स्थापत्य कला के रूप में यह विश्व की अनमोल कृति है. मंदिर सूर्य देवता को समर्पित अभिकल्पना मे सूर्य देव के रथ के रूप में प्रतिबिंबित किया गया है. उत्कृष्ट नक्काशी द्वारा संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के का रूप दर्शाया गया है़. परंतु अनेक विपदाओं को झेलते हुए अब इनमें से एक ही अश्व (घोड़ा) बचा है. मंदिर के यह बारह चक्र वर्ष के बारह महीनों को प्रतिबिंबित करते हैं तथा प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिल कर बना है जो दिन के आठ पहर को दर्शाते हैं इस रथ के पहिए कोणार्क की पहचान हैं.
इस मंदिर मे सूर्य देव की भव्य यात्रा को दर्शाया गया है मंदिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं स्थापित है जो उनकी बाल्यावस्था उदित सूर्य, युवावस्था मध्याह्न सूर्य और प्रौढावस्था अस्त सूर्य को दर्शाती हैं. मंदिर तीन मंडपों में बना है जिसमें से दो मण्डप नष्ट हो चुके हैं. मंदिर के प्रवेश पर दो सिंहों की मूर्तियां हैं जो हाथियों पर आक्रामक होते हुए रक्षा में तत्पर दिखाई देती हैं. दोनों हाथी जो मानव के ऊपर स्थापित हैं ये प्रतिमाएं एक ही पत्थर की बनीं हैं दिखने में बहुत ही सुंदर प्रतीत होती हैं. मंदिर के दक्षिणी भाग में दो सुसज्जित घोड़े बने हैं जिनकी शोभा से प्रभावित हो उड़ीसा की सरकार ने इन्हें अपने राजचिह्न के रूप में अपना लिया है.
तेरहवीं सदी का यह सूर्य मंदिर एक महान रचना है. यह मंदिर भारत के उत्कृष्ट स्मारक स्थलों में गिना जाता है यहां की स्थापत्य कला वैभव से पूर्ण आश्चर्यचकित करने वाली है. मंदिर अद्वितीय सुंदरता तथा अनेकों शिल्प आकृतियां जो देवताओं, दरबार की छवियों, मानवों, वाद्यकों, शिकार व युद्ध चित्रों से भरी हुई हैं. इसके अतिरिक्त मंदिर में महीन बेल बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत हैं यह मंदिर कामुक मुद्राओं युक्त शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है. जिसमें आकर्षक रूप से एक यथार्थवाद का संगम दिखाई देता है.
कोणार्क का मंदिर न केवल अपनी वास्तुकलात्मक भव्यता के लिए जाना जाता है बल्कि यह शिल्पकला के गुंथन और बारीकी के लिए भी प्रसिद्ध है. यह कलिंग वास्तुकला की उपलब्धियों का उच्चतम बिन्दु है जो भव्यता, उल्लास और जीवन के सभी पक्षों का अनोखा ताल मेल प्रदर्शित करता है.
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