-डॉ.
सौरभ मालवीय
भारत एक विशाल राष्ट्र है।
इसका निर्माण सनातन संस्कृति
से हुआ है। अनेक संस्कृतियां
भारत रूपी गुलदान में विभिन्न प्रकार के पुष्पों की भांति रही हैं। इसका अर्थ यह है कि इन विभिन्न
संस्कृतियों, भाषाओं, धर्मों एवं पंथों आदि ने इस देश के
सांस्कृतिक सौन्दर्य में वृद्धि की है। यहां विविधता में भी एकता है। भारत शान्ति-
प्रिय देश है। यह अहिंसा में विश्वास रखता है। परन्तु देश में गुलामी एवं संघर्षों के बाद आजादी से लेकर एक लंबे कालखंड तक ‘बांटो और राज करो’ की नीति पर चलते हुए समाज,
जाति,
पंथ,
मत,
मजहब,
खान-पान,
वेशभूषा आदि के आधार पर विभाजन जारी
रहा। इसके परिणाम स्वरूप देश की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा पर गंभीर कुठाराघात हुआ।
भारत में हिंदूकुश से हिंद महासागर तक फैली हुई सांस्कृतिक एकता छिन्न-भिन्न हो गई और इसका लाभ देशद्रोही
शक्तियों ने उठाया।
केंद्र की भाजपा सरकार देश को
सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़ करना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लौह पुरुष नाम से विख्यात सरदार
वल्लभ भाई पटेल के 140वें जन्मदिन के अवसर पर
31 अक्टूबर,
2015 को शिक्षा
मंत्रालय के अंतर्गत ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ पहल की घोषणा की थी। इस योजना की प्रेरणा सरदार वल्लभ भाई
पटेल के जीवन दर्शन से ली गई है। देश की स्वतंत्रता और इसे गणराज्य
बनाने में सरदार वल्लभ भाई पटेल की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है,
जिसे भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान
देश के विभिन्न राजघरानों को भारत से पृथक न होकर इसमें सम्मिलित होने के लिए
तैयार किया था। उनकी सदैव से ही अभिलाषा थी कि एक
भारत श्रेष्ठ भारत का निर्माण हो। उन्होंने
आजीवन देश की एकता और अखंडता के लिए कार्य किया।
उनका कहना था कि एकता के बिना जनशक्ति
शक्ति नहीं है जब तक उसे ठीक तरह से सामंजस्य में ना लाया जाए और एकजुट ना किया
जाए और
तब यह आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है। वे यह भी कहते थे कि यह हर एक नागरिक
की जिम्मेदारी है कि वह यह अनुभव करे कि उसका देश स्वतंत्र है और उसकी स्वतंत्रता
की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। हर एक भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह एक
राजपूत है, एक सिख या जाट है या अन्य कुछ है।
उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक भारतीय है और उसे इस देश में हर अधिकार है, पर कुछ जिम्मेदारियां भी हैं। वे कहते
थे कि इस मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान
आत्माओं का निवास रहा है।
इस योजना का उद्देश्य विभिन्न राज्यों
और केंद्र शासित प्रदेशों की संस्कृति, परंपराओं और प्रथाओं का ज्ञान इस
रचनात्मक कदम के परिणामस्वरूप राज्यों के बीच बेहतर समझ और बंधन को बढ़ावा देना है,
जिससे भारत की एकता और अखंडता में
वृद्धि हो। इस कार्यक्रम के माध्यम से विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित
प्रदेशों की संस्कृति, आदतों और परंपराओं का साझा ज्ञान राज्यों के बीच संबंध और समझ
को बढ़ाकर देश की एकता और अखंडता में सुधार करना है।
अंतर-
सांस्कृतिक संपर्क से देश के सभी
नागरिकों के बीच 'एक राष्ट्र' की भावना पैदा करने में मदद मिलेगी।
वास्तव में ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत अभियान’ संपूर्ण देश को एक दूसरे के साथ पुनः
जोड़कर एक विराट सांस्कृतिक चेतना के पुनर्स्थापना का अभियान है। भारत की
सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि स्वयं में एक बहुलतावादी विचारों की समष्टि है। यही कारण
है कि एक ही भगवान राम को अयोध्या में रामलला के रूप में तो कर्नाटक में कोदंडराम अर्थात
धनुषधारी के रूप में पूजा जाता है। मथुरा के कान्हा,
द्वारका में द्वारकाधीश,
मराठों में गर्वीले विठोवा,
पुरी में जगन्नाथ जी तो राजपुताने में
श्रीनाथ जी के रूप में पूजित हैं। जिस समाज ने जैसी दृष्टि से देखा वैसी ही सृष्टि
का सृजन किया, यही भारतीय सांस्कृतिक चेतना की बहुलतावादी दृष्टि के एकत्व
