Saturday, September 17, 2011

गंगा और भारत


गंगा शब्द का अर्थ तीव्रगामनी होता है लेकिन भारत में इस शब्द का अर्थ एक पवित्र नदी के रूप में है। इसका अर्थ पुरूषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति का साधन है यू तो संसार में हजारों नदियां हैं और भारत में भी एक सौ तेरह विपुल जल वाली नदियां है परन्तु भारतीय आस्था में गंगा को केवल नदी नहीं माना है इसे तो ब्रम्हद्रव, सूरसरी, त्रृपठगा, मंदाकिनी, पूर्णयसलीला, अमृत धारा, पावनपात, पतीतपावनी, कलमशनाषीनी, आनन्ददायिनी, शिवप्रिया, सकलदोषनिवारिणी यहां तक कि जगत जननी भी माना गया है। नदियों पर तो मानव की सभ्यता विकसित हुई है। सरस्वती, शतद्रु, चन्द्रभागा, तृष्णा, नील, दजला, फारात, गोदावरी, इरावती, वित्तसा, हडसन, टेम्स, सुधा, हवाग्रहो, यागयटीसी क्यांग, मीकांग इत्यादि नदियों ने मानवता की उत्थान और पतन की हजारों काहानियों देखी है। और कृतज्ञ मानवता ने इन नदियों के सम्मान में अपनी सारी प्रतिभा लगाकर के गीत गाये है।
लेकिन गंगा के महत्व के लिए एक ही यह बात काफी है कि विश्‍व की समग्र नदियों पर जितना लेखन वाचन हुआ है उसके हजार गुना से भी ज्यादा केवल गंगा पर हुआ है। भारत में गंगा को मोक्षदायिनी कहा गया है पुराण कथाओं के अनुसार भगवान शिव की लीला भूमि कैलाश मानसरोवर के तीन दिशाओं से तीन धाराएं निकली। पूर्व वाली धारा ब्रम्हपुत्र हो गयी, पश्चिम वाहिनी धारा सिंधु के सम्मान से गौरवान्वित हुई। उत्तर में तो साक्षात् शिव स्वयं कैलाश पर विराजमान है एवं दक्षिणी धारा पतित पावनी मां गंगा के नाम से जग विख्यात हो गयी। मान सरोवर से गो मुख तक अदृश्‍य ग्‍लेशियरों से गुजरती हुई यह देव धारा गोमुख में दृश्‍यमान होती है। तब तक यह शिव द्रव अनेक प्रकार के खनिज लवणों को अपने भीतर समाहित कर लेती है। जिसमें वैज्ञानिक दृष्टि से सल्फर और वैकटियोफाच भी प्रचुर होता है इसी के कारण यह पावन गंगा जल अनन्त काल तक शुद्ध बना रहता है। धरती का यह एक मात्र ऐसा जल है जिसमें यह गुण पाया जाता है आखिर हो भी क्यों न देव देवभगवान शिव के ऊपर जो विराजमान रहती है उन्ही की कृपा से इस पावन भागीरथी की यह विशिष्टता के प्रति संसार विनत है।
गोमुख से गंगा सागर तक 2525 कि.मी. लम्बे इस पावन धारा के सान्निध्य में भारत के 29 बड़े शहर 23 महानगर पालिकायें और 48 नगर पालिकायें बसी हुई है। दो विश्‍वविख्यात कुम्भ मेले लगते है हिमालय और गंगा के सायुज्य में आज तक लाखों-लाख महामानवों ने इतनी तपस्यायें की है कि वह पूरा वातावरण पवित्र वैचारिक तरंगों से आवेशित हो गया है। इसी कारण गंगा के सानिध्य में पहुचते ही एक विशेष प्रकार की आत्मिक आनन्द कि अनुभूति होती है। यह अनुभूति शब्दों में अवार्णनिय है। इसे साक्षात् जिया जा सकता है अनुभव किया जा सकता है और पीया जा सकता है। यह भाव इतना घनीभूत हो गया है कि केवल गंगा नाम के जप से भी लाखो-लाख लोग पुरूषार्थ को प्राप्त करते है। यह बात लोक विख्यात हो गयी है कि -
गंगा-गंगा जो नर कहही।
भूखा नंगा कभऊ न रहही।।
भगवान शिव का पूजन करते समय गंगा जी का स्मरण अनिवार्य माना गया है। ”हर-हर गंगे भवभय भंगे” यह मंत्र दिव्य फल दायी है। इन्हीं विशिष्टताओं के कारण ऋषियों ने समाज में यह व्यवस्था बना दी की पावन गंगा का दर्शन, स्पर्शन, प्राशन और मंज्जन चारो पाप निवारणी है। भारतीय संस्कृति में जिन लोगों को गंगा उपलब्ध नहीं है वे मंत्र के द्वारा पवित्र गंगा को स्मरण करते है। और उस अभिमंत्रित जल के प्रयोग से कृतपूर्ण अनुभव करते है मरते समय भी यह अंतिम साध होती है कि एक बूंद गंगा जल प्राप्त हो जाये। भारत में गंगा केवल नदी नहीं अपितु पवित्रता का ब्राण्ड़ नेम बन गयी है। गोदावरी और कावेरी को दक्षिण की गंगा कहते है तो ब्रम्हमपुत्र को पूर्व की गंगा।
