Monday, November 25, 2024

भारतीय संविधान, भारतीय जीवन दर्शन का ग्रंथ है

 

डॉ. सौरभ मालवीय
किसी भी देश के लिए एक विधान की आवश्यकता होती है। देश के विधान को संविधान कहा जाता है। यह अधिनियमों का संग्रह है। भारत के संविधान को विश्व का सबसे लम्बा लिखित विधान होने का गौरव प्राप्त है। भारतीय संविधान हमारे देश की आत्मा है। इसका देश से वही संबंध है, जो आत्मा का शरीर से होता है।

संविधान दिवस का इतिहास
भारत का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर पूर्ण हुआ था। चूंकि डॉ. भीमराव आम्बेडकर संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, इसलिए भारत सरकार द्वारा उनकी 125वीं जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को प्रथम बार संविधान दिवस संपूर्ण देश में मनाया गया। उसके पश्चात 26 नवम्बर को प्रत्येक वर्ष संविधान दिवस मनाया जाने लगा। इससे पूर्व इसे राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में मनाया जाता था। संविधान सभा द्वारा देश के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में पूर्ण किया गया था। इस पर 114 दिन तक चर्चा हुई तथा 12 अधिवेशन आयोजित किए गए। भारतीय संविधान को बनाने में लगभग एक करोड़ की लागत आई थी। भारतीय संविधान में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 11 दिसंबर 1946 में स्थाई अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। भारतीय संविधान पर 284 लोगों ने हस्ताक्षर किए थे। यह 26 नवम्बर 1949 को पूर्ण कर राष्ट्र को समर्पित किया गया। इसके पश्चात 26 जनवरी 1950 से देश में संविधान लागू किया गया। इससे पूर्व देश में भारत सरकार अधिनियम-1935 का कानून लागू था। कोई भी वस्तु पूर्ण नहीं होती है। समय के अनुसार उसमें परिवर्तन होते रहते हैं। भारतीय संविधान लागू होने के पश्चात इसमें 100 से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं। ऐसा भविष्य में भी होने की पूर्ण संभावना है।

भारतीय संविधान में सरकार के अधिकारियों के कर्तव्य एवं नागरिकों के अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया गया है। संविधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या 389 थी। इनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के 4 चीफ कमिश्नर थे, जबकि 93 सदस्य देशी रियासतों के थे। विशेष बात यह है कि देश की स्वतंत्रता के पश्चात संविधान सभा के सदस्य ही देश की संसद के प्रथम सदस्य बने थे। देश की संविधान सभा का चुनाव भारतीय संविधान के निर्माण के लिए ही किया गया था। भारतीय संविधान के अनुसार केंद्रीय कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति होता है। भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन 19 जुलाई 1946 को किया गया था। संविधान के कुछ अनुच्छेदों को 26 नवंबर 1949 को पारित किया गया, जबकि शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
 
संविधान की विशेषता
भारत एक विशाल देश है। इसमें विभिन्न संस्कृतियों के लोग निवास करते हैं। यहां विभिन्न संप्रदायों, पंथों, जातियों आदि के लोग हैं। उनके रीति-रिवाज, भाषाएं, रहन-सहन एवं खान-पान भी भिन्न-भिन्न हैं। इस सबके मध्य वे आपस में मिलजुल कर रहते हैं। वास्तव में यही भारत का स्वभाव है। भारतीय संविधान में भारत के नागरिकों को छह मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जिनका वर्णन अनुच्छेद 12 से 35 के मध्य किया गया है। इनमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार,  धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा से संबंधित अधिकार एवं संवैधानिक उपचारों का अधिकार सम्मिलित है। उल्लेखनीय है कि पहले संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, जिसे ‘44वें संविधान संशोधन- 1978 के अंतर्गत हटा दिया गया। सातवां मौलिक अधिकार संपति का अधिकार था। मूल अधिकार का एक दृष्टांत है- "राज्य नागरिकों के बीच परस्पर विभेद नहीं करेगा।“ भारतीय संविधान में भी किसी के साथ किसी भी प्रकार का भेद नहीं किया जाता। यही इसकी विशेषता है।  
 
ऋषि परम्परा का धर्मशास्त्र
भारतीय संविधान "हम भारत के लोगों" के लिए हमारी अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत जनित स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्श मूल्यों के प्रति एक राष्ट्र के रूप में हमारी प्रतिबद्धता का परिचायक है। वर्तमान के आधुनिक भारत की संकल्पना के समय संविधान निर्माताओं ने इसी सांस्कृतिक विरासत को उसके मूल स्वरूप में अक्षुण्ण रखने के ध्येय से भारतीय संविधान की मूल प्रतिलिपि में सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व के रुचिकर चित्रों को स्थान दिया, जो मूलतः भारतीय संविधान के भारतीय चैतन्य को ही परिभाषित करते हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा के अलोक में निर्मित भारतीय संविधान भारत की ऋषि परम्परा का धर्मशास्त्र है। भारतीय जीवन दर्शन का ग्रंथ है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां सबका सम्मान किया जाता है। वसुधैव कुटुम्बकम भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। यह सनातन धर्म का मूल संस्कार है। यह एक विचारधारा है। महा उपनिषद सहित कई ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां वसुधैव कुटुम्बकम् ।।
अर्थात यह मेरा अपना है और यह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो संपूर्ण धरती ही परिवार है। कहने का अभिप्राय है कि धरती ही परिवार है। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।
निसंदेह भारत के लोग विराट हृदय वाले हैं। वे सबको अपना लेते हैं। विभिन्न संस्कृतियों के पश्चात भी सब आपस में परस्पर सहयोग भाव बनाए रखते हैं। एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते हैं। यही हमारी भारतीय संस्कृति की महानता है।      
 
उल्लेखनीय है कि भारत का संविधान बहुत ही परिश्रम से तैयार किया गया है। इसके निर्माण से पूर्व विश्व के अनेक देशों के संविधानों का अध्ययन किया गया। तत्पश्चात उन पर गंभीर चिंतन किया गया। इन संविधानों में से उपयोगी संविधानों के शब्दों को भारतीय संविधान में सम्मिलित किया गया। आजादी के बाद भारत का वैचारिक दृष्टिकोण भारतीय ज्ञान परम्परा के आलोक में विकास के पाठ पर खड़ा करने का प्रयास होना चाहिए था।
भारतीय संविधान की उद्देशिका
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में,
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
 
भारतीय संविधान की इस उद्देशिका में भारत की आत्मा निवास करती है। इसका प्रत्यके शब्द एक मंत्र के समान है। हम भारत के लोग- से अभिप्राय है कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है तथा भारत के लोग ही सर्वोच्च संप्रभु है। इसी प्रकार संप्रभुता- से अभिप्राय है कि भारत किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं है। समाजवादी- से अभिप्राय है कि संपूर्ण साधनों आदि पर सार्वजनिक स्वामित्व या नियंत्रण के साथ वितरण में समतुल्य सामंजस्य। ‘पंथनिरपेक्ष राज्य’ शब्द का स्पष्ट रूप से संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। लोकतांत्रिक- से अभिप्राय है कि लोक का तंत्र अर्थात जनता का शासन। गणतंत्र- से अभिप्राय है कि एक ऐसा शासन जिसमें राज्य का मुखिया एक निर्वाचित प्रतिनिधि होता है। न्याय- से आशय है कि सबको न्याय प्राप्त हो। स्वतंत्रता- से अभिप्राय है कि सभी नागरिकों को स्वतंत्रता से जीवन यापन करने का अधिकार है। समता- से अभिप्राय है कि देश के सभी नागिरकों को समान अधिकार प्राप्त हैं। इसी प्रकार बंधुत्व- से अभिप्राय है कि देशवासियों के मध्य भाईचारे की भावना।
विचारणीय विषय यह है कि भारतीय संविधान ने देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किए हैं तथा उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया। किन्तु देश में आज भी ऊंच-नीच, अस्पृश्यता आदि जैसे बुराइयां व्याप्त हैं। इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए कानून भी बनाए गए, परन्तु इनका विशेष लाभ देखने को नहीं मिला। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है। सामाजिक समरसता भारतीय समाज का सौंदर्य है, अस्पृश्यता से संबंधित अप्रिय घटनाएं भी चर्चा में रहती हैं। इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए जागरूक लोगों को ही आगे आना चाहिए तथा सभी लोगों को अपने देश के संविधान का पालन करना चाहिए।
(लेखक- मीडिया शिक्षक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Friday, October 25, 2024

कायम रहेगा योगी राज


 
डॉ. सौरभ मालवीय
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संबंध में दिए गए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान के पश्चात प्रदेश में सियासी पारा बढ़ गया है। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने लखनऊ में पुनः दावा किया है कि यदि भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता में आ गई तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमित शाह को पीएम बनाने के लिए पिछले डेढ़-दो वर्षों से लगे हुए हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवराज सिंह चौहान, वसुन्धरा राजे सिंधिया, देवेंद्र फडणवीस, रमन सिंह और मनोहर लाल खट्टर को पहले ही हटा दिया है। अब अमित शाह के प्रधानमंत्री बनने की राह में केवल योगी आदित्यनाथ ही अंतिम कांटा बचे हैं। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले वर्ष 17 सितंबर को जैसे ही 75 वर्ष के हो जाएंगे, वे प्रधानमंत्री पद छोड़कर अमित शाह को प्रधानमंत्री बना देंगे। इसके पश्चात दो से तीन महीने में योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। अरविंद केजरीवाल के इस बयान की प्रासंगिकता पर चर्चा हो रही है या चर्चा में रहने के लिए यह राजनीतिक जुमला मात्र है।

वास्तव में अरविंद केजरीवाल भी जानते हैं कि उनका यह बयान असत्य एवं भ्रामक है। वे इस प्रकार के बयान देकर एक ओर तालियां बटोरना चाहते हैं तो दूसरी ओर ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपना रहे हैं।
यद्यपि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केजरीवाल को कड़े शब्दों में उत्तर दे दिया है। उन्होंने बांदा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा- “केजरीवाल की बु्द्धि जेल जाने के बाद फिर गई है। अन्ना हजारे के सपनों पर पानी फेरने वाले केजरीवाल अब मेरा नाम लेकर बातें कर रहे हैं। अन्ना ने जिस कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन किया था, केजरीवाल ने उसे ही अपने गले का हार बना लिया है। जेल जाकर उन्हें पता चल गया है कि अब वह कभी जेल के बाहर नहीं आने वाले हैं।“

इस बयानबाजी के मध्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेतों के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि योगी आदित्यनाथ अपना कार्यकाल पूर्ण करेंगे। उन्होंने कहा - "आने वाले पांच सालों में मोदी-योगी पूर्वांचल की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलने वाले हैं।" सियासी गलियारे में इस बयान को अरविंद केजरीवाल के बयान से जोड़कर देखा जा रहा है। इस प्रकार श्री नरेंद्र मोदी ने केजरीवाल के बयान को भ्रामक एवं असत्य सिद्ध कर दिया है।

इससे पूर्व गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना कार्यकाल पूर्ण करेंगे तथा वर्ष 2029 के पश्चात् भी वे भाजपा का नेतृत्व करते रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी 75 वर्ष की आयु के पश्चात् भी अपने पद पर बने रहेंगे। इस प्रकार अमित शाह ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि उनका प्रधानमंत्री बनने का अभी कोई विचार नहीं है। इसके अतिरिक्त पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी स्पष्ट कर चुके हैं कि 75 वर्ष के पश्चात् सेवानिवृति वाली बात पार्टी के संविधान में नहीं है। इस प्रकार की बातें केवल दुष्प्रचार के लिए बोली जा रही हैं। इसमें दो मत नहीं कि भाजपा का संगठन अत्यंत सुदृढ़ है। इसलिए अरविंद केजरीवाल की भ्रामक बयानबाजी से पार्टी को कोई हानि नहीं होगी।  
वास्तव में प्रधानमंत्री भली भांति जानते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में सराहनीय विकास कार्य किए हैं। उनके मुख्यमंत्री काल में प्रदेश ने दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति की है। प्रदेश की जनता भी उनके विकास एवं जनहित के कार्यों से अति प्रसन्न एवं संतुष्ट है, तभी उसने उन्हें द्वितीय बार भी मुख्यमंत्री चुना।   
 
सर्विदित है कि उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जाता है, क्योंकि यही चुनाव आगे के लोकसभा चुनाव की दिशा निर्धारित करता है। इसीलिए उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रहता है। अपने उत्कृष्ट कार्यों एवं सुशासन के कारण उन्होंने दो बार भारतीय जनता पार्टी को विजयश्री दिलाई है। भारतीय जनता पार्टी ने भी योगी आदित्यनाथ के कार्यों को सराहा तथा उन्हें प्रदेश की बागडोर सौंप दी।

लोकसभा चुनाव 2024 पाचवें चरण तक आते-आते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 49 दिनों में कुल  144 जनसभाएं की हैं। इसके अलावा योगी अबतक आठ राज्यों में भी चुनाव प्रचार कर चुके है। मुख्यमंत्री ने 27 मार्च को मथुरा में प्रबुद्ध सम्मेलन कर प्रदेश की चुनावी कमान संभाल ली थी। 27 मार्च से 19 मई तक कुल 50 दिनों में मुख्यमंत्री लगातार चुनाव प्रचार में लगे हुये है। अब तक उन्होंने 15 प्रबुद्ध सम्मेलन और 12 रोड शो किए हैं। योगी की जनसभाओं में अपार भीड़ उनको सुनने के लिए प्रचण्ड गर्मी में भी जुट रही है।    
  
इसमें दो मत नहीं है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व काल में प्रदेश ने लगभग सभी क्षेत्रों में प्रशंसनीय उन्नति की है। प्रदेश में कृषि, उद्योग, रोजगार, आवास, परिवहन, बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा व्यवस्था, संस्कृति, धर्म एवं पर्यावरण आदि क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किए गए हैं। मेधावी विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान दी जा रही है। वृद्धजन, विधवा एवं दिव्यांगजन को पेंशन के रूप में आर्थिक सहायता दी जा रही है। सरकार ने अनाथ बच्चों के भरण-पोषण की भी व्यवस्था की है। जिन परिवारों में कमाने वाला कोई नहीं है उन्हें भी आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। निर्धन परिवार की लड़कियों एवं दिव्यांगजन के विवाह लिए अनुदान दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त योगी सरकार निराश्रित गौवंश के संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दे रही है।

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ पार्टी के चाल, चरित्र एवं चेहरे के अनुसार प्रदेश में हिंदुत्व की छवि को और सुदृढ़ करने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं। उनके कार्य इस बात को सिद्ध करते हैं। चाहे प्राचीन नगरों के नाम परिवर्तित करना हो या काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण करना हो। उनके सभी कार्य इसका साक्षात प्रमाण हैं। उनकी देखरेख में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण का कार्य चल रहा है। योगी सरकार राज्य के धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थलों के विकास एवं सौन्दर्यीकरण पर विशेष ध्यान दे रही है। योगी सरकार ने बौद्ध सर्किट में श्रावस्ती, कपिलवस्तु, कुशीनगर तथा रामायण सर्किट में चित्रकूट एवं श्रृंगवेरपुर में पर्यटन सुविधाओं का विकास करवाया है। इसी प्रकार बृज तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, नैमि षारण्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, विन्ध्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, शुक्र धाम तीर्थ विकास परिषद, चित्रकूट तीर्थ विकास परिषद एवं देवीपाटन तीर्थ विकास परिषद का गठन किया गया, ताकि यहां के विकास कार्य सुचारू रूप से हो सकें।सरकार तीर्थ यात्रियों एवं पर्यटकों को अनेक सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है। योगी सरकार तीर्थ यात्रियों को कई सुविधाएं प्रदान कर रही है। इसके अंतर्गत कैलाश मानसरोवर के तीर्थ यात्रियों की अनुदान राशि 50 हजार रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये प्रति यात्री की गई है। इसी प्रकार सिंधु दर्शन के लिए अनुदान राशि 20 हजार रुपये की गई।

योगी सरकार प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यथासंभव प्रयास कर रही है। इसके अंतर्गत गोरखपुर के रामगढ़ ताल में वाटर स्पोर्ट्स, पीलीभीत टाइगर रिजर्व एवं चंदौली में देवदारी राजदारी वाटरफॉल का विकास किया गया। स्पिरिचुअल सर्किट के अंतर्गत गोरखपुर, देवीपाटन, डुमरियागंज में पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। जेवर, दादरी, नोएडा, खुर्जा एवं बांदा में भी पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। आगरा में शाहजहां पार्क एवं महताब बाग-कछपुरा का कार्य एवं वृन्दावन में बांके बिहारी जी मंदिर क्षेत्र में पर्यटन का विकास किया गया। दुधवा टाइगर रिजर्व एवं पीलीभीत टाइगर रिजर्व स्थलों का विकास किया गया है। सरकार ने महाभारत सर्किट के अंतर्गत महाभारत से संबंधित स्थलों का विकास करवाया है। शक्तिपीठ सर्किट एवं आध्यात्मिक सर्किट से संबंधित स्थलों का भी विकास करवाया गया है। विपक्षी सरकार पर भेदभाव के आरोप लगाते रहते हैं, परन्तु सत्य यही है कि भाजपा सरकार बिना किसी भेदभाव के समान रूप से विकास कार्य करवा रही है। जैन एवं सूफी सर्किट के अंतर्गत आगरा एवं फतेहपुर सीकरी में पर्यटन सुविधाओं का विकास करवाया जाना इस बात का प्रमाण है।  

योगी सरकार द्वारा अयोध्या में दीपोत्सव, मथुरा में कृष्णोत्सव, बरसाना में रंगोत्सव, वाराणसी में शिवरात्रि एवं देव दीपावली का आयोजन किया जा रहा है। देश ही नहीं, अपितु विदेशों में भी इसकी चर्चा हो रही है। इसके साथ-साथ सरकार कला एवं साहित्य को भी प्रोत्साहित कर रही है। राज्य में साहित्यकारों एवं कलाकारों को उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान प्रदान किए जाने का निर्णय लिया गया।          

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ के शासन में प्रदेश ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पृथक पहचान बनाई है। लगभग सभी क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश देश में अग्रणी रहा है। आज देश में उत्तर प्रदेश मॉडल की चर्चा की जा रही है। ये सब योगी आदित्यनाथ के प्रयास से ही संभव हो सका है। 
(लेखक लखनऊ विश्विद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं) 

Thursday, October 17, 2024

प्रेरणादायक हैं महर्षि वाल्मीकि के विचार


डॉ. सौरभ मालवीय 
विगत एक दशक से देशभर में भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का स्वर्णिम युग चल रहा है। उत्तर प्रदेश सहित देशभर में सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक कार्य तीव्र गति से चल रहे हैं। भारतीय संस्कृति का विश्वुभर में प्रचार-प्रसार हो रहा है। यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अथक प्रयासों से ही संभव हो रहा है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार राज्य में धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को निरंतर प्रोत्साहित कर रही है। इसी कड़ी में महर्षि वाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। वाल्मीकि जयंती प्रत्येक वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे महर्षि वाल्मीकि प्रकट दिवस भी कहा जाता है। इस दिन वाल्मीकि मंदिरों को सजाया जाता है। मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालु सभा का आयोजन करते हैं। मंदिरों में कीर्तन एवं रामायण का पाठ होता है। इस दिन शोभायात्रा भी निकाली जाती है।    
 
योगी सरकार के आदेशानुसार राज्य के सभी जनपदों में वाल्मीकि जयंती हर्षोल्लास से मनाई जा रही है। महर्षि वाल्मीकि से संबंधित सभी स्थलों एवं मंदिरों में दीप प्रज्ज्वलन, दीपदान एवं रामायण के पाठ भी हो रहे हैं। यह कार्यक्रम जनपद, तहसील एवं विकास खंड स्तर पर आयोजित किए जा रहे हैं। इनके सफल आयोजन के लिए शासन ने विशेष प्रबंध किए हैं। आयोजन स्थलों पर स्वच्छता, पेयजल एवं विद्युत आदि का विशेष प्रबंध किया गया है। योगी सरकार ने इसके लिए अधिकारियों को विशेष निर्देश दिए हैं। समन्वय संस्कृति विभाग, सूचना-जनसंपर्क विभाग एवं पर्यटन एवं संस्कृति परिषद मिलकर कार्य कर रहे हैं। योगी सरकार धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दे रही है।    
 
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व देश के अनेक स्थानों पर वाल्मीकि जयंती केवल वाल्मीकि समाज के लोगों तक ही सीमित थी। केवल वाल्मीकि मंदिरों में ही वाल्मीकि जयंती पर कार्यक्रमों का आयोजन होता था। पूर्वाग्रहों अथवा अपरिहार्य कारणों से वाल्मीकि जयंती मनाने का समाज में अधिक चलन नहीं था। किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के प्रयासों ने वाल्मीकि जयंती व्यापक स्तर पर धूमधाम से मनाई जाने लगी है। अब यह एक बड़ा पर्व बन चुकी है।  
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाल्मीकि जयंती पर लोगों को शुभकामनाएं देते हुए कहा था कि सामाजिक समानता और सद्भावना से जुड़े उनके अनमोल विचार आज भी भारतीय समाज को सिंचित कर रहे हैं। मानवता के अपने संदेशों के माध्यम से वे युगों-युगों तक हमारी सभ्यता और संस्कृति की अमूल्य धरोहर बने रहेंगे। महर्षि वाल्मीकि के विचार आज भी भारतीय समाज को प्रेरित करते हैं। महर्षि वाल्मीकि के आदर्श लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं। महर्षि वाल्मीकि गरीब और दलितों के लिए आशा की किरण हैं। उनकी सरकार के कदम महर्षि वाल्मीकि के विचारों से प्रेरित हैं। भगवान राम के आदर्श आज भारत के कोने-कोने में एक-दूसरे को जोड़ रहे हैं, इसका बहुत बड़ा श्रेय महर्षि वाल्मीकि को ही जाता है।
 
भारतीय संस्कृति में महर्षि वाल्मीकि का योगदान 
महर्षि वाल्मीकि का भारतीय संस्कृति में जो स्थान है, वह किसी अन्य को प्राप्त नहीं है। उन्हें आदिकवि भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने रामायण नामक महाकाव्य की रचना की थी। यह संस्कृत का प्रथम महाकाव्य है। 
धार्मिक पवित्र ग्रंथ रामायण की रचना करके वे घर-घर में विराजमान हो गए। उन्होंने रामायण की संस्कृत में रचना की थी। इसे वाल्मीकि रामायण भी कहा जाता है। यह मौलिक ग्रंथ है। इसके पश्चात अनेक भाषाओं में रामायण लिखी गई, परंतु सबका आधार यही संस्कृत की वाल्मीकि रामायण ही थी। वाल्मीकि रामायण का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। 
 
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के माध्यम से भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम का जीवन दर्शन जनसाधारण तक पहुंचाने का कार्य किया। मान्यता है कि रामायण लिखने की प्रेरणा उन्हें एक पक्षी से प्राप्त हुई थी। एक समय की बात है कि वाल्मीकि ने एक वृक्ष की शाखा पर बैठे क्रौंच पक्षी के एक युगल को देखा। वह युगल प्रेमालाप में लीन था। वाल्मीकि उस युगल को एकटक निहार रहे थे, तभी नर पक्षी को बहेलिये का एक तीर आकर लगा और वह वहीं मृत्यु को प्राप्त हो गया। अपने साथी की मृत्यु पर मादा पक्षी वेदना से तड़प उठी और विलाप करने लगी। उसके वेदनापूर्ण विलाप को सुनकर वाल्मीकि को अत्यंत दुख हुआ। वे उसकी पीड़ा से द्रवित हो उठे। इसी अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही एक श्लोक निकला-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥
अर्थात हे दुष्ट, तुमने प्रेम में लीन क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं होगी तथा तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।
 
मान्यता यह भी है कि वाल्मीकि आदिकवि होने के साथ-साथ खगोल एवं ज्योतिष विद्या के भी ज्ञाता थे। इसका आधार यह है कि उन्होंने अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चंद्र व अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। ऐसा वही व्यक्ति कर सकता है, जिसे इन विद्याओं का ज्ञान हो।
 
महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के पुरोधा भी हैं। उन्होंने रामायण के माध्यम से श्रीराम के महान चरित्र से लोगों को अवगत करवाया है। उनके कारण ही अनंतकाल तक जनसाधारण श्रीराम से जुड़ा रहेगा। रामायण से ही हमें श्रीराम को जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। वे एक आदर्श पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता राजा दशरथ के वचन का पालन करने के लिए अपना सबकुछ त्याग दिया। उन्होंने राजा दशरथ द्वारा अपनी पत्नी कैकेयी को दिए वचन को पूर्ण करने के लिए अपना राज सिंहासन त्याग कर चौदह वर्ष का वनवास प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया। उन्होंने माता कैकेयी की प्रसन्नता के लिए वनवास स्वीकार किया। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि उनके लिए पिता के वचन एवं माता की प्रसन्नता से अधिक कुछ भी महत्व नहीं रखता। उन्होंने वैभवशाली एवं ऐश्वर्य का जीवन त्याग दिया तथा वन में रहना उचित समझा। उन्होंने अपने पिता की मनोव्यथा एवं उनकी विवशता को हृदय से अनुभव किया। वे बिना किसी अनर्द्वन्द्व के वनवास के लिए चले गए। यह कोई सरल कार्य नहीं था, परंतु उन्होंने ऐसा कठोर निर्णय लिया। कुछ समय पूर्व ही उनका विवाह हुआ था। उन्हें अपनी पत्नी के साथ सुखमय दाम्पत्य जीवन का प्रारंभ करना था। श्रीराम के साथ-साथ उनकी पत्नी ने भी त्याग किया। जो सीता राजभवन में पली थीं। उन्होंने भी राजभवन का सुख त्याग कर पति के साथ वन में जाना चुना। इसी प्रकार श्रीराम के छोटे भ्राता लक्ष्मण ने भी अपने भाई और भाभी की सेवा के लिए वन में जाने का निर्णय लिया। वनवास तो केवल श्रीराम के लिए था, परंतु सीता और लक्ष्मण ने भी वनवास का स्वेच्छा से चयन करके यह सिद्ध कर दिया की उनके लिए श्रीराम से बढ़कर कुछ भी नहीं है। भरत ने भी हाथ में आया राजपाट त्याग दिया तथा अपनी माता कैकेयी से स्पष्ट रूप से कह दिया कीस राज सिंहासन पर केवल श्रीराम का ही अधिकार है। इसलिए वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते। वास्तव में रामायण एक ऐसी कथा है, जो परिवार एवं समाज में आदर्श स्थापित करती है। 
 
किंवदंती है कि श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता का त्याग कर दिया था। इस प्रकार माता सीता को पुन: वन में आना पड़ा। उस समय महर्षि वाल्मीकि ने माता सीता को अपने आश्रम में शरण दी थी। माता सीता अपना परिचय सबको नहीं देना चाहती थीं, इसलिए महर्षि ने उन्हें वन देवी का नाम दिया था। यहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ था। यहीं लव और कुश ने अश्वमेघ को पकड़ा था और यहीं उनकी अपने पिता श्रीराम से भेंट हुई थी। महर्षि वाल्मीकि ने भारतीय जनमानस में राम के मर्यादित जीवन और सामाजिक जीवन को स्थापित किया।
(लेखक - सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अध्येता हैं)

 

Thursday, October 3, 2024

नवरात्रि का संदेश : नारी सशक्तीकरण


डॉ. सौरभ मालवीय 
भारतीय पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं। इनसे हमें ज्ञात होता है कि हमारी प्राचीन संस्कृति कितनी विशाल, संपन्न एवं समृद्ध है। यदि नवरात्रि की बात करें तो यह पर्व भी भारतीय संस्कृति की महानता को दर्शाता है। विगत कुछ दशकों से देश में महिला सशक्तीकरण की बात हो रही है। कुछ लोग विदेशों के उदाहरण देते हैं कि वहां की महिलाएं सशक्त हैं तथा उन्हें बहुत से अधिकार प्राप्त हैं। किंतु ये लोग अपने देश के इतिहास पर चिंतन एवं मनन नहीं करते हैं। वास्तव में भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, जहां महिलाओं को पुरुषों के समान माना गया है। उदाहरण के लिए भारत में देवियों की पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पर उन्हें भी देवताओं के समान ही पूजा जाता है, अपितु देवियों का स्थान देवता से पहले आता है जैसे राधा कृष्ण, सीता राम आदि। भगवान शिव के साथ देवी पार्वती की भी पूजा की जाती है। भगवान राम के साथ देवी सीता की पूजा की जाती है तथा भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा की पूजा-अर्चना करने का विधान प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। हमारी मान्यता के अनुसार शक्ति की देवी दुर्गा है। धन एवं समृद्धि की देवी लक्ष्मी है तथा ज्ञान की देवी सरस्वती है। कहने का अभिप्राय यह है कि मनुष्य को जीवन में जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है, वह सब उन्हें इन देवियों से ही तो प्राप्त होती हैं।    
नवरात्रि देवी दुर्गा को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व है। नवरात्रि का पर्व वर्ष में चार बार आता है अर्थात चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ। इनमें से चैत्र एवं आश्विन माह में आने वाली नवरात्रि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। माघ एवं आषाढ़ माह में आने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है, क्योंकि इनमें कोई सार्वजनिक उत्सव का आयोजन नहीं किया जाता है। आश्विन माह में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इसका  आरंभ अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से होता है। इस दिवस पर शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना की जाती है। नवरात्रि में नौ दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
अर्थात देवी पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कूष्मांडा, पांचवी स्कंध माता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी एवं नौवीं देवी सिद्धिदात्री है।