का स्वरूप है। एक भारत श्रेष्ठ भारत के माध्यम से हम पुनः एक ऐसे ही समष्टि की
स्थापना करने जा रहे हैं।
इस कार्यक्रम के माध्यम से एक श्रेष्ठ
भारत की परिकल्पना की गई है। एक ऐसे राष्ट्र के रूप में भारत के
विचार का जश्न मनाना है, जिसमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों की विभिन्न सांस्कृतिक इकाइयां
एकजुट होती हैं और एक- दूसरे के साथ बातचीत करती हैं। विविध भाषाओं,
व्यंजनों,
संगीत,
नृत्य,
रंगमंच,
फिल्मों,
हस्तशिल्प,
खेल,
साहित्य,
त्योहारों,
चित्रकला,
मूर्तिकला आदि की यह शानदार अभिव्यक्ति
लोगों को बंधन और भाईचारे की सहज भावना को आत्मसात करने में सक्षम बनाएगी।
हमारे लोगों को विशाल भूभाग में फैले
आधुनिक भारतीय राज्य के निर्बाध अभिन्न अंग के बारे में जागरूक करना,
जिसकी मजबूत नींव पर देश की भू-राजनीतिक ताकत से सभी को लाभ सुनिश्चित
होता है। विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के घटकों के बीच बढ़ते अंतर-संबंध के बारे में बड़े पैमाने पर
लोगों को प्रभावित करना, जो राष्ट्र-निर्माण की भावना के लिए बहुत
महत्वपूर्ण है। इन
घनिष्ठ अंतर- सांस्कृतिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से समग्र रूप से राष्ट्र
के लिए जिम्मेदारी और स्वामित्व की भावना पैदा करना,
क्योंकि इसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से
अंतर- निर्भरता
मैट्रिक्स का निर्माण करना है। एक ही समय में राष्ट्र की विविधता और
एकता का जश्न मनाना है। लोगों के बीच समझ और प्रशंसा की भावना पैदा करना और राष्ट्र
में एकता की एक समृद्ध मूल्य प्रणाली को सुरक्षित करने के लिए आपसी संबंध बनाना है।
‘एक भारत
श्रेष्ठ भारत’ कार्यक्रम के अंतर्गत अनेक गतिविधियां
की जाती हैं। इसके अंतर्गत पांच पुरस्कार विजेता पुस्तकों और कविता,
लोकप्रिय लोकगीतों का एक भाषा से
भागीदार राज्य की भाषा में अनुवाद किया गया है।
साझेदार राज्यों की पाक पद्धतियों को
सीखने के लिए पाक कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं।
साझेदार राज्यों से आने वाले आगंतुकों
के लिए होमस्टे की व्यवस्था की गई है। पर्यटकों के लिए राज्य दर्शन की सुविधा
उपलब्ध करवाई गई है। अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पारंपरिक पोशाक को
स्वीकार करना भी इसमें सम्मिलित है। भागीदार राज्यों के साथ पारंपरिक कृषि
पद्धतियों जैसी सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा रहा है।
किसी भी भू-भाग अथवा देश की विभिन्न संस्कृतियों
को एक सूत्र में बांधे रखने का कार्य आपसी प्रेम,
सद्भाव एवं भाईचारे की भावना से ही
संभव है। भारत में एक हजार से भी अधिक भाषाएं और बोलियां हैं। यहां कुछ कोस की दूरी पर बोली बदल
जाती है। भाषाएं ही नहीं, अपितु यहां अनेक धर्म भी हैं। यहां विभिन्न धर्मों को मानने वाले
लोग रहते हैं। इनकी संस्कृति, सभ्यता,
रीति-रिवाज,
भाषा,
व्यंजन,
वेशभूषा आदि भी एक-दूसरे से भिन्न है,
परन्तु सब मिलजुल कर रहते हैं। एक-दूसरे के त्योहारों में सम्मिलित होते
हैं। ऐसा
करना आवश्यक भी है, क्योंकि एक दूसरे से मिलने जुलने से ही उन्हें समझने का अवसर
प्राप्त होता है। देश को श्रेष्ठ भारत बनाने के लिए सभी देशवासियों का सहयोग
आवश्यक है। विविधता में एकता के लिए आवश्यक है कि विभिन्न संस्कृतियों
के लोग आपस में मिलजुल कर रहें। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि हम एक
दूसरे की आस्थाओं एवं उनकी धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करें। जब हम सामने वाले की आस्था का सम्मान
करेंगे, तो
वह भी हमारी आस्था का सम्मान करेगा। ऐसा करने से आपपास में प्रेम और
सद्भाव की भावना उत्पन्न होगी। सरकार की इस योजना के माध्यम से देशवासियों
के मन में अपने- अपने धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्म के लोगों के प्रति भी प्रेम
एवं सम्मान की भावना विकसित हो सकेगी।
नि:संदेह आज के समय
में ऐसी योजनाओं की
अत्यधिक आवश्यकता है।
लेखक –
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि. भोपाल में सहायक
प्राध्यापक है।
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