डॉ सौरभ मालवीय जब भी दिल्ली आते हैं, भोजन और बैठक का दौर चलता ही चलता है. शर्त है, हर बार एक तिहाई लोग नए होने चाहिए और लोकसंग्रह में अपने शिवानन्द द्विवेदी सहर तो माहिर हैं ही.
-संजीव सिन्हा
श्रद्धा भाव है श्राद्ध
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*डॉ. सौरभ मालवीय*
पितर हमारे किसी भी कार्य में अदृश्य रूप से सहायक की भूमिका अदा करते हैं,
क्योंकि अंतत: हम उन्हीं के तो वंशज हैं. ज्योतिष विज्ञान की मान...
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