Friday, April 28, 2023

 

 



पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर विशेष 

अमृत सरोवर योजना : जल संरक्षण से बदलेगी स्थिति 

 

-डॉ. सौरभ मालवीय  

पृथ्वी हमारा निवास स्थान है। मनुष्य सहित सभी प्राणी इसी धरती पर जन्म लेते हैं और इसी पर जीवन यापन करते हैं। पृथ्वी हमारे जीवन का आधार है। पृथ्वी से हमें वायु, जल और भोजन प्राप्त होता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पृथ्वी ने मनुष्य व अन्य सभी प्राणियों को जीवन प्रदान किया है। किन्तु मनुष्य ने पृथ्वी को क्या दिया? इस प्रश्न का उत्तर यही है कि मनुष्य ने पृथ्वी को कुछ नहीं दिया, अपितु उसे दूषित करने का कार्य किया है। वायु प्रदूषित होकर विषैली हो गई है और जल भी दूषित हो रहा है। स्थिति इतनी भयंकर है कि यमुना सहित अनेक नदियों का जल पीने योग्य नहीं है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के एक अध्ययन के अनुसार 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 221 जिलों के कुछ स्थानों का जल आर्सेनिक युक्त पाया गया है। 

दूषित पेयजल के सेवन से उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे क्षेत्रों के लोग दूषित जलजनित रोगों की चपेट में आ जाते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भूजल संकट के कारण देश के लगभग 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को आज भी  स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। ऐसे में वे दूषित जल पीने को विवश हैं।  देश में लोगों को पर्याप्त जल नहीं मिल पा रहा है। देश में प्रति व्यक्ति पानी की वार्षिक 1700 घन मीटर से कम उपलब्धता है। अंतरिक्ष से लिए गए आंकड़ों के आधार पर  देश में पानी की उपलब्धता का पुनर्मूल्यांकन के अध्ययन के आधार पर आशंका व्यक्त की गई है कि वर्ष 2031 के लिए प्रति व्यक्ति पानी की औसत वार्षिक उपलब्धता घटकर 1367 घन मीटर रह जाएगी, जिससे जल संकट और गंभीर हो जाएगा।   

 

एक रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल वैश्विक जल स्रोत का मात्र 4 प्रतिशत ही उपलब्ध है, जबकि यहां विश्व की कुल वैश्विक जनसंख्या का 18 प्रतिशत भाग निवास करता है। केंद्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 में देश में उपलब्ध कुल जल स्रोतों में से 78 प्रतिशत का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा रहा था। जल संकट के कारण वर्ष 2050 तक यह दर घटकर लगभग 68 प्रतिशत रह जाएगी। यह शुभ संकेत नहीं है। 

उल्लेखनीय है कि देश के लगभग 198 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्र के लगभग आधे भाग की सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। इसमें से 63 प्रतिशत क्षेत्र में भूमिगत जल से सिंचाई की जाती है, जबकि 24 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई के लिए नहरों के जल का उपयोग किया जाता है। इसमें 2 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई तालाब एवं कुंओं के जल से की जाती है तथा 11 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई के लिए अन्य स्रोत का उपयोग किया जाता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय कृषक आज भी सिंचाई के लिए भूमिगत जल पर निर्भर करते हैं। इसलिए भूजल का अत्यधिक दोहन किया जाता है। इससे भूमिगत जल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है।   जल प्राणियों के जीवन का आधार है। जल के बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता। सूखे एवं भूमि का जल स्तर नीचे गिरने के कारण अनेक क्षेत्रों में जल संकट व्याप्त हो गया है। इससे निपटने के लिए जल संरक्षण अति आवश्यक है। भीषण गर्मी के समय देश के प्राय: समस्त क्षेत्रों में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जल की समस्या उत्पन्न हो जाती है। तालाब भी शुष्क हो जाते हैं। कुंओं का जल बहुत नीचे उतर जाता है अथवा वे भी सूख जाते हैं। 

इसके कारण ग्रामीणों को उपयोग के लिए पर्याप्त जल प्राप्त नहीं होता है। इस समस्या के दृष्टिगत केंद्र सरकार ने अमृत सरोवर योजना प्रारम्भ की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल 2022 को आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में इसका शुभारंभ किया था। इस योजना का उद्देश्य देश के प्रत्येक जिले में कम से कम 75 जल निकायों का विकास एवं कायाकल्प करना है। देशव्यापी इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक राज्य के प्रयेक जिले में 75 से अधिक तालाबों का निर्माण करवाना है। 

