Tuesday, December 17, 2019

विकास के पथ पर भारत


मित्रवर डॉ. सौरभ मालवीय द्वारा लिखित पुस्तक प्राप्त हुई। पुस्तक मोदी सरकार पार्ट -1 की प्रमुख योजनाओं पर केंद्रित है। यह पुस्तक नये भारत के निर्माण का जीवांत दस्तावेज है. जिसमें खेत, खलिहान, गाँव की पगडण्डी से लेकर राजपथ की बदलतीं तस्वीरों का बिंब है. पुस्तक योजना निर्माण में 21वी सदी की बुनियादी जरूरतों के लिहाज से सरकार के दृटिकोण की समीक्षा करती है. गहन शोध आधारित यह पुस्तक संग्रहणीय और पठनीय है. 

बहुत बहुत शुभकामनाएं।
-बिजेंद्र शुक्ला 

Sunday, October 20, 2019

पुस्तक भेंट आप कैसे हैं?

मेरठ के सांसद श्री राजेन्द्र अग्रवाल से भेंट कर उन्हें अपनी पुस्तक 'विकास के पथ पर भारत' भेंट की.

Tuesday, October 15, 2019

पुस्तक भेंट




महामहिम राज्यपाल-मध्यप्रदेश
मोदी सरकार पार्ट-1 पर केंद्रित प्रमुख योजनाओं का लेख-जोखा समिति.  पुस्तक 'विकास के पथ पर भारत' भेंट एवं चर्चा.

Thursday, August 29, 2019

पुस्तक समीक्षा

  


Saturday, August 17, 2019

टीवी पर लाइव









स्मृतियों में अटलजी
अटल..... अनन्त

Saturday, July 20, 2019

शुभकामनाएं

  


आदरणीय लाल जी टंडन जी को मध्यप्रदेश का राज्यपाल बनाए जाने पर हार्दिक शुभकामनाएं


Saturday, July 13, 2019

सानिध्य का सुख

 

सानिध्य का सुख 
माननीया पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन।
प्रोफेसर संजय द्विवेदी

Friday, June 21, 2019

पुस्तक भेंट

 

पुस्तक भेंट 
'विकास के पथ पर भारत'
श्री प्रभात झा, वरिष्ठ पत्रकार एवं सांसद

Wednesday, June 12, 2019

पुस्तक भेंट

जिनके स्नेह और मार्गदर्शन में पला-बढ़ा आ.सूबेदार जी,श्री बालमुकंद जी ... सानिध्य प्रो.रजनीश शुक्ला, प्रो.मदन मणि त्रिपाठी, श्री शैलेन्द्र मणि। इस अवसर पर अपनी पुस्तक 'विकास के पथ पर भारत' भेंट की।

Tuesday, June 11, 2019

पुस्तक भेंट




सानिध्य सुख आ.प्रभात झा जी और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जी। इस अवसर पर अपनी पुस्तक 'विकास के पथ पर भारत' भेंट की।  

विकास के पथ पर भारत - अमेज़न पर

 

आज 'विकास के पथ पर भारत' पुस्तक के लेखक, चर्चित मीडिया गुरु डॉ. सौरभ मालवीय का हमारे कार्यालय पर आगमन हुआ. इस अवसर की एक तस्वीर. डॉ मालवीय के साथ हैं यश पब्लिकेशन्स के संस्थापक शांति स्वरूप शर्मा और प्रबंध निदेशक जतिन भारद्वाज.
पुस्तक अमेज़न पर उपलब्ध है - https://amzn.to/2XECM51

Wednesday, May 29, 2019

सेमिनार -सोशल मीडिया का भविष्य ?

23 नवम्बर 2018 - देहरादून
न्‍यू मीडिया पर हिमगिरी ज़ी यूनिवर्सिटी, देहरादून में आयोजित संगोष्‍ठी के दौरान। 
#HimgiriZeeUniversity






सानिध्य- भारत सरकार के गृहमंत्री आदरणीय श्री राजनाथ सिंह!


