Saturday, October 5, 2024

 नवरात्रि का संदेश : नारी सशक्तीकरण

-डॉ. सौरभ मालवीय 

भारतीय पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं। इनसे हमें ज्ञात होता है कि हमारी प्राचीन संस्कृति कितनी विशालसंपन्न एवं समृद्ध है। यदि नवरात्रि की बात करें तो यह पर्व भी भारतीय संस्कृति की महानता को दर्शाता है। विगत कुछ दशकों से देश में महिला सशक्तीकरण की बात हो रही है। कुछ लोग विदेशों के उदाहरण देते हैं कि वहां की महिलाएं सशक्त हैं तथा उन्हें बहुत से अधिकार प्राप्त हैं। किंतु ये लोग अपने देश के इतिहास पर चिंतन एवं मनन नहीं करते हैं। वास्तव में भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश हैजहां महिलाओं को पुरुषों के समान माना गया है। उदाहरण के लिए भारत में देवियों की पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पर उन्हें भी देवताओं के समान ही पूजा जाता हैअपितु देवियों का स्थान देवता से पहले आता है जैसे राधा कृष्णसीता राम आदि। भगवान शिव के साथ देवी पार्वती की भी पूजा की जाती है। भगवान राम के साथ देवी सीता की पूजा की जाती है तथा भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा की पूजा-अर्चना करने का विधान प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। हमारी मान्यता के अनुसार शक्ति की देवी दुर्गा है। धन एवं समृद्धि की देवी लक्ष्मी है तथा ज्ञान की देवी सरस्वती है। कहने का अभिप्राय यह है कि मनुष्य को जीवन में जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती हैवह सब उन्हें इन देवियों से ही तो प्राप्त होती हैं।    

 

नवरात्रि देवी दुर्गा को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व है। नवरात्रि का पर्व वर्ष में चार बार आता है अर्थात चैत्रआषाढ़अश्विनमाघ। इनमें से चैत्र एवं आश्विन माह में आने वाली नवरात्रि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। माघ एवं आषाढ़ माह में आने वाली नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता हैक्योंकि इनमें कोई सार्वजनिक उत्सव का आयोजन नहीं किया जाता है। आश्विन माह में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। इसका  आरंभ अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से होता है। इस दिवस पर शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना की जाती है। नवरात्रि में नौ दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

अर्थात देवी पहली शैलपुत्रीदूसरी ब्रह्मचारिणीतीसरी चंद्रघंटाचौथी कूष्मांडापांचवी स्कंध माताछठी कात्यायिनीसातवीं कालरात्रिआठवीं महागौरी एवं नौवीं देवी सिद्धिदात्री है।

 

शैलपुत्री

नवरात्रि के प्रथम दिन देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। मां शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं अत्यंत प्रिय हैंइसलिए उन्हें सफेद मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। यह प्रसाद गाय के शुद्ध घी से बनाया जाता है। सफेद रंग पवित्रता एवं शांति का प्रतीक माना जाता है। जीवन में सर्वाधिक पवित्रता एवं शांति का ही महत्व है। इनके बिना सब व्यर्थ है। देवी की साधना से सुख एवं समृद्धि में वृद्धि होती है।

 

ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दूसरे दिन देवी देवी दुर्गा के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर एवं पंचामृत का भोग लगाया जाता है। शक्कर जीवन में मिठास का प्रतीक है। जिस प्रकार भोजन में मिष्ठान का महत्व हैउसी प्रकार जीवन में मधुर वाणी का महत्व है। मृदु भाषी व्यक्ति सबका मन मोह लेते हैं। देवी की साधना से भाग्य में वृद्धि होती है तथा आयु भी लम्बी होती है।  

 

चंद्रघंटा

नवरात्रि के तीसरे दिन देवी दुर्गा के तृतीय स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। मां चंद्रघंटा को दुग्ध से बने मिष्ठान एवं खीर का भोग लगाया जाता है। खीर भी दुग्ध से बनाई जाती है। दुग्ध समृद्धि एवं अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। देवी की साधना से व्यक्ति बुरी शक्तियों से सुरक्षित रहता है।

