Monday, December 23, 2024

सहृदय कवि अटलजी

 

अटल जी के जन्म दिवस 25 दिसंबर पर विशेष
डॊ. सौरभ मालवीय 
पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक राजनीतिज्ञ के रूप में जाना जाता है. राजनीतिज्ञ होने के अलावा वह साहित्यकार भी हैं. उन्हें साहित्य विरासत में मिला था. वह कहते हैं, ‘रामचरितमानस’ तो मेरी प्रेरणा का स्रोत रहा है. जीवन की समग्रता का जो वर्णन गोस्वामी तुलसीदास ने किया है, वैसा विश्व-साहित्य में नहीं हुआ है. बचपन से ही उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं. स्वदेश-प्रेम, जीवन-दर्शन, प्रकृति तथा मधुर भाव की कविताएं उन्हें बाल्यावस्था से ही आकर्षित करती रही हैं. उनकी कविताओं में प्रेम है, करुणा है, वेदना है. एक पत्रकार के रूप में वे बहत गंभीर दिखाई देते हैं. वे कहते हैं, मेरे भाषणों में मेरा लेखक ही बोलता है, पर ऐसा नहीं कि राजनेता मौन रहता है. मेरे लेखक और राजनेता का परस्पर समन्वय ही मेरे भाषणों में उतरता है. यह जरूर है कि राजनेता ने लेखक से बहुत कुछ पाया है. साहित्यकार को अपने प्रति सच्चा होना चाहिए. उसे समाज के लिए अपने दायित्व का सही अर्थों में निर्वाह करना चाहिए. उसके तर्क प्रामाणिक हो. उसकी दृष्टि रचनात्मक होनी चाहिए. वह समसामयिकता को साथ लेकर चले, पर आने वाले कल की चिंता जरूर करे. वे भारत को विश्वशक्ति के रूप में देखना चाहते हैं. वे कहते हैं, मैं चाहता हूं भारत एक महान राष्ट्र बने, शक्तिशाली बने, संसार के राष्ट्रों में प्रथम पंक्ति में आए.

जब वह पांचवीं कक्षा में थे, तब उन्होंने प्रथम बार भाषण दिया था. लेकिन बड़नगर में उच्च शिक्षा की व्यवस्था न होने के कारण उन्हें ग्वालियर जाना पड़ा. उन्हें विक्टोरिया कॉलेजियट स्कूल में दाख़िल कराया गया, जहां से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की. इस विद्यालय में रहते हुए उन्होंने वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया तथा प्रथम पुरस्कार भी जीता. उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण की. कॉलेज जीवन में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया था. वह 1943 में कॉलेज यूनियन के सचिव रहे और 1944 में उपाध्यक्ष भी बने. ग्वालियर की स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद वह कानपुर चले गए. यहां उन्होंने डीएवी महाविद्यालय में प्रवेश लिया. उन्होंने कला में स्नातकोत्तर उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त की. इसके बाद वह पीएचडी करने के लिए लखनऊ चले गए. पढ़ाई के साथ-साथ वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य भी करने लगे. परंतु वह पीएचडी करने में सफलता प्राप्त नहीं कर सके, क्योंकि पत्रकारिता से जुड़ने के कारण उन्हें अध्ययन के लिए समय नहीं मिल रहा था. उस समय राष्ट्रधर्म नामक समाचार-पत्र पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संपादन में लखनऊ से मुद्रित हो रहा था. तब अटलजी इसके सह सम्पादक के रूप में कार्य करने लगे. पंडित दीनदयाल उपाध्याय इस समाचार-पत्र का संपादकीय स्वयं लिखते थे और शेष कार्य अटलजी एवं उनके सहायक करते थे. राष्ट्रधर्म समाचार-पत्र का प्रसार बहुत बढ़ गया. ऐसे में इसके लिए स्वयं की प्रेस का प्रबंध किया गया, जिसका नाम भारत प्रेस रखा गया था. वह मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म के प्रथम संपादक रहे हैं. वह प्रथमांक से 26 अक्टूबर, 1950 तक इसके संपादक रहे.
अटल जी कहते हैं कि छात्र जीवन से ही मेरी इच्छा संपादक बनने की थी. लिखने-पढ़ने का शौक और छपा हुआ नाम देखने का मोह भी. इसलिए जब एमए की पढ़ाई पूरी की और कानून की पढ़ाई अधूरी छोड़ने के बाद सरकारी नौकरी न करने का पक्का इरादा बना लिया और साथ ही अपना पूरा समय समाज की सेवा में लगाने का मन भी. उस समय पूज्य भाऊ राव देवरस जी के इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया कि संघ द्वारा प्रकाशित होने वाले राष्ट्रधर्म के संपादन में कार्य करूंगा, श्री राजीवलोचन जी भी साथ होंगे. अगस्त 1947 में पहला अंक निकला और इसने उस समय के प्रमुख साहित्यकार सर सीताराम, डॉ. भगवान दास, अमृतलाल नागर, श्री नारायण चतुर्वेदी, आचार्य वृहस्पति व प्रोफेसर धर्मवीर को जोड़कर धूम मचा दी.

कुछ समय के पश्चात 14 जनवरी 1948 को भारत प्रेस से मुद्रित होने वाला दूसरा समाचार पत्र पांचजन्य भी प्रकाशित होने लगा. अटलजी इसके प्रथम संपादक बनाए गए. इस समाचार-पत्र का संपादन पूर्ण रूप से वही करते थे. 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र हो गया था. कुछ समय के पश्चात 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हुई. इसके बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित कर दिया. इसके साथ ही भारत प्रेस को बंद कर दिया गया, क्योंकि भारत प्रेस भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभाव क्षेत्र में थी. भारत प्रेस के बंद होने के पश्चात अटलजी इलाहाबाद चले गए. यहां उन्होंने क्राइसिस टाइम्स नामक अंग्रेज़ी साप्ताहिक के लिए कार्य करना आरंभ कर दिया. परंतु जैसे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगा प्रतिबंध हटा, वह पुन: लखनऊ आ गए और उनके संपादन में स्वदेश नामक दैनिक समाचार-पत्र प्रकाशित होने लगा. परंतु हानि के कारण स्वदेश को बंद कर दिया गया. वर्ष 1949 में काशी से सप्ताहिक ’चेतना’ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ. इसके संपादक का कार्यभार अटलजी को सौंपा गया. उन्होंने इसे सफलता के शिखर तक पहुंचा दिया.

फिर वर्ष 1950 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रतिबंध हटने क बाद दैनिक स्वदेश का पुन: प्रकाशन शुरू हो गया. दुर्भाग्यवश वर्ष 1952 में प्रथम लोकसभा चुनाव के बाद आर्थिक संकट के कारण स्वदेश को बंद करना पड़ा. उस समय अटलजी ने इसका अंतिम संपादकीय लिखा, जिसका शीर्षक था अलविदा. यह संपादकीय बहुत चर्चित हुआ. इसके बाद वह दिल्ली आ गए और यहां से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र वीर अर्जुन में कार्य करने लगे. यह दैनिक एवं साप्ताहिक दोनों आधार पर प्रकाशित हो रहा था.
अपने संपादक कार्यकाल के बारे में अटलजी कहते हैं, उन दिनों संपादन का कार्य बड़े दायित्व का कार्य समझा जाता था. उसके साथ प्रतिष्ठा भी जुड़ी होती थी. वेतन तथा अन्य सुविधाओं पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता था. हम तो अवैतनिक संपादक ही रहे. केवल जरूरी खर्च भर के लिए ही पैसे लेते थे. सुविधाएं नाममात्र कीं, किंतु विचारधारा के प्रचार का एक अदभुत संतोष था. दैनिक समाचार-पत्रों के संपादन के बारे में वे कहते हैं, दैनिक पत्र के संपादन का आनंद तो और ही है. उसका अपना अलग ही आनंद होता है. मुझे याद है, शाम से जो कार्य प्रारंभ होता था कि कौन कितनी देर रात समाचारों को खोजता है और उनके प्रकाशन में आगे रहता है. प्राय: प्रतिदिन भोर में जब चिड़ियां चहचहाने लगती थीं, तो थकान से चूर होकर खाट पर लेटते थे. और ऐसी गहरी नींद आती थी कि उसका स्मरण कर इस समय भी मन पुलकित हो जाता है.

अटलजी कहते हैं, ‘रामचरितमानस’ तो मेरी प्रेरणा का स्रोत रहा है. जीवन की समग्रता का जो वर्णन गोस्वामी तुलसीदास ने किया है, वैसा विश्व-साहित्य में नहीं हुआ है. काव्य लेखन के बारे में उनका कहना है, साहित्य के प्रति रुचि मुझे उत्तराधिकार के रूप में मिली है. परिवार का वातावरण साहित्यिक था. मेरे बाबा पंडित श्यामलाल वाजपेयी बटेश्वर में रहते थे. उन्हें संस्कृत और हिन्दी की कविताओं में बहुत रुचि थी. यद्यपि वे कवि नहीं थे, परंतु काव्य प्रेमी थे. उन्हें दोनों ही भाषाओं की बहुत सी कविताएं कंठस्थ थीं. वे अकसर बोलचाल में छंदों को उदधृत करते थे. मेरे पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत के प्रसिद्ध कवि थे. वे ब्रज और खड़ी बोली में काव्य लेखन करते थे. उनकी कविता ’ईश्वर प्रार्थना’ विद्यालयों में प्रात: सामूहिक रूप से गाई जाती थी. यह सब देख-सुन कर मन को अति प्रसन्नता मिलती थी.  पिता जी की देखा-देखी मैं भी तुकबंदी करने लगा. फिर कवि सम्मेलनों में जाने लगा. ग्वालियर की हिंदी साहित्य सभा की गोष्ठियों में कविताएं पढ़ने लगा. लोगों द्वारा प्रशंसा मिली प्रशंसा ने उत्साह बढ़ाया.