शैलपुत्री
नवरात्रि के प्रथम दिन देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। मां शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए उन्हें सफेद मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। यह प्रसाद गाय के शुद्ध घी से बनाया जाता है। सफेद रंग पवित्रता एवं शांति का प्रतीक माना जाता है। जीवन में सर्वाधिक पवित्रता एवं शांति का ही महत्व है। इनके बिना सब व्यर्थ है। देवी की साधना से सुख एवं समृद्धि में वृद्धि होती है।

ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन देवी देवी दुर्गा के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर एवं पंचामृत का भोग लगाया जाता है। शक्कर जीवन में मिठास का प्रतीक है। जिस प्रकार भोजन में मिष्ठान का महत्व है, उसी प्रकार जीवन में मधुर वाणी का महत्व है। मृदु भाषी व्यक्ति सबका मन मोह लेते हैं। देवी की साधना से भाग्य में वृद्धि होती है तथा आयु भी लम्बी होती है।  

चंद्रघंटा
नवरात्रि के तीसरे दिन देवी दुर्गा के तृतीय स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। मां चंद्रघंटा को दुग्ध से बने मिष्ठान एवं खीर का भोग लगाया जाता है। खीर भी दुग्ध से बनाई जाती है। दुग्ध समृद्धि एवं अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। देवी की साधना से व्यक्ति बुरी शक्तियों से सुरक्षित रहता है।

कुष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन देवी दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कुष्मांडा को मालपुये का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से मनुष्य की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

स्कंदमाता
नवरात्रि के पांचवे दिन देवी दुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है। स्कंदमाता को फल विशेषकर केला अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्हें केले का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से सुख एवं एश्वर्य में वृद्धि होती है। 

कात्यायनी
नवरात्रि के छठे दिन देवी दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कात्यायनी को मीठे पान एवं मधु का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से दुखों का नाश होता है तथा जीवन में सुख का आगमन होता है।

कालरात्रि
नवरात्रि के सातवें दिन देवी दुर्गा के सातवे स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कालरात्रि को गुड़ अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्हें गुड़ से बने व्यंजन का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से समस्त नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है तथा सकारात्मकता में वृद्धि होती है। जीवन सुखी हो जाता है। 

महागौरी
नवरात्रि के आठवें दिन देवी दुर्गा के आठवे स्वरूप मां महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां महागौरी को नारियल अत्यंत प्रिय है, इसलिए उन्हें नारियल का भोग लगाया जाता है अर्थात नारियल अर्पित किया जाता है। देवी की साधना से व्यक्ति के रुके हुए कार्य पूर्ण होते हैं। 

सिद्धिदात्री
नवरात्रि के अंतिम दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन कन्या पूजन का विधान है। कन्याओं की पूजा की जाती है। उन्हें भोजन ग्रहण कराया जाता है। इसके पश्चात उनके चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। कन्याओं को प्रसाद के साथ उपहार भेंट किए जाते हैं। तदुपरांत देवी को काले चने, हलवा पूड़ी एवं खीर का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वास्तव में नवरात्रि का पर्व नारी शक्ति का उत्सव है। प्राचीन काल से ही यह पर्व भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति का प्रतीक रहा है। कन्या पूजन इस बात को सिद्ध करता है कि भारतीय समाज में कन्या का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। कन्या भ्रूण हत्या तथा नवजात कन्याओं का वध कर देने जैसी बुराइयां हमारे समाज में कब और कैसे सम्मिलित हो गईं, ज्ञात ही नहीं हो पाया। निरंतर घटता लिंगानुपात अत्यंत चिंता का विषय बना हुआ है। विदेशों में भारत की जिन बुराइयों का उल्लेख कुछ लोग बड़े गर्व के साथ करते हैं, वे बुराइयों तो हमारे समाज में कभी नहीं थीं। जिस समय विश्व के अधिकांश देश अशिक्षित एवं असभ्य थे, उस समय हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी था। पुरुष ही नहीं, अपितु महिलाएं भी शिक्षित थीं। वे शास्त्रार्थ करती थीं, अस्त्र-शस्त्र चलाती थीं। देवियों ने कितने ही राक्षसों का अकेले वध किया है।

नारी को ईश्वर ने श्रेष्ठ बनाया है। अनेक मामलों में वह पुरुष से उच्च स्थान पर है। वह जन्मदात्री है। जिस प्रकार एक स्त्री अपने बालकों का पालन-पोषण कर लेती है, उस प्रकार एक पुरुष उनका पालन-पोषण नहीं कर पाता। उदाहरण के लिए यदि किसी की पत्नी की मृत्यु हो जाए, तो वह न चाहते हुए भी इसलिए विवाह कर लेगा कि बच्चों का पालन-पोषण ठीक से हो जाएगा। यदि किसी के पति की मृत्यु हो जाए, तो महिला जीविकोपार्जन के साथ-साथ बच्चों का पालन-पोषण भी कर लेती है। यदि दृष्टि डालें तो आसपास ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि ईश्वर ने नारी को अत्यंत सबल बनाया है। नारी प्रत्येक क्षेत्र में अपनी योग्यता एवं प्रतिभा का सफल प्रदर्शन कर रही है।

Wednesday, September 25, 2024

अंत्योदय से समृद्ध होगा भारत

डॉ. सौरभ मालवीय 
देश की समृद्धि के लिए अंत्योदय अत्यंत आवश्यक है। अंत्योदय का अर्थ है- समाज के अंतिम व्यक्ति का उदय। दूसरे शब्दों में- समाज के सबसे निचले स्तर के लोगों का विकास करना ही अंत्योदय है। अंत्योदय के बिना देश उन्नति नहीं कर सकता, क्योंकि जब तक देश के अति निर्धन वर्ग का उत्थान नहीं होता, तब तक वह मुख्यधारा में सम्मिलित नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में देश भी समृद्ध नहीं हो पाएगा। इसलिए अंत्योदय आवश्यक है।
 
जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय का नारा दिया था। अंत्योदय उनका सपना था। वे कहते थे कि आर्थिक योजनाओं तथा आर्थिक प्रगति का माप समाज के ऊपर की सीढ़ी पर पहुंचे हुए व्यक्ति नहीं, बल्कि सबसे नीचे के स्तर पर विद्यमान व्यक्ति से होगा। अंत्योदय के माध्यम से केवल भारत ही नहीं, अपितु समग्र विश्व का विकास हो सकता है। इसके सुनियोजित योजना एवं उत्तरदायित्व आवश्यक है। विश्व के बहुत से विकसित राष्ट्र हालांकि किसी भी योजना के बिना ही वर्तमान आर्थिक विकास की दर प्राप्त करने में सफल रहे हैं, जिससे कुछ लोगों को यह अनुभव हो रहा है कि योजनाएं न केवल अनावश्यक हैं, अपितु निहायत अवांछनीय भी हैं। इसके बावजूद आम सहमति इस बात पर भी है कि यदि अविकसित राष्ट्र थोड़े समय में वही हासिल करना चाहते हैं, जो विकसित देशों ने लगभग एक शताब्दी में प्राप्त किया है तो विकास को अपनी प्राकृतिक गति पर नहीं छोड़ा जा सकता। विकास की प्रक्रिया शुरू करने के लिए भी एक प्रयास करना पड़ेगा और यह प्रयास नियोजित ढंग से होना चाहिए।   
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर, 2014 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 98वीं जयंती के अवसर पर अंत्योदय दिवस की घोषणा की थी, तभी से यह दिवस मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास का प्रकाश पहुंचाना है, ताकि वे भी प्रगति करके समाज की मुख्यधारा में सम्मिलित हो सकें। आर्थिक उन्नति के साथ-साथ यह दिवस समाज में व्याप्त असमानताओं के उन्मूलन के लिए कार्य करने की प्रोत्साहित करता है। इसके अतिरिक्त यह दिवस विभिन्न सरकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देता है, जिससे निर्धनों एवं वंचित वर्गों के लोगों को उनके कल्याण के लिए संचालित की जा रही योजनाओं की जानकारी प्राप्त हो सके तथा वे इसका लाभ उठा सकें। सरकार इन वर्गों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं संचालित कर रही है। दीनदयाल अंत्योदय योजना के कई घटक हैं, जिन्हें अलग-अलग समय पर प्रारंभ किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर, 2014 को दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना भी प्रारंभ की। इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण युवाओं को नौकरियों में नियमित रूप से न्यूनतम पारिश्रमिक के समान या उससे अधिक मासिक पारिश्रमिक प्रदान करना है। यह योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने के लिए की क्रियान्वित की जा रही है। इससे पूर्व 24 सितंबर, 2013 को राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन प्रारंभ किया गया था। इसके अंतर्गत शहरी निर्धनों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने एवं उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करने पर ध्यान दिया जाता है। इससे पूर्व 25 सितंबर, 2004 को दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना प्रारंभ की गई थी। इस योजना के अंतर्गत निर्धन रोगियों को एंबुलेंस की सुविधा प्रदान की जाती है।
    
उल्लेखनीय है कि सरकार अंत्योदय अन्न योजना संचालित कर रही है। यह योजना 25 दिसंबर 2000 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा प्रारंभ की गई थी। इसे केंद्रीय खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय द्वारा लागू किया गया था। इसका उद्देश्य सार्वजनिक वितरण परमाली द्वारा देश के सबसे निर्धन लोगों को रियायती दरों पर भोजन उपलब्ध करवाना है। इस योजना के अंतर्गत निर्धन परिवारों को 35 किलो राशन प्रदान किया जाता है। इसमें 20 किलो गेहूं और 15 किलो चावल सम्मिलित होता है। इसके अंतर्गत गेहूं तीन रुपये प्रति किलोग्राम और चावल दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से दिया जाता है। इसे सबसे पहले राजस्थान में लागू किया गया था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि कच्ची नौकरियों में निर्धन परिवारों के युवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। इसमें वे परिवार सम्मिलित हैं, जिनकी वार्षिक आय एक लाख 80 हजार रुपये से कम है। कोरोना काल से यह राशन नि:शुल्क कर दिया गया है।
 
भारतीय जनता पार्टी की केंद्र एवं राज्य सरकारें अंत्योदय के सिद्धांत को लेकर शासन कर रही हैं। भाजपा के अनुसार एकात्म मानववाद और अंत्योदय का दर्शन पार्टी के मार्गदर्शक सिद्धांतों में से एक है। इस सिद्धांत को हम सबका साथ सबका विकास के साथ मिला हुआ देख सकते हैं जो गरीब, ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए सरकार द्वारा तय की गई नीतियों में भी नजर आता है।
 
दीनदयाल जी और उनकी आर्थिक नीतियों ने हमेशा गरीबों की भलाई पर जोर देने की बात की है। उनके आर्थिक विचार में पंक्ति के अंतिम पड़ाव पर खड़ा व्यक्ति शामिल रहा है। उन्होंने कहा था कि‘आर्थिक नीति निर्धारण और प्रगति की सफलता का पैमाना यह नहीं है कि समाज के सबसे शीर्ष पर मौजूद व्यक्ति को उससे कितना फायदा मिल रहा है बल्कि यह है कि समाज पर जो लोग सबसे नीचे हैं उन्हें उन नीतियों का कितना फायदा मिला है। अंत्योदय का मतलब समाज के सबसे निचले स्तर पर मौजूद व्यक्ति का कल्याण है। उन्होंने यह भी कहा था कि यह हमारी सोच और हमारे सिद्धांत हैं कि ये गरीब और अशिक्षित लोग हमारे ईश्वर हैं, यही हमारा सामाजिक और मानवीय धर्म है।
 
उनके इसी अंत्योदय के विचार से प्रेरित होकर केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मौजूद एनडीए सरकार और तमाम प्रदेशों में शासन करने वाली भाजपा सरकारें अंत्योदय के रास्ते पर बढ़ने की ओर अग्रसर हैं तथा गरीब, ग्रामीण एवं किसानों के लिए और समाज के सबसे शोषित वर्ग से आने वाले युवाओं और महिलाओं के कल्याण की ओर प्रतिबद्ध हैं। गरीब को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हुए औसत जीवन स्तर में बढ़ोतरी हुई है। मुद्रा, जनधन, उज्जवला, स्वच्छता मिशन, शौचालयों का निर्माण, दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना, आवास योजना, सस्ती दवाएं और इलाज, इन सभी योजनाओं पर कार्य को आगे बढ़ा दिया गया है।
 
तकनीक के प्रयोग से कृषि में सुधार किया जा रहा है एवं किसानों की आय दुगनी करने के इरादे से सिंचाई तकनीकों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की जा रही हैं। केंद्रीय बजट की सहायता से गांवों में भी कई निवेश किए जा रहे हैं। दीनदयाल जी के विचारों से प्रेरित बीजेपी सरकार देश के संसाधनों का उपयोग केवल देश की उन्नति के लिए करने के लिए प्रतिबद्ध है जिसके लिए यह सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने, काले धन को रोकने और जनता की कमाई की लूट रोकने के लिए कड़े कदम उठा रही है। एक भारत-श्रेष्ठ भारत का रास्ता गरीबी दूर करके ही मिलेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में अंत्योदय व सेवा के संकल्प को पूर्ण कर विकसित भारत के निर्माण के लिए भाजपा प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि मां भारती की सेवा में जीवनपर्यंत समर्पित रहे अंत्योदय के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का व्यक्तित्व और कृतित्व देशवासियों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बना रहेगा।
 
वास्तव में दीनदयाल अंत्योदय योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए स्वरोजगार के अवसरों में वृद्धि करती है। इसके अंतर्गत कृषि और गैर-कृषि दोनों प्रकार की आजीविकाओं में सहायता मिलती है। इससे महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण के लिए सहायता मिलती है। महिला स्वयं सहायता समूहों को उनकी आजीविका बढ़ाने में सहायता मिलती है। इसके अंतर्गत महिलाओं को बैंकिंग संवाददाता सखियों के रूप में प्रशिक्षण दिया जाता है।
(लेखक – लखनऊ विश्वविधालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)

Friday, August 2, 2024

लव जिहाद : योगी सरकार का ऐतिहासिक निर्णय


डॉ. सौरभ मालवीय 
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निरंतर जनहित में बड़े एवं ऐतिहासिक निर्णय ले रहे हैं। इसी कड़ी में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने जबरन धर्म परिवर्तन एवं लव जिहाद के विरुद्ध नए विधेयक को पारित करवाकर एक और इतिहास रच दिया है। इसमें अतिशयोक्ति नहीं है कि जब से योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं तभी से वे भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए गंभीरता से कार्य कर रहे हैं। अपनी संस्कृति एवं धर्म की रक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है तथा वह इसी का पूर्ण निष्ठा के साथ पालन कर रहे हैं।
 