अमृत सरोवर योजना से राज्यों को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकेंगे। तालाबों का निर्माण होने तथा पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार होने से क्षेत्रीय लोगों की जल की समस्या का समाधान हो सकेगा। इससे गर्मी के समय भूजल स्तर को बनाए रखने में सहायता प्राप्त हो सकेगी। इन तालाबों के जल का उपयोग कृषि कार्यों के लिए किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त पशु पालन में भी इस जल का उपयोग हो पाएगा। आवारा पशुओं एवं पक्षियों को भी पीने के लिए जल उपलब्ध हो सकेगा। इसके अतिरिक्त तालाबों का निर्माण होने से उस स्थान पर सुंदरीकरण होगा। तालाबों के तट पर पीपल, बरगद, नीम, अशोका, सहजन, महुआ, जामुन एवं कटहल आदि के पौधे लगाए जाएंगे। इससे जहां पर्यावरण स्वच्छ होगा तथा हरियाली में वृद्धि होगी, वहीं इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकेगा। इससे ग्रामीण क्षेत्र में अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो सकेगी। इन तालाबों का उपयोग मछली पालन, मखाने एवं सिघाड़े की खेती में भी किया जा सकेगा।   

इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में 50 हजार से अधिक तालाबों का निर्माण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रत्येक तालाब एक एकड़ क्षेत्र में होगा, जिसमें 10 हजार घन मीटर पानी की धारण करने की क्षमता होगी। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि इसमें वर्ष भर जल भरा रहे। इस अमृत सरोवर योजना के माध्यम से ग्रामीण वासियों को मनरेगा योजना के अंतर्गत रोजगार उपलब्ध करवाया जा सकेगा। इससे बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध होगा।   

विगत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत सरोवर योजना के अंतर्गत विगत 11 माह में लगभग  40 हजार तालाबों को विकसित करने की उपलब्धि की सराहना की है। उन्होंने ट्वीट में लिखा कि 'बहुत-बहुत बधाई! जिस तेजी से देशभर में अमृत सरोवरों का निर्माण हो रहा है, वो अमृतकाल के हमारे संकल्पों में नई ऊर्जा भरने वाली है।‘. केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने एक ट्वीट करके जानकारी दी कि देश में अभी तक 40 हजार से अधिक अमृत सरोवर राष्ट्र को समर्पित किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 2023 तक 50 हजार अमृत सरोवर बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

उल्लेखनीय है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को विश्वभर में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका के पर्यावरणविद जेराल्ड नेल्सन ने 22 अप्रैल 1970 को इसका शुभारम्भ किया था। वह विस्कॉन्सिन के एक अमेरिकी राजनेता थे. उन्होंने संयुक्त राज्य के सीनेटर और गवर्नर के रूप में कार्य किया। वह पृथ्वी दिवस के संस्थापक थे। उन्होंने पर्यावरण सक्रियता के एक नये अभियान का प्रारम्भ किया था। वर्ष 1969 में सैन फ्रांसिस्को में यूनेस्को सम्मेलन के दौरान 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाने की घोषणा की गई थी। इसके पश्चात से यह दिवस मनाया जा रहा है। अब इसे विश्व के 192 से अधिक देशों में मनाया जाता है। इस अवसर पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें पृथ्वी के समक्ष उत्पन्न समस्याओं को उठाया जाता है तथा इनके समाधान के बारे में चर्चा होती है। आज जब पर्यावरण के समक्ष अनेक प्रकार के संकट उत्पन्न हो गए हैं, ऐसी स्थिति में इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। 

उल्लेख करने योग्य बात यह भी है कि देशभर में पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इसमें सरकारी स्तर के कार्यक्रम भी हैं तथा पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यक्रम भी सम्मिलित हैं।  

नि:संदेश केंद्र सरकार की अमृत सरोवर योजना जल संरक्षण के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करेगी। इससे जल संरक्षण के अभियान को प्रोत्साहन भी मिलेगा। अपनी पृथ्वी को बचाने के लिए हम सबको मिलकर कार्य करना होगा।

