गिरकर उठना, उठकर चलना... यह क्रम है संसार का... कर्मवीर को फ़र्क़ न पड़ता किसी जीत और हार का... क्योंकि संघर्षों में पला-बढ़ा... संघर्ष ही मेरा जीवन...
-डॉ. सौरभ मालवीय
डॉ. सौरभ मालवीय
अपनी बात
सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र-निर्माण की तीव्र आकांक्षा के कारण छात्र जीवन से ही सामाजिक सक्रियता. बिना दर्शन के ही मैं चाणक्य और डॉ हेडगेवार से प्रभावित हूं. समाज और राष्ट्र को समझने के लिए "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया" विषय पर शोध पूर्ण किया है, परंतु सृष्टि रहस्यों के प्रति मेरी आकांक्षा प्रारंभ से ही है.
अल्पसंख्यकवाद से मुक्ति पर विचार हो
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-डॉ. सौरभ मालवीय
भारत एक विशाल देश है। यहां विभिन्न समुदाय के लोग निवास करते हैं। उनकी
भिन्न-भिन्न संस्कृतियां हैं, परन्तु सबकी नागरिकता एक ही ह...
मेरे मानस के राम : अध्याय 45
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राम रावण युद्ध जब रामचंद्र जी के साथ सभी दिव्य शक्तियों के सहयोग और संयोग
की बात की जाती है तो उसका अभिप्राय यह समझना चाहिए कि न्याय, धर्म और सत्य
जिसके ...
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