विगत दीर्घ काल से लव जिहाद के प्रकरण सामने आ रहे हैं। प्रकरणों के अनुसार प्रेम प्रसंग में पड़कर लड़कियां दूसरे धर्म के पुरुषों से विवाह कर लेती हैं। विवाह के कुछ समय पश्चात् इन लड़कियों पर ससुराल पक्ष का धर्म स्वीकार करने का दबाव बढ़ने लगता है। बहुत सी लड़कियां ससुराल पक्ष का धर्म स्वीकार करने पर विवश हो जाती हैं, क्योंकि उनके पास इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता। जो लड़कियां ऐसा नहीं करतीं, उनका जीवन नारकीय बन जाता है। उन्हें ससुराल में यातना एवं अपमान का सामना करना पड़ता है। अनेक प्रकरणों में पति अथवा ससुराल पक्ष द्वारा लड़कियों को बेच देने के मामले भी प्रकाश में आए हैं। ऐसे प्रकरणों में लड़कियों की हत्याओं के मामले भी प्रकाश में आए हैं। नि:संदेह ऐसे प्रकरण किसी भी सभ्य समाज के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।              
अब उत्तर प्रदेश में नया कानून बनने से कुछ संतोषजनक होने की आशा जगी है। उत्तर प्रदेश में जबरन धर्म परिवर्तन एवं लव जिहाद की रोकथाम के लिए ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। उल्लेखनीय है कि सोमवार को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में जबरन धर्म परिवर्तन एवं लव जिहाद के विरुद्ध नया विधेयक प्रस्तुत किया, जो मंगलवार को पारित हो गया। इसे उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक-2024 नाम दिया गया है। इस नए विधेयक के अनुसार नाबालिग लड़की का लव जिहाद के लिए अपहरण करने तथा उसे बेचने पर आजीवन कारावास एवं एक लाख रुपए तक के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है। यदि किसी नाबालिग, दिव्यांग अथवा मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्ति, महिला, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो दोषी को आजीवन कारावास के साथ-साथ एक लाख रुपए का आर्थिक दंड भी दिया जा सकता है। इसी प्रकार सामूहिक रूप से जबरन धर्म परिवर्तन पर भी आजीवन कारावास एवं एक लाख रुपए के आर्थिक दंड का प्रावधान है।
 
ऐसे प्रकरण भी सामने आते रहते हैं कि भारत में धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए विदेशों से भारी मात्रा में धनराशि आती है। योगी सरकार की दूरदर्शिता के कारण अब इस पर भी रोकथाम लग सकेगी। इस विधेयक में विदेशों से धर्म परिवर्तन के लिए आने वाले धन पर भी अंकुश लगाने हेतु कठोर प्रावधान किए गए हैं। विदेशी अथवा अपंजीकृत संस्थाओं से धन प्राप्त करने पर 14 वर्ष तक का कारावास तथा 10 लाख रुपए के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है। यदि कोई धर्म परिवर्तन के लिए किसी व्यक्ति के जीवन अथवा उसकी धन-संपत्ति को भय अथवा हानि में डालता है, उस पर बल प्रयोग करता है, उसे विवाह का झांसा देता है, लालच देकर किसी नाबालिग, महिला या व्यक्ति को बेचता है, तो उसके लिए न्यूनतम 20 वर्ष के कारावास का प्रावधान किया गया है। प्रकरण की गंभीरता के अनुसार इसमें वृद्धि भी की जा सकती है। दोषी को पीड़ित के उपचार एवं पुनर्वास के लिए भी आर्थिक दंड चुकाना होगा। अब जबरन धर्म परिवर्तन के संबंध में कोई भी व्यक्ति प्राथमिकी दर्ज करवा सकता है। इससे पूर्व केवल पीड़ित व्यक्ति, उसके परिवारजन अथवा संबंधी ही प्राथमिकी दर्ज करवा सकते थे।
इस प्रकार योगी सरकार ने जबरन धर्म परिवर्तन रोकने की दिशा में प्रथम पग उठा लिया है। अब इस विधेयक को विधानसभा से पारित होने के पश्चात विधान परिषद भेजा जाएगा। तत्पश्चात इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। उसके पश्चात् इसे राष्ट्रपति को भेजा जाएगा।
 
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व नवंबर 2020 में योगी सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया था। इसके पश्चात् फरवरी 2021 में उत्तर प्रदेश विधानमंडल के दोनों सदनों ने इस विधेयक को पारित कर दिया था। इस प्रकार उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम- 2021 अस्तित्व में आया था। इस विधेयक के अंतर्गत दोषी को एक से 10 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान था। इस विधेयक के अंतर्गत केवल विवाह के लिए किया गया धर्म परिवर्तन ही अमान्य था। किसी से झूठ बोलकर अथवा उसे धोखा देकर धर्म परिवर्तन को अपराध माना गया था। यदि कोई स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करता है तो उसे दो माह पूर्व मजिस्ट्रेट को सूचित करने का प्रावधान था। विधेयक के अनुसार जबरन अथवा धोखे से धर्म परिवर्तन के लिए 15 हजार रुपए आर्थिक दंड के साथ एक से डेढ़ वर्ष के कारावास का प्रावधान था। यदि दलित लड़की का धर्म परिवर्तन होता है तो 25 हजार रुपए के आर्थिक दंड के साथ तीन से 10 वर्ष के कारावास का प्रावधान था।
 
उल्लेखनीय है कि जबरन धर्मांतरण के दृष्टिगत देश के कई राज्यों में जबरन धर्म परिवर्तन विरोधी कानून लागू हैं। इनमें ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, हिमाचल प्रदेश एवं हरियाणा सम्मिलित हैं। महारष्ट्र में भी जबरन धर्म परिवर्तन के विरुद्ध विधेयक लाने की बात कही जाती रही है, किंतु इस संबंध में कोई विशेष प्रगति नहीं हो सकी है।   
 
पूर्व के कानून की तुलना में नए कानून को अधिक सशक्त एवं कठोर बनाया है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लव जिहाद के प्रकरण रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। हिन्दुत्ववादी संगठन लम्बे समय से कठोर कानून की मांग करते आ रहे हैं। उनका तर्क है कि कठोर कानून से ही उनकी बहन-बेटियां सुरक्षित रह सकेंगी। देश में एक वर्ग ऐसा भी है जो लव जिहाद को ‘मिथ्या’ की संज्ञा देता है। इस वर्ग का कहना है कि देश में ‘लव जिहाद’ नाम की कोई चीज नहीं है। प्रश्न यह भी है कि यदि ऐसा है तो फिर यही वर्ग इस प्रकार के कानूनों की आलोचना क्यों करता है?     
 
वास्तव में यह विधेयक किसी समुदाय या वर्ग विशेष के विरुद्ध नहीं है, अपितु यह केवल जबरन धर्म परिवर्तन के विरुद्ध है। स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करने पर कोई रोक नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर का कहना है- "कानून में जो संशोधन और सुधार हो रहा है उसके पीछे यह मकसद है कि और कड़ाई से नियम लागू हों और इस तरह की चीजें न हो। विपक्ष जो कह रहा है कि यह सिर्फ मुसलमानों के लिए है, यह कानून सभी धर्मों के लोगों के लिए बनाया गया है, सिर्फ एक धर्म के लिए नहीं, वे इसका विरोध सिर्फ इसलिए करते हैं ताकि मुसलमान उनका गुलाम बना रहे और उन्हें वोट देता रहे, वे सरकार बनाते रहें और मुसलमानों को धोखा देते रहें।"
 
कुछ लोग कहते हैं कि प्रेम धर्म नहीं देखता है। यदि प्रेम की बात की जाए, तो प्रेम त्याग का दूसरा रूप है। प्रेम की बात करने वाले लोगों को त्याग के नाम पर सांप सूंघ जाता है। यह कैसा प्रेम है, जो केवल लड़की से उसकी धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान छीन लेता है। यदि पुरुष इतना ही प्रेम करने वाला है, तो वह लड़की का धर्म स्वीकार क्यों नहीं करता? यह कैसा एक पक्षीय प्रेम है?  प्रेम के नाम पर धोखा, छल और साजिश तो नहीं ?
(लेखक – राजनीतिक विश्लेषक हैं)
 

Saturday, July 27, 2024

साहित्य में मनभावन सावन


डॉ. सौरभ मालवीय 
वर्षा ऋतु कवियों की प्रिय ऋतु मानी जाती है। इस ऋतु में सावन मास का महत्व सर्वाधिक है। ज्येष्ठ एवं आषाढ़ की भयंकर ग्रीष्म ऋतु के पश्चात सावन का आगमन होता है। सावन के आते ही नीले आकाश पर काली घटाएं छा जाती हैं। जब वर्षा की बूंदें धरती पर पड़ती हैं, तो संपूर्ण वातावरण मिट्टी की सुगंध से भर जाता है। प्रकृति झूम उठती है। वृक्ष-पौधे झूमने लगते हैं। मनुष्य ही नहीं, अपितु सभी जीव-जंतु प्रसन्न हो जाते हैं। जिसे तन-मन अनुभव करता है, उस ऋतु का शब्दों में उल्लेख करना कोई सरल कार्य नहीं है। किंतु हमारे कवियों ने इस ऋतु को बहुत ही सुंदर शब्दों में बांधकर इसे काव्य के रूप में प्रस्तुत किया है। वेदों की ऋचाओं की अनुभूति सावन के मनोहर भाव को व्यक्त की है ।
 
कविता का कोई भी काल रहा हो, सभी काल के कवियों ने वर्षा ऋतु पर जमकर लिखा है। भक्तिकाल एवं रीतिकाल के संधि कवि सेनापति वर्षा ऋतु का चित्रण करते हुए कहते हैं कि मेघ बहुत जल बरसाते हैं एवं सारंग की भांति ध्वनि करते हैं। मोर अत्यंत सुंदर लगते हैं तथा वे मेघ के घिर आने पर प्रसन्नचित्त होते हैं। मेघ वर्षा जल देने के कारण जीवन के आधार माने जाते हैं। कवि सेनापति के शब्दों में-
सारंग धुनि सुनावै घन रस बरसावै,
मोर मन हरषावै अति अभिराम है।
जीवन अधार बड़ी गरज करनहार,
तपति हरनहार देत मन काम है।।
सीतल सुभग जाकी छाया जग सेनापति,
पावत अधिक तन मन बिसराम है।
संपै संग लीने सनमुख तेरे बरसाऊ,
आयौ घनस्याम सखि मानौं घनस्याम है।।
 
रीतिबद्ध काव्य के आचार्य कवि देव अपनी कविता में विरहिणी नायिका की मनोव्यथा का वर्णन करते हैं।
नायिका कह रही है कि मैंने रात्रि में एक स्वप्न देखा, जिसमें मुझे प्रतीत हुआ कि झरझर का शब्द करती हुई झीनी-झीनी बूंदे गिर रही हैं एवं गर्जना के साथ आकाश में घटाएं घिरी हुई हैं। उस वातावरण में श्रीकृष्ण ने आकर मुझसे कहा है कि चलो आज झूला झूलते हैं। प्रियतम का यह प्रस्ताव सुनकर मैं अत्यधिक प्रसन्न हो गई। कवि देव कहते हैं-
झहरि-झहरि झीनी बूंद है परति मानो,
घहरि-घहरि घटा घिरी है गगन में।
आनि कह्यो स्याम मो सों, चलो झूलिबे को आजु,
फूली ना समानी, भयी ऐसी हौं मगन मैं।।
चाहति उठ्योई, उड़ि गयी सो निगोड़ी नींद,
सोय गये भाग मेरे जागि वा जगन में।
आंखि खोलि देखौं तो मैं घन हैं न घनस्याम,
वेई छायी बूंदें मेरे आंसू ह्वै दृगन में।।
 
अयोध्या नरेश एवं रीतिकाल की स्वच्छंद काव्य-धारा के अंतिम कवि द्विजदेव ने भी वर्षा ऋतु का सुंदर वर्णन किया है। वे कहते हैं-
कारी नभ कारी निसि कारियै डरारी घटा,
झूकन बहत पौन आनंद को कंद री।
'द्विजदेव' सांवरी सलोनी सजी स्याम जू पै,
कीन्हौं अभिसार लखि पावस अनंद री।
नागरी गुनागरी सु कैसें डरै रैनि डर,
जाके संग सोहैं ए सहायक अमंद री।
बाहन मनोरथ उमाहिं संगवारी सखी,
मैन मद सुभट मसाल मुख चंद री।।
 
सितारगढ़ के नरेश शंभुनाथ सिंह सोलंकी 'नृप शंभु ने सावन का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है। इन्हें शंभु कवि एवं नाथ कवि के नाम से भी जाना जाता है। वे मनभावान सावन का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
सावन के मास मनभावन के संग प्यारी,
अटा पर ठाढ़ी भई घटा अंधियारी में।
दामिनी के धोखे चक चौंझे दृग कवि नाथ,
छबिन सों मुरि दुरै पिय अंग वारी में।।
कोटि रति वारों ऐसी राधाजू के रूप पर,
रंभा रंक कहा शंक शची के निहारी में।
पागि रही रस जागि रही ज्योति लाजनि में,
नेह भीजो वेह मेह भीजो श्वेत सारी में।।
 
रीतिकाल के कवि घनश्याम शुक्ल सावन में उमड़-उमड़ कर आ रही घटाओं के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं-
उमड़ि घुमड़ि घन आवत अटान चोट,
घन-घन जोति छटा छटकि-छटकि जात।
सोर करें चातक चकोर पिक चहवार
मोर ग्रीव मोरि-मोरि मटकि-मटकि जात।।
सावन लौं आवन सुनो है घनश्याम जू को,
आंगन लौ आय-पांय पटकि-पटकि जात।
हिये बिरहानल की तपनि अपार उर,
हार गज मोतिन को चटकि-चटकि जात।।
 
रीतिकालीन कवि श्रीपति जल से भरे मेघों का वर्णन करते हैं कि किस प्रकार वे दसों दिशाओं से दामिनी साथ लाते हैं। वे कहते हैं-
जलभरे झूमैं मानो भूमै परसत आय,
दसहू दिसान घूमैं दामिनी लए लए।
धूरिधार धूमरे से, धूमसे धुंधारेकारे,
धुरवान धारे धावैं छबिसों छए छए।।
श्रीपति सुकवि कहै घेरि घेरि घहराहिं,
तकत अतन तन ताव तैं तए तए।
लाल बिनु केसे लाज चादर रहैगी आज,
कादर करत मोहिं बादर नए नए।।
 
अंबिकादत्त व्यास भी मेघों का अति चित्रण करते हुए कहते हैं-
मेघ देस-देस नट खट आसा पूरि आये,
कान्हर लै गूजरी हिंडोर छबि छाकी है।
दीप-दीप भैरव भये हैं नारि बृंदन सों,
ललित सुहाई लीला सारंग छटा की है।
श्यामल तमाल कोस कोस लौं कुमोद कीनों,
अंबादत्त सोहनी त्यों छाया बदरा की है।
कोऊ सुघरई सों श्रीकृष्ण को जु पाऔं तब,
आली या कल्यान की बहार बरसा की है।।
 
कवि कवींद्र 'उदयनाथ' सावन में ग्राम के वातावरण का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
लाग्यो यह सावन सनेह सरसावन,
सलिल बरसावन पटाधर ठटान को।
गोरी गांव गांवन लगी हैं गीत गावन,
हिंडोरो झूम लावन उठान छ्वै अटान को।।
भनत कबिंद्र बिरहीजन सतावन सो,
देखो चमकावनरी बिज्जुल छटान को।
प्यारे परौ पांवन लला को लीजै नावन सो,
देखो आजु आवन सुहावन घटान को।।
 
सुमित्रानंदन पंत सावन के अनुपम सौन्दर्य का चित्रण करते हुए कहते हैं-
झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरतीं बूंदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।
ऐसे पागल बादल बरसे नहीं धरा पर,
जल फुहार बौछारें धारें गिरतीं झर झर।
आंधी हर हर करती, दल मर्मर तरु चर् चर्
दिन रजनी औ पाख बिना तारे शशि दिनकर।
 
सुप्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ सावन के आगमन का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
जेठ नहीं, यह जलन हृदय की,
उठकर जरा देख तो ले;
जगती में सावन आया है,
मायाविन! सपने धो ले।
जलना तो था बदा भाग्य में
कविते! बारह मास तुझे;
आज विश्व की हरियाली पी
कुछ तो प्रिये, हरी हो ले।
 
जयशंकर प्रसाद सावन की रात्रि के सौन्दर्य को अपने शब्दों में बांधते हुए कहते हैं-
नव तमाल श्यामल नीरद माला भली
श्रावण की राका रजनी में घिर चुकी,
अब उसके कुछ बचे अंश आकाश में
भूले भटके पथिक सदृश हैं घूमते।
अर्ध रात्रि में खिली हुई थी मालती,
उस पर से जो विछल पड़ा था, वह चपल
मलयानिल भी अस्त व्यस्त हैं घूमता
उसे स्थान ही कहीं ठहरने को नहीं।
 
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना अपनी प्रेमिका को संबोधित करते हुए कहते हैं-
मेरी सांसों पर मेघ उतरने लगे हैं,
आकाश पलकों पर झुक आया है,
क्षितिज मेरी भुजाओं से टकराता है,
आज रात वर्षा होगी।
कहां हो तुम?
 
कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं-
लाए कौन संदेश नए घन!
अम्बर गर्वित,
हो आया नत,
चिर निस्पंद हृदय में उसके
उमड़े री पुलकों के सावन!
लाए कौन संदेश नए घन!
 
हरिवंशराय बच्चन वर्ष ऋतु में चलने वाली हवा को अनुभव करते हुए कहते हैं-
बरसात की आती हवा।
वर्षा-धुले आकाश से,
या चन्द्रमा के पास से,
या बादलों की सांस से;
मघुसिक्त, मदमाती हवा,
बरसात की आती हवा।
यह खेलती है ढाल से,
ऊंचे शिखर के भाल से,
अस्काश से, पाताल से,
झकझोर-लहराती हवा;
बरसात की आती हवा।
 
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' कहते हैं-
सखी ! बादल थे नभ में छाये
बदला था रंग समय का
थी प्रकृति भरी करूणा में
कर उपचय मेघ निश्चय का।
वे विविध रूप धारण कर
नभ–तल में घूम रहे थे
गिरि के ऊंचे शिखरों को
गौरव से चूम रहे थे।
 
त्रिलोक सिंह ठकुरेला सावन में कृषकों का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
सावन बरसा जोर से, प्रमुदित हुआ किसान।
लगा रोपने खेत में, आशाओं के धान।।
आशाओं के धान, मधुर स्वर कोयल बोले।
लिये प्रेम-संदेश, मेघ सावन के डोले।
‘ठकुरेला’ कविराय, लगा सबको मनभावन।
मन में भरे उमंग, झूमता गाता सावन।।
 
दुष्यंत कुमार कहते हैं-
दिन भर वर्षा हुई
कल न उजाला दिखा
अकेला रहा
तुम्हें ताकता अपलक।
 
आती रही याद
इंद्रधनुषों की वे सतरंगी छवियां
खिंची रहीं जो
मानस-पट पर भरसक।
 
कलम हाथ में लेकर
बूंदों से बचने की चेष्टा की-
इधर-उधर को भागा
भींग गया पर मस्तक
(लेखक – स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
 

Wednesday, July 24, 2024

नये शिक्षा सत्र का उत्साह


डॉ. सौरभ मालवीय

शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र प्रारंभ हो चुका है। प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में प्राय: नया शिक्षा सत्र अप्रैल महीने में आरंभ हो जाता है, किन्तु उच्च शिक्षा के संस्थानों में जुलाई से ही नये शिक्षा सत्र का प्रारंभ होता है। यदि देखा तो वास्तव में सभी शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र जुलाई महीने में ही आरंभ होता है। इससे पूर्व का समय तो शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने, पुस्तकें, स्टेशनरी, बैग और यूनिफॉर्म आदि खरीदने में व्यतीत हो जाता है। जो समय मिलता है, उसमें विद्यार्थी अपनी नई पुस्तकों से परिचय करते हैं। प्राय: विद्यार्थी भाषा की पुस्तकें पढ़ते हैं, क्योंकि उनमें कथाएं होती हैं, जो बच्चों को अति प्रिय हैं।
 
कुछ समय विद्यालय जाने के पश्चात ग्रीष्म कालीन अवकाश आ जाता है। यह ग्रीष्म कालीन अवकाश ग्रीष्म ऋतु के मध्य में आता है। इस समयावधि में अत्यधिक भीषण गर्मी पड़ती है। प्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश मई के अंतिम सप्ताह से लेकर पूरे जून तक रहता है। इस समयावधि में उच्च तापमान के कारण सभी विद्यालय एवं महाविद्याल बंद रहते हैं।  
 
बच्चे ग्रीष्मकालीन अवकाश की वर्षभर प्रतीक्षा करते हैं, क्योंकि इसमें उन्हें सबसे अधिक दिनों का अवकाश प्राप्त होता है। बच्चों के लिए ग्रीष्म कालीन अवकाश किसी पर्व से कम नहीं होता। इस समयावधि में उन्हें कोई चिंता नहीं होती अर्थात उन्हें न तो प्रात:काल में शीघ्र उठकर विद्यालय जाने की चिंता होती है और न ही गृहकार्य करने की कोई चिंता होती है। प्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपनी नानी के घर जाते हैं। वहां वे अपने ननिहाल के लोगों से मिलते हैं। सब उन्हें बहुत लाड़-प्यार करते हैं। नानी उन्हें बहुत सी कहानियां सुनाती हैं। नाना और मामा उन्हें घुमाने के लिए लेकर जाते हैं और उन्हें उनके पसंद के खिलौने दिलवाते हैं। आज के एकल परिवार के युग में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपने दादा-दादी के घर भी जाते हैं। वहां भी उन्हें बहुत ही लाड़- प्यार मिलता है। नानी की तरह दादी भी बच्चों को कहानियां सुनाती हैं। इन कथा- कहानियों के माध्यम से वे बच्चों में संस्कार पोषित करती हैं, जो उनके चरित्र का निर्माण करते हैं। यही संस्कार जीवन में उनका मार्गदर्शन करते हैं। अपने पैतृक गांव अथवा नगरों में जाने से वे वहां की संस्कृति से जुड़ते हैं। अपने सगे-संबंधियों से मिलते हैं। इससे उन्हें अपने संबंधों का पता चलता है। उनमें अपने संबंधियों के प्रति स्नेह का भाव पैदा होता है। वे अपने संबंधियों के प्रति अपने दायित्व को भी समझते हैं।
 
ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान बच्चे अपने माता- पिता के साथ पर्यटन स्थलों पर भी जाते हैं। अधिकतर लोग ऐसे स्थानों पर जाते हैं, जहां तापमान कम रहता है। ये पहाड़ी क्षेत्र होते हैं। इससे वे वहां की संस्कृति एवं रीति- रिवाजों के बारे में जान पाते हैं। इसके अतिरिक्त वे धार्मिक स्थलों एवं ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों पर भी घूमने जाते हैं। घूमने का अर्थ केवल सैर सपाटा और मनोरंजन करना नहीं है, अपितु पर्यटन से बहुत सी शिक्षाएं मिलती हैं। धार्मिक स्थलों पर जाने से मन को शान्ति प्राप्त होती है तथा बच्चे अपने गौरवशाली संस्कृति से जुड़ पाते हैं। उन्हें अपने ईष्ट देवी-देवताओं के बारे में जानने का अवसर मिलता है। उनमें आस्था का संचार होता है। उनका आत्मबल एवं आत्म विश्वास बढ़ता है। ऐतिहासिक स्थलों पर जाने से उन्हें अपने इतिहास को जानने का अवसर प्राप्त होता है। ये व्यवहारिक ज्ञान है, जो उन्हें आने- जाने से प्राप्त होता है। यह उनके लिए आवश्यक भी है। वे जिन चीजों के बारे में पुस्तकों में पढ़ते उनके बारे में उन्हें सहज जानकारी प्राप्त होती है। इसका उनके मन- मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।          
 
शिक्षकों द्वारा ग्रीष्मकालीन अवकाश के लिए भी विद्यार्थियों को गृहकार्य दिया जाता है। इस दौरान विद्यालय अवश्य बंद रहते हैं, किन्तु ट्यूशन सेंटर खुले रहते हैं। बच्चे ट्यूशन के लिए जाते हैं और अपना गृहकार्य भी करते हैं। इसके अतिरिक ग्रीष्म कालीन अवकाश के दौरान बहुत से संस्थान अनेक प्रकार के कम समयावधि वाले कोर्स प्रारंभ करते हैं, उदाहरण के लिए चित्रकला, संगीत, गायन, नृत्य, मिट्टी के खिलौने बनाने, सजावटी सामान बनाना आदि। इस समयावधि में बच्चों को अपनी रुचि के अनुसार कार्य करने एवं नई- नई चीजें सीखने का अवसर प्राप्त होता है। बहुत से बच्चे खेलों की ओर रुझान करते हैं। समय अभाव के कारण वे खेल नहीं पाते थे, किन्तु अवकाश में उन्हें अपनी पसंद के खेल खेलने का अवसर मिल जाता है। क्षेत्र के बच्चे अपनी-अपनी टीमें बना लेते हैं और आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं. इससे उनमें खेल भावना का विकास होता है। किसी भी खिलाड़ी के खेल का प्रारंभ इसी प्रकार होता है। पहले वे अपने मित्रों के साथ खेलता है. फिर इसी प्रकार वह खेल स्पर्धाओं में खेलने लगता है। इस प्रकार एक दिन वह देश के लिए पदक जीतने वाला खिलाड़ी बन जाता है। वास्तव में यह समय बच्चों के नैसर्गिक गुणों को निखारने का कार्य करता है।                     
 
ग्रीष्म कालीन अवकाश व्यतीत होने के पश्चात विद्यालय व अन्य शिक्षण संस्थान पुन: खुल जाते हैं। विद्यार्थियों की दिनचर्या पुनः पूर्व की भांति हो जाती है। वे प्रात:काल में शीघ्र उठ जाते हैं। नित्य कर्म से निपटने के पश्चात विद्यालय जाने के लिए तैयार होते हैं। वे नाश्ता करके घर से निकल जाते हैं। दिनचर्या केवल बच्चों की ही परिवर्तित नहीं होती, अपितु उनके साथ- साथ उनके माता- पिता की दिनचर्या भी परिवर्तित हो जाती है। उनकी माता प्रातः काल में शीघ्र उठकर उनके लिए नाश्ता बनाती है। उनके लिए टिफिन तैयार करती है। उन्हें विद्यालय या स्कूल बस तक छोड़ने जाती है। बहुत सी माताएं बच्चों को विद्यालय लेकर भी जाती हैं और उन्हें वापस भी लाती हैं। बहुत से विद्यालयों के बाहर दोपहर में महिलाएं अपने बच्चों की प्रतीक्षा में खड़ी रहती हैं। बहुत से बच्चों को उनके पिता विद्यालय छोड़ने जाते हैं।                             
 
नये शिक्षा सत्र में बच्चे बहुत प्रसन्न दिखाई देते हैं। उनकी कक्षा का एक स्तर बढ़ जाता है। वे स्वयं को पहले से श्रेष्ठ अनुभव करते हैं। पिछली कक्षा में भी उन्होंने कड़ा परिश्रम किया था। उसके कारण ही परीक्षा में वे सफलता प्राप्त कर पाए। परिणामस्वरूप अब वह उससे अगली कक्षा में अर्थात उससे ऊंची कक्षा में हैं। जब विद्यालय खुले थे, तब बहुत अधिक गर्मी थी। बच्चे गर्मी से व्याकुल थे, किन्तु उनके चेहरे पर उत्साह के भाव दिखाई दे रहे थे। बहुत से विद्यालयों में रोली एवं तिलक लगाकर बच्चों का स्वागत किया गया है। यह एक अच्छी पहल है। इससे बच्चों में अपनी संस्कृति के प्रति लगाव उत्पन्न होता है।

Tuesday, May 14, 2024

स्वरोजगार से बदलेगा जीवन


डॉ. सौरभ मालवीय 
बेरोजगारी अनेक समस्याओं की जड़ है। बेरोजगार युवा मानसिक तनाव की चपेट में आ जाते हैं। बहुत से युवा हताशा में नशे की लत के आदी बन जाते हैं। अकसर युवा भटक भी जाते हैं। कई बार वे आपराधिक दलदल में फंस जाते हैं। इसके कारण उनका जीवन तो नष्ट होता ही है, साथ ही परिवार की प्रतिष्ठा पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। बेरोजगार युवकों द्वारा आत्महत्या करने के समाचार भी सुनने को मिलते रहते हैं।  
 
बरोजगारी के कारण
देश में बेरोजगारी के अनेक कारण हैं। इनमें निरंतर बढ़ती जनसंख्या प्रमुख है। इसके अतिरिक्त घटती कृषि भूमि, कुटीर उद्योंगों का निरंतर समाप्त होना, युवाओं का अपने पैतृक कार्यों से मोहभंग होना तथा राजकीय नौकरी पाने की इच्छा आदि भी बेरोजगारी में वृद्धि होने के कारण हैं। यदि हम स्वतंत्रता से पूर्व के परिदृश्य पर दृष्टि डालें, तो उस समय लोग स्वरोगार में ही लगे थे। किन्तु  स्वतंत्रता के पश्चात् जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हुई, उससे तीव्र गति से रोजगार में गिरावट आई। शिक्षा प्राप्त करने का उद्देश्य केवल राजकीय नौकरी प्राप्त करना हो गया। जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हुई उस गति से रोजगार के अवसर सृजित नहीं हुए। परिणामस्वरूप बेरोजगारी की समस्या दिन- प्रतिदिन बढ़ने लगी।   
 
युवाओं को प्रशिक्षण
नि:संदेह जीवनयापन के लिए रोजगार अत्यंत आवश्यक है। रोजगार प्राप्त करने के लिए कुशल होना अति आवश्यक है। बेरोजगारी के साथ-साथ अकुशलता भी एक चुनौती बनी हुई है। जो युवा कुशल हैं, उन्हें कहीं न कहीं रोजगार मिल जाता है। किन्तु जो युवा अकुशल हैं, उन्हें रोजगार प्राप्त करने के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं की इस समस्या को समझा। इसलिए उन्होंने युवाओं को कुशल करने के लिए दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना प्रारंभ की। उन्होंने 25 सितंबर 2014 को इसका शुभारंभ किया था।
 
इस योजना का उद्देश्य गरीब ग्रामीण युवाओं को नौकरियों में नियमित रूप से न्यूनतम पारिश्रमिक के समान या उससे अधिक मासिक पारिश्रमिक प्रदान करना है। यह योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने के लिए की क्रियान्वित की जा रही है। यह आजीविका प्रदान करने तथा निर्धनता कम करने का एक अभियान है, जो राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का एक भाग है। इससे ऐसे गरीब ग्रामीण युवा लाभान्वित हो रहे हैं, जो कुशल होना चाहते हैं। इसकी संरचना प्रधानमंत्री के अभियान 'मेक इन इंडिया' के लिए एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में की गई है।
 
रोजगार के अवसर
भारतीय जनता पार्टी द्वारा जारी लोकसभा चुनाव 2024 के घोषणा पत्र ‘भाजपा का संकल्प मोदी की गारंटी 2024’ में कहा गया है कि पिछले दस वर्षों में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं तथा 14 करोड़ से अधिक युवाओं को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत कौशल प्रशिक्षण से कुशल बनाया गया है। भारत को दुनिया के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इको सिस्टम के रूप में स्थापित किया गया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया है कि वे स्टार्टअप का और अधिक विस्तार टियर-2 और टियर-3 शहरों में करेंगे। इसके अतिरिक्त देश को पर्यटन और सर्विसेज का वैश्विक केंद्र बनाएंगे, जिससे पूरे देश में रोजगार के अवसर सृजित होंगे।       
 
स्वरोजगार की महत्ता
स्वरोजगार का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसे अनेक मामले देखने में आए हैं, जब उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों ने अपनी नौकरी से त्याग पत्र देकर अपना व्यवसाय प्रारंभ किया। नौकरी में सीमित आय होती है, जबकि व्यवसाय के माध्यम से व्यक्ति अपार संपत्ति अर्जित कर सकता है। देश के अनेक लोग व्यवसाय के माध्यम से ही निर्धनता से निकलकर धनवान बने हैं।

वास्तव में स्वरोजगार से जहां एक ओर बेरोजगार युवा को रोजगार मिलता है, वहीं दूसरी ओर उसके परिवार के अन्य सदस्यों को भी रोजगार प्राप्त होता है। इससे उन्हें नियमित रूप से काम मिलता है। उनका रोजगार स्थायी होता है, तो इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होती है। इससे निर्धनता कम करने में भी सहायता मिलती है।
वास्तव में निर्धनों को आर्थिक अवसरों की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए उनके कार्य क्षमताओं को विकसित करने के संबंध में भी अपार अवसर हैं। देश के जनसांख्यिकीय अधिशेष को एक लाभांश में विकसित करने के लिए सामाजिक एकजुटता के साथ ही मजबूत संस्थानों के एक नेटवर्क का होना अति आवश्यक है। भारतीय और वैश्विक नियोक्ता के लिए ग्रामीण निर्धनों को वांछनीय बनाने के लिए कौशल्य के वितरण के लिए गुणवत्ता और मानक सर्वोपरि हैं। इस योजना के अंतर्गत कई कार्य किए जाते हैं, जिनमें  कौशल्य एवं नियोजन, अवसर पर समुदाय के भीतर जागरूकता पैदा करना, निर्धन ग्रामीण युवाओं की पहचान करना, परिक्षण व कार्य में रुचि रखने वाले ग्रामीण युवाओं को एकत्रित करना, युवाओं और उनके माता-पिता की काउंसिलिंग तथा योग्यता के आधार पर उनका चयन करना, रोजगार के अवसर को बढ़ाने के लिए ज्ञान, उद्योगों से जुड़े कौशल और मनोदृष्टि प्रदान करना, ऐसी नौकरियां प्रदान करना, जिनका सत्यापन स्वतंत्र जांच करने की विधियों से किया जा सके और जो न्यूनतम पारिश्रमिक से अधिक भुगतान करती हों आदि सम्मिलित है। यह नियुक्ति के बाद कार्यरत व्यक्ति को स्थिरता के लिए सहायक भी है।

दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना युवाओं को प्रशिक्षण देगी, जिससे उनके करियर में प्रगति होगी। युवाओं का विकास होगा। बेरोजगारी के कारण होने वाले पलायन में कमी आएगी। यह राज्यों को कौशल्य परियोजनाओं का पूर्ण स्वामित्व लेने के लिए सक्षम बनाती है। इस योजना के कई विशेष घटक हैं। इसके अंतर्गत सामाजिक रूप से वंचित समूह के अनिवार्य कवरेज द्वारा उम्मीदवारों का पूर्ण सामाजिक समावेश सुनिश्चित किया जाता है। धन का 50 प्रतिशत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों, 15 प्रतिशत अल्पसंख्यकों के लिए और तीन प्रतिशत विकलांग व्यक्तियों के लिए निर्धारित करने का प्रावधान है। उम्मीदवारों में एक तिहाई संख्या महिलाओं की होनी चाहिए।

इस योजना के अंतर्गत एक त्रिस्तरीय कार्यान्वयन प्रतिरूप है। नीति निर्माण, तकनीकी सहायता और सरलीकरण एजेंसी के रूप में दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना राष्ट्रीय यूनिट ग्रामीण विकास मंत्रालय में कार्य करती है। यह योजना के राज्य मिशन कार्यान्वयन को समर्थन प्रदान करती है और परियोजना की कार्यान्वयन एजेंसियां कौशल्य और नियोजन परियोजनाओं के माध्यम से कार्यक्रम को लागू करती है।

यह योजना बाजार की मांग के समाधान के लिए नियोजन से जुड़ी कौशल्य परियोजनाओं के लिए 25,696 रुपये से लेकर एक लाख रुपये प्रति व्यक्ति तक की वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जो परियोजना की अवधि और परियोजना के आवासीय या गैर आवासीय होने पर निर्भर करता है। योजना तीन महीने से लेकर 12 महीने तक के प्रशिक्षण अवधि की परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस योजना के अंतर्गत अनुदान के घटक दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना 250 से अधिक व्यापार क्षेत्रों जैसे खुदरा, आतिथ्य, स्वास्थ्य, निर्माण, मोटर वाहन, चमड़ा, विद्युत, पाइप लाइन, रत्न और आभूषण आदि को अनुदान प्रदान करता है। इसका एकमात्र अधिदेश है कि कौशल प्रशिक्षण मांग आधारित होना चाहिए और कम से कम 75 प्रतिशत प्रशिक्षुओं की नियुक्ति होनी चाहिए।
ऐसे में कुशल युवकों के लिए रोजगार के द्वार खुल जाएंगे। इस योजना का प्रचार-प्रसार भी होना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक युवा इसका लाभ उठा सकें।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि विकसित भारत के निर्माण के जिस संकल्प को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं, युवा उसके महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। हमारा दृष्टिकोण ऐसा विकसित भारत बनाना है जहां प्रत्येक युवा अपने श्रम एवं कौशल क्षमता का पूरा उपयोग कर सके। हम युवाओं को सीखते हुए कमाने के अवसर देने के लिए एनईपी के अंतर्गत एकीकृत शिक्षा प्रणाली विकसित करेंगे। हम युवाओं को एनईपी और अन्य योजनाओं के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, विश्व स्तरीय खेल सुविधाएं, रोजगार और उद्यमिता के अवसरों की गारंटी देते हैं।
(लेखक- राजनीतिक विश्लेषक हैं )

Thursday, April 18, 2024

भाजपा का संकल्प पत्र 2024 जारी


डॉ. सौरभ मालवीय 
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने व्यक्तित्व एवं कृत्तिव से भारतीय राजनीति में अपनी एक ऐसी पहचान स्थापित की है जिसका कोई अन्य उदाहरण दिखाई नहीं दे रहा है। उन्होंने भाजपा को निरंतर दस वर्ष केंद्र की सत्ता में बनाए रखा। भाजपा की प्राय: सभी पुरानी घोषणाओं विशेषकर अयोध्या में राम जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने, नागरिक संशोधन अधिनियम, तीन तलाक, लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई सीटों पर आरक्षण देने आदि को पूर्ण करके यह सिद्ध कर दिया है कि भाजपा की कथनी एवं करनी में कोई अंतर नहीं है। इसीलिए भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 के घोषणा पत्र को ‘भाजपा का संकल्प मोदी की गारंटी 2024’ नाम से जारी किया है। इस संकल्प पत्र की एक विशेष बात यह भी है कि इसमें भाजपा ने जनता से कोई लुभावना वादा नहीं किया है। भाजपा का संपूर्ण ध्यान जनता को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने एवं विकास पर है। इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार एवं विकास पर विशेष बल दिया गया है। वास्तव में यह संकल्प पत्र युवाओं, महिलाओं, किसानों एवं निर्धन वर्ग पर केंद्रित है।

भाजपा द्वारा इस संकल्प पत्र में जनता को मोदी की गारंटी दी गई है। गरीब परिवारों की सेवा- मोदी की गारंटी, मध्यम-वर्ग परिवारों का विश्वास, नारी शक्ति का सशक्तिकरण, युवाओं को अवसर, वरिष्ठ नागरिकों को वरीयता, किसानों का सम्मान, मत्स्य पालक परिवारजनों की समृद्धि, श्रमिकों का सम्मान, एमएसएमई, छोटे व्यापारियों और विश्वकर्माओं का सशक्तिकरण, सबका साथ सबका विकास, विश्व बंधु भारत,  सुरक्षित भारत, समृद्ध भारत, ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनेगा भारत, विश्वस्तरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर, ईज ऑफ लिविंग, विरासत भी विकास भी, सुशासन, स्वस्थ भारत, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, खेल के विकास, सभी क्षेत्रों के समग्र विकास, तकनीक एवं नवाचार तथा पर्यावरण अनुकूल भारत- मोदी की गारंटी सम्मिलित है।

इसमें दो मत नहीं है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र ने भाजपा की वे पुरानी घोषणाओं को पूर्ण किया, जिन्हें पूर्व की सरकारों ने विवादास्पद बना रखा था। वे सरकारें इन विषयों को स्पर्श भी नहीं कर पा रही थीं। उन्हें लगता था कि ऐसा करने से उनका ‘वोट बैंक’ उनसे छिन जाएगा। शाहबानो प्रकरण में कांग्रेस पीड़ित वृद्ध महिला का साथ देने की बजाय उसके पति के साथ खड़ी हो गई। यद्यपि उसने अपनी वृद्ध पत्नी पर अत्याचार करते हुए उसे तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया था। कट्टरपंथियों के दबाव में कांग्रेस झुक गई। परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद में विधेयक पास करवाकर शाहबानो जैसी महिलाओं के लिए समस्याएं खड़ी कर थीं। किन्तु यह श्री नरेंद्र मोदी का दृढ़ संकल्प ही था कि उन्होंने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से छुटकारा दिलाने के लिए कानून बनाया। उन्होंने ऐसे अनेक कड़े निर्णय लिए। वे किसी भी दबाव के आगे नहीं झुके. इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि श्री नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत प्रधनामंत्री ही देश को आगे लेकर जा सकता है।

अभी देश में ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने का प्रकरण लंबित है। इस संकल्प पत्र के सुशासन की मोदी की गारंटी के द्वितीय बिंदु में कहा गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के रूप में दर्ज की गई है। भाजपा का मानना है कि जब तक भारत में समान नागरिक संहिता को अपनाया नहीं जाता, तब तक महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिल सकता। भाजपा सर्वश्रेष्ठ परंपराओं से प्रेरित समान नागरिक बनाने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें उन परंपराओं को आधुनिक समय की जरूरतों के मुताबिक ढाला जाए।
इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि यदि भाजपा को तृतीय बार केंद्र में सत्ता में आने का अवसर मिल जाता है तो वह अपने इन वादों को भी पूर्ण करेगी।          
        
भाजपा ने कहा है कि हमारा सुशासन का मूल मंत्र है। हमने पिछले दशक में अपनी नीतियों, तकनीकी के उपयोग और सरल प्रक्रियाओं के माध्यम से देश में सुशासन के नए आयाम कायम किए हैं। हम नागरिक और सरकार के बीच संबंध को निरंतर बेहतर बनाने के लिए संस्थागत सुधार करते रहेंगे और तकनीकी के सही उपयोग से सभी प्रक्रियाओं को सरल बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे। 

इस संकल्प पत्र में मोदी के दस वर्ष के शासनकाल में हुए कार्यों का आंकड़ों के साथ उल्लेख किया गया है। यद्यपि कोई भी सरकार अपनी पिछले पांच वर्षों के कार्यकाल की उपलब्धियों का उल्लेख करती है, परंतु भाजपा ने दस वर्षों के कार्यों का उल्लेख किया है। भाजपा अपने चुनाव प्रचार में दस वर्ष की उपलब्धियों के आधार पर ही जनता से समर्थन मांग रही है।  

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि पिछले दस साल में हमने समय के हर पल को जनकल्याण के लिए समर्पित करने का प्रयास किया है। पिछले एक दशक में देश आमूलचूल बदलावों का साक्षी बना है। एक तरफ देश तेजी से प्रगति के पथ पर बढ़ा है तो वहीं देशवासियों के मन में भी एक सकारात्मक बदलाव हुआ है। बड़े लक्ष्य तय करके उसे हासिल करने की धारणा मजबूत हुई है। उन्होंने दावा किया कि पिछले दस साल में हम ‘फ्रेजाइल-5’  अर्थव्यवस्था से ‘टॉप-5 अर्थव्यवस्था’ बन चुके हैं। देश के अर्थतंत्र में हुए इस बदलाव का सबसे बड़ा लाभ उन देशवासियों को मिला है, जो वाकई जरूरतमंद हैं। इस बदलाव का सबसे बड़ा लाभ समाज के गरीब, वंचित और मध्यम वर्ग को मिला है। सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास-सबका प्रयास केवल हमारा नारा ही नहीं, बल्कि हमारी प्रतिबद्धता है। 

उन्होंने कहा कि पिछले दस वर्षों में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। दशकों से बुनियादी जरूरतों की पूर्ति से वंचित रहे इन 25 करोड़ लोगों का जीवन स्तर बहुत बेहतर हुआ है। यह गरीबों के खिलाफ हमारी लड़ाई की जीत है। आज ऐसे लोगों तक न सिर्फ आवास, गैस कनेक्शन, शौचालय की सुविधाएं पहुंच रही हैं, बल्कि उससे कहीं आगे नए दौर के ऑप्टिक फाइबर कनेक्शन, डिजिटल समाधान और ड्रोन तकनीक इत्यादि भी इनके अपने हाथों में है।   