अटलजी कहते हैं, सच्चाई यह है कि कविता और राजनीति साथ-साथ नहीं चल सकतीं. ऐसी राजनीति, जिसमें प्राय: प्रतिदिन भाषण देना जरूरी है और भाषण भी ऐसा जो श्रोताओं को प्रभावित कर सके, तो फिर कविता की एकांत साधना के लिए समय और वातावरन ही कहां मिल पाता है. मैंने जो थोड़ी-सी कविताएं लिखी हैं, वे परिस्थिति-सापेक्ष हैं और आसपास की दुनिया को प्रतिबिम्बित करती हैं.
अपने कवि के प्रति ईमानदार रहने के लिए मुझे काफी कीमत चुकानी पड़ी है, किंतु कवि और राजनीतिक कार्यकर्ता के बीच मेल बिठाने का मैं निरंतर प्रयास करता रहा हूं. कभी-कभी इच्छा होती है कि सब कुछ छोड़कर कहीं एकांत में पढ़ने, लिखने और चिंतन करने में अपने को खो दूं, किंतु ऐसा नहीं कर पाता.  मैं यह भी जानता हूं कि मेरे पाठक मेरी कविता के प्रेमी इसलिए हैं कि वे इस बात से खुश हैं कि मैं राजनीति के रेगिस्तान में रहते हुए भी, अपने हृदय में छोटी-सी स्नेह-सलिला बहाए रखता हूं.
अटलजी राजनीति में रहते हुए भी साहित्य से जुड़े रहे.  वे कहते हैं कि राजनीति और साहित्य दोनों ही जीवन के अंग हैं. वास्तव में ऐसा होता है कि जो लोग राजनीति से जुड़े हैं, वे साहित्य के लिए समय नहीं निकाल पाते. इसी तरह साहित्य से जुड़े लोग राजनीति के लिए समय नहीं दे पाते. किंतु ऐसे लोग भी हैं, जो दोनों से जुड़े होते हैं और दोनों के लिए ही समय देते हैं. परंतु आज के राजनेता साहित्य से दूर हैं, इसी कारण उनमें मानवीय संवेदना का स्रोत सूख-सा गया है. कवि संवेदनशील होता है. तानाशाहों में क्रूरता इसीलिए आ जाती है, क्योंकि वे संवेदनहीन होते हैं. एक कवि के हृदय में दया, क्षमा, करुणा और प्रेम होता है, इसलिए वह खून की होली नहीं खेल सकता. साहित्यकार को पहले अपने प्रति सच्चा होना चाहिए. इसके पश्चात उसे समाज के प्रति अपने दायित्य का सही अर्थों में निर्वाह करना चाहिए.  वह भले ही वर्तमान को लेकर चले, किंतु उसे आने वाले कल की भी चिंता करनी चाहिए. अतीत में जो श्रेष्ठ है, उससे वह प्रेरणा ले, परंतु यह कभी न बूले कि उसे भविष्य का सुंदर निर्माण करना है. उसे ऐसे साहित्य की रचना करनी है, जो मानव मात्र के कल्याण की बात करे.

अटलजी ने कई पुस्तकें लिखी हैं. इसके अलावा उनके लेख, उनकी कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं, जिनमें राष्टधर्म, पांचजन्य, धर्मयुग, नई कमल ज्योति, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कांदिम्बनी और नवनीत आदि सम्मिलित हैं. पत्रकार के रूप में अपना जीवन आरंभ करने वाले अटलजी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. राष्ट्र के प्रति उनकी समर्पित सेवाओं के लिए 25 जनवरी, 1992 में राष्ट्रपति ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 28 सितंबर 1992 को उन्हें ’हिंदी गौरव’ सए सम्मानित किया. इस अवसर पर उन्हें 51 हजार रुपये की धनराशि प्रदान की गई, परंतु उन्होंने उसी समय इसे सम्मान सहित संस्थान को अपनी ओर से भेंट कर दिया. अगले वर्ष 20 अप्रैल 1993  को कानपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि प्रदान की. उनके सेवाभावी और स्वार्थ त्यागी जीवन के लिए उन्हें 1 अगस्त 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार से सम्मानित किया गया.  इसके पश्चात 17 अगस्त 1994 को संसद ने उन्हें श्रेष्ठ सासंद चुना गया तथा पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया. इसके बाद 27 मार्च, 2015 भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इतने महत्वपूर्ण सम्मान पाने वाली अटलजी कहते हैं, मैं अपनी सीमाओं से परिचित हूं. मुझे अपनी कमियों का अहसास है. निर्णायकों ने अवश्य ही मेरी न्यूनताओं को नजरांदाज करके मुझे निर्वाचित किया है. सदभाव में अभाव दिखाई नहीं देता है. यह देश बड़ा है अदभुत है, बड़ा अनूठा है. किसी भी पत्थर को सिंदूर लगाकर अभिवादन किया जा सकता है.

अटलजी ने जीवन में अनेक कष्ट भी झेले, किंतु उन्होंने कभी हार नहीं मानी. हर समस्या को उन्होंने एक चुनौती के रूप में लेकर साहस से उसका सामना किया.

Sunday, December 15, 2024

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पुस्तकें भेंट कीं

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज को अपनी पुस्तकें अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश और भारतीय राजनीति के महानायक नरेन्द्र मोदी भेंट की।  

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पुस्तकें भेंट कीं

 

मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज को अपनी पुस्तकें अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश और भारतीय राजनीति के महानायक नरेन्द्र मोदी भेंट की।  

Monday, November 25, 2024

भारतीय संविधान, भारतीय जीवन दर्शन का ग्रंथ है

 

डॉ. सौरभ मालवीय
किसी भी देश के लिए एक विधान की आवश्यकता होती है। देश के विधान को संविधान कहा जाता है। यह अधिनियमों का संग्रह है। भारत के संविधान को विश्व का सबसे लम्बा लिखित विधान होने का गौरव प्राप्त है। भारतीय संविधान हमारे देश की आत्मा है। इसका देश से वही संबंध है, जो आत्मा का शरीर से होता है।

संविधान दिवस का इतिहास
भारत का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर पूर्ण हुआ था। चूंकि डॉ. भीमराव आम्बेडकर संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, इसलिए भारत सरकार द्वारा उनकी 125वीं जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को प्रथम बार संविधान दिवस संपूर्ण देश में मनाया गया। उसके पश्चात 26 नवम्बर को प्रत्येक वर्ष संविधान दिवस मनाया जाने लगा। इससे पूर्व इसे राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में मनाया जाता था। संविधान सभा द्वारा देश के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में पूर्ण किया गया था। इस पर 114 दिन तक चर्चा हुई तथा 12 अधिवेशन आयोजित किए गए। भारतीय संविधान को बनाने में लगभग एक करोड़ की लागत आई थी। भारतीय संविधान में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 11 दिसंबर 1946 में स्थाई अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। भारतीय संविधान पर 284 लोगों ने हस्ताक्षर किए थे। यह 26 नवम्बर 1949 को पूर्ण कर राष्ट्र को समर्पित किया गया। इसके पश्चात 26 जनवरी 1950 से देश में संविधान लागू किया गया। इससे पूर्व देश में भारत सरकार अधिनियम-1935 का कानून लागू था। कोई भी वस्तु पूर्ण नहीं होती है। समय के अनुसार उसमें परिवर्तन होते रहते हैं। भारतीय संविधान लागू होने के पश्चात इसमें 100 से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं। ऐसा भविष्य में भी होने की पूर्ण संभावना है।

भारतीय संविधान में सरकार के अधिकारियों के कर्तव्य एवं नागरिकों के अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया गया है। संविधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या 389 थी। इनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के 4 चीफ कमिश्नर थे, जबकि 93 सदस्य देशी रियासतों के थे। विशेष बात यह है कि देश की स्वतंत्रता के पश्चात संविधान सभा के सदस्य ही देश की संसद के प्रथम सदस्य बने थे। देश की संविधान सभा का चुनाव भारतीय संविधान के निर्माण के लिए ही किया गया था। भारतीय संविधान के अनुसार केंद्रीय कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति होता है। भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन 19 जुलाई 1946 को किया गया था। संविधान के कुछ अनुच्छेदों को 26 नवंबर 1949 को पारित किया गया, जबकि शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
 
संविधान की विशेषता
भारत एक विशाल देश है। इसमें विभिन्न संस्कृतियों के लोग निवास करते हैं। यहां विभिन्न संप्रदायों, पंथों, जातियों आदि के लोग हैं। उनके रीति-रिवाज, भाषाएं, रहन-सहन एवं खान-पान भी भिन्न-भिन्न हैं। इस सबके मध्य वे आपस में मिलजुल कर रहते हैं। वास्तव में यही भारत का स्वभाव है। भारतीय संविधान में भारत के नागरिकों को छह मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जिनका वर्णन अनुच्छेद 12 से 35 के मध्य किया गया है। इनमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार,  धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा से संबंधित अधिकार एवं संवैधानिक उपचारों का अधिकार सम्मिलित है। उल्लेखनीय है कि पहले संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, जिसे ‘44वें संविधान संशोधन- 1978 के अंतर्गत हटा दिया गया। सातवां मौलिक अधिकार संपति का अधिकार था। मूल अधिकार का एक दृष्टांत है- "राज्य नागरिकों के बीच परस्पर विभेद नहीं करेगा।“ भारतीय संविधान में भी किसी के साथ किसी भी प्रकार का भेद नहीं किया जाता। यही इसकी विशेषता है।  
 