इण्डोनेशिया की एक पवित्र नदी को भी गंगा ही कहा जाता है मारीशस के एक बड़े सरोवर का गंगा नाम रखा है और उस सरोवर के तट पर स्थित षिव मंदिर को मारीसेश्‍वर महादेव का नाम दिया गया है। भाषा विज्ञानियों के अनुसार मीकांग नदी मां गंगा का अपभ्रंश है। भारतीय संस्कृति में गंगा चिनमय मानी जाती है। हम यदि पवित्र गंगा जल को अपने घर में एक बोतल में रखे और आस्था के साथ पूजन करें तो बरसात के दिनों में जब गंगा में बाढ़ आती है तो अपने घर वाले उस बोतल का जल स्तर भी ऊंचा हो जाता है। इसीलिए यह गंगा चिनमय है।
प्रत्येक भारतीय के घर गंगा कायिक, मानसिक और वाचिक किसी न किसी रूप में सर्वतो भावेन विराजमान रहती है। गंगा के समक्ष पवित्र भाव से जो भी याचना की जाती है वह सभी मनोकामना पूर्ण होती है। परम पूज्य गोस्वामी जी ने तो गंगा को ”वरदायिनी वरदान” कहा है। गंगा के इस 2500 हजार कि. मी. के प्रवास में 1000 से भी अधिक छोटी बड़ी नदियां मिलती है।
अंतिम स्थल गंगा सागर के पावन तट पर सांख्य दर्शन के प्रणेता भगवान कपिल मुनि का आश्रम है मकर सक्रांति के अवसर पर लाखों-लाख लोग पवित्र गंगा सागर में स्नातकूत होते है। गंगा की महिमा सर्व विधि देवोपम है। इसकी तलहटी में 40 हजार प्रकार की वनस्पतियां पायी जाती है। विश्‍व की किसी भी नदी के तलहटी में इतने प्रकार की वनस्पति नहीं पायी जाती। जहां-जहां भगवान शंकर का निवास स्थान है वहां मां गंगा अपना प्रवाह बदल देती है उत्तर काशी और काशी में उत्तर वाहीन हो जाती है। गंगा भारत की जीवन रेखा है गंगा का अस्तित्व ही भारत है। यदि गंगा भारत में न रहें तो भारत मर जायेगा दुर्भाग्य से हमारी यह पावन देव नदी बड़े गन्दे नाले के रूप में बदलती जा रही है। भारत सरकार भी अनेक प्रयत्न इसकी सफाई के लिए की और लगभग 6 हजार करोड़ रूपये खर्च भी हो गये फिर भी गंगा का प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। सहारनपुर मेरठ, कानपुर, प्रयाग, काशी, बरौनी और हावड़ा में गंगा बड़ी दयनीय है। पूरा सरकारी बजट नेताओं और अधिकारियों के मकड़जाल द्वारा सोख लिया जाता है। मां गंगा इन्हें सद्बुद्धि दे कि वे इस राष्ट्रीय माता के प्रति अपना दायित्व समझे। हे मां तुमारी कीर्ति तो तीनों लोकों और 14 हो भुवन में निरंतर गूंज रही है तुम तो उनको भी तारोगी जो तुम्हें लूट रहे हैं या दुखी कर रहे हैं। तुम्हारा तो संकल्प ही है कि -
काहु ते न तारे जीन गंगा तुम तारे।
जेते तुम तारे ते ते नभ में न तारे है।।

काशी विश्‍वनाथ शम्भो, हर-हर महादेव गंगे।।

4 टिप्पणियाँ:

Mohit said...

Shubhkamnaye ..............
Mohit Shukla

Dr. Aditya Mishra said...
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Dr. Aditya Mishra said...

गंगा और भारत लेख बहुत अच्छा लगा...खासकर आपके लेख की अंतिम पंक्तियां...जिसमे आपने कहा है कि गंगा के कल्याण के लिए जो भी सरकारी बजट आता है वह नेताओं और अधिकारियों के द्वारा सोख लिया जाता है....अनुरोध है कि इस तरह के लेखों में नेताओं की घटिया भुमिका पर जबरदस्त प्रहार करें....
आपका - आदित्य मिश्रा-HYDERABAD

संतोष पाण्डेय said...

rochak, gyanvardhak jankari. happy deepavali.

भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है