देश में पिछले 10 साल में हुए सामाजिक-आर्थिक बदलावों का लाभ हमारी महिला, किसान, मछुआरा समाज, रेहड़ी-पटरी वेंडर्स, छोटे कारोबारियों तथा एससी, एसटी और ओबीसी को मिला है। तकनीक के माध्यम से ये वर्ग लाभान्वित भी हो रहे हैं और सशक्त भी। जनधन-आधार-मोबाईल ट्रिनिटी के कारण इनका लाभांश सीधे इन्हें बिना किसी बिचौलिए के मिलना संभव हुआ है।

उन्होंने युवाओं का उल्लेख करते हुए कहा है कि देश के विकास में हमारी युवाशक्ति की भूमिका बहुत बड़ी है। भारत के युवा ने न सिर्फ बड़े सपने देखने की हिम्मत की है, बल्कि अन्तरिक्ष, खेल और स्टार्ट-अप जैसे विभिन्न क्षेत्रों में बड़े सपने साकार करने के लिए भी उत्कृष्ट कार्य किया है। पिछले दस वर्षों में चाहे शिक्षा हो, रोजगार हो या उद्यमिता हो, हमारे युवाओं के लिए करोड़ों नए अवसर पैदा हुए हैं।  

वर्ष 2014 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी थी, उसी समय भाजपा ने 2047 को अपना लक्ष्य बना लिया था। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 2014 में हमें आपका आशीर्वाद और मिला समर्थन मिला तो हम इन बड़े बदलावों को कर पाए। 2019 में पहली बार से बड़ा जनादेश मिला तो विकास की गति और तेजी से आगे बढ़ी। बड़े-बड़े निर्णय लिए गये। आपका आशीर्वाद लेकर अगले पांच साल हम 24 घंटे 2047 के लिए संघर्ष करेंगे, ये मोदी की गारंटी है।     
वास्तव में भाजपा का यह संकल्प पत्र जन साधारण से जुड़ा हुआ है. इसलिए इसमें कही गई बातें लोगों को प्रभावित अवश्य करेंगी.    
(लेखक- लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं) 

Wednesday, April 10, 2024

भारतीय नववर्ष उत्सव का उमंग


डॉ. सौरभ मालवीय
भारतीय नववर्ष के साथ अनेक त्यौहार आते हैं। इनमें चैत्र शुक्लादि, नवरेह, गुड़ी पड़वा, उगादि, साजिबु नोंगमा पांबा अथवा साजिबु चेराओबा एवं चेटीचंड आदि सम्मिलित हैं। चैत्र शुक्लादि विक्रम संवत के नववर्ष के प्रारम्भ का प्रतीक है। इसे वैदिक अथवा हिन्दू कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन से नवरात्रि का प्रारम्भ होता है। भारतीय नववर्ष के साथ वसंत ऋतु का भी आगमन होता है। इसलिए ये सब त्यौहार वसंत के उत्सव हैं।

नवरेह
जम्मू कश्मीर में नवरेह का त्यौहार हर्ष एवं उल्लास से मनाया जाता है। नव चंद्रवर्ष के रूप में मनाया जाने वाला यह त्यौहार उत्साह एवं रंगों का उत्सव है। यह कश्मीरी पंडितों का विशेष त्यौहार माना जाता है। त्यौहार से एक दिन पूर्व वे पवित्र विचर नाग के झरने की यात्रा करते हैं। इसके पश्चात वे पवित्र जल में स्नान करके अपनी समस्त मलिनताओं का त्याग करते हैं। इसके पश्चात् वे पूजा-अर्चना करके प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह प्रसाद चावल एवं विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों से बनाया जाता है। नवरेह के प्रातःकाल में वे लोग सर्वप्रथम चावल से भरे पात्र को देखते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से घर में समृद्धि आती है, क्योंकि चावल धन-धान्य एवं समृद्धि का प्रतीक है।

गुड़ी पड़वा
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। गुड़ी का अर्थ है विजय पताका तथा पड़वा का अर्थ है चंद्रमा का प्रथम दिवस। इस दिन लोग बांस के ऊपर चांदी, तांबे अथवा पीतल के कलश को उल्टा रखते हैं। कलश पर स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है। बांस पर केसरिया रंग का पताका लगाया जाता है। तदुपरान्त इसे नीम एवं आम की पत्तियां और पुष्पों से सुसज्जित किया जाता है। इसे घर के सबसे उच्च स्थान पर लगाया जाता है। गृह द्वारों पर आम के पत्तों का तोरण लगाया जाता है। मान्यता है कि आम के पत्ते पवित्र होते हैं। इसके लगाने से नकारात्मक शक्तियां घर में प्रवेश नहीं कर पाती हैं तथा घर इनसे सुरक्षित रहता है।  

इस दिन भोजन में गुड़ एवं नीम परोसा जाता है। गुड़ की मिठास सुख एवं नीम की कड़वाहट दुःख का प्रतीक है अर्थात जीवन के सुख- दुःख को समान भाव से अपनाना चाहिए, क्योंकि मानव की परीक्षा दुःख में ही होती है।   
देश के विभिन्न भागों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा गोवा में संवत्सर पड़वा के रूप में मनाया जाता है। केरल में इसे संवत्सर पड़वो के रूप में मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक एवं तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों में इसे उगादी के रूप में मनाया जाता है। राजस्थान में इसे थापना एवं मणिपुर में साजिबु चेराओबा अथवा साजिबु नोंगमा पांबा के रूप में मनाया जाता है।

सिन्धी समुदाय के लोग चेटीचंड का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाते हैं। यह त्यौहार भगवान झूलेलाल के जन्म दिवस के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म पाकिस्तान के सिंध प्रांत के ग्राम नसरपुर में हुआ था। उनका वास्तविक नाम उदयचंद था। वे वरुण देव के अवतार माने जाते हैं। उन्हें उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से भी जाना जाता है। वह सद्भावना के प्रतीक माने जाते हैं।

विक्रम सम्वत् का इतिहास
9 अप्रैल से विक्रम सम्वत् 2081 का प्रारम्भ चुका है। विक्रम सम्वत् को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर पांच प्रकार के होते हैं, जिनमें सौर, चन्द्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास सम्मिलित हैं। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ एवं मीन नामक बारह राशियां सूर्य वर्ष के महीने हैं। सूर्य का वर्ष 365 दिन का होता है। इसका प्रारम्भ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने से होता है।  चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अग्रहायण, पौष, माघ और फाल्गुन
 चन्द्र वर्ष के महीने हैं। चन्द्र वर्ष 355 दिन का होता है। इस प्रकार इन दोनों वर्षों में दस दिन का अंतर हो जाता है। चन्द्र माह के बढ़े हुए दिनों को ही अधिमास या मलमास कहा जाता है। नक्षत्र माह 27 दिन का होता है, जिन्हें अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र कहा जाता है। सावन वर्ष में 360 दिन होते हैं। इसका एक महीना 30 दिन का होता है।   
 
विक्रम सम्वत् का महत्त्व
भारतीय संस्कृति में विक्रम सम्वत् का बहुत महत्त्व है। चैत्र का महीना भारतीय कैलेंडर के हिसाब से वर्ष का प्रथम महीना है। नवीन संवत्सर के संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। वैदिक पुराण एवं शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को आदिशक्ति प्रकट हुई थीं। आदिशक्ति के आदेश पर ब्रह्मा ने सृष्टि की प्रारम्भ की थी। इसीलिए इस दिन को अनादिकाल से नववर्ष के रूप में जाना जाता है। मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसी दिन सतयुग का प्रारम्भ हुआ था। मान्यता है कि इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने अपना राज्य स्थापित किया था। श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र भी इसी दिन से प्रारम्भ होते हैं। इसी तिथि को राजा विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी। विजय को चिर स्थायी बनाने के लिए उन्होंने विक्रम सम्वत् का शुभारंभ किया था, तभी से विक्रम सम्वत् चली आ रही है। इसी दिन से महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करके पंचांग की रचना की थी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्त्व भी है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी। इस दिन महर्षि गौतम जयंती मनाई जाती है। इस दिन संघ संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिवस भी मनाया जाता है।

उत्कृष्ट काल गणना
सृष्टि की सर्वाधिक उत्कृष्ट काल गणना का श्रीगणेश भारतीय ऋषियों ने अति प्राचीन काल से ही कर दिया था। तदनुसार हमारे सौरमंडल की आयु लगभग चार अरब 32 करोड़ वर्ष हैं। आधुनिक विज्ञान भी कार्बन डेटिंग और हॉफ लाइफ पीरियड की सहायता से इसे लगभग चार अरब वर्ष पुराना मान रहा है। इतना ही नहीं, श्रीमद्भागवद पुराण, श्री मारकंडेय पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार अभिशेत् बाराह कल्प चल रहा है और एक कल्प में एक हजार चतुरयुग होते हैं। जिस दिन सृष्टि का प्रारम्भ हुआ, वह आज ही का पवित्र दिन था। इसी कारण मदुराई के परम पावन शक्तिपीठ मीनाक्षी देवी के मंदिर में चैत्र पर्व मनाने की परंपरा बन गई। नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

महीनों का नामकरण
भारतीय महीनों का नामकरण भी बड़ा रोचक है अर्थात जिस महीने की पूर्णिमा जिस नक्षत्र में पड़ती है, उसी के नाम पर उस महीने का नामकरण किया गया है, उदाहरण के लिए इस महीने की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में हैं, इसलिए इसे चैत्र महीने का नाम दिया गया। क्रांति वृत पर 12 महीने की सीमाएं तय करने के लिए आकाश में 30-30 अंश के 12 भाग किए गए और उनके नाम भी तारा मंडलों की आकृतियों के आधार पर रखे गए। इस प्रकार बारह राशियां बनीं।

चूंकि सूर्य क्रांति मंडल के ठीक केंद्र में नहीं हैं, अत: कोणों के निकट धरती सूर्य की प्रदक्षिणा 28 दिन में कर लेती है और जब अधिक भाग वाले पक्ष में 32 दिन लगते हैं। इसलिए प्रति तीन वर्ष में एक मास अधिक हो जाता है।

काल गणना की वैज्ञानिक व्यवस्था
भारतीय काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि शताब्दियों तक एक क्षण का भी अंतर नहीं पड़ता, जबकि पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक चार वर्ष में फरवरी महीने को लीप ईयर घोषित कर देते हैं। तब भी नौ मिनट 11 सेकेंड का समय बच जाता है, तो प्रत्येक चार सौ वर्षों में भी एक दिन बढ़ाना पड़ता है, तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता। अभी कुछ वर्ष पूर्व ही पेरिस के अंतर्राष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक सेकेंड धीमा कर दिया गया। फिर भी 22 सेकेंड का समय अधिक चल रहा है। यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है, जहां के सीजीएस सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय किए जाते हैं। रोमन कैलेंडर में तो पहले 10 ही महीने होते थे। किंगनुमापाजुलियस ने 355 दिनों का ही वर्ष माना था, जिसे जुलियस सीजर ने 365 दिन घोषित कर दिया और उसी के नाम पर एक महीना जुलाई बनाया गया। उसके एक सौ वर्ष पश्चात किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट अर्थात अगस्त भी बढ़ाया गया। चूंकि ये दोनों राजा थे, इसलिए इनके नाम वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गए। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद बात है कि लगातार दो महीने के दिनों की संख्या समान हैं, जबकि अन्य महीनों में ऐसा नहीं है। जिसे हम अंग्रेजी कैलेंडर का नौवां महीना सितम्बर कहते हैं, दसवां महीना अक्टूबर कहते हैं, ग्यारहवां महीना नवम्बर और बारहवां महीना दिसम्बर हैं। इनके शब्दों के अर्थ भी लैटिन भाषा में 7,8,9 और 10 होते हैं। भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय काल गणना पूरे विश्व में व्याप्त थी और सचमुच सितम्बर का अर्थ सप्ताम्बर था, आकाश का सातवां भाग, उसी प्रकार अक्टूबर अष्टाम्बर, नवम्बर तो नवमअम्बर और दिसम्बर दशाम्बर है।
उल्लेखनीय है कि ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है। मान्यता है कि नव संवत्सर के दिन नीम की कोमल पत्तियों और पुष्पों का मिश्रण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, मिश्री, जीरा और अजवाइन मिलाकर उसका सेवन करने से शरीर स्वस्थ रहता है। इस दिन आंवले का सेवन भी बहुत लाभदायक बताया गया है। माना जाता है कि आंवला नवमीं को जगत पिता ने सृष्टि पर पहला सृजन पौधे के रूप में किया था। यह पौधा आंवले का था। इस तिथि को पवित्र माना जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।

वसंत का उल्लास
भारतीय नववर्ष में वातावरण अत्यंत मनोहारी रहता है। केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु जड़ चेतना नर-नाग यक्ष रक्ष किन्नर-गंधर्व, पशु-पक्षी लता, पादप, नदी नद, देवी, देव, मानव से समष्टि तक सब प्रसन्न होकर उस परम शक्ति के स्वागत में सन्नध रहते हैं। वृक्षों पर नए पत्ते आ जाते हैं। उपवनों में भी रंग- बिरंगे पुष्प दिखाई देते हैं।   
नववर्ष पर दिवस सुनहले, रात रूपहली, उषा सांझ की लाली छन-छन कर पत्तों में बनती हुई चांदनी जाली कितनी मनोहारी लगती है। शीतल मंद सुगंध पवन वातावरण में हवन की सुरभि कर देते हैं। ऐसे ही शुभ वातावरण में अखिल लोकनायक श्रीराम का अवतार होता है।

भारतीय नववर्ष वसंत का उल्लास साथ लाता है। जब भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ होता है तो प्रकृति चहक उठती है। हमारे गौरवशाली भारत देश की बात ही निराली है। हमारे तीज-त्यौहार, व्रत, उपवास, रामनवमी, जन्माष्टमी, गृह प्रवेश, विवाह तथा अन्य शुभ कार्यों के शुभमुहूर्त आदि सभी आयोजन भारतीय कैलेंडर अर्थात हिन्दू पंचांग के अनुसार ही देखे जाते हैं। इसलिए हमारे जीवन में इसका अत्यंत महत्त्व है।

Saturday, April 6, 2024

राम का लोकजीन


डॉ. सौरभ मालवीय

सनातन धर्म के अनुयायी श्रीराम को भगवान मानते हैं तथा उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। वह भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, जिन्होंने लंका नरेश रावण एवं अन्य राक्षसों का संहार करके मानव जाति को उनके अत्याचारों से मुक्त करवाने के लिए अयोध्या के राजा दशरथ के यहां राम के रूप में जन्म लिया था। 
इसके इतर राम ने स्वयं को एक जननायक के रूप में स्थापित किया। उनका संपूर्ण जीवन इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मर्यादा के नूतन आयाम स्थापित किए। इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया, इसलिए भी उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।   
 
