अब आगे के लिए निकल पड़े मंदिर से बाहर आते ही लाईन से फूस की बनी झोपड़ियों में गरमा-गरम जलेबी और पुड़ी बनती हुई नजर आई मेरे साथी लोकेन्द्र सिंह ने कहा कुछ खाते है फिर यात्रा, जलेबी खाने का सुनते ही मन खुश हो गया और एक दुकान में हम लोग अन्दर चले गये १०,१२ बेंच लगे थे लगभग 30-35 बैठकर खाते हुए दिखे हम दोनों भी अपनी जगह बनाएं और बैठ गये जोलोग पहले से खा रहे थे उनको बड़े ही चाव से परोसा जा रहा था यह देख कर मैं खुश हुआ की दुकानदार बड़े ही आदर से खिला रहा मैं बोला इधर भी दीजिये तुरंत पत्तल और गरम जलेबी-पुड़ी हाजिर समय गवाए बिना हम दोनों खाने लगे । बगल में बैठा व्यक्ति बोला आप लोग भी गमी वाले है हमने कहा नही हम घुमने आए फिर क्या अब तो बहुत से प्रश्न मन में आने लगे लोकेन्द्र सिंह से मै कहा खा लो फिर बात करेंगे लोकेन्द्र बोले अब गले से नही उतर रहा मै आग्रह किया भाई थाली में जो है उसे ख़त्म करों फेका जायेगा यह अन्न का अपमान है, पड़ोसी से पूछा भाई क्या विषय है उसने बताया बुजुर्ग थे ७० साल के उनको जलाने के बाद हम सभी लोग यही नहाये है और “टटका टटका” खाकर घर जायेंगे यह हमारी रीति है, सुनते ही लोकेन्द्र नें कहा सर मैं तो कभी गमी नही खाया और बुद्ध की नगरी में टटका टटका खिला दिया आप ने। बुद्ध के दर्शन की चर्चा के साथ यात्रा पूरी हुई।|
पुस्तक भेंट
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प्रिय ईशान प्रताप सिंह से सुखद भेंट. इस अवसर पर उन्हें अपनी पुस्तक 'भारतीय
संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप' भेंट की.
ईशान प्रताप सिंह,
पूर्ति निरीक...
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