Wednesday, December 10, 2025

दीपावली की वैश्विक लोकप्रियता और बढ़ेगी : मोदी


प्रकाश का पर्व दीपावली अब यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में सम्मिलित हो गया है। इसकी औपचारिक घोषणा विगत 8 से 13 दिसंबर को नई दिल्ली स्थित लाल किले में आयोजित बीसवें यूनेस्को अंतर-सरकारी समिति सत्र में की गई। दीपावली का यह सम्मिलन भारत की ओर से सूचीबद्ध सोलहवां तत्व है। इस निर्णय को 194 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों और यूनेस्को के वैश्विक नेटवर्क के सदस्यों की उपस्थिति में अपनाया गया। दीपावली एक जीवंत और सतत विकसित होती सांस्कृतिक परंपरा है, जिसे समुदाय पीढ़ियों से संजोते और आगे बढ़ाते आ रहे हैं। यह सामाजिक सद्भाव, सामुदायिक सहभागिता और समग्र विकास को सुदृढ़ता प्रदान करती है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने दीपावली को यूनेस्को की अमूर्त विरासत सूची में सम्मिलित किए जाने पर प्रसन्नता और गर्व व्यक्त करते हुए कहा- “भारत और दुनिया भर के लोग रोमांचित हैं। हमारे लिए, दीपावली हमारी संस्कृति और लोकाचार से बहुत गहराई से जुड़ी हुई है। यह हमारी सभ्यता की आत्मा है। यह प्रकाश और धार्मिकता का प्रतीक है। दीपावली को यूनेस्को की अमूर्त विरासत सूची में सम्मिलित करने से इस पर्व की वैश्विक लोकप्रियता और भी बढ़ेगी। प्रभु श्री राम के आदर्श हमारा शाश्वत रूप से मार्गदर्शन करते रहें।"

यूनेस्को की प्रतिनिधि सूची में किसी भी तत्व को सम्मिलित करने के लिए सदस्य देशों को मूल्यांकन के लिए एक विस्तृत नामांकन दस्तावेज़ प्रस्तुत करना आवश्यक होता है। हर देश दो वर्ष में एक तत्व नामांकित कर सकता है। भारत ने 2024–25 चक्र के लिए ‘दीपावली’ पर्व को नामांकित किया था।

इनटैन्जिबल कल्चरल हेरिटेज की सुरक्षा के लिए यूनेस्को ने 17 अक्टूबर 2003 को पेरिस में अपने 32वें जनरल कॉन्फ्रेंस के दौरान 2003 कन्वेंशन को अपनाया। कन्वेंशन ने विश्वभर की चिंताओं का जवाब दिया कि ग्लोबलाइज़ेशन, सामाजिक बदलाव और सीमित संसाधनों के कारण जीवित सांस्कृतिक परंपराएं, बोलने के तरीके, परफॉर्मिंग आर्ट्स, सामाजिक रीति-रिवाज, रस्में, ज्ञान के तरीके और कारीगरी पर खतरा बढ़ रहा है और उन्हें बचाने की आवश्यकता है।

भारत के लिए दीपावली केवल एक वार्षिक त्योहार से कहीं अधिक है। यह लाखों लोगों की भावनाओं और संस्कृति के ताने-बाने में बुनी हुई एक जीती-जागती परंपरा है। प्रत्येक वर्ष जब शहरों, गांवों और दूर-दराज के क्षेत्रों में दीये जलने लगते हैं, तो दीपावली प्रसन्नता और जुड़ाव की जानी-पहचानी भावना को फिर से जगाती है। यह लोगों को रुकने, स्मरण करने और एक साथ आने के लिए बुलाती है, जिससे विश्व को बताया जा सके कि यह त्योहार मानवता की मूल्यवान सांस्कृतिक परंपराओं में सही मायने में क्यों स्थान पाने का अधिकारी है।

संस्कृति मंत्रालय ने इस निर्णय का स्वागत किया और कहा कि इस शिलालेख से भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के बारे में दुनिया भर में जागरूकता बढ़ेगी और आने वाली पीढ़ियों के लिए समुदाय-आधारित परंपराओं की रक्षा के प्रयासों को सुदृढ़ता मिलेगी।

केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह ने अंतरराष्ट्रीढय प्रतिनिधिमंडल को संबोधित करते हुए कहा कि यह शिलालेख भारत और विश्वभर के उन समुदायों के लिए अत्यंत गौरव का क्षण है जो दीपावली की शाश्वत भावना को जीवित रखते हैं। यह त्योहार ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ के सार्वभौमिक संदेश का प्रतीक है, जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की भावना को दर्शाता है और आशा, नवजीवन तथा सद्भाव का प्रतिनिधित्व करता है।

उन्होंने त्योहार की जीवंतता और जन-केंद्रित प्रकृति का उल्लेकख करते हुए इस बात पर बल दिया कि दीपावली उत्सोव के पीछे लाखों लोगों का योगदान होता है, जिनमें दीये बनाने वाले कुम्हार, उत्सव की सजावट करने वाले कारीगर, किसान, मिठाई बनाने वाले, पुजारी और सदियों पुरानी परंपराओं को निभाने वाले परिवार सम्मिलित हैं। यह मान्यता उस सामूहिक श्रम को श्रद्धांजलि है जो इस परंपरा को कायम रखता है।

केंद्रीय मंत्री ने प्रवासी भारतीयों की जीवंत भूमिका को भी स्वीकार किया, जिनके दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका, खाड़ी देशों, यूरोप और कैरेबियन में मनाए जाने वाले दीपावली समारोहों ने दीपावली के संदेश को महाद्वीपों में फैलाया है और सांस्कृतिक सेतुओं को मजबूत किया है। इस शिलालेख के साथ ही इस विरासत की रक्षा करने और इसे भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने की नई जिम्मेदारी भी आती है। केंद्रीय मंत्री ने नागरिकों से दीपावली की एकता की भावना को अपनाने और भारत की समृद्ध अमूर्त सांस्कृतिक परंपराओं का समर्थन जारी रखने का आग्रह किया।

दीपावली को इसकी गहरी सांस्कृतिक महत्ता और विभिन्न क्षेत्रों, समुदायों तथा वैश्विक भारतीय प्रवासी समुदाय में मनाए जाने वाले जन त्योहार के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह एकता, नवीनीकरण और सामाजिक सामंजस्य के सिद्धांतों का प्रतीक है। दीये जलाना, रंगोली बनाना, पारंपरिक शिल्पकला, अनुष्ठान, सामुदायिक समारोह और पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान का हस्तांतरण जैसी इसकी विविध प्रथाएं त्योहार की शाश्वत जीवंतता और भौगोलिकता की सीमाओं के भीतर अनुकूलन करने की क्षमता को दर्शाती हैं।

संगीत नाटक अकादमी के माध्यम से संस्कृति मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए इस नामांकन में भारतभर के कलाकारों, शिल्पकारों, कृषि समुदायों, प्रवासी समूहों, विशेष आवश्यकताओं वाले व्यक्तियों, ट्रांसजेंडर समुदायों, सांस्कृतिक संगठनों और परंपरा के वाहकों के साथ व्यापक राष्ट्रव्यापी परामर्श किया गया। उनके सामूहिक अनुभवों ने दीपावली के समावेशी स्वरूप, समुदाय-आधारित निरंतरता और कुम्हारों और रंगोली कलाकारों से लेकर मिठाई बनाने वालों, फूल विक्रेताओं और शिल्पकारों तक आजीविका के व्यापक इकोसिस्टनम को उजागर किया।

यूनेस्को के शिलालेख में दीपावली को एक जीवंत विरासत के रूप में मान्यता दी गई है जो सामाजिक आपसदारी को सुदृढ़ करती है। यह त्योकहार पारंपरिक शिल्प कौशल का समर्थन करता है, उदारता और कल्याण के मूल्यों को सुदृढ़ करता है तथा आजीविका संवर्धन, लैंगिक समानता, सांस्कृतिक शिक्षा और सामुदायिक कल्याण सहित कई सतत विकास लक्ष्यों में सार्थक योगदान देता है।

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