(लेखक- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार वि.वि.- भोपाल में सहायक प्राध्यापक है।)  

मोबाइल- 8750820740

Wednesday, April 5, 2023

 


मूल्य आधारित शिक्षा है सुख की अनुभूति का आधार 




-डॉ. सौरभ मालवीय  

हमारी प्राचीन गौरवशाली भारतीय संस्कृति समस्त   विश्व के सुख, समृद्धि एवं शान्ति की कामना करती है। भारतीय चिन्तन में व्यष्टि से समष्टि तक का विचार किया गया है। भारतीय पर्व इस बात का प्रतीक हैं। यहां पर प्राय: प्रतिदिन कोई न कोई लोकपर्व, व्रत, पूजा एवं अनुष्ठान का दिवस होता है, जो इस बात का प्रतीक है कि भारतीय अपने जीवन में कितने प्रसन्न रहते हैं। हमारे धर्म ग्रन्थों में भी सुख पर अनेक श्लोक एवं मंत्र हैं।  

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

अर्थात सभी सुखी रहें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुख का भागी न बनना पड़े।

किन्तु आज भारतीय प्रसन्नता के मामले बहुत पिछड़ गए हैं। अब भारतीय पूर्व की भांति प्रसन्न नहीं रहते। वे दुखी रहने लगे हैं। एक सर्वे में यह बात सामने आई है।     

उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस पर जारी वार्षिक प्रसन्नता रिपोर्ट के अनुसार 137 देशों की सूची में भारत 125वें स्थान पर है। वर्ष 2022 में भारत इस सूची में 144वें स्थान पर था तथा वर्ष 2021 में 139वें स्थान पर था। प्रसन्नता के संबंध में पड़ोसी देशों की स्थिति भारत से अच्छी है। पाकिस्तान 108वें स्थान पर है, जबकि म्यांमार 72वें, नेपाल 78वें, बांग्लादेश 102वें और चीन 64वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड विश्व का सर्वाधिक प्रसन्नता वाला देश है। विगत छह वर्षों से वह अपने इस स्थान पर बना हुआ है। डेनमार्क द्वितीय और आइसलैंड तृतीय स्थान पर है। इस सूची में इजराइल चौथे स्थान पर है, जबकि नीदरलैंड्स पांचवें, स्वीडन छठे, नार्वे सातवें, स्विटजरलैंड आठवें, लक्जमबर्ग नौवें और न्यूजीलैंड दसवें स्थान पर है। सबसे कम प्रसन्न देशों की सूची में लेबनान, जिम्बॉब्वे, द डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो आदि देश सम्मिलित हैं। इस सूची में अफगानिस्तान अंतिम स्थान पर है। उसे 137वां स्थान प्राप्त हुआ है।

उल्लेखनीय है कि विगत एक वर्ष से रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध चल रहा है। फिर भी इन देशों की स्थिति भारत से अच्छी है। इस सूची में रूस 70वें स्थान पर है, जबकि यूक्रेन को 92वें स्थान पर है। यह रिपोर्ट यूएन सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क द्वारा जारी की गई है। यह रिपोर्ट 150 से अधिक देशों के लोगों पर किए गए ग्लोबल सर्वे डाटा के आधार पर बनाई जाती है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस

प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने जुलाई 2011 में प्रसन्नता के संबंध में एक प्रस्ताव अपनाया था। इसके पश्चात संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली ने 12 जुलाई 2012 को प्रस्ताव के अंतर्गत प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस संबंध में अप्रैल 2012 में भूटान की राजसी सरकार ने विश्वभर के प्रतिनिधियों की एक बैठक बुलाई थी। इसमें इस बात पर चर्चा की गई कि लोगों की प्रसन्नता और कल्याण को भी आर्थिक दृष्टिकोण की तरह देखने की आवश्यकता है। बैठक में इसके लिए एक आयोग नियुक्त करने की भी अनुशंसा की गई। भूटान के प्रधानमंत्री जिग्मे थिनले ने इस अनुशंसा को स्वीकार किया। उनका कहना था कि सभी देशों की सरकारों को लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ उनकी प्रसन्नता और कल्याण को भी अधिक से अधिक महत्त्व देना चाहिए। 