अटल रत्न सम्मान


25-12-2018

ABP NEWS LIVE



Tuesday, May 28, 2019

संवाद का स्वराज


देशहित में चर्चा होना संवाद का स्वराज 

इंदौर। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल और इंदौर प्रेस क्लब के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय संविमर्श 'संवाद का स्वराज' का आयोजन इंदौर प्रेस क्लब स्थित सभागार में शुक्रवार,11 मार्च 2016 को अपरान्ह 03.30 बजे किया गया।इस राष्ट्रीय संविमर्श के मुख्य अतिथि केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) के कुलपति डॉ. कुलदीपचन्द्र अग्निहोत्री जी थे 


11 march 2016

सौरभ मालवीय


धारा 370


भारतीय शोध दृष्टि


राष्ट्रीय संविमर्श
भारतीय शोध दृष्टि,22-23 अप्रैल-भोपाल
'अध्ययन और अनुसंधान में प्रमाण का भारतीय अधिष्ठान' इस विषय पर पुनरुत्थान विद्यापीठ -अहमदाबाद की कुलपति आदरणीया इन्दुमति काटदरे जी का व्यख्यान और मेरे द्वारा सत्र संचालन।

राष्ट्रवाद और मीडिया


मन की बात

प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम का सीधा प्रसारण और समीक्षा देखिये लोक सभा टीवी पर आज सुबह 10.50 से 12 बजे तक.
30,4,2017

मोदी सरकार की योजनाओं पर जमीनी नजर डालने वाली किताब है ‘विकास के पथ पर भारत’

 

भाजपा मुखपत्र 
कलम संदेश 
विकास के पथ पर भारत’ तथ्यात्मक सामग्री एवं गहन आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर लिखी गई किताब है। समसामयिक विषयों पर नजर रखने वाले पाठकों के लिए यह किताब किसी गोल्डन सोर्स से कम नहीं है।
किताब को डॉ. सौरभ मालवीय ने लिखा है जो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक हैं। किताब में लेखक ने मोदी सरकार की 34 योजनाओं की जमीनी हकीकत का विश्लेषण किया है। सभी योजनाओं पर संबंधित मंत्रालयों से मिले आंकड़ों के आधार पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
पुस्तक में डॉ. मालवीय ने राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, परंपरागत खेती विकास योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-नाम, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, दीनदयाल अंत्योदय योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय आयुश मिशन, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना, प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, सेतु भारतम योजना, ग्राम उदय से भारत उदय अभियान, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, स्मार्ट सिटी योजना, शादी शगुन योजना, हज नीति, नमामि गंगे योजना, स्मार्ट गंगा सिटी परियोजना, श्रमिक कल्याण की योजनाएं, पूर्वोत्तर के लिए योजनाएं, प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना, वन धन योजना, दिव्यांगों के लिए योजनाएं, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान और संकल्प से सिद्धी योजनाओं का उल्लेख किया है।
http://www.kamalsandesh.org/hi/the-land-that-is-looking-at-the-plans-of-the-modi-government-is-india-on-the-path-of-development/