ऋषि परम्परा का धर्मशास्त्र
भारतीय संविधान "हम भारत के लोगों" के लिए हमारी अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत जनित स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्श मूल्यों के प्रति एक राष्ट्र के रूप में हमारी प्रतिबद्धता का परिचायक है। वर्तमान के आधुनिक भारत की संकल्पना के समय संविधान निर्माताओं ने इसी सांस्कृतिक विरासत को उसके मूल स्वरूप में अक्षुण्ण रखने के ध्येय से भारतीय संविधान की मूल प्रतिलिपि में सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व के रुचिकर चित्रों को स्थान दिया, जो मूलतः भारतीय संविधान के भारतीय चैतन्य को ही परिभाषित करते हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा के अलोक में निर्मित भारतीय संविधान भारत की ऋषि परम्परा का धर्मशास्त्र है। भारतीय जीवन दर्शन का ग्रंथ है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां सबका सम्मान किया जाता है। वसुधैव कुटुम्बकम भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। यह सनातन धर्म का मूल संस्कार है। यह एक विचारधारा है। महा उपनिषद सहित कई ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां वसुधैव कुटुम्बकम् ।।
अर्थात यह मेरा अपना है और यह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो संपूर्ण धरती ही परिवार है। कहने का अभिप्राय है कि धरती ही परिवार है। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।
निसंदेह भारत के लोग विराट हृदय वाले हैं। वे सबको अपना लेते हैं। विभिन्न संस्कृतियों के पश्चात भी सब आपस में परस्पर सहयोग भाव बनाए रखते हैं। एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते हैं। यही हमारी भारतीय संस्कृति की महानता है।      
 
उल्लेखनीय है कि भारत का संविधान बहुत ही परिश्रम से तैयार किया गया है। इसके निर्माण से पूर्व विश्व के अनेक देशों के संविधानों का अध्ययन किया गया। तत्पश्चात उन पर गंभीर चिंतन किया गया। इन संविधानों में से उपयोगी संविधानों के शब्दों को भारतीय संविधान में सम्मिलित किया गया। आजादी के बाद भारत का वैचारिक दृष्टिकोण भारतीय ज्ञान परम्परा के आलोक में विकास के पाठ पर खड़ा करने का प्रयास होना चाहिए था।
भारतीय संविधान की उद्देशिका
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में,
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
 
भारतीय संविधान की इस उद्देशिका में भारत की आत्मा निवास करती है। इसका प्रत्यके शब्द एक मंत्र के समान है। हम भारत के लोग- से अभिप्राय है कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है तथा भारत के लोग ही सर्वोच्च संप्रभु है। इसी प्रकार संप्रभुता- से अभिप्राय है कि भारत किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं है। समाजवादी- से अभिप्राय है कि संपूर्ण साधनों आदि पर सार्वजनिक स्वामित्व या नियंत्रण के साथ वितरण में समतुल्य सामंजस्य। ‘पंथनिरपेक्ष राज्य’ शब्द का स्पष्ट रूप से संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। लोकतांत्रिक- से अभिप्राय है कि लोक का तंत्र अर्थात जनता का शासन। गणतंत्र- से अभिप्राय है कि एक ऐसा शासन जिसमें राज्य का मुखिया एक निर्वाचित प्रतिनिधि होता है। न्याय- से आशय है कि सबको न्याय प्राप्त हो। स्वतंत्रता- से अभिप्राय है कि सभी नागरिकों को स्वतंत्रता से जीवन यापन करने का अधिकार है। समता- से अभिप्राय है कि देश के सभी नागिरकों को समान अधिकार प्राप्त हैं। इसी प्रकार बंधुत्व- से अभिप्राय है कि देशवासियों के मध्य भाईचारे की भावना।
विचारणीय विषय यह है कि भारतीय संविधान ने देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किए हैं तथा उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया। किन्तु देश में आज भी ऊंच-नीच, अस्पृश्यता आदि जैसे बुराइयां व्याप्त हैं। इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए कानून भी बनाए गए, परन्तु इनका विशेष लाभ देखने को नहीं मिला। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है। सामाजिक समरसता भारतीय समाज का सौंदर्य है, अस्पृश्यता से संबंधित अप्रिय घटनाएं भी चर्चा में रहती हैं। इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए जागरूक लोगों को ही आगे आना चाहिए तथा सभी लोगों को अपने देश के संविधान का पालन करना चाहिए।
(लेखक- मीडिया शिक्षक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Sunday, November 10, 2024

शिक्षा से एक उज्जवल भविष्य का निर्माण

 

स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री और प्रमुख शिक्षाविद् मौलाना अबुल कलाम आजाद के सम्मान में हर साल 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है। यह दिन भारत के भविष्य को आकार देने में शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालता है। देश की 65% आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। ऐसे में उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास के अवसर प्रदान करना काफी महत्वपूर्ण है। भारत सरकार मजबूत शिक्षा बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए समर्पित है जो छात्रों के समग्र विकास को बढ़ावा देती है और युवाओं को राष्ट्र को प्रगति की ओर ले जाने के लिए सशक्त बनाती है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि  हम ऐसी शिक्षा व्यवस्था विकसित करना चाहते हैं, जिससे हमारे देश के युवाओं को विदेश जाने की जरूरत न पड़े। हमारे मध्यम वर्ग के परिवारों को लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करने की जरूरत नहीं पड़े। इतना ही नहीं हम ऐसे संस्थान भी बनाना चाहते हैं जो विदेशों से लोगों को भारत आने के लिए आकर्षित करें।

शिक्षा के माध्यम से भारत में बदलाव
भारत सरकार ने विभिन्न उपक्रमों और सांवैधानिक प्रावधानों के माध्यम से शिक्षा तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। संविधान के 86वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21-ए के माध्यम से निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत को सुदृढ़ किया गया। यह छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मौलिक अधिकार के रूप में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है। शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 जो 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ, यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे को एक औपचारिक स्कूल में गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त हो जो निर्धारित मानदंडों को पूरा करती हो। सरकारी योजनाओं और पहलों द्वारा समर्थित ये कानूनी ढांचे सभी के लिए एक समावेशी और न्यायसंगत शिक्षा प्रणाली के निर्माण के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

एनईपी 2020 : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 जुलाई, 2020 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को मंजूरी दी। एनईपी 21वीं सदी की जरूरतों के साथ बेहतर तालमेल बनाने के लिए भारत की शिक्षा प्रणाली में सुधार करना चाहती है, जिससे अधिक समावेशी और आगे की सोच वाले दृष्टिकोण को बढ़ावा मिल सके।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 7 सितंबर 2022 को पीएम श्री स्कूल (पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) योजना को मंजूरी दी। इस पहल का उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के घटकों को प्रदर्शित करते हुए पूरे भारत में 14,500 से अधिक स्कूलों को मजबूत करना है। यह योजना छात्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, ज्ञान संबंधी विकास और 21वीं सदी के कौशल को बढ़ावा देगी। 27, 360 करोड़ रुपये की कुल परियोजना लागत के साथ इसे पांच वर्षों (2022-2027) में लागू किया जाएगा। जिसमें 18,128 करोड़ रुपये केंद्रीय हिस्सेदारी के रूप में दिया जाएगा।

समग्र शिक्षा : एनईपी 2020 की सिफारिशों के साथ अनुरूप समग्र शिक्षा का उद्देश्य सभी बच्चों के लिए एक समावेशी और न्यायसंगत कक्षा वातावरण के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है, जो उनकी विविध पृष्ठभूमि और जरूरतों को पूरा करता है। 1 अप्रैल 2021 को शुरू की गई यह योजना पांच साल तक जारी रहेगी। यह योजना 31 मार्च, 2026 को समाप्त होगी। यह विभिन्न छात्र समूहों में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने और शैक्षणिक क्षमताओं को बढ़ाने पर केंद्रित है।

प्रेरणा: 15 जनवरी, 2024 से 17 फरवरी, 2024 तक गुजरात के वडनगर के एक स्थानीय स्कूल में इसका प्रायोगिक चरण शुरू किया गया। यह पहल एक सप्ताह तक चलने वाला आवासीय कार्यक्रम है जो कक्षा IX से XII तक के चयनित छात्रों के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसका उद्देश्य अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से विरासत को नवाचार के साथ मिश्रित करते हुए एक अनुभवात्मक और प्रेरणादायक शिक्षण अनुभव प्रदान करना है। प्रत्येक सप्ताह देश भर से 20 छात्रों (10 लड़के और 10 लड़कियों) का एक बैच कार्यक्रम में भाग लेगा।

उल्लास : इसे नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (न्यू इंडिया लिटरेसी प्रोग्राम-एनआईएलपी) के रूप में भी जाना जाता है। उल्लास को भारत सरकार द्वारा वित्त वर्ष 2022-2027 की अवधि के लिए शुरू किया गया था। यह केंद्र प्रायोजित पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुरूप है। इसका उद्देश्य 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों को सशक्त बनाना है, विशेष रूप से उन लोगों को जो औपचारिक स्कूली शिक्षा से वंचित रह गए हैं। कार्यक्रम का उद्देश्य उनकी साक्षरता को बढ़ाना है, जिससे वे समाज में बेहतर ढंग से एकीकृत हो सकें और देश के विकास में सक्रिय रूप से योगदान कर सकें।

निपुण भारत : समझ के साथ पढ़ने और अंकगणित में दक्षता के लिए राष्ट्रीय पहल राष्ट्रीय पहल (निपुण भारत) 5 जुलाई 2021 को स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग द्वारा शुरू की गई थी। मिशन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश में प्रत्येक बच्चा ग्रेड 3 के अंत तक मूलभूत साक्षरता और अंकगणित में दक्षता प्राप्त करे। 2026-27 तक इसका लक्ष्य पूरा करना है।

विद्या प्रवेश : ग्रेड-I के बच्चों के लिए तीन महीने के खेल-आधारित स्कूल तैयारी मॉड्यूल के लिए विद्या प्रवेश दिशानिर्देश 29 जुलाई 2021 को जारी किए गए थे। इस पहल का उद्देश्य ग्रेड-I में प्रवेश करने वाले बच्चों के लिए एक गर्मजोशी भरा और स्वागत योग्य वातावरण प्रदान करना, सहज परिवर्तन सुनिश्चित करना और सकारात्मक सीखने के अनुभव को बढ़ावा देना है।