उन्होंने बैठक में प्रस्ताव रखा कि संयुक्त राष्ट्र भी इस आयोग का सह-स्वामित्व करे और यह आयोग यूएन महासचिव के सहयोग से इस दिशा में कार्य करे। 

विश्वभर के प्रसन्नता वाले नगरों में उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर सम्मिलित है। यहां के लोग प्रसन्न रहने वाले तथा मित्र बनाने वाले हैं। यह नगर समस्त भारत के लिए प्रेरणा बन गया है। इससे यह बात सामने आती है कि मित्रों के साथ रहने से व्यक्ति प्रसन्न रहता है। मित्र दुख- सुख के साथी होते हैं। मित्रों से बात करने पर मन हल्का हो जाता है। मित्र निराशा के समय आशा की किरण दिखाते हैं। मित्र प्रोत्साहित करते हैं। मित्रों के साथ व्यक्ति अपने जीवन का बहुत अच्छा समय व्यतीत करता है। मित्रों के साथ रहने से प्रसन्नता प्राप्त होती है।             

प्रसन्नता क्या है?

प्रसन्नता एक अनुभूति है। यह मानव मस्तिष्क में पाई जाने वाली भावनाओं में सबसे सकारात्मक अनुभूति है। इस अनुभूति के उत्पन्न होने के अनेक कारण हैं। इनमें अपनी किसी इच्छा की पूर्ति होने पर होने वाली संतुष्टि की अनुभूति सर्वोपरी है। 

प्राय: जीवन बहुत विशाल होता है। जीवन से सदैव सुख प्राप्त नहीं होता। मनुष्य को अनेक कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है। यह अतिशय नहीं है कि जीवन में सुख कम और दुख अधिक होता है। इसके अनेक कारण है। मनुष्य जीवन में सदैव सुख की कामना करता है। वह समृद्धि प्राप्त करना चाहता है। वह अपार धनराशि संचय करना चाहता है, अर्थात वह जीवन में सबकुछ प्राप्त करना चाहता है, परन्तु सदैव ऐसा नहीं होता। उसकी कुछ इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं तथा कुछ इच्छाएं पूर्ण नहीं होतीं। उसकी जो इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं, वह उसके बारे में विचार नहीं करता, अपितु उससे अधिक की कामना करने लगता है। ऐसी परिस्थितियों में वह दुख का भागीदार बन जाता है। इसके अतिरिक्त उसकी जो इच्छाएं पूर्ण नहीं होतीं वह उनके बारे में भी चिंता करता रहता है। इस चिंता के कारण वह मानसिक तनाव से ग्रस्त हो जाता है। यह मानसिक तनाव उसे अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त कर देता है। इस प्रकार के मानसिक तनाव से ग्रस्त व्यक्ति आत्महत्या करके अपना जीवन भी समाप्त कर लेता है। उल्लेखनीय है कि आत्महत्या की सभी घटनाओं के पीछे मानसिक तनाव ही कारण होता है। यह स्थिति दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती जा रही है। वयस्क ही नहीं, अपितु बालक भी आत्मह्त्या जैसा जघन्य अपराध कर रहे हैं। ऐसी अनेक घटनाएं सामने आती रहती हैं। 

तनाव के कारण -

मानसिक तनाव के क्या कारण हैं? इस पर चिंतन मनन किया जाना चाहिए। बाल्यकाल जीवन का सबसे उत्तम समय होता है। यह तनाव मुक्त होता है। बच्चों पर किसी भी प्रकार का कोई दायित्व नहीं होता। उन्हें केवल शिक्षा प्राप्त करनी होती है तथा अपना शेष समय खेलकूद में व्यतीत करना होता है। फिर आज के बच्चे तनाव ग्रस्त क्यों हैं? इसके अनेक कारण हो सकते हैं।    

प्राय: देखने में आता है कि माता-पिता बच्चों पर अधिक से अधिक अंक लाने का दबाव बनाते हैं। सभी बच्चे पढ़ाई में श्रेष्ठ नहीं हो सकते। बच्चे प्रातःकाल में अपने विद्यालय जाते हैं। वहां से आने के पश्चात ट्यूशन के लिए जाते हैं। वहां से आने पर विद्यालय एवं ट्यूशन का कार्य करते हैं। ऐसे में बच्चों के पास अपने स्वयं के लिए समय ही नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त बच्चों को जबरन अन्य गतिविधियों में डालना एवं उन पर श्रेष्ठ प्रदर्शन का दबाव डालना भी उन्हें मानसिक तनाव से ग्रस्त कर देता है। 