आदर्श पुत्र
श्रीराम एक आदर्श पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता राजा दशरथ के वचन का पालन किया। उन्होंने राजा दशरथ द्वारा अपनी पत्नी कैकेयी को दिए वचन को पूर्ण करने के लिए राजपाट त्याग कर चौदह वर्ष का वनवास सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने अपनी  माता के वचन का सहृदय से पालन करके यह सिद्ध कर दिया कि उनके लिए पिता के वचन और माता की प्रसन्नता से बढ़कर कुछ भी नहीं है। उन्होंने वैभवशाली जीवन का त्याग करके वन में जीवन व्यतीत करना उचित समझा। उन्होंने अपने पिता की मनोव्यथा एवं उनकी विवशता को अनुभव किया तथा बिना किसी अंतर्द्वन्द्व के वनवास जाने का निर्णय ले लिया। यह निर्णय कोई सरल कार्य नहीं था। आज के युग में कोई अपनी एक इंच भूमि भी अपने भाई को नहीं देना चाहता। भूमि और संपत्ति को लेकर भाइयों के मध्य रक्तपात हो जाता है। ऐसे में त्रेता युग में जन्मे श्रीराम परिवार मूल्य बोध के लिए एक आदर्श स्थापित करते हैं।      
 
चित्रकूट में जब भरत व उनके अन्य परिवारजन उन्हें पुनः अयोध्या वापस लौटने को कहते हैं, वह इसे अस्वीकार कर देते हैं। उनकी माता कैकेयी भी उनसे अपने वचनों को वापस लेने की बात कहती हैं, परन्तु वह अपने निर्णय पर अटल रहते हैं तथा उनके कथन को अस्वीकार कर देते हैं। वह अपनी माता से कहते हैं कि आपका वचन पिता से संबंधित था, मुझसे नहीं। मेरा संबंध तो पिता के वचन से है आपसे नहीं, इसलिए मैं उनके वचन की अवज्ञा नहीं कर सकता। मैं अपने पिता के वचन से बंधा हुआ हूं। तभी से यह कहा जा रहा है कि “रघुकुलरीत सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाय।“
वास्तव में राजा दशरथ अपने पुत्र से अत्यधिक स्नेह करते थे। पुत्र के वियोग में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए, परन्तु अपने वचन का पालन किया।    
 
आदर्श भाई
श्रीराम एक आदर्श भाई भी थे। उनके लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के प्रति अथाह प्रेम, त्याग एवं समर्पण के कारण उन्हें आदर्श भाई माना जाता है। उन्होंने अपनी माता कैकेयी के आदेश पर अपना राज्य अपने छोटे भाई भरत को सौंप दिया और स्वयं अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वनवास के लिए प्रस्थान कर गए। 
रामचरित मानस में भक्त शिरोमणि तुलसीदास कहते हैं-
सजि बन साजु समाजु सबु बनिता बंधु समेत।
बंदि बिप्र गुर चरन प्रभु चले करि सबहि अचेत।। 
अर्थात वन के लिए आवश्यक वस्तुओं को साथ लेकर श्रीराम पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण सहित ब्राह्मण एवं गुरु के चरणों की वंदना करके सबको अचेत करके चले गए।  
 
सद्भाव का संदेश
श्रीराम ने समाज के प्रत्येक वर्ग को आपस में जोड़कर रखने का संदेश दिया। उन्होंने प्रेम एवं भाईचारे का संदेश दिया। निषादों के राजा निषादराज श्रीराम के अभिन्न मित्र थे। वह ऋंगवेरपुर के राजा थे। उनका नाम गुह्यराज था। वह श्रीराम के बाल सखा थे। उन्होंने एक ही गुरुकुल में रहकर शिक्षा प्राप्त की थी। आदिवासी समाज के लोग आज भी निषादराज की पूजा करते हैं। उन्होंने वनवास काल में श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण को गंगा नदी पार करवाई थी। 
 
संपूर्ण प्राणियों से प्रेम
श्रीराम मनुष्यों से ही नहीं, अपितु पशु-पक्षियों से भी हृदय से प्रेम करते थे। पशु-पक्षियों ने भी समय-समय पर उनकी सहायता की। इनकी सहायता से ही उन्हें सीता के हरण के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। श्रीराम का गिलहरी से संबंधित एक अत्यंत रोचक प्रसंग है।   
जिस समय श्रीराम की सेना रामसेतु के निर्माण के कार्य में व्यस्त थी, उस समय लक्ष्मण ने उन्हें गिलहरी को निहारते हुए देखा। इस बारे में पूछने पर श्रीराम ने बताया कि एक गिलहरी बार-बार समुद्र के तट पर जाती है तथा रेत पर लोटपोट करके रेत को अपने शरीर पर चिपका लेती। जब रेत उसके शरीर पर चिपक जाती, तो वह सेतु पर जाकर सारा रेत झाड़ देती है। वह बहुत समय से ऐसा कर रही है। यह सुनकर लक्ष्मण ने कहा कि वह केवल क्रीड़ा का आनंद ले रही है। इस पर श्रीराम ने कहा कि लक्ष्मण से कहा कि मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता। उत्तम तो यही होगा कि हम इस संबंध में गिलहरी से ही पूछ लेते हैं। उन्होंने गिलहरी से पूछा कि तुम क्या कर रही हो? गिलहरी ने उत्तर दिया कि कुछ नहीं, केवल सेतु निर्माण के पुनीत कार्य में अपना थोड़ा सा योगदान दे रही हूं। उन्हें उत्तर देकर गिलहरी पुनः अपने कार्य के लिए चल पड़ी, तो लक्ष्मण ने उसे रोकते हुए पूछा कि तुम्हारे रेत के कुछ कणों से क्या होगा?

इस पर गिलहरी ने उत्तर दिया कि आप सत्य कह रहे हैं। मेरे रेत के कुछ कणों से कुछ नहीं होगा, परन्तु मैं अपने सामर्थ्य के अनुसार जो योगदान दे सकती हूं, दे रही हूं। मेरे कार्य का कोई मूल्यांकन नहीं, परन्तु इससे मेरे मन को संतुष्टि प्राप्त हो रही है कि मैं अपनी योग्यता एवं सामर्थ्य के अनुसार अपना योगदान दे रही हूं। मेरे लिए यही पर्याप्त है, क्योंकि यह राष्ट्र का कार्य है एवं धर्म का कार्य है।
गिलहरी का यह प्रसंग सदैव से ही प्रासंगिक रहा है, क्योंकि इससे यह प्रेरणा मिलती है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने सामर्थ्य के अनुसार जनहित एवं राष्ट्र हित में कार्य करना चाहिए।    
  
नेतृत्व क्षमता
श्रीराम एक लोक नायक थे। उनमें नेतृत्व की अपार क्षमता थी। उन्होंने समुद्र में पत्थरों से सेतु का निर्माण करवाया, जिसे राम सेतु कहा जाता है। सीताहरण के पश्चात उन्होंने वानरों की सेना के माध्यम से लंका पर चढ़ाई कर दी। एक ओर लंका नरेश रावण की बलशाली राक्षसों की शक्तिशाली सेना थी, तो दूसरी ओर निर्बल वानरों की छोटी सी सेना। किन्तु श्रीराम के पास सत्य की शक्ति थी और वानर सेना का उनके प्रति अटूट प्रेम, श्रद्धा एवं विश्वास था। इस सत्य एवं श्रद्धा के बल पर उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त की। वे अपने मित्रों एवं साथियों को आदर एवं सम्मान देते थे। उन्होंने अपने मित्र निषादराज, सुग्रीव, हनुमान, केवट, जामवंत एवं विभीषण आदि को समय-समय पर नेतृत्व करने के अवसर प्रदान किए तथा उनकी हृदय से सराहना भी की। 
 
मातृभूमि से प्रेम 
लंका पर विजय प्राप्त करने के पश्चात श्रीराम ने लंका का राज्य रावण के भाई विभीषण को सौंप दिया तथा अयोध्या लौटने का निर्णय किया। इस पर लक्ष्मण ने कहा कि लंका में स्वर्गीय सुख है। लंका स्वर्णमयी है। अयोध्या में क्या रखा है? इस पर श्रीराम ने कहा- 
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।। (वाल्मीकि रामायण) 
अर्थात यद्यपि यह लंका स्वर्ण से निर्मित है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है।
 
श्रीराम ने स्वयं को एक लोकनायक के रूप में ही प्रस्तुत किया। इसलिए वह कभी स्वाभाविक जीवन व्यतीत नहीं कर पाए। उनका बाल्यकाल शिक्षा ग्रहण करते हुए गुरुकुल में व्यतीत हुआ। गुरुकुल में वह राजकुमारों की भांति नहीं रहे, अपितु उन्हें अन्य बालकों की भांति ही अपने सारे कार्य स्वयं करने पड़ते थे। इसके अतिरिक्त में वह अपने सहपाठियों के साथ कंद-मूल एवं लकड़ियां एकत्रित करने वन भी जाते थे। इस प्रकार उनका बाल्यकाल सुख-समृद्धि में व्यतीत नहीं हुआ। युवा होने पर जब उन्हें राज्य का संपूर्ण दायित्व सौंपने का निर्णय लिया गया एवं उनके राज्यभिषेक की तैयारियां होने लगीं, तो उन्हें अकस्मात चौदह वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा। उन्होंने वनवास की समयावधि में भी अनेक कष्टों का सामना किया। जब रावण ने उनकी पत्नी सीता का हरण कर लिया, तो उन्हें पत्नी के वियोग में एवं उनकी खोज में वन-वन भटकना पड़ा। एक साहसी शत्रु से सामना करने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं था। उन्हें वानर राज सुग्रीव की सहायता प्राप्त हुई, परन्तु इससे पूर्व उन्हें बाली का वध करके सुग्रीव को राजा बनाना पड़ा। इस समयावधि में उन्हें अनेक कष्ट एवं आरोपों का सामना करना पड़ा।
 
एक राजा के रूप में भी श्रीराम ने स्वयं को लोकनायक ही सिद्ध किया। उन्होंने लोकनायक के रूप में शासन किया। वह राजा थे। वह चाहते तो निरंकुश होकर निर्णय ले सकते थे, परन्तु उन्होंने लोकनायक के रूप में आदर्श स्थापित किया। उनके राज्य में सबको अभिव्यक्ति का अधिकार था। जब धोबी ने माता सीता के चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगाया, तो श्रीराम ने सीता का त्याग कर दिया। महाकवि भवभूति उत्तररामचरित में कहते हैं-  
स्नेहं दयां च सौख्यं च, यदि वा जानकीमपि।
आराधनाय लोकस्य मुञ्चतो, नास्ति में व्यथा।।
अर्थात देश व समाज की सेवा के लिए स्नेह, दया, मित्रता यहां तक कि धर्मपत्नी को छोड़ने में भी मुझे कोई पीड़ा नहीं होगी।
 
माता सीता एक बार पुनः वनवास के लिए चली गईं। इसके पश्चात श्रीराम ने भी राजसी जीवन का त्याग कर दिया। वह एक वनवासी की भांति जीवन व्यतीत करने लगे। वह भूमि पर चटाई बिछाकर सोते तथा कंद-मूल खाते। वह अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करते थे, इसलिए उन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया। उस समय राजा अनेक विवाह करते थे, परन्तु श्रीराम पत्नीव्रता रहे।  
 
श्रीराम ने एक पुत्र के रूप में, भाई के रूप में, पति के रूप में, मित्र के रूप में तथा राजा के रूप में समाज के लिए आदर्श स्थापित किया। उन्होंने प्रेम, भाईचारे, त्याग एवं समर्पण का संदेश दिया। वर्तमान युग में जब   स्वार्थ  बढ़ गया है तथा संबंध स्वार्थ सिद्धि तक ही सीमित होकर रह गए हैं, ऐसे में लोकनायक राम एक आदर्श बनकर सामने आते हैं।

Thursday, April 4, 2024

डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक ‘भारतीय राजनीति के महानायक : नरेन्द्र मोदी’ का लोकार्पण


लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने आज भारतीय जनता पार्टी के प्रांतीय  मुख्यालय में आयोजित साहित्योदय विकसित भारत @2047 समारोह में लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक ‘भारतीय राजनीति के महानायक : नरेन्द्र मोदी’ का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उन्होंने पुस्तक की सराहना करते हुए कहा कि यह पुस्तक न केवल प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के विराट व्यक्तित्व से परिचय करवाती है, अपितु मोदी सरकार की जनकल्याण की योजनाओं की उपयोगी जानकारी भी प्रदान करती है। हृदय नारायण दीक्षित अमृतकाल का साहित्य नामक विचार गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे थे। 

समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित भारतीय जनता पार्टी के पत्र -पत्रिका विभाग के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. शिव शक्ति ने पुस्तक की सराहना करते हुए कहा कि साहित्य सम्पदा है। हमारी विरासत है। मानव चेतना पर आधारित है हमारा साहित्य। अमृतकाल में साहित्य लेखन करने की जरूरत है। आने वाले 25 साल हमारा साहित्य का अमृतकाल है। ऐसे में डॉक्टर सौरभ मालवीय की पुस्तक अभिनंदनीय है।
विशिष्ट अतिथि भारतीय जनता पार्टी के प्रकोष्ठ प्रभारी ओमप्रकाश ने कहा कि साहित्य हमें समृद्ध बनाती है। समाज में लोकमंगल की चेतना प्रदान करती है। भारतीय दृष्टि से लेखन आज आवश्यक है।
इस अवसर पर सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है। महामना मदन मोहन मालवीय जी ने शिक्षा के लिए भारतीय ज्ञान परम्परा पर शिक्षा की आधार शिला रखी।

प्रदेश उपाध्यक्ष संतोष सिंह ने कहा कि हमारे साहित्यकारों ने देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भाजपा उत्तर प्रदेश के मुखपत्र कमल ज्योति के कार्यकारी संपादक राजकुमार ने कहा कि आज जरूरत है राष्ट्रवादी  विचारों को लेखन में लाने की। इतिहास को भारतीय दृष्टि से लेखन करने की। 
इस पुस्तक दिल्ली के मानसी पब्लिकेशन्स ने प्रकाशित किया है। इस पुस्तक में श्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व के साथ साथ उनके कृतित्व पर भी प्रकाश डाला गया है।    
 
लेखक डॉ. सौरभ मालवीय का कहना है कि उनके व्यक्तित्व की भांति उनके कार्य भी बहुत ही महान हैं। वह भारत की गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के संवाहक हैं। उनके कृतित्व में भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में उनकी भूमिका अत्यंत प्रशंसनीय एवं सराहनीय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ही देश की पौराणिक नगरी अयोध्या में भूमि पूजन कर चांदी की ईंट और चांदी के फावड़े से ‘श्री राम जन्मभूमि मंदिर’ निर्माण की आधारशिला रखी थी। जिस समय वह मंदिर में पूजा-अर्चना कर रहे थे उस समय देश के करोड़ों लोग अपने घरों में टेलीविजन पर उन्हें देख रहे थे। वे इस स्वर्णिम क्षणों के साक्षी बने थे। यह पुस्तक समकालीन भारत का एक ऐतिहासिक प्रमाण है, जो भविष्य में लोगों को उनके व्यक्तित्व एवं केंद्र सरकार की योजनाओं और श्री नरेन्द्र मोदी जी के व्यक्तित्व से परिचित कराएगी।
भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है