विद्यांजलि: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 7 सितंबर 2021 को शुरू किए गए स्कूल स्वयंसेवक प्रबंधन कार्यक्रम का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना है। साथ ही देश भर में कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) पहल और निजी क्षेत्र से योगदान को प्रोत्साहित करके स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है।
दीक्षा: भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू द्वारा 5 सितंबर 2017 को इसे शुरू किया गया था। इस मंच का उद्देश्य शिक्षा में नवीन समाधानों और प्रयोगों में तेजी लाकर शिक्षक प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास को बढ़ाना है। दीक्षा राज्यों और शिक्षक शिक्षा संस्थानों (टीईआई) को उनकी विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए मंच को रुचि के अनुसार लचीलेपन के साथ सशक्त बनाती है। इससे देश भर के शिक्षकों, शिक्षािवद्ों और वैसे छात्र जो आगे चलकर शिक्षक बनना चाहते हैं उनको लाभ होता है।

स्वयं प्लस: स्वयं प्लस, जिसे आधिकारिक तौर पर 27 फरवरी 2024 को माननीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा शुरू किया गया था। यह पहल उच्च शिक्षा में क्रांति लाने और उद्योग-प्रासंगिक पाठ्यक्रमों के लिए एक अभिनव क्रेडिट मान्यता प्रणाली को लागू करके कौशल विकास, रोजगार क्षमता और मजबूत उद्योग साझेदारी बनाने पर जोर देकर रोजगार क्षमता में सुधार करना चाहती है।

निष्ठा: 21 अगस्त 2019 को शिक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू की गई निष्ठा (स्कूल प्रमुखों और शिक्षकों की समग्र उन्नति के लिए राष्ट्रीय पहल) का उद्देश्य 42 लाख प्राथमिक शिक्षकों और स्कूल प्रमुखों के व्यावसायिक विकास को बढ़ाना है। कोविड-19 महामारी को देखते हुए कार्यक्रम को 6 अक्टूबर 2020 को निष्ठा-ऑनलाइन में परिवर्तित कर दिया गया, जिसे दीक्षा प्लैटफॉर्म के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया गया। इस सफलता को देखते हुए 2021-22 में माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों के लिए निष्ठा 2.0 को शुरू किया गया था। वहीं, मूलभूत साक्षरता और अंकगणित पर ध्यान केंद्रित करते हुए 7 सितंबर 2021 को निष्ठा 3.0 पेश किया गया था।

एनआईआरएफ रैंकिंग: शिक्षा मंत्रालय द्वारा 29 सितंबर 2015 को शुरू की गई राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) ने भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। एनआईआरएफ ने विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों के मूल्यांकन और रैंकिंग, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और शिक्षा और बुनियादी ढांचे में सुधार को प्रोत्साहित करने के लिए एक संरचित और पारदर्शी प्रणाली शुरू की है।

पीएम-विद्यालक्ष्मी योजना: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके मेधावी छात्रों का सहयोग करने के लिए पीएम-विद्यालक्ष्मी योजना को मंजूरी दी। यह योजना भारत भर के शीर्ष 860 संस्थानों में प्रवेश पाने वाले छात्रों के लिए शिक्षा ऋण प्रदान करती है, जिससे हर साल 22 लाख से अधिक छात्र लाभान्वित होते हैं। 2024-25 से 2030-31 तक 3,600 करोड़ रुपये के बजट आवंटन के साथ इस योजना का लक्ष्य अतिरिक्त 7 लाख छात्रों की सहायता करना है। पूरी तरह से डिजिटल, पारदर्शी और छात्र-केंद्रित प्लेटफॉर्म के माध्यम से कार्यान्वित पीएम-विद्यालक्ष्मी देश भर के छात्रों के लिए आसान पहुंच और सुचारू अंतरसंचालनीयता (पारस्परिकता) सुनिश्चित करता है।

उज्जवल भविष्य के लिए शिक्षा में निवेश
वैश्विक नेतृत्व के लिए भारत का मार्ग इसकी शिक्षा प्रणाली की ताकत से निकटता से जुड़ा हुआ है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच का विस्तार करने और एक सुदृढ़ शिक्षण वातावरण तैयार करने के लिए वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग को रिकॉर्ड 73,498 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। यह वित्त वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमान की तुलना में 12,024 करोड़ रुपये (19.56%) की पर्याप्त वृद्धि दर्शाता है, जो शिक्षा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को उजागर करता है।

विशेष रूप से प्रमुख स्वायत्त निकायों को अब तक का सबसे अधिक आवंटन किया गया है। इसमें केंद्रीय विद्यालयों (केवीएस) को 9,302 करोड़ रुपये और नवोदय विद्यालयों (एनवीएस) को 5,800 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह पर्याप्त निवेश भारत की शिक्षा प्रणाली को और ऊपर उठाने के स्पष्ट इरादे को रेखांकित करता है।
वित्त वर्ष 2024-25 के लिए उच्च शिक्षा विभाग का बजट आवंटन 47,619.77 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है, जिसमें 7,487.87 करोड़ रुपये योजनाओं के लिए और 40,131.90 करोड़ रुपये गैर-योजना व्यय के लिए समर्पित हैं। यह पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 3,525.15 करोड़ रुपये या 7.99% की उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है। विशेष रूप से विशिष्ट योजनाओं के लिए आवंटन में 1,139.99 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है, जो उच्च शिक्षा के भीतर लक्षित पहलों पर मजबूत ध्यान केंद्रित करता है।

उच्च शिक्षा संस्थानों में नामांकन में वृद्धि : एआईएसएचई रिपोर्ट 2021-22
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने जनवरी 2024 में उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) 2021-2022 जारी किया। 2011 में अपनी स्थापना के बाद से एआईएसएचई देश भर के सभी पंजीकृत उच्च शैक्षणिक संस्थानों (एचईआई) से व्यापक डेटा एकत्र कर रहा है, जिसमें छात्र नामांकन, संकाय (फैकल्टी) और बुनियादी ढांचे जैसे प्रमुख मापदंडों को शामिल किया गया है। सर्वेक्षण में पिछले कुछ वर्षों में हुए महत्वपूर्ण सुधारों पर प्रकाश डाला गया है, जो भारत के शिक्षा क्षेत्र में सकारात्मक प्रगति को दर्शाता है। इसमें नामांकन में बढ़ोतरी, समावेशिता में वृद्धि और मजबूत बुनियादी ढांचा शामिल है, जो एक अधिक मजबूत और गतिशील उच्च शिक्षा व्यवस्था में योगदान देता है।

महिला नामांकन में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। 2014-15 में 1.57 करोड़ से बढ़कर 2021-22 में 2.07 करोड़ हो गई है। इसमें 32% की वृद्धि दर्ज की गई है। एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों सहित वंचित समूहों के छात्रों के नामांकन में काफी वृद्धि हुई है, जिसमें सभी श्रेणियों में महिला नामांकन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई है। 2021-22 में लिंग समानता सूचकांक (जीपीआई) 1.01 तक पहुंच गया, जो पुरुषों की तुलना में उच्च शिक्षा में अधिक महिला छात्रों के नामांकन की निरंतर प्रवृत्ति को उजागर करता है।

अध्ययन के क्षेत्रों के संदर्भ में एसटीईएम विषयों में नामांकन में लगातार वृद्धि देखी गई है। 2021-22 में यूजी, पीजी और पीएचडी स्तरों पर 98.5 लाख छात्रों ने दाखिला लिया है। तमाम चुनौतियों के बावजूद महिलाएं चिकित्सा विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और कला जैसे विषयों में अग्रणी हैं। माध्यमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने की दर भी 2013-14 में 21% से घटकर 2021-22 में 13% हो गई है।

वित्त वर्ष 2024-25 में उच्च शिक्षा विभाग ने वित्त वर्ष 2023-24 की तुलना में 3,525.15 करोड़ रुपये (7.99%) की बजट वृद्धि देखी जो उच्च शिक्षा क्षेत्र को और मजबूत करने और समावेशी विकास का समर्थन करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।

शिक्षा बाधाओं को तोड़ने, अवसरों के द्वार खोलने और व्यक्तियों को समाज में सार्थक योगदान करने के लिए सशक्त बनाने की शक्ति रखती है। निरंतर नवाचार और व्यापक सुधारों के माध्यम से एक मजबूत प्रणाली का निर्माण करते हुए भारत का शैक्षिक परिदृश्य महत्वपूर्ण रूप से विकसित हुआ है। नए विचारों, प्रौद्योगिकियों और शिक्षण विधियों को एकीकृत करने वाले समग्र 360-डिग्री दृष्टिकोण को अपनाकर भारत एक ऐसा वातावरण बना रहा है जहां युवा आगे बढ़ सकते हैं और उन्हें देश के विकास के लिए प्रमुख संपत्ति में बदल सकते हैं।
जैसा कि हम मौलाना अबुल कलाम आजाद की विरासत का सम्मान करते हैं, आइए हम सभी के लिए एक उज्जवल, अधिक समावेशी भविष्य की आधारशिला के रूप में शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को साबित करें।
स्रोत PIB 

Friday, October 25, 2024

कायम रहेगा योगी राज


 
डॉ. सौरभ मालवीय
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संबंध में दिए गए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान के पश्चात प्रदेश में सियासी पारा बढ़ गया है। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने लखनऊ में पुनः दावा किया है कि यदि भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता में आ गई तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमित शाह को पीएम बनाने के लिए पिछले डेढ़-दो वर्षों से लगे हुए हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवराज सिंह चौहान, वसुन्धरा राजे सिंधिया, देवेंद्र फडणवीस, रमन सिंह और मनोहर लाल खट्टर को पहले ही हटा दिया है। अब अमित शाह के प्रधानमंत्री बनने की राह में केवल योगी आदित्यनाथ ही अंतिम कांटा बचे हैं। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले वर्ष 17 सितंबर को जैसे ही 75 वर्ष के हो जाएंगे, वे प्रधानमंत्री पद छोड़कर अमित शाह को प्रधानमंत्री बना देंगे। इसके पश्चात दो से तीन महीने में योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। अरविंद केजरीवाल के इस बयान की प्रासंगिकता पर चर्चा हो रही है या चर्चा में रहने के लिए यह राजनीतिक जुमला मात्र है।