माता-पिता के लिए अत्यावश्यक है कि वे अपने बच्चों की मनोस्थिति को समझें तथा उनकी पसंद एवं नापसंद का ध्यान रखें। वे बच्चों को विपरीत परिस्थितियों में भी सुख से रहने की शिक्षा दें। वे बच्चों को बताएं कि सुख और दुख दोनों ही जीवन के अभिन्न अंग हैं। हमें दुखों से घबराना नहीं चाहिए, अपितु ऐसे समय में संयम और धैर्य बनाए रखना चाहिए। यदि हम दुखों को चुनौती मानेंगे तथा स्वयं को योद्धा मानकर उसका सामना करेंगे, तो अवश्य ही हम विजय प्राप्त कर सकेंगे तथा विजेता सिद्ध होंगे। बच्चों को धार्मिक कथाएं सुनानी चाहिए कि किस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्टों का सामना किया। इसी प्रकार भगवान राम का उदाहरण भी है कि किस प्रकार उन्होंने अपने पिता का वचन पूर्ण करने के लिए चौदह वर्षों का वनवास सहर्ष स्वीकार किया, किस प्रकार उन्होंने रावण का संहार किया। सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की कथा भी प्रेरणा देने वाली है कि किस प्रकार राजा हरिश्चंद्र ने अनेक कष्टों का सामना किया, परन्तु सत्य को नहीं त्यागा। इसी प्रकार पंचतंत्र की कहानियां बच्चों के लिए बहुत ही उपयोगी हैं तथा प्रेरक प्रसंग एवं महापुरुषों की जीवनी का ज्ञान बच्चों को करानी चाहिए। 

आज के वातावरण में बच्चे टीवी या मोबाईल में ही अधिक लगे रहते हैं। ऐसे में बच्चों को टीवी पर ऐसे कार्यक्रम देखने के लिए प्रोत्साहित करें, जो उनके लिए उपयोगी हैं। दूरदर्शन के अनेक चैनलों पर शिक्षा से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित होते हैं, विद्यार्थियों के लिए बनाए गए हैं। इसके अतिरिक्त बच्चे मोबाईल पर भी केवल शिक्षा संबंधी चीजें ही देखें। कोरोना काल से मोबाइल भी बच्चों की शिक्षा का एक अंग बन चुका है। माता-पिता को चाहिए कि वे इस पर पूर्ण दृष्टि बनाए रखें कि उनके बच्चे मोबाईल में क्या देख रहे हैं, क्योंकि बहुत से ऐसे खेल सामने आ रहे हैं, जो बच्चों को मानसिक तनाव से ग्रस्त कर रहे हैं। इस खेलों के कारण बच्चों द्वारा आत्महत्या करने के अनेक मामले में भी सामने आ चुके हैं। इतना ही नहीं, यूट्यूब पर अनेक ऐसी चीजें हैं, जो बच्चों के मन-मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालती हैं। उदाहरण के लिए हंसी-मजाक के अनेक वीडियो ऐसे हैं, जिनमें अशिष्टता के साथ-साथ अश्लीलता भी है।             

मानव को बाल्यकाल से ही जीवन मूल्यों की शिक्षा देना हमारी भारतीय परम्परा का अंग रहा है। यह हमारी सांस्कृतिक विशिष्टता है। विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा दी जाए, जो उन्हें अक्षर ज्ञान के साथ-साथ जीवन मूल्यों को समझने में भी सहायक सिद्ध हो। बच्चे जीवन में प्रसन्न रहना सीखें। बच्चा विद्यालय में कम समय व्यतीत करता है, परन्तु अधिक समय अपने घर में ही परिवारजनों के साथ रहता है। इसलिए यह अत्यावश्यक है कि माता- पिता स्वयं भी प्रसन्न रहें तथा अपने बच्चों को प्रसन्न रहना सिखाएं।

(लेखक – माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल में सहायक प्रोफेसर है )

भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है