 

कुष्मांडा

नवरात्रि के चौथे दिन देवी दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कुष्मांडा को मालपुये का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से मनुष्य की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

 

स्कंदमाता

नवरात्रि के पांचवे दिन देवी दुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है। स्कंदमाता को फल विशेषकर केला अत्यंत प्रिय हैइसलिए उन्हें केले का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से सुख एवं एश्वर्य में वृद्धि होती है। 

 

कात्यायनी

नवरात्रि के छठे दिन देवी दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कात्यायनी को मीठे पान एवं मधु का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से दुखों का नाश होता है तथा जीवन में सुख का आगमन होता है।

 

कालरात्रि

नवरात्रि के सातवें दिन देवी दुर्गा के सातवे स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। मां कालरात्रि को गुड़ अत्यंत प्रिय हैइसलिए उन्हें गुड़ से बने व्यंजन का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से समस्त नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है तथा सकारात्मकता में वृद्धि होती है। जीवन सुखी हो जाता है। 

 

महागौरी

नवरात्रि के आठवें दिन देवी दुर्गा के आठवे स्वरूप मां महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। मां महागौरी को नारियल अत्यंत प्रिय हैइसलिए उन्हें नारियल का भोग लगाया जाता है अर्थात नारियल अर्पित किया जाता है। देवी की साधना से व्यक्ति के रुके हुए कार्य पूर्ण होते हैं। 

 

सिद्धिदात्री

नवरात्रि के अंतिम दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन कन्या पूजन का विधान है। कन्याओं की पूजा की जाती है। उन्हें भोजन ग्रहण कराया जाता है। इसके पश्चात उनके चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। कन्याओं को प्रसाद के साथ उपहार भेंट किए जाते हैं। तदुपरांत देवी को काले चनेहलवा पूड़ी एवं खीर का भोग लगाया जाता है। देवी की साधना से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

वास्तव में नवरात्रि का पर्व नारी शक्ति का उत्सव है। प्राचीन काल से ही यह पर्व भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति का प्रतीक रहा है। कन्या पूजन इस बात को सिद्ध करता है कि भारतीय समाज में कन्या का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। कन्या भ्रूण हत्या तथा नवजात कन्याओं का वध कर देने जैसी बुराइयां हमारे समाज में कब और कैसे सम्मिलित हो गईंज्ञात ही नहीं हो पाया। निरंतर घटता लिंगानुपात अत्यंत चिंता का विषय बना हुआ है। विदेशों में भारत की जिन बुराइयों का उल्लेख कुछ लोग बड़े गर्व के साथ करते हैंवे बुराइयों तो हमारे समाज में कभी नहीं थीं। जिस समय विश्व के अधिकांश देश अशिक्षित एवं असभ्य थेउस समय हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी था। पुरुष ही नहींअपितु महिलाएं भी शिक्षित थीं। वे शास्त्रार्थ करती थींअस्त्र-शस्त्र चलाती थीं। देवियों ने कितने ही राक्षसों का अकेले वध किया है।

 

नारी को ईश्वर ने श्रेष्ठ बनाया है। अनेक मामलों में वह पुरुष से उच्च स्थान पर है। वह जन्मदात्री है। जिस प्रकार एक स्त्री अपने बालकों का पालन-पोषण कर लेती हैउस प्रकार एक पुरुष उनका पालन-पोषण नहीं कर पाता। उदाहरण के लिए यदि किसी की पत्नी की मृत्यु हो जाएतो वह न चाहते हुए भी इसलिए विवाह कर लेगा कि बच्चों का पालन-पोषण ठीक से हो जाएगा। यदि किसी के पति की मृत्यु हो जाएतो महिला जीविकोपार्जन के साथ-साथ बच्चों का पालन-पोषण भी कर लेती है। यदि दृष्टि डालें तो आसपास ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि ईश्वर ने नारी को अत्यंत सबल बनाया है। नारी प्रत्येक क्षेत्र में अपनी योग्यता एवं प्रतिभा का सफल प्रदर्शन कर रही है।

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