सरकार की योजनाओं के मूल्यांकन का दावा

दैनिक जागरण 
देश में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं। ऐसे में सरकार व प्रधानमंत्री के कामकाज का मूल्यांकन करती पुस्तकों के आने का क्रम जारी है। इसी कड़ी में डॉ सौरभ मालवीय की पुस्तक ‘विकास के पथ भारत’ भी आई है। ये वर्तमान केंद्र सरकार की योजनाओं और नीतियों के विषय में न केवल सरल ढंग से विस्तृत जानकारी देती है, बल्कि उनके क्रियान्वयन और परिणाम का मूल्यांकन भी करती है। मई 2014 में आकार लेने के बाद इस सरकार ने अनेक योजनाए शुरू की हैं, जिनको लेकर कई तरह के दावे भी उसकी तरफ से किए जाते रहे हैं, डॉ मालवीय की यह पुस्तक उन दावों की पड़ताल करती हुई प्रतीत होती है।
160 पन्नों की इस किताब में कुल 34 अध्याय हैं, जिनमें कृषि, स्वास्थ्य, सुरक्षा, आवास, आधारभूत ढांचे के निर्माण, रोजगार आदि विविध क्षेत्रों से सम्बंधित सरकार की अलग-अलग योजनाओं पर बात की गयी है। ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’ के अध्याय से पुस्तक की शुरुआत होती है और आगे भी कृषि क्षेत्र से सम्बंधित योजनाओं पर लेखक ने विशेष ध्यान दिया है। इसके अलावा महिलाओं से जुड़ी योजनाओं जैसे बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, मातृत्व वंदना योजना, मातृत्व सुरक्षा अभियान, महिला शक्ति केंद्र योजना, शादी शगुन योजना आदि का भी सविस्तार वर्णन किया गया है। इस पुस्तक का एक मजबूत पक्ष यह है कि इसमें कई ऐसी छोटी-छोटी योजनाओं के विषय में बताया गया है, जिनका शायद बहुत से आम लोगों को नाम भी न मालूम हो। लेकिन इसी के साथ किताब का एक कमजोर पक्ष भी है, वो ये कि इसमें कई प्रमुख योजनाओं पर अपेक्षित विस्तार के साथ चर्चा नहीं की गयी है जैसे कि मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मुद्रा योजना आदि। ये योजनाएं अपने आप में बहुत महत्व रखती हैं और इनको लेकर सरकार की तरफ से दावे भी खूब किए जाते हैं, अतः इनपर एक-एक स्वतंत्र अध्याय रखा जा सकता था जो कि नहीं है। स्वच्छ भारत अभियान पर भी एक स्वतंत्र और विस्तृत अध्याय की कमी खलती है।
बहरहाल, सरकार की योजनाओं और नीतियों पर लिखते वक्त किसी भी लेखक के लिए संतुलित दृष्टिकोण रखना एक बड़ी चुनौती होती है। डॉ मालवीय अपनी पुस्तक में इस गुण का संतोषजनक ढंग से निर्वाह करते हैं। वे हवा में कोई बात नहीं कहते, बल्कि हर बात के साथ तथ्यात्मक आधार भी प्रस्तुत करते हैं। सरकार की योजनाओं के सकारात्मक पक्षों के साथ-साथ नकारात्मक पक्षों को भी उनकी कलम बाखूबी उजागर करती है। चुनाव के इस दौर में पिछले पांच साल में वर्तमान सरकार ने क्या किया, इस प्रश्न की पड़ताल करने के इच्छुक लोगों के लिए यह पुस्तक विशेष रूप से पठनीय है।  
– पीयूष द्विवेदी
समीक्ष्य कृति – विकास के पथ पर भारत
लेखक– सौरभ मालवीय
मूल्य– 185 रुपये
प्रकाशक – यश पब्लिकेशन्स, दिल्ली

Monday, May 27, 2019

‘विकास के पथ पर भारत’


