Sunday, November 2, 2025

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सपा (समाजवादी पार्टी), कांग्रेस, और ओवैसी (AIMIM) मुसलमानों को “वोट बैंक” के रूप में इस्तेमाल करते हैं। यह एक आम राजनीतिक आरोप है, और इस पर कई तरह की राय मौजूद हैं और सच के करीब है.
“वोट बैंक राजनीति” का मतलब होता है — किसी समुदाय, जाति या धर्म विशेष को एक समूह के रूप में ट्रीट करके, उनके मुद्दों की बात करना मुख्यतः चुनावी समर्थन पाने के लिए, न कि जरूरी तौर पर उनके सामाजिक या आर्थिक विकास के लिए। 
यूपी की राजनीति में सपा ने परंपरागत रूप से मुसलमान + यादव (MY) समीकरण पर फोकस किया है। पार्टी खुद को “सेक्युलर” बताती है, पर विरोधी दलों का कहना है कि वह मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती है।
आज़ादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेस ने खुद को सभी धर्मों का प्रतिनिधि बताया, लेकिन उसने मुसलमानों के सामाजिक-आर्थिक विकास पर ठोस नीति की बजाय केवल सुरक्षा और सेक्युलरिज़्म के वादे किए।
ओवैसी खुद को मुसलमानों की आवाज़ बताते हैं, जबकि उनकी राजनीति मुख्यतः पहचान की राजनीति (identity politics) पर आधारित है, 
भारत में मुसलमानों की शिक्षा, रोज़गार, और सामाजिक स्थिति पर ध्यान अपेक्षाकृत कम रहा है।
अंत में सबका साथ सबका विकास मोदी ने सभी के सपनों में पँख लगाया है....!

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