वास्तव में अरविंद केजरीवाल भी जानते हैं कि उनका यह बयान असत्य एवं भ्रामक है। वे इस प्रकार के बयान देकर एक ओर तालियां बटोरना चाहते हैं तो दूसरी ओर ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपना रहे हैं।
यद्यपि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केजरीवाल को कड़े शब्दों में उत्तर दे दिया है। उन्होंने बांदा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा- “केजरीवाल की बु्द्धि जेल जाने के बाद फिर गई है। अन्ना हजारे के सपनों पर पानी फेरने वाले केजरीवाल अब मेरा नाम लेकर बातें कर रहे हैं। अन्ना ने जिस कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन किया था, केजरीवाल ने उसे ही अपने गले का हार बना लिया है। जेल जाकर उन्हें पता चल गया है कि अब वह कभी जेल के बाहर नहीं आने वाले हैं।“

इस बयानबाजी के मध्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेतों के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि योगी आदित्यनाथ अपना कार्यकाल पूर्ण करेंगे। उन्होंने कहा - "आने वाले पांच सालों में मोदी-योगी पूर्वांचल की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलने वाले हैं।" सियासी गलियारे में इस बयान को अरविंद केजरीवाल के बयान से जोड़कर देखा जा रहा है। इस प्रकार श्री नरेंद्र मोदी ने केजरीवाल के बयान को भ्रामक एवं असत्य सिद्ध कर दिया है।

इससे पूर्व गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना कार्यकाल पूर्ण करेंगे तथा वर्ष 2029 के पश्चात् भी वे भाजपा का नेतृत्व करते रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी 75 वर्ष की आयु के पश्चात् भी अपने पद पर बने रहेंगे। इस प्रकार अमित शाह ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि उनका प्रधानमंत्री बनने का अभी कोई विचार नहीं है। इसके अतिरिक्त पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी स्पष्ट कर चुके हैं कि 75 वर्ष के पश्चात् सेवानिवृति वाली बात पार्टी के संविधान में नहीं है। इस प्रकार की बातें केवल दुष्प्रचार के लिए बोली जा रही हैं। इसमें दो मत नहीं कि भाजपा का संगठन अत्यंत सुदृढ़ है। इसलिए अरविंद केजरीवाल की भ्रामक बयानबाजी से पार्टी को कोई हानि नहीं होगी।  
वास्तव में प्रधानमंत्री भली भांति जानते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में सराहनीय विकास कार्य किए हैं। उनके मुख्यमंत्री काल में प्रदेश ने दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति की है। प्रदेश की जनता भी उनके विकास एवं जनहित के कार्यों से अति प्रसन्न एवं संतुष्ट है, तभी उसने उन्हें द्वितीय बार भी मुख्यमंत्री चुना।   
 
सर्विदित है कि उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जाता है, क्योंकि यही चुनाव आगे के लोकसभा चुनाव की दिशा निर्धारित करता है। इसीलिए उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रहता है। अपने उत्कृष्ट कार्यों एवं सुशासन के कारण उन्होंने दो बार भारतीय जनता पार्टी को विजयश्री दिलाई है। भारतीय जनता पार्टी ने भी योगी आदित्यनाथ के कार्यों को सराहा तथा उन्हें प्रदेश की बागडोर सौंप दी।

लोकसभा चुनाव 2024 पाचवें चरण तक आते-आते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 49 दिनों में कुल  144 जनसभाएं की हैं। इसके अलावा योगी अबतक आठ राज्यों में भी चुनाव प्रचार कर चुके है। मुख्यमंत्री ने 27 मार्च को मथुरा में प्रबुद्ध सम्मेलन कर प्रदेश की चुनावी कमान संभाल ली थी। 27 मार्च से 19 मई तक कुल 50 दिनों में मुख्यमंत्री लगातार चुनाव प्रचार में लगे हुये है। अब तक उन्होंने 15 प्रबुद्ध सम्मेलन और 12 रोड शो किए हैं। योगी की जनसभाओं में अपार भीड़ उनको सुनने के लिए प्रचण्ड गर्मी में भी जुट रही है।    
  
इसमें दो मत नहीं है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व काल में प्रदेश ने लगभग सभी क्षेत्रों में प्रशंसनीय उन्नति की है। प्रदेश में कृषि, उद्योग, रोजगार, आवास, परिवहन, बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा व्यवस्था, संस्कृति, धर्म एवं पर्यावरण आदि क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किए गए हैं। मेधावी विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान दी जा रही है। वृद्धजन, विधवा एवं दिव्यांगजन को पेंशन के रूप में आर्थिक सहायता दी जा रही है। सरकार ने अनाथ बच्चों के भरण-पोषण की भी व्यवस्था की है। जिन परिवारों में कमाने वाला कोई नहीं है उन्हें भी आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। निर्धन परिवार की लड़कियों एवं दिव्यांगजन के विवाह लिए अनुदान दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त योगी सरकार निराश्रित गौवंश के संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दे रही है।

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ पार्टी के चाल, चरित्र एवं चेहरे के अनुसार प्रदेश में हिंदुत्व की छवि को और सुदृढ़ करने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं। उनके कार्य इस बात को सिद्ध करते हैं। चाहे प्राचीन नगरों के नाम परिवर्तित करना हो या काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण करना हो। उनके सभी कार्य इसका साक्षात प्रमाण हैं। उनकी देखरेख में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण का कार्य चल रहा है। योगी सरकार राज्य के धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थलों के विकास एवं सौन्दर्यीकरण पर विशेष ध्यान दे रही है। योगी सरकार ने बौद्ध सर्किट में श्रावस्ती, कपिलवस्तु, कुशीनगर तथा रामायण सर्किट में चित्रकूट एवं श्रृंगवेरपुर में पर्यटन सुविधाओं का विकास करवाया है। इसी प्रकार बृज तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, नैमि षारण्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, विन्ध्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, शुक्र धाम तीर्थ विकास परिषद, चित्रकूट तीर्थ विकास परिषद एवं देवीपाटन तीर्थ विकास परिषद का गठन किया गया, ताकि यहां के विकास कार्य सुचारू रूप से हो सकें।सरकार तीर्थ यात्रियों एवं पर्यटकों को अनेक सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है। योगी सरकार तीर्थ यात्रियों को कई सुविधाएं प्रदान कर रही है। इसके अंतर्गत कैलाश मानसरोवर के तीर्थ यात्रियों की अनुदान राशि 50 हजार रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये प्रति यात्री की गई है। इसी प्रकार सिंधु दर्शन के लिए अनुदान राशि 20 हजार रुपये की गई।

योगी सरकार प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यथासंभव प्रयास कर रही है। इसके अंतर्गत गोरखपुर के रामगढ़ ताल में वाटर स्पोर्ट्स, पीलीभीत टाइगर रिजर्व एवं चंदौली में देवदारी राजदारी वाटरफॉल का विकास किया गया। स्पिरिचुअल सर्किट के अंतर्गत गोरखपुर, देवीपाटन, डुमरियागंज में पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। जेवर, दादरी, नोएडा, खुर्जा एवं बांदा में भी पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। आगरा में शाहजहां पार्क एवं महताब बाग-कछपुरा का कार्य एवं वृन्दावन में बांके बिहारी जी मंदिर क्षेत्र में पर्यटन का विकास किया गया। दुधवा टाइगर रिजर्व एवं पीलीभीत टाइगर रिजर्व स्थलों का विकास किया गया है। सरकार ने महाभारत सर्किट के अंतर्गत महाभारत से संबंधित स्थलों का विकास करवाया है। शक्तिपीठ सर्किट एवं आध्यात्मिक सर्किट से संबंधित स्थलों का भी विकास करवाया गया है। विपक्षी सरकार पर भेदभाव के आरोप लगाते रहते हैं, परन्तु सत्य यही है कि भाजपा सरकार बिना किसी भेदभाव के समान रूप से विकास कार्य करवा रही है। जैन एवं सूफी सर्किट के अंतर्गत आगरा एवं फतेहपुर सीकरी में पर्यटन सुविधाओं का विकास करवाया जाना इस बात का प्रमाण है।  

योगी सरकार द्वारा अयोध्या में दीपोत्सव, मथुरा में कृष्णोत्सव, बरसाना में रंगोत्सव, वाराणसी में शिवरात्रि एवं देव दीपावली का आयोजन किया जा रहा है। देश ही नहीं, अपितु विदेशों में भी इसकी चर्चा हो रही है। इसके साथ-साथ सरकार कला एवं साहित्य को भी प्रोत्साहित कर रही है। राज्य में साहित्यकारों एवं कलाकारों को उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान प्रदान किए जाने का निर्णय लिया गया।          

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ के शासन में प्रदेश ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पृथक पहचान बनाई है। लगभग सभी क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश देश में अग्रणी रहा है। आज देश में उत्तर प्रदेश मॉडल की चर्चा की जा रही है। ये सब योगी आदित्यनाथ के प्रयास से ही संभव हो सका है। 
(लेखक लखनऊ विश्विद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं) 

Thursday, October 17, 2024

प्रेरणादायक हैं महर्षि वाल्मीकि के विचार


डॉ. सौरभ मालवीय 
विगत एक दशक से देशभर में भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का स्वर्णिम युग चल रहा है। उत्तर प्रदेश सहित देशभर में सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक कार्य तीव्र गति से चल रहे हैं। भारतीय संस्कृति का विश्वुभर में प्रचार-प्रसार हो रहा है। यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अथक प्रयासों से ही संभव हो रहा है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार राज्य में धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को निरंतर प्रोत्साहित कर रही है। इसी कड़ी में महर्षि वाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। वाल्मीकि जयंती प्रत्येक वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे महर्षि वाल्मीकि प्रकट दिवस भी कहा जाता है। इस दिन वाल्मीकि मंदिरों को सजाया जाता है। मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालु सभा का आयोजन करते हैं। मंदिरों में कीर्तन एवं रामायण का पाठ होता है। इस दिन शोभायात्रा भी निकाली जाती है।    
 
योगी सरकार के आदेशानुसार राज्य के सभी जनपदों में वाल्मीकि जयंती हर्षोल्लास से मनाई जा रही है। महर्षि वाल्मीकि से संबंधित सभी स्थलों एवं मंदिरों में दीप प्रज्ज्वलन, दीपदान एवं रामायण के पाठ भी हो रहे हैं। यह कार्यक्रम जनपद, तहसील एवं विकास खंड स्तर पर आयोजित किए जा रहे हैं। इनके सफल आयोजन के लिए शासन ने विशेष प्रबंध किए हैं। आयोजन स्थलों पर स्वच्छता, पेयजल एवं विद्युत आदि का विशेष प्रबंध किया गया है। योगी सरकार ने इसके लिए अधिकारियों को विशेष निर्देश दिए हैं। समन्वय संस्कृति विभाग, सूचना-जनसंपर्क विभाग एवं पर्यटन एवं संस्कृति परिषद मिलकर कार्य कर रहे हैं। योगी सरकार धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दे रही है।    
 
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व देश के अनेक स्थानों पर वाल्मीकि जयंती केवल वाल्मीकि समाज के लोगों तक ही सीमित थी। केवल वाल्मीकि मंदिरों में ही वाल्मीकि जयंती पर कार्यक्रमों का आयोजन होता था। पूर्वाग्रहों अथवा अपरिहार्य कारणों से वाल्मीकि जयंती मनाने का समाज में अधिक चलन नहीं था। किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के प्रयासों ने वाल्मीकि जयंती व्यापक स्तर पर धूमधाम से मनाई जाने लगी है। अब यह एक बड़ा पर्व बन चुकी है।  
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाल्मीकि जयंती पर लोगों को शुभकामनाएं देते हुए कहा था कि सामाजिक समानता और सद्भावना से जुड़े उनके अनमोल विचार आज भी भारतीय समाज को सिंचित कर रहे हैं। मानवता के अपने संदेशों के माध्यम से वे युगों-युगों तक हमारी सभ्यता और संस्कृति की अमूल्य धरोहर बने रहेंगे। महर्षि वाल्मीकि के विचार आज भी भारतीय समाज को प्रेरित करते हैं। महर्षि वाल्मीकि के आदर्श लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं। महर्षि वाल्मीकि गरीब और दलितों के लिए आशा की किरण हैं। उनकी सरकार के कदम महर्षि वाल्मीकि के विचारों से प्रेरित हैं। भगवान राम के आदर्श आज भारत के कोने-कोने में एक-दूसरे को जोड़ रहे हैं, इसका बहुत बड़ा श्रेय महर्षि वाल्मीकि को ही जाता है।
 
भारतीय संस्कृति में महर्षि वाल्मीकि का योगदान 
महर्षि वाल्मीकि का भारतीय संस्कृति में जो स्थान है, वह किसी अन्य को प्राप्त नहीं है। उन्हें आदिकवि भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने रामायण नामक महाकाव्य की रचना की थी। यह संस्कृत का प्रथम महाकाव्य है। 
धार्मिक पवित्र ग्रंथ रामायण की रचना करके वे घर-घर में विराजमान हो गए। उन्होंने रामायण की संस्कृत में रचना की थी। इसे वाल्मीकि रामायण भी कहा जाता है। यह मौलिक ग्रंथ है। इसके पश्चात अनेक भाषाओं में रामायण लिखी गई, परंतु सबका आधार यही संस्कृत की वाल्मीकि रामायण ही थी। वाल्मीकि रामायण का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। 
 
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के माध्यम से भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम का जीवन दर्शन जनसाधारण तक पहुंचाने का कार्य किया। मान्यता है कि रामायण लिखने की प्रेरणा उन्हें एक पक्षी से प्राप्त हुई थी। एक समय की बात है कि वाल्मीकि ने एक वृक्ष की शाखा पर बैठे क्रौंच पक्षी के एक युगल को देखा। वह युगल प्रेमालाप में लीन था। वाल्मीकि उस युगल को एकटक निहार रहे थे, तभी नर पक्षी को बहेलिये का एक तीर आकर लगा और वह वहीं मृत्यु को प्राप्त हो गया। अपने साथी की मृत्यु पर मादा पक्षी वेदना से तड़प उठी और विलाप करने लगी। उसके वेदनापूर्ण विलाप को सुनकर वाल्मीकि को अत्यंत दुख हुआ। वे उसकी पीड़ा से द्रवित हो उठे। इसी अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही एक श्लोक निकला-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥
अर्थात हे दुष्ट, तुमने प्रेम में लीन क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं होगी तथा तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।
 
मान्यता यह भी है कि वाल्मीकि आदिकवि होने के साथ-साथ खगोल एवं ज्योतिष विद्या के भी ज्ञाता थे। इसका आधार यह है कि उन्होंने अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चंद्र व अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। ऐसा वही व्यक्ति कर सकता है, जिसे इन विद्याओं का ज्ञान हो।
 
महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के पुरोधा भी हैं। उन्होंने रामायण के माध्यम से श्रीराम के महान चरित्र से लोगों को अवगत करवाया है। उनके कारण ही अनंतकाल तक जनसाधारण श्रीराम से जुड़ा रहेगा। रामायण से ही हमें श्रीराम को जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। वे एक आदर्श पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता राजा दशरथ के वचन का पालन करने के लिए अपना सबकुछ त्याग दिया। उन्होंने राजा दशरथ द्वारा अपनी पत्नी कैकेयी को दिए वचन को पूर्ण करने के लिए अपना राज सिंहासन त्याग कर चौदह वर्ष का वनवास प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया। उन्होंने माता कैकेयी की प्रसन्नता के लिए वनवास स्वीकार किया। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि उनके लिए पिता के वचन एवं माता की प्रसन्नता से अधिक कुछ भी महत्व नहीं रखता। उन्होंने वैभवशाली एवं ऐश्वर्य का जीवन त्याग दिया तथा वन में रहना उचित समझा। उन्होंने अपने पिता की मनोव्यथा एवं उनकी विवशता को हृदय से अनुभव किया। वे बिना किसी अनर्द्वन्द्व के वनवास के लिए चले गए। यह कोई सरल कार्य नहीं था, परंतु उन्होंने ऐसा कठोर निर्णय लिया। कुछ समय पूर्व ही उनका विवाह हुआ था। उन्हें अपनी पत्नी के साथ सुखमय दाम्पत्य जीवन का प्रारंभ करना था। श्रीराम के साथ-साथ उनकी पत्नी ने भी त्याग किया। जो सीता राजभवन में पली थीं। उन्होंने भी राजभवन का सुख त्याग कर पति के साथ वन में जाना चुना। इसी प्रकार श्रीराम के छोटे भ्राता लक्ष्मण ने भी अपने भाई और भाभी की सेवा के लिए वन में जाने का निर्णय लिया। वनवास तो केवल श्रीराम के लिए था, परंतु सीता और लक्ष्मण ने भी वनवास का स्वेच्छा से चयन करके यह सिद्ध कर दिया की उनके लिए श्रीराम से बढ़कर कुछ भी नहीं है। भरत ने भी हाथ में आया राजपाट त्याग दिया तथा अपनी माता कैकेयी से स्पष्ट रूप से कह दिया कीस राज सिंहासन पर केवल श्रीराम का ही अधिकार है। इसलिए वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते। वास्तव में रामायण एक ऐसी कथा है, जो परिवार एवं समाज में आदर्श स्थापित करती है। 
 
किंवदंती है कि श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता का त्याग कर दिया था। इस प्रकार माता सीता को पुन: वन में आना पड़ा। उस समय महर्षि वाल्मीकि ने माता सीता को अपने आश्रम में शरण दी थी। माता सीता अपना परिचय सबको नहीं देना चाहती थीं, इसलिए महर्षि ने उन्हें वन देवी का नाम दिया था। यहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ था। यहीं लव और कुश ने अश्वमेघ को पकड़ा था और यहीं उनकी अपने पिता श्रीराम से भेंट हुई थी। महर्षि वाल्मीकि ने भारतीय जनमानस में राम के मर्यादित जीवन और सामाजिक जीवन को स्थापित किया।
(लेखक - सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अध्येता हैं)

 

Wednesday, September 25, 2024

अंत्योदय से समृद्ध होगा भारत

डॉ. सौरभ मालवीय 
देश की समृद्धि के लिए अंत्योदय अत्यंत आवश्यक है। अंत्योदय का अर्थ है- समाज के अंतिम व्यक्ति का उदय। दूसरे शब्दों में- समाज के सबसे निचले स्तर के लोगों का विकास करना ही अंत्योदय है। अंत्योदय के बिना देश उन्नति नहीं कर सकता, क्योंकि जब तक देश के अति निर्धन वर्ग का उत्थान नहीं होता, तब तक वह मुख्यधारा में सम्मिलित नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में देश भी समृद्ध नहीं हो पाएगा। इसलिए अंत्योदय आवश्यक है।
 
जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय का नारा दिया था। अंत्योदय उनका सपना था। वे कहते थे कि आर्थिक योजनाओं तथा आर्थिक प्रगति का माप समाज के ऊपर की सीढ़ी पर पहुंचे हुए व्यक्ति नहीं, बल्कि सबसे नीचे के स्तर पर विद्यमान व्यक्ति से होगा। अंत्योदय के माध्यम से केवल भारत ही नहीं, अपितु समग्र विश्व का विकास हो सकता है। इसके सुनियोजित योजना एवं उत्तरदायित्व आवश्यक है। विश्व के बहुत से विकसित राष्ट्र हालांकि किसी भी योजना के बिना ही वर्तमान आर्थिक विकास की दर प्राप्त करने में सफल रहे हैं, जिससे कुछ लोगों को यह अनुभव हो रहा है कि योजनाएं न केवल अनावश्यक हैं, अपितु निहायत अवांछनीय भी हैं। इसके बावजूद आम सहमति इस बात पर भी है कि यदि अविकसित राष्ट्र थोड़े समय में वही हासिल करना चाहते हैं, जो विकसित देशों ने लगभग एक शताब्दी में प्राप्त किया है तो विकास को अपनी प्राकृतिक गति पर नहीं छोड़ा जा सकता। विकास की प्रक्रिया शुरू करने के लिए भी एक प्रयास करना पड़ेगा और यह प्रयास नियोजित ढंग से होना चाहिए।   
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर, 2014 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 98वीं जयंती के अवसर पर अंत्योदय दिवस की घोषणा की थी, तभी से यह दिवस मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास का प्रकाश पहुंचाना है, ताकि वे भी प्रगति करके समाज की मुख्यधारा में सम्मिलित हो सकें। आर्थिक उन्नति के साथ-साथ यह दिवस समाज में व्याप्त असमानताओं के उन्मूलन के लिए कार्य करने की प्रोत्साहित करता है। इसके अतिरिक्त यह दिवस विभिन्न सरकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देता है, जिससे निर्धनों एवं वंचित वर्गों के लोगों को उनके कल्याण के लिए संचालित की जा रही योजनाओं की जानकारी प्राप्त हो सके तथा वे इसका लाभ उठा सकें। सरकार इन वर्गों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं संचालित कर रही है। दीनदयाल अंत्योदय योजना के कई घटक हैं, जिन्हें अलग-अलग समय पर प्रारंभ किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर, 2014 को दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना भी प्रारंभ की। इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण युवाओं को नौकरियों में नियमित रूप से न्यूनतम पारिश्रमिक के समान या उससे अधिक मासिक पारिश्रमिक प्रदान करना है। यह योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने के लिए की क्रियान्वित की जा रही है। इससे पूर्व 24 सितंबर, 2013 को राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन प्रारंभ किया गया था। इसके अंतर्गत शहरी निर्धनों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने एवं उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करने पर ध्यान दिया जाता है। इससे पूर्व 25 सितंबर, 2004 को दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना प्रारंभ की गई थी। इस योजना के अंतर्गत निर्धन रोगियों को एंबुलेंस की सुविधा प्रदान की जाती है।
    
उल्लेखनीय है कि सरकार अंत्योदय अन्न योजना संचालित कर रही है। यह योजना 25 दिसंबर 2000 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा प्रारंभ की गई थी। इसे केंद्रीय खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय द्वारा लागू किया गया था। इसका उद्देश्य सार्वजनिक वितरण परमाली द्वारा देश के सबसे निर्धन लोगों को रियायती दरों पर भोजन उपलब्ध करवाना है। इस योजना के अंतर्गत निर्धन परिवारों को 35 किलो राशन प्रदान किया जाता है। इसमें 20 किलो गेहूं और 15 किलो चावल सम्मिलित होता है। इसके अंतर्गत गेहूं तीन रुपये प्रति किलोग्राम और चावल दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से दिया जाता है। इसे सबसे पहले राजस्थान में लागू किया गया था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि कच्ची नौकरियों में निर्धन परिवारों के युवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। इसमें वे परिवार सम्मिलित हैं, जिनकी वार्षिक आय एक लाख 80 हजार रुपये से कम है। कोरोना काल से यह राशन नि:शुल्क कर दिया गया है।
 
भारतीय जनता पार्टी की केंद्र एवं राज्य सरकारें अंत्योदय के सिद्धांत को लेकर शासन कर रही हैं। भाजपा के अनुसार एकात्म मानववाद और अंत्योदय का दर्शन पार्टी के मार्गदर्शक सिद्धांतों में से एक है। इस सिद्धांत को हम सबका साथ सबका विकास के साथ मिला हुआ देख सकते हैं जो गरीब, ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए सरकार द्वारा तय की गई नीतियों में भी नजर आता है।
 
दीनदयाल जी और उनकी आर्थिक नीतियों ने हमेशा गरीबों की भलाई पर जोर देने की बात की है। उनके आर्थिक विचार में पंक्ति के अंतिम पड़ाव पर खड़ा व्यक्ति शामिल रहा है। उन्होंने कहा था कि‘आर्थिक नीति निर्धारण और प्रगति की सफलता का पैमाना यह नहीं है कि समाज के सबसे शीर्ष पर मौजूद व्यक्ति को उससे कितना फायदा मिल रहा है बल्कि यह है कि समाज पर जो लोग सबसे नीचे हैं उन्हें उन नीतियों का कितना फायदा मिला है। अंत्योदय का मतलब समाज के सबसे निचले स्तर पर मौजूद व्यक्ति का कल्याण है। उन्होंने यह भी कहा था कि यह हमारी सोच और हमारे सिद्धांत हैं कि ये गरीब और अशिक्षित लोग हमारे ईश्वर हैं, यही हमारा सामाजिक और मानवीय धर्म है।
 
उनके इसी अंत्योदय के विचार से प्रेरित होकर केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मौजूद एनडीए सरकार और तमाम प्रदेशों में शासन करने वाली भाजपा सरकारें अंत्योदय के रास्ते पर बढ़ने की ओर अग्रसर हैं तथा गरीब, ग्रामीण एवं किसानों के लिए और समाज के सबसे शोषित वर्ग से आने वाले युवाओं और महिलाओं के कल्याण की ओर प्रतिबद्ध हैं। गरीब को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हुए औसत जीवन स्तर में बढ़ोतरी हुई है। मुद्रा, जनधन, उज्जवला, स्वच्छता मिशन, शौचालयों का निर्माण, दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना, आवास योजना, सस्ती दवाएं और इलाज, इन सभी योजनाओं पर कार्य को आगे बढ़ा दिया गया है।
 
तकनीक के प्रयोग से कृषि में सुधार किया जा रहा है एवं किसानों की आय दुगनी करने के इरादे से सिंचाई तकनीकों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की जा रही हैं। केंद्रीय बजट की सहायता से गांवों में भी कई निवेश किए जा रहे हैं। दीनदयाल जी के विचारों से प्रेरित बीजेपी सरकार देश के संसाधनों का उपयोग केवल देश की उन्नति के लिए करने के लिए प्रतिबद्ध है जिसके लिए यह सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने, काले धन को रोकने और जनता की कमाई की लूट रोकने के लिए कड़े कदम उठा रही है। एक भारत-श्रेष्ठ भारत का रास्ता गरीबी दूर करके ही मिलेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में अंत्योदय व सेवा के संकल्प को पूर्ण कर विकसित भारत के निर्माण के लिए भाजपा प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि मां भारती की सेवा में जीवनपर्यंत समर्पित रहे अंत्योदय के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का व्यक्तित्व और कृतित्व देशवासियों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बना रहेगा।
 
वास्तव में दीनदयाल अंत्योदय योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए स्वरोजगार के अवसरों में वृद्धि करती है। इसके अंतर्गत कृषि और गैर-कृषि दोनों प्रकार की आजीविकाओं में सहायता मिलती है। इससे महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण के लिए सहायता मिलती है। महिला स्वयं सहायता समूहों को उनकी आजीविका बढ़ाने में सहायता मिलती है। इसके अंतर्गत महिलाओं को बैंकिंग संवाददाता सखियों के रूप में प्रशिक्षण दिया जाता है।
(लेखक – लखनऊ विश्वविधालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)

Saturday, September 14, 2024

हिन्दी बने राष्ट्र भाषा


डॉ. सौरभ मालवीय 
“हिन्दी संस्कृत की बेटियों में सबसे अच्छी और शिरोमणि है।“    
ये शब्द बहुभाषाविद और आधुनिक भारत में भाषाओं का सर्वेक्षण करने वाले पहले भाषा वैज्ञानिक जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन के हैं। नि:संदेह हिन्दी देश के एक बड़े भू-भाग की भाषा है। महात्मा गांधी ने हिन्दी को जनमानस की भाषा कहा था। वह कहते थे कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।
 
भारत में अनेकों भाषायें एवं बोलियां हैं। इसलिए यहां यह कहावत बहुत प्रसिद्ध है- कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी। भाषा एक संवाद का माध्यम है। भारतीय संविधान में भारत की कोई राष्ट्र भाषा नहीं है। यद्यपि केंद्र सरकार ने 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया है। इसमें केंद्र सरकार या राज्य सरकार अपने स्थान के अनुसार किसी भी भाषा का आधिकारिक भाषा के चयन कर सकती है। केंद्र सरकार ने अपने कार्यों के लिए हिन्दी तथा रोमन भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया है। इसके अतिरिक्त राज्यों ने स्थानीय भाषा के अनुसार भी आधिकारिक भाषाओं का चयन किया है। इन 22 आधिकारिक भाषाओं में असमी, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संतली, सिंधी, तमिल, तेलुगू, बोड़ो, डोगरी, बंगाली एवं गुजराती सम्मिलित है। भारत की राष्ट्र भाषा को लेकर प्रारंभ से ही विवाद होता रहा है। इस संबंध में महात्मा गांधी कहते थे- “अगर हमें एक राष्ट्र होने का अपना दावा सिद्ध करना है, तो हमारी अनेक बातें एक-सी होनी चाहिए। भिन्न-भिन्न धर्म और सम्प्रदायों को एक सूत्र में बांधने वाली हमारी एक सामान्य संस्कृति है। हमारी त्रुटियां और बाधाएं भी एक-सी हैं। मैं यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि हमारी पोशाक के लिए एक ही तरह का कपड़ा न केवल वांछनीय है, बल्कि आवश्यक भी है। हमें एक सामान्य भाषा की भी जरूरत है- देशी भाषाओं की जगह पर नहीं, परन्तु उनके सिवा। इस बात में साधारण सहमति है कि यह माध्यम हिन्दुस्तानी ही होना चाहिए, जो हिन्दी और उर्दू के मेल से बने और जिसमें न तो संस्कृत की और न फारसी या अरबी की ही भरमार हो। हमारी रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट हमारी देशी भाषाओं की कई लिपियां हैं। अगर एक सामान्य लिपि अपनाना संभव हो, तो एक सामान्य भाषा का हमारा जो स्वप्न है- अभी तो वह स्वप्न ही है- उसे पूरा करने के मार्ग की एक बड़ी बाधा दूर हो जाएगी।“
 