पुस्तक की प्रस्तावना वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सिन्हा
सीनियर डिप्टी  एडिटर
द हिंदू बिजनेस लाइन की कलम से....
विकास के आंकड़ों में आम आदमी हमेशा ही एक सवाल का जवाब ढ़ूंढता है। सवाल ये है कि इन आंकड़ों का मेरे लिए क्या मतलब है? सवाल तब और भी अहम बन जाता है कि एक ही दिन अखबार की दो सुर्खियां अलग-अलग कहानी कहती हैं। पहली सुर्खी है, भारत दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाला देश बना या फिर भारत अगले दो वर्षों तक सबसे तेजी से विकास करने वाला बना रहेगा देश, वहीं दूसरी सुर्खी है अरबपतियों की संपत्ति रोजाना औसतन 2200 करोड़ रुपये बढी, भारी गरीबी में जी रही 10 फीसदी आबादी लगातार 14 सालों से कर्ज में है डूबी। ऐसे में ये सवाल और भी अहम बन जाता है कि 7.3, 7.5 या 7.7 फीसदी की सालाना विकास दर के मायने आबादी के एक बहुत ही छोटे हिस्से तक सीमित है, या फिर इनका फायदा समाज में आखिरी पायदान के व्यक्ति को भी मिल पा रहा है या नहीं?
ऐसे ही सवालों का जवाब जानने के लिए ये जरुरी हो जाता है कि विकास को सुर्खी से आगे जन-जन तक पहुंचाने के लिए आखिरकार सरकार ने किया क्या, या फिर जो किया वो पहले से किस तरह से अलग था? इस सवाल का जवाब जानने के लिए आइए आपको 2014 में वापस लिए चलते हैं। लालकिले की प्राचीर से अपने पहले स्वतंत्रता दिवस भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तीय समावेशन की नयी योजना की घोषणा की। इसके तहत हर परिवार के लिए कम से कम एक बैंक खाता खोले जाने की बात कही गयी। घोषणा के ठीक 14 दिन के भीतर योजना की शुरुआत भी हो गयी। ऐसा नहीं था कि वित्तीय समावेशन की पहले कोई योजना नहीं थी, लेकिन पहले जहां जोर निश्चित आबादी वाले गांव के लिए बैंकिंग सुविधा शुरु करने की बात थी, वहीं नयी योजना में पहले हर परिवार (ग्रामीण व शहरी, दोनो) और अब हर वयस्क को बैंकिंग के दायरे में लाने का लक्ष्य है।
बैंक खाता तो खुला ही, ये भी सुनिश्चित करने की पहल हुई कि खाते में पैसा आता रहे। इसीलिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का पैसा सीधे-सीधे लाभार्थियों तक पहुंचाने के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल किया जाने लगा। फायदा लक्ष्य तक पहुंचने, इसके लिए जैम (जनधन-आधार-मोबाइल) को अमल में लाया गया। याद कीजिए, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के उस बयान का जिसमें कहा गया था कि दिल्ली से चलने वाला एक रुपये में महज 15 पैसा ही जरुरतमंदों तक पहुंच पाता है। अब कहानी ये है कि जैम के जरिए सरकार ने अपने कार्यकाल में 31 दिसंबर 2018 तक विभिन्न सरकारी योजनाओं में 92 हजार करोड़ रुपये बचाने में कामयाबी हासिल की है और ये संभव हो पाया जैम के सहारे चलने वाले प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण यानी डीबीटी के जरिए। मतलब योजनाएं सिर्फ बनी ही नहीं या फिर पुरानी में बदलाव ही नहीं किया गया, बल्कि कोशिश ये कही गयी कि दिल्ली से चले रुपये का एक-एक पाई लक्ष्य तक पहुंचे। साथ ही सीमित संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो सके।
