- शिक्षा आज व्यापार बन गई है. ऐसी दशा में उसमें प्राणवत्ता कहां रहेगी? उपनिषदों या अन्य प्राचीन ग्रंथों की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता. आज विद्यालयों में छात्र थोक में आते हैं.
- शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है. व्यक्तित्व के उत्तम विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आदर्शों से युक्त होना चाहिए. हमारी माटी में आदर्शों की कमी नहीं है. शिक्षा द्वारा ही हम नवयुवकों में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत कर सकते हैं.
- मुझे शिक्षकों का मान-सम्मान करने में गर्व की अनुभूति होती है. अध्यापकों को शासन द्वारा प्रोत्साहन मिलना चाहिए. प्राचीनकाल में अध्यापक का बहत सम्मान था. आज तो अध्यापक पिस रहा है.
- किशोरों को शिक्षा से वंचित किया जा रहा है. आरक्षण के कारण योग्यता व्यर्थ हो गई है. छात्रों का प्रवेश विद्यालयों में नहीं हो पा रहा है. किसी को शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता. यह मौलिक अधिकार है.
- निरक्षरता का और निर्धनता का बड़ा गहरा संबंध है.
- वर्तमान शिक्षा-पद्धति की विकृतियों से, उसके दोषों से, कमियों से सारा देश परिचित है. मगर नई शिक्षा-नीति कहां है?
- शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए. ऊंची-से-ऊंची शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जानी चाहिए .
- मोटे तौर पर शिक्षा रोजगार या धंधे से जुड़ी होनी चाहिए. वह राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में सहायक हो और व्यक्ति को सुसंस्कारित करे.
अल्पसंख्यकवाद से मुक्ति पर विचार हो
-
-डॉ. सौरभ मालवीय
भारत एक विशाल देश है। यहां विभिन्न समुदाय के लोग निवास करते हैं। उनकी
भिन्न-भिन्न संस्कृतियां हैं, परन्तु सबकी नागरिकता एक ही ह...
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment