं तो परिवार के सभी सदस्य भोजन की मेज पर बैठकर तेलुगू भाषा बोलेंगे। जो बच्चे वहां पैदा हुए थेउनके लिए भी ये नियम था। अपनी मातृभाषा के प्रति ये प्रेम देखकर इस परिवार से मैं बहुत प्रभावित हुआ था। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी कुछ लोग ऐसे द्वन्द्व में हैं जिसके कारण उन्हें अपनी भाषाअपने पहनावेअपने खान-पान को लेकर संकोच होता है, जबकि विश्व में कहीं और ऐसा नहीं है। मातृभाषा को गर्व के साथ बोला जाना चाहिए और हमारा देश तो भाषाओं के मामले में इतना समृद्ध है कि उसकी तुलना ही नहीं हो सकती। हमारी भाषाओं की सबसे बड़ी खूबसूरती ये है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तककच्छ से कोहिमा तक सैंकड़ों भाषाएंहजारों बोलियां एक दूसरे से अलग लेकिन एक दूसरे में रची-बसी हैं। हमारी भाषा अनेक, लेकिन भाव एक है।

भाषाकेवल अभिव्यक्ति का ही माध्यम नहीं, बल्कि भाषा समाज की संस्कृति और विरासत को भी सहेजने का काम करती है। हमारे यहां भाषा की अपनी खूबियां हैंमातृभाषा का अपना विज्ञान है। इस विज्ञान को समझते हुए ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा में पढ़ाई पर जोर दिया गया है।

 

आज देखने को मिल रहा है कि बच्चे अपनी मातृभाषा में गिनती नहीं करते, अपितु अंग्रेजी में गणना करते हैं। अंग्रेजी का ज्ञान भी प्राप्त करना चाहिए, क्योंकि यह भी समय की मांग है। किन्तु अपनी मातृभाषा को तुच्छ समझना उचित नहीं है। माता-पिता भी बच्चों को अपनी मातृभाषा की बजाय अंग्रेजी में बात करते हुए देखकर प्रसन्न होते हैं। वे अपने बच्चों को इसके लिए प्रोत्साहित करते हैं। ऐसा करने से बच्चे भी अंग्रेजी को उच्च मानने लगते हैं। उन्हें अपनी मातृभाषा तुच्छ लगने लगती है। इस प्रकार वे अपनी संस्कृति से भी दूर होने लगते हैं। उन्हें अंग्रेजी के साथ-साथ पश्चिमी सभ्यता अच्छी लगने लगती है। वे स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगते हैं तथा उन्हें अपनी लोकभाषा अर्थात मातृभाषा में बात करने वाले लोग तुच्छ लगने लगते हैं।

 

हमारे विशाल भारत देश में अनेक भाषाएं हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 121 भाषाएं हैं तथा 1369 मातृभाषा हैं। वर्ष 2001 की जनगणना की तुलना में वर्ष 2011 में हिंदी को अपनी मातृभाषा की बताने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। वर्ष 2001 में 43.03 प्रतिशत लोगों ने हिंदी को अपनी मातृभाषा बताया था, जबकि वर्ष 2011 में 43.6 प्रतिशत लोगों ने हिंदी को अपनी मातृभाषा बताया। देश की सूचीबद्ध भाषाओं में संस्कृत सबसे कम बोली जाने वाली भाषा बनी हुई है। मात्र 24821 लोगों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा बताया। गैर सूचीबद्ध भाषाओं में अंग्रेजी को लगभग 2.6 लाख लोगों ने अपनी मातृभाषा बताया। इसमें लगभग 1.60 लाख लोग महाराष्ट्र के हैं।

 

मातृभाषा के महत्त्व के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिकवैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन ने सर्वप्रथम 17 नवंबर 1999 को प्रतिवर्ष 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की थी। उसके पश्चात वर्ष 2000 से विश्वभर में प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिकवैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन के अनुसार मातृभाषा को बढ़ावा देने से न केवल सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा मिलता हैअपितु जातीय परंपराओं और भाषा विज्ञान पर भी अधिक ध्यान पैदा होता है। इसके अतिरिक्त मान्यता समझसंवाद और सहिष्णुता के आधार पर एकता को बढ़ावा देती है।