जन-धन से जन सुरक्षा का आधार तैयार हुआ। जन सुरक्षा यानी कम से कम प्रीमियम पर बीमा (जीवन और गैर-जीवन) सुरक्षा। महज एक रुपये प्रति महीने पर दुर्घटना बीमा और एक रुपये प्रति दिन से भी कम प्रीमियम पर जीवन बीमा ने सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में बडा बदलाव किया। और तो और इन सुरक्षा के लिए भारी-भरकम कागजी कार्रवाई या दफ्तर के लगातार चक्कर काटने की जरुरत नहीं। तकनीक के इस्तेमाल के जरिए सुरक्षा हासिल करने के लेकर दावे के निबटारे को आसान बना दिया गया है। जन सुरक्षा के बाद अब कोशिश है ज्यादा से ज्यादा लोगों को वित्तीय तौर पर साक्षऱ बनाने की।मतलब साफ है जन की योजनाएं सही मायने में जब तक जनता की जिंदगी के ज्यादा से ज्यादा पहलुओं को नहीं छुएगी, तब तक उसकी कोई सार्थकता नहीं होगी।
जन-धन सरकारी योजनाओं के बदलते स्वरुप का एक उदाहरण है। सच तो यही है कि किसी भी सरकारी योजना की सार्थकता इस बात पर निर्भर करती है कि कितनी जल्दी वो सरकारी सोच से आम आदमी की सोच में अपनी जगह बना पाती है। साथ ही जरुरी ये भी है कि सरकारी योजनाओं को महज पैसा बांटने का एक माध्यम नही माना जाए, बल्कि ये देखना भी जरुरी होगा कि वो किस तरह व्यक्ति से लेकर समाज, राज्य और फिर देश की बेहतरी मे योगदान कर सके। ये भी बेहतर होगा कि मुफ्त में कुछ भी बांटने का सिलसिला बंद होना चाहिए।क्या ऐसा सब कुछ पिछले साढे चार साल के दौरान शुरु की गयी योजनाओं में देखने को मिला है, इसका जवाब काफी हद तक हां में होगा। एक और बात। राज्यों के बीच भी नए प्रयोगों के साथ योजनाएं शुरु करने की प्रतिस्पर्धा चल रही है और सुखद निष्कर्ष ये है कि चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ने शुरु की हो, उसकी उपयोगिता को दूसरी राजनीतिक दलों की सरकारों ने पहचाना। तेलंगाना की रायतु बंधु योजना और ओडीशा की कालिया योजना को ही ले लीजिए। किसानों की जिंदगी बदलने की इन योजनाओं का केद्र सरकार अध्ययन कर रही है, ताकि राष्ट्रीय स्तर की योजना में इन योजनाओं की कुछ खास बातों को शामिल किया जा सके।
विभिन्न सरकारी योजनाओं को शुरु करने का लक्ष्य यही है कि विकास का फायदा हर किसी को मिले यानी विकास समावेशी हो। कुछ ऐसे ही पैमानों के आधार पर यहां उल्लेखित 36 योजनाओं का आंकलन किया जाना चाहिए। फिर ये सवाल उठाया जा सकता है कि क्या ये योजनाएं कामयाब है? अगर सरकार कहे कामयाब तो असमानता को लेकर जारी नयी रिपोर्ट (उपर लिखित दूसरी सुर्खी का आधार) को सामने रख चर्चा करने से नहीं हिचकना चाहिए। देखिए एक बात तो तय है कोई कितना भी धर्म-जाति-संप्रदाय को आधार बनाकर राजनीति कर ले लेकिन मतदाता ईवीएम पर बटन दबाने के पहले एक बार जरुर सोचता है कि अमुक उम्मीदवार ने विकास के लिए क्या कुछ किया है, या फिर क्या वो आगे विकास के बारे में कुछ ठोस कर सकेगा। मत भूलिए सरकारी योजनाएं आपके ही पैसे से चलती हैं और इन योजनाओं की सार्थकता पर अपना पक्ष रखने के लिए हर पांच साल में आपको एक मौका तो मिलता ही है।
ऐसी सोच विकसित करने के लिए जरुरी है कि आपके समक्ष सरकारी योजनाओं का ब्यौरा सरल और सहज तरीके से पेश किया जाए। उम्मीद है कि प्रस्तुत पुस्तक विकास के पथ पर भारत इस काम में मदद करेगा। उम्र से युवा लेकिन विचारों से प्रौढ़ डॉक्टर सौरभ मालवीय ने गहन अध्ययन के बाद केंद्र व राज्य सरकारों की 36 प्रमुख योजनाओं को समझाने की एक सार्थक पहल की है। सौरभ भाई ऊर्जावान हैं और निरंतर कुछ-ना-कुछ करते रहते हैं, इसीलिए यकिन रखिए वो जल्द ही बाकी कई दूसरी प्रमुख सरकारी योजनाओं को लेकर मार्गदर्शिका लेकर आपके समक्ष उपस्थित होंगे।
शुभकामनाएं!
शिशिर सिन्हा
सीनियर डिप्टी  एडिटर
द हिंदू बिजनेस लाइन