यह दुखद है कि देश की एक बड़ी जनसंख्या द्वारा बोले जाने वाली हिन्दी अब तक राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है।
कुछ लोग कहते हैं कि गैर हिन्दी विशेषकर दक्षिण भारत के लोगों के विरोध के कारण हिन्दी को उसका वास्तविक स्थान नहीं मिल पाया है, परन्तु यह कथन उचित नहीं लगता, क्योंकि महात्मा गांधी गुजरात से थे तथा उनकी मातृभाषा गुजराती थी, फिर भी  वह हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाए जाने के प्रबल समर्थक थे। महाराष्ट्र के वर्धा में आयोजित राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए महात्मा गांधी ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि देश कि बहुसंख्यक आबादी न केवल हिन्दी लिखती-पढ़ती, अपितु भाषाई समझ रखती है, इसलिए हिन्दी ही देश की राष्ट्र भाषा होनी चाहिए। उनका मानना था कि स्वतंत्रता के पश्चात यदि हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाया जाता है, तो देश की बहुसंख्यक जनता को आपत्ति नहीं होगी। इसी प्रकार दक्षिण भारत के राजनेता राजगोपालाचार्य भी हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में देखना चाहते थे। उनके अनुसार हिन्दी में ही देश की राष्ट्र भाषा होने के सभी गुण हैं। सीमान्त गांधी के नाम से प्रसिद्ध खां अब्दुल गफ़्फ़ार खां भी हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने के समर्थक थे।
 
वास्तव में हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा नहीं बन पाई, तो इसके लिए अंग्रेजी मानसिकता वाले भारतीय नेता ही उत्तरदायी थे। देश में सदैव अंग्रेजी भाषा एवं हिन्दी भाषा को लेकर कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा भ्रम की स्थिति उत्पन्न की गई। इसके कारण हिन्दी का प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया। दिन-प्रतिदिन हिन्दी पिछड़ती गई, जबकि अंग्रेजी अपना वर्चस्व स्थापित करती गई। आज स्थिति यह है कि भारत के शिक्षित समाज में हिन्दी बोलने वाले लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चे अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ें। इसके लिए वे मोटी से मोटी फीस देने को तत्पर हैं। अंग्रेजी स्टेटस सिंबल बन गई है। बहुत से लोग मानते हैं कि अंग्रेजी उन्नति की भाषा है। अंग्रेजी के बिना कोई उन्नति नहीं कर सकता, परन्तु ऐसा नहीं है। विश्व के अनेक देशों में लिपि के नाम पर केवल चित्रात्मक विधियां हैं, तब भी वे देश उन्नति के मामले में शीर्ष पर हैं। रूस, चीन, जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, जापान, नीदरलैंड आदि देशों के उदाहरण सबके सामने हैं।
सत्य तो यह है कि हिन्दी भारत की आत्मा, श्रद्धा, आस्था, निष्ठा, संस्कृति एवं सभ्यता से जुड़ी हुई भाषा है। भारत का दुर्भाग्य यह रहा है कि सहृदयता के नाम पर कुछ भारतीय प्रतिनिधि ही इसकी स्मिता की जड़ों को खोखला करने का कार्य करते आए हैं। हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप मे राष्ट्रीय स्वीकृति नहीं मिलने के पीछे भी इसी प्रकार की सोच वाले नेताओं की प्रमुख भूमिका रही है। दुर्भाग्यवश इसी मानसिकता के लोगों का बाहुल्य आज भी कार्यपालिका से लेकर न्यायपालिका तक निर्णायक स्थिति में है।
 
बोली की दृष्टि से हिन्दी विश्व में द्वितीय स्थान पर है, जबकि प्रथम बड़ी बोली मंदारीन है जिसका प्रभाव दक्षिण चीन के ही क्षेत्र में सीमित है। चूंकि उनका जनघनत्व और जनबल बहुत है। इस नाते वह विश्व की सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है, पर वह आचंलिक ही है। हिन्दी का विस्तार भारत के अतिरिक्त लगभग 40 प्रतिशत भू-भाग पर फैला हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 77 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं। विश्व में लगभग 50 करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं। हिन्दी विश्व के 150 से अधिक विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है।
देश का लगभग 60 प्रतिशत बाजार हिन्दी बोलने वाले लोगों का है। भारत विश्व में सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार होने के नाते भी विश्व वाणिज्य की सभी संस्थाएं हिन्दी के प्रयोग को अपरिहार्य मान रही हैं। आज प्रत्येक कंपनी के विज्ञापन का आधार केवल हिन्दी है। इतना ही नहीं विदेशी कंपनियों के मोबाइल फोन भी हिन्दी में टाइपिंग की सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी हिन्दी का वर्चस्व दिखाई देता है।
 
किन्तु किसी भाषा की सबलता केवल बोलने वाले पर निर्भर नहीं होती, अपितु उस भाषा में जनोपयोगी एवं विकास के कार्य कितने होते हैं, इस पर निर्भर होती है। उसमें विज्ञान, तकनीकि और श्रेष्ठतम आदर्शवादी साहित्य की रचना कितनी होती है? साथ ही तीसरा एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उस भाषा के बोलने वाले लोगों का आत्मबल कितना महान है? परन्तु यह भारत का दुर्भाग्य ही है कि हिन्दी अपने ही देश में तुच्छ समझी जा रही है।  हमें केवल इतना ही करना है कि हम अपना आत्मविश्वास जगाएं और अपने भारत पर अभिमान करें। हम विश्व में श्रेष्ठतम भाषा विज्ञान एवं परंपराओं वाले देश के नागरिक हैं। केवल हीन भावना के कारण हम स्वयं को तुच्छ समझ रहे हैं, अपितु आज के इस वैज्ञानिक युग में भी संस्कृत का भाषा विज्ञान कंप्यूटर के लिए सर्वोत्तम पाया गया है।
 
यद्यपि सरकारी स्तर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य किए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन अर्थात 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने हिन्दी को केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा बनाने का निर्णय लिया था। हिन्दी को देश के अधिकतर क्षेत्रों में हिन्दी बोली एवं पढ़ी जाती है, इसलिए हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया गया था। यह भारतीय संविधान के भाग-17 के अध्याय की अनुच्छेद-343(1) में वर्णित है कि संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अन्तरराष्ट्रीय होगा।
हिन्दी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए वर्ष 1953 से देशभर में 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। हिन्दी दिवस के अवसर पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दौरान हिन्दी निबन्ध लेखन, वाद-विवाद, हिन्दी टंकण प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही 14 सितम्बर से हिन्दी सप्ताह मनाया जाता है। इस पूरे सप्ताह विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।
 
हिन्दी दिवस पर हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए उत्कृष्ट कार्य करने हेतु राजभाषा गौरव पुरस्कार और राजभाषा कीर्ति पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। राष्ट्रभाषा गौरव पुरस्कार तकनीकी या विज्ञान के विषय पर लिखने वाले किसी भी भारतीय नागरिक को प्रदान किया जाता है। इसमें दस हजार रुपये से लेकर दो लाख रुपये के 13 पुरस्कार होते हैं। इसमें प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने वाले को दो लाख रुपये, द्वितीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले को डेढ़ लाख रुपये तथा तृतीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले को 75 हजार रुपये प्रदान किए जाते हैं। साथ ही दस लोगों को प्रोत्साहन पुरस्कार के रूप में दस-दस हजार रुपये प्रदान किए जाते हैं। पुरस्कार प्राप्त करने वाले लोगों को धनराशि के साथ प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिह्न भी प्रदान किया जाता है। इसका उद्देश्य तकनीकी एवं विज्ञान के क्षेत्र में हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाना है। राष्ट्रभाषा कीर्ति पुरस्कार किसी विभाग, समिति, मंडल आदि को उनके द्वारा हिन्दी में किए गए श्रेष्ठ कार्यों के लिए दिया जाता है। इस पुरस्कार के अंतर्गत कुल 39 पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। इसका उद्देश्य सरकारी कार्यालयों में हिन्दी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना है।
 
इसमें कोई दो मत नहीं है कि स्वतंत्रता के लगभग साढ़े सात दशक बाद भी देश की अपनी राष्ट्र भाषा नहीं है। जब देश का एक राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय प्रतीक है। यहां तक कि राष्ट्रीय पशु-पक्षी भी एक है, तो ऐसे में महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि देश की अपनी राष्ट्र भाषा क्यों नहीं होनी चाहिए? भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी की पिछलग्गू भाषा के रूप में क्यों बने रहना चाहिए? इस पर विचार किया जाना चाहिए। देशहित में हिन्दी को न्यायपालिका से लेकर कार्यपालिका की भाषा बनाया जाना चाहिए।

Wednesday, September 4, 2024

डॉ. सौरभ मालवीय बने विद्या भारती के मंत्री

 


Friday, August 2, 2024

लव जिहाद : योगी सरकार का ऐतिहासिक निर्णय


डॉ. सौरभ मालवीय 
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निरंतर जनहित में बड़े एवं ऐतिहासिक निर्णय ले रहे हैं। इसी कड़ी में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने जबरन धर्म परिवर्