( लेखक- मीडिया शिक्षक एवं राजनीतिक विश्लेषक है)


भारतबोध कराता है भारतीय पर्यटन

 

 

 

           


 



डॉ. सौरभ मालवीय 

पर्यटन देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाता है। इससे सरकार को राजस्व तथा विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। इसके कारण विकास कार्यों को भी बढ़ावा मिलता है। भारत एक विशाल देश है। यहां के विभिन्न राज्यों की भिन्न-भिन्न संस्कृतियां हैं। सबकी अपनी परम्पराएं हैं। इसके साथ ही यहां प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत पर्यटन स्थल हैं। यहां पर ऐतिहासिक स्थल हैं। यहां पर असंख्य धार्मिक स्थल भी हैं।

राष्ट्रीय पर्यटन दिवस का प्रारम्भ

देश के विभिन्न पर्यटन स्थलों के प्रचार एवं प्रसार के लिए केंद्र सरकार ने 25 जनवरी 1948 को प्रथम बार राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया था। तब से प्रतिवर्ष 25 जनवरी को राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जाता है। इसके पश्चात एक पर्यटन यातायात समिति भी गठित की गई। इस समिति के गठन के तीन वर्ष पश्चात 1951 में कोलकाता और चेन्नई में पर्यटन दिवस के क्षेत्रीय कार्यालयों में वृद्धि होती गई। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में पर्यटन कार्यालय बनाए गए। वर्ष 1998 में पर्यटन और संचार मंत्री के नेतृत्व में एक पर्यटन विभाग बनाया गया। इसका उद्देश्य भारतीय पर्यटन को प्रोत्साहित करना है। पर्यटन स्थलों के कारण लाखों लोगों को आजीविका प्राप्त होती है।

धार्मिक पर्यटन

भारत में प्रत्येक वर्ष लाखों पर्यटक आते हैं। इनमें धार्मिक पर्यटक भी सम्मिलित हैं। धार्मिक पर्यटक से अभिप्राय उन पर्यटकों से है, जो यहां के तीर्थ स्थानों के दर्शनों के लिए आते हैं। भारत तीर्थों का देश है। यहां बहुत से तीर्थ स्थान हैं। हिन्दू धर्म में अनेक प्रकार के तीर्थों का वर्णन मिलता है। इन तीर्थों में 12 ज्योतिर्लिंग भी सम्मिलत है। इनका अत्यंत महत्त्व है। गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पृथ्वी का प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। मान्यता है कि यहां पर देवताओं ने एक पवित्र कुंड का निर्माण किया था। इसे सोमकुंड कहा जाता है। यह भी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश हो जाता है। इसलिए इसे पापनाशक कुंड कहा जाता है।

आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नामक पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव और माता पार्वती की संयुक्त रूप से दिव्य ज्योतियां विद्यमान हैं। मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है। यह एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां प्रतिदिन चिता की भस्म से महादेव का श्रंगार होता है तथा आरती होती है। यह आरती विश्वभर में प्रसिद्ध है, क्योंकि यह जलती चिता की भस्म से की जाती है। मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। यह नर्मदा नदी के मध्य मन्धाता अथवा शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है।यहां ॐ का आकार बनता है। इसलिए इसे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय की केदार नामक चोटी पर केदारनाथ ज्योतिर्लिंग है। कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों ने करवाया था। महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग है। यहां से भीमा नदी निकलती है। यहां का शिवलिंग बहुत मोटा है। इसलिए इसे मोटेश्वर महादेव भी कहा जाता है।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग है। मान्यता है कि यह मंदिर शिव और पार्वती का आदि स्थान है। महाराष्ट्र के नासिक जिले के ग्राम त्रयंबक में त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग है। इसके समीप ब्रह्मागिरि नामक पर्वत है, जो गोदावरी नदी का उद्गम स्थल है। यहां त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णुप एवं महेश विराजमान हैं, जो इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। अन्यष सभी ज्यो तिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजमान हैं। झारखंड के संथाल परगना में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग है। शिव का एक नाम वैद्यनाथ भी है, इसलिए इसे वैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है। पुराणों में शिव के इस धाम को चिताभूमि का नाम दिया गया है। गुजरात के बड़ौदा क्षेत्र में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है। नागेश्वर का अर्थ है नागों का ईश्वर तथा शिव को नागों का देवता माना जाता है। तमिलनाडु के रामनाथम नामक स्थान पर रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग है। इसे सेतुबंध तीर्थ भी कहा जाता है। मान्यता है कि लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व श्रीराम ने इसकी स्थापना की थी। इसलिए इसे रामेश्वरम कहा जाता है। महाराष्ट्र के दौलताबाद के समीप घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग है। इस स्थान को शिवालय भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।

