आज सम्पूर्ण भारत, सम्पूर्ण विश्व राममय है: प्रधानमंत्री
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राष्ट्र के सामाजिक-सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण अवसर
के रूप में, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज उत्तर प्रदेश के अयोध्या
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पाठ्यचर्या से बदलेगा परिदृश्य
१. आदमी पढ़-लिखकर खुशहाल जिन्दगी जीने लग जाय!
२. दूसरों के खुशीपूर्वक जीने में सहयोग देने की स्थिति में आ जाय।
छोटी कक्षाओं से लेकर कॉलेज और यूनिवर्सिटी तक की शिक्षा का कुल उद्देश्य इतना ही है। जब गणित, विज्ञान, भूगोल, इतिहास, साहित्य, भाषा आदि सभी की शिक्षा का उद्देश्य खुशहाली ही है तो फिर अनुभूति/हैप्पीनेस करिकुलम की आवश्यकता क्यों है?
इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य खुशी की समझ बनाना है । विद्यार्थियों के लिए वर्तमान जीवन में और भविष्य में, उनके अपने जीवन में खुशी का क्या मतलब है? दूसरों के खुशीपूर्वक जीने में सहयोग का क्या मतलब है? क्या खुशी को मापा जा सकता है? क्या खुशी की तुलना की जा सकती है? दूसरों से तुलना में मिलने वाली खुशी और अपने अंदर से प्रकट होने वाली खुशी का विज्ञान क्या है? कहीं हम सुविधाओं को ही तो खुशी नहीं मान बैठे हैं? इन सब और इन जैसे और सवालों के वैज्ञानिक जवाब अपने अंदर से, अपने आसपास से ढूँढने के पाठ्यक्रम का नाम है हैप्पीनेस करिकुलम।
आज जब पूरी दुनिया में आतंकवाद, ग्लोबल वॉर्मिंग और भ्रष्टाचार जैसी विकट समस्याओं के समाधान प्रशासन और शासन के जरिए खोजने की कोशिश हो रही है, उस समय यह करिकुलम इस बात का प्रमाण बनेगा कि मानवीय व्यवहार की वजह से उत्पन्न समस्याओं का स्थायी समाधान केवल और केवल शिक्षा में संभव है। एक अच्छा विद्यालय भवन, आधुनिक कक्षाकक्ष, पढ़ाने के लिए आधुनिकतम तकनीक का उपयोग करना शिक्षा व्यवस्था की उपलब्धियाँ नहीं हैं। यह सब अनिवार्य आवश्यकताएं हैं, परन्तु शिक्षा की असली उपलब्धि है कि क्या वह वर्तमान और भविष्य की संभावित समस्याओं का समाधान खोजकर आने वाली पीढ़ियों को उसके लिए तैयार करती है अथवा नहीं। यह पाठ्यक्रम इस संभावना की दिशा में बड़ा और महत्वपूर्ण कदम दिखाई देता है।
आज जब दुनिया के अनेक देशों में सोशल इमोशनल लर्निंग(SEL) के नाम से इस पाठ्यक्रम को लाया जा रहा है या ले आने की तैयारी हो रही तो उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा यह पहल बहुत ही महत्वपूर्ण लगता है। मुझे विश्वास है कि हमारे प्रदेश के शिक्षकों और शिक्षाविदों की सुयोग्य टीम के माध्यम से यह पाठ्यक्रम विकसित भी होगा, संचालित भी होगा और अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करेगा। साथ ही अभिभावकों, विद्यार्थियों और प्रशासकों के साथ-साथ समाज के प्रत्येक वर्ग की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा।
इस पाठ्यक्रम की सफलता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि हमारे सभी शिक्षक साथी किस हद तक इसे अपने जीवन में आत्मसात कर सकेंगे।
मैं प्रदेश के सभी विद्यार्थियों, अभिभावकों, शिक्षकों और अधिकारियों को इसकी सफलता के लिए आशान्वित हूँ !
Thursday, December 2, 2021
पाठ्यचर्या से बदलेगा परिदृश्य
पाठ्यचर्या से बदलेगा परिदृश्य
१. आदमी पढ़-लिखकर खुशहाल जिन्दगी जीने लग जाय!
२. दूसरों के खुशीपूर्वक जीने में सहयोग देने की स्थिति में आ जाय।
छोटी कक्षाओं से लेकर कॉलेज और यूनिवर्सिटी तक की शिक्षा का कुल उद्देश्य इतना ही है। जब गणित, विज्ञान, भूगोल, इतिहास, साहित्य, भाषा आदि सभी की शिक्षा का उद्देश्य खुशहाली ही है तो फिर अनुभूति/हैप्पीनेस करिकुलम की आवश्यकता क्यों है?
इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य खुशी की समझ बनाना है । विद्यार्थियों के लिए वर्तमान जीवन में और भविष्य में, उनके अपने जीवन में खुशी का क्या मतलब है? दूसरों के खुशीपूर्वक जीने में सहयोग का क्या मतलब है? क्या खुशी को मापा जा सकता है? क्या खुशी की तुलना की जा सकती है? दूसरों से तुलना में मिलने वाली खुशी और अपने अंदर से प्रकट होने वाली खुशी का विज्ञान क्या है? कहीं हम सुविधाओं को ही तो खुशी नहीं मान बैठे हैं? इन सब और इन जैसे और सवालों के वैज्ञानिक जवाब अपने अंदर से, अपने आसपास से ढूँढने के पाठ्यक्रम का नाम है हैप्पीनेस करिकुलम।
आज जब पूरी दुनिया में आतंकवाद, ग्लोबल वॉर्मिंग और भ्रष्टाचार जैसी विकट समस्याओं के समाधान प्रशासन और शासन के जरिए खोजने की कोशिश हो रही है, उस समय यह करिकुलम इस बात का प्रमाण बनेगा कि मानवीय व्यवहार की वजह से उत्पन्न समस्याओं का स्थायी समाधान केवल और केवल शिक्षा में संभव है। एक अच्छा विद्यालय भवन, आधुनिक कक्षाकक्ष, पढ़ाने के लिए आधुनिकतम तकनीक का उपयोग करना शिक्षा व्यवस्था की उपलब्धियाँ नहीं हैं। यह सब अनिवार्य आवश्यकताएं हैं, परन्तु शिक्षा की असली उपलब्धि है कि क्या वह वर्तमान और भविष्य की संभावित समस्याओं का समाधान खोजकर आने वाली पीढ़ियों को उसके लिए तैयार करती है अथवा नहीं। यह पाठ्यक्रम इस संभावना की दिशा में बड़ा और महत्वपूर्ण कदम दिखाई देता है।
आज जब दुनिया के अनेक देशों में सोशल इमोशनल लर्निंग(SEL) के नाम से इस पाठ्यक्रम को लाया जा रहा है या ले आने की तैयारी हो रही तो उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा यह पहल बहुत ही महत्वपूर्ण लगता है। मुझे विश्वास है कि हमारे प्रदेश के शिक्षकों और शिक्षाविदों की सुयोग्य टीम के माध्यम से यह पाठ्यक्रम विकसित भी होगा, संचालित भी होगा और अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करेगा। साथ ही अभिभावकों, विद्यार्थियों और प्रशासकों के साथ-साथ समाज के प्रत्येक वर्ग की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा।
इस पाठ्यक्रम की सफलता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि हमारे सभी शिक्षक साथी किस हद तक इसे अपने जीवन में आत्मसात कर सकेंगे।
मैं प्रदेश के सभी विद्यार्थियों, अभिभावकों, शिक्षकों और अधिकारियों को इसकी सफलता के लिए आशान्वित हूँ !
मेरे प्रेरणास्रोत: स्वामी विवेकानंद
गिरकर उठना, उठकर चलना... यह क्रम है संसार का... कर्मवीर को फ़र्क़ न पड़ता किसी जीत और हार का... क्योंकि संघर्षों में पला-बढ़ा... संघर्ष ही मेरा जीवन है...
-डॉ. सौरभ मालवीय
डॉ. सौरभ मालवीय
अपनी बात
सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र-निर्माण की तीव्र आकांक्षा के कारण छात्र जीवन से ही सामाजिक सक्रियता। बिना दर्शन के ही मैं चाणक्य और डॉ. हेडगेवार से प्रभावित हूं। समाज और राष्ट्र को समझने के लिए "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया" विषय पर शोध पूर्ण किया है, परंतु सृष्टि रहस्यों के प्रति मेरी आकांक्षा प्रारंभ से ही है।
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राष्ट्र के सामाजिक-सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज उत्तर प्रदेश क...
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संप्रति
डॉ. सौरभ मालवीय
2/564, अवधपुरी खण्ड 2
खरगापुर, निकट प्राथमिक विद्यालय, गोमतीनगर विस्तार
2/564, अवधपुरी खण्ड 2
खरगापुर, निकट प्राथमिक विद्यालय, गोमतीनगर विस्तार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
पिन- 226010
मो- 8750820740
पिन- 226010
मो- 8750820740
ईमेल - malviya.sourabh@gmail.com
***
डॉ. सौरभ मालवीय
एसोसिएट प्रोफेसर
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मो- 8750820740
ईमेल - malviya.sourabh@gmail.com
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