शोध उपाधि

विषय - 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया'
मा. वेंकैया नायडू जी (उपराष्ट्रपति, भारत सरकार)
श्री शिवराज सिंह चौहान (मख्यमंत्री, मध्यप्रदेश)


भोपाल

2,5,2016 -भोपाल 

जीवन ना तो भविष्य में है ना ही अतीत में, जीवन तो केवल वर्तमान में है.


द हिंदू बिजनेस लाइन की कलम से

 


पुस्तक की प्रस्तावना वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सिन्हा
सीनियर डिप्टी  एडिटर
द हिंदू बिजनेस लाइन की कलम से.... 

विकास के आंकड़ों में आम आदमी हमेशा ही एक सवाल का जवाब ढ़ूंढता है। सवाल ये है कि इन आंकड़ों का ‘मेरे’ लिए क्या मतलब है? सवाल तब और भी अहम बन जाता है कि एक ही दिन अखबार की दो सुर्खियां अलग-अलग कहानी कहती हैं। पहली सुर्खी है, ‘भारत दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाला देश बना’ या फिर ‘भारत अगले दो वर्षों तक सबसे तेजी से विकास करने वाला बना रहेगा देश,’ वहीं दूसरी सुर्खी है ‘अरबपतियों की संपत्ति रोजाना औसतन 2200 करोड़ रुपये बढी, भारी गरीबी में जी रही 10 फीसदी आबादी लगातार 14 सालों से कर्ज में है डूबी’। ऐसे में ये सवाल और भी अहम बन जाता है कि 7.3, 7.5 या 7.7 फीसदी की सालाना विकास दर के मायने आबादी के एक बहुत ही छोटे हिस्से तक सीमित है, या फिर इनका फायदा समाज में आखिरी पायदान के व्यक्ति को भी मिल पा रहा है या नहीं? 
ऐसे ही सवालों का जवाब जानने के लिए ये जरुरी हो जाता है कि विकास को सुर्खी से आगे जन-जन तक पहुंचाने के लिए आखिरकार सरकार ने किया क्या, या फिर जो किया वो पहले से किस तरह से अलग था? इस सवाल का जवाब जानने के लिए आइए आपको 2014 में वापस लिए चलते हैं। लालकिले की प्राचीर से अपने पहले स्वतंत्रता दिवस भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तीय समावेशन की नयी योजना की घोषणा की। इसके तहत हर परिवार के लिए कम से कम एक बैंक खाता खोले जाने की बात कही गयी। घोषणा के ठीक 14 दिन के भीतर योजना की शुरुआत भी हो गयी। ऐसा नहीं था कि वित्तीय समावेशन की पहले कोई योजना नहीं थी, लेकिन पहले जहां जोर निश्चित आबादी वाले गांव के लिए बैंकिंग सुविधा शुरु करने की बात थी, वहीं नयी योजना में पहले हर परिवार (ग्रामीण व शहरी, दोनो) और अब हर वयस्क को बैंकिंग के दायरे में लाने का लक्ष्य है। 
बैंक खाता तो खुला ही, ये भी सुनिश्चित करने की पहल हुई कि खाते में पैसा आता रहे। इसीलिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का पैसा सीधे-सीधे लाभार्थियों तक पहुंचाने के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल किया जाने लगा। फायदा लक्ष्य तक पहुंचने, इसके लिए जैम (जनधन-आधार-मोबाइल) को अमल में लाया गया। याद कीजिए, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के उस बयान का जिसमें कहा गया था कि दिल्ली से चलने वाला एक रुपये में महज 15 पैसा ही जरुरतमंदों तक पहुंच पाता है। अब कहानी ये है कि जैम के जरिए सरकार ने अपने कार्यकाल में 31 दिसंबर 2018 तक विभिन्न सरकारी योजनाओं में 92 हजार करोड़ रुपये बचाने में कामयाबी हासिल की है और ये संभव हो पाया जैम के सहारे चलने वाले प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण यानी डीबीटी के जरिए। मतलब योजनाएं सिर्फ बनी ही नहीं या फिर पुरानी में बदलाव ही नहीं किया गया, बल्कि कोशिश ये कही गयी कि दिल्ली से चले रुपये का एक-एक पाई लक्ष्य तक पहुंचे। साथ ही सीमित संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो सके।
जन-धन से जन सुरक्षा का आधार तैयार हुआ। जन सुरक्षा यानी कम से कम प्रीमियम पर बीमा (जीवन और गैर-जीवन) सुरक्षा। महज एक रुपये प्रति महीने पर दुर्घटना बीमा और एक रुपये प्रति दिन से भी कम प्रीमियम पर जीवन बीमा ने सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में बडा बदलाव किया। और तो और इन सुरक्षा के लिए भारी-भरकम कागजी कार्रवाई या दफ्तर के लगातार चक्कर काटने की जरुरत नहीं। तकनीक के इस्तेमाल के जरिए सुरक्षा हासिल करने के लेकर दावे के निबटारे को आसान बना दिया गया है। जन सुरक्षा के बाद अब कोशिश है ज्यादा से ज्यादा लोगों को वित्तीय तौर पर साक्षऱ बनाने की।मतलब साफ है जन की योजनाएं सही मायने में जब तक जनता की जिंदगी के ज्यादा से ज्यादा पहलुओं को नहीं छुएगी, तब तक उसकी कोई सार्थकता नहीं होगी।
जन-धन सरकारी योजनाओं के बदलते स्वरुप का एक उदाहरण है। सच तो यही है कि किसी भी सरकारी योजना की सार्थकता इस बात पर निर्भर करती है कि कितनी जल्दी वो सरकारी सोच से आम आदमी की सोच में अपनी जगह बना पाती है। साथ ही जरुरी ये भी है कि सरकारी योजनाओं को महज पैसा बांटने का एक माध्यम नही माना जाए, बल्कि ये देखना भी जरुरी होगा कि वो किस तरह व्यक्ति से लेकर समाज, राज्य और फिर देश की बेहतरी मे योगदान कर सके। ये भी बेहतर होगा कि मुफ्त में कुछ भी बांटने का सिलसिला बंद होना चाहिए।क्या ऐसा सब कुछ पिछले साढे चार साल के दौरान शुरु की गयी योजनाओं में देखने को मिला है, इसका जवाब काफी हद तक हां में होगा। एक और बात। राज्यों के बीच भी नए प्रयोगों के साथ योजनाएं शुरु करने की प्रतिस्पर्धा चल रही है और सुखद निष्कर्ष ये है कि चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ने शुरु की हो, उसकी उपयोगिता को दूसरी राजनीतिक दलों की सरकारों ने पहचाना। तेलंगाना की रायतु बंधु योजना और ओडीशा की कालिया योजना को ही ले लीजिए। किसानों की जिंदगी बदलने की इन योजनाओं का केद्र सरकार अध्ययन कर रही है, ताकि राष्ट्रीय स्तर की योजना में इन योजनाओं की कुछ खास बातों को शामिल किया जा सके।
विभिन्न सरकारी योजनाओं को शुरु करने का लक्ष्य यही है कि विकास का फायदा हर किसी को मिले यानी विकास समावेशी हो। कुछ ऐसे ही पैमानों के आधार पर यहां उल्लेखित 36 योजनाओं का आंकलन किया जाना चाहिए। फिर ये सवाल उठाया जा सकता है कि क्या ये योजनाएं कामयाब है? अगर सरकार कहे कामयाब तो असमानता को लेकर जारी नयी रिपोर्ट (उपर लिखित दूसरी सुर्खी का आधार) को सामने रख चर्चा करने से नहीं हिचकना चाहिए। देखिए एक बात तो तय है कोई कितना भी धर्म-जाति-संप्रदाय को आधार बनाकर राजनीति कर ले लेकिन मतदाता ईवीएम पर बटन दबाने के पहले एक बार जरुर सोचता है कि अमुक उम्मीदवार ने विकास के लिए क्या कुछ किया है, या फिर क्या वो आगे विकास के बारे में कुछ ठोस कर सकेगा। मत भूलिए सरकारी योजनाएं आपके ही पैसे से चलती हैं और इन योजनाओं की सार्थकता पर अपना पक्ष रखने के लिए हर पांच साल में आपको एक मौका तो मिलता ही है।
ऐसी सोच विकसित करने के लिए जरुरी है कि आपके समक्ष सरकारी योजनाओं का ब्यौरा सरल और सहज तरीके से पेश किया जाए। उम्मीद है कि प्रस्तुत पुस्तक ‘विकास के पथ पर भारत’ इस काम में मदद करेगा। उम्र से युवा लेकिन विचारों से प्रौढ़ डॉक्टर सौरभ मालवीय ने गहन अध्ययन के बाद केंद्र व राज्य सरकारों की 36 प्रमुख योजनाओं को समझाने की एक सार्थक पहल की है। सौरभ भाई ऊर्जावान हैं और निरंतर कुछ-ना-कुछ करते रहते हैं, इसीलिए यकिन रखिए वो जल्द ही बाकी कई दूसरी प्रमुख सरकारी योजनाओं को लेकर मार्गदर्शिका लेकर आपके समक्ष उपस्थित होंगे।
शुभकामनाएं!
शिशिर सिन्हा
सीनियर डिप्टी  एडिटर
द हिंदू बिजनेस लाइन

पुस्तक समीक्षा

 

पुस्तक समीक्षा
भाजपा मुखपत्र-कमल सन्देश
'विकास के पथ पर भारत'
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल के कार्यों का दस्तावेज है।

Wednesday, May 22, 2019

सांस्‍कृतिक राष्‍ट्रवाद और मीडिया'

   बौद्धिक बैठकी जाने-माने स्‍तंभकार  Awadhesh Kumar जी अवधेश जी ने  समसामयिक गतिविधियों के बारे में विस्‍तार से बताया। 
भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है