कटक. उड़ीसा में ईसाई मिशनरियां जहां जबरन धर्मातरण करा रही हंै, वहीं हिंदू धर्म में लौटने वालों की संख्या भी कम नहीं है। शुद्धिकरण प्रक्रिया अपना कर वे मंदिरों में माथा टेक रहे हैं और प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। उनके घरों पर भगवा झंडे लहराने लगे हैं। हिंदू बने सीमान नायक ने बताया कि उसने मंदिर का चावल और घी से बना प्रसाद खाया और भगवान के सामने माथा टेका। हालांकि मिशनरियों का आरोप है कि ईसाइयों को जबरन हिंदू धर्म में वापस किया जा रहा है। कुछ प्रभावितों का भी आरोप है कि जान का भय दिखा उन्हें वापस हिंदू धर्म में लाया गया है। लेकिन पूर्व पुलिस महानिदेशक व हिंदू नेता अशोक साहू कहते हैं कि बात का बतंगड़ बनाया जा रहा है। समस्या की जड़ ईसाइयों द्वारा किया जा रहा धर्मातरण है।
धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन कराना और शांति की कामना करना दोनो एक साथ संभव नहीं है। आदिवासी बहुल कंधमाल जिला ब्रिटिश साम्राज्यवाद के समय से ही मिशनरी गतिविधियों के कारण विवादों में रहा है। 1991 से 2001 के बीच ईसाई आबादी में 66 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। कंधमाल में ईसाई जनसंख्या दस प्रतिशत है। जबकि पूरे देश में दो प्रतिशत है। भारत के अनेक हिस्सों में धर्मातरण का मुद्दा हमेशा से विवादों में रहा है। धर्म परिवर्तन का यह युद्ध दोनों धर्मो के मानने वालों के दिल और दिमाग में बस गया है।
अनेक हिंदू मानते हैं कि ईसाई मिशनरियां गरीब हिंदुओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और पैसे की सुविधा का लोभ दिखा कर उनका धर्मातरण करती है। उड़ीसा के एक अखबार के संपादक प्रशांत पटनायक का मानना है कि गरीबों और आदिवासियों को सरकार की ओर से न्यूनतम सुविधाएं ही मिली हैं। इसलिए यहां धर्मातरण का रास्ता स्वाभाविक और सरल है। उत्कल विश्र्वविद्यालय के एक प्रोफेसर बसंत मलिक कहते हैं कि हिंदू और ईसाई रूढि़वादियों के लिए कंधमाल एक प्रयोगशाला बन गया है। बताते चलें कि स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती ने हिंदू धर्म में वापसी का अभियान चलाया था। अगस्त माह में उनकी हत्या के बाद यहां जारी हिंसा सांप्रदायिक स्वरूप ले चुकी है।
साभार : रायटर
4 टिप्पणियाँ:
बढिया आलेख है।बधाई।
जय श्री राम।
संपर्क के लिए अपना ई मैल भी दे
har har mahadev
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