हिन्दू धर्म में चार धामों की यात्रा को भी अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। इनमें उत्तराखंड का बद्रीनाथ धाम, गुजरात का द्वारका धाम, उड़ीसा का जगन्नाथ पुरी तथा तमिलनाडु का रामेश्वरम धाम सम्मिलित है। मान्यता है कि इन चार धामों की यात्रा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में एक बार अवश्य इन चार धामों की यात्रा कर पुण्य प्राप्त करना चाहिए।

पर्यटन की वैश्विक स्थिति

वैश्विक रूप से पर्यटन की बात करें, तो यह एक बड़ा क्षेत्र है। एक रिपोर्ट के अनुसार पर्यटन का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 11 प्रतिशत का योगदान है। भारत में पर्यटन का सकल घरेलू उत्पाद में 6.7 प्रतिशत का योगदान है। भारत की स्थिति के दृष्टिगत यह बहुत कम योगदान है। चीन में यह योगदान 8.6 प्रतिशत, श्रीलंका में 8.8 प्रतिशत, इंडोनेशिया में 9.2 प्रतिशत, मलेशिया में 12.9 प्रतिशत तथा थाइलैंड में 13.9 प्रतिशत है। एक रिपोर्ट के अनुसार प्रथम पंचवर्षीय योजना के समय देश में केवल 17 हजार विदेशी पर्यटक आए थे। यह पर्यटन को प्रोत्साहित करने का परिणाम है कि वर्ष 2017 में देश में लगभग 77 लाख विदेशी पर्यटक भारत भ्रमण के लिए आए। अब देश में प्रतिवर्ष लगभग 77 विदेशी पर्यटक आते हैं। केंद्र की मोदी सरकार इस ओर ध्यान दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार आज पर्यटन विश्व के अनेक देशों में एक आकर्षक उद्योग के रूप में रोजगार का बहुत बड़ा माध्यम बना हुआ है। विश्व में अनेक देश हैं, जिनकी पूरी अर्थव्यवस्था केवल और केवल पर्यटकों के भरोसे चल रही है। भारत के कोने-कोने में पर्यटन की शक्ति अपार है, बहुत सामर्थ्य पड़ा हुआ है, हमें इसे बढ़ाने की आवश्यकता है। आज यह समय की मांग है कि भारत अपनी विरासत को अधिक से अधिक और तेजी के साथ संरक्षित करे, वहां आधुनिक सुविधाएं बढ़ाए। हम यह पूरे देश में देख रहे हैं कि बीते वर्षों में जिन भी तीर्थ स्थलों को आधुनिक सुविधाओं से जोड़ा गया, वहां यात्रियों, पर्यटकों की संख्या अनेक गुना बढ़ गई है। इसका सीधा लाभ स्थानीय लोगों तथा वहां समीपवर्ती क्षेत्र के लोगों को हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि भारत के तीर्थ स्थलों पर आने वाले पर्यटकों को दोहरा लाभ होता है, क्योंकि लगभग सभी तीर्थ ऐसे स्थानों पर हैं, जहां का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है। भारत के उत्तर पूर्व में हिमालय पर्वत है। बर्फ से आच्छादित पर्वत सौन्दर्य का अद्भुत खजाना हैं। हिमालय के अतिरिक देश में अनेक पर्वत श्रृंखलाएं हैं, जिनमें अगस्त्यमलाई पहाड़ी, अनामलाई पहाड़ी, अरावली पर्वतमाला, बैलाडिला पहाड़ियां, कैमोर पहाड़ी, इलायची पहाड़ियां, धौलाधार श्रेणी, पूर्वी घाट, गढ़जात रेंज, कार्बी, आंगलोंग पठार, गारो पहाड़ियां, जयंतिया पहाड़ियां, काराकोरम शृंखला तथा खासी पर्वतमाला आदि सम्मिलित हैं। इन पर्वतमालाओं की हरियाली बड़ी मनोहारी लगती है। यहां के वन, वन्यजीव एवं इन वनों में निवास करने वाले आदिवासी समाज के लोगों की संस्कृति भी आकर्षण का केंद्र है।     

देश में असंख्य नदियां हैं। पंजाब राज्य का नामकरण तो पांच नदियों के कारण ही हुआ है। इनमें सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब और झेलम नदी सम्मिलित है। देश में मुख्यतः चार नदी प्रणालियां अर्थात अपवाह तंत्र हैं। उत्तरी भारत में सिंधु, उत्तरी-मध्य भारत में गंगा तथा और उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली है। प्रायद्वीपीय भारत में नर्मदा, कावेरी, महानदी आदि नदियां हैं, जो विस्तृत नदी प्रणाली का निर्माण करती हैं। देश में नदियों के संगम पर तीर्थस्थल बने हुए हैं। इन संगमों के नाम के साथ से प्रयाग जुड़ा हुआ है। देश में 14 प्रयाग हैं। उत्तर प्रदेश के प्रयाग में गंगा, यमुना एवं सरस्वती का संगम है। उत्तराखंड में पांच प्रयाग हैं। यहां अलकनंदा का अन्य नदियों से संगम होता है। यहां के देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है। रुद्रप्रयाग में मन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों का संगम होता है। कर्णप्रयाग में अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों का संगम होता है। नन्दप्रयाग में नन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों का संगम होता है। विष्णुप्रयाग में धौली गंगा तथा अलकनंदा नदियों का संगम होता है।

मान्यता है कि त्यौहारों पर इन तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से व्यक्ति के समूल पापों का नाश हो जाता है तथा उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। प्रयागराज हिन्दुओं का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां कुम्भ मेले का भी आयोजन किया जाता है। कुम्भ मेले के अवसर पर करोड़ों श्रद्धालु प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन तथा नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष तथा प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के मध्य छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुम्भ मेले का आयोजान किया जाता है। यहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं। कुम्भ मेले को अमृत उत्सव भी कहा जाता है। 

भारत में अनेक समुद्र तट हैं, जहां का अपार सौन्दर्य पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। इनमें आंध्र प्रदेश के समुद्र तट, उड़ीसा के समुद्र तट, पश्चिम बंगाल के समुद्र तट, गोवा के समुद्र तट, केरल के समुद्र तट, तमिलनाडु के समुद्र तट, मुंबई के समुद्र तट, दीव के समुद्र तट, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप के समुद्र तट सम्मिलित हैं। विदेशी पर्यटकों के यहां के समुद्र तट बहुत पसंद हैं।

इसमें दो मत नहीं है कि यदि भारतीय पर्यटन को प्रोत्साहित किया जाए, तो यह रोजगार में सृजन करेगा। इससे रोजगार की समस्या का समाधान होगा तथा गरीबी उन्मूलन भी यह सहायक सिद्ध होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पर्यटन को प्रोत्साहित करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, जो सार्थक सिद्ध होगा।

(लेखक-मीडिया शिक्षक एवं राजनीतिक विश्लेषक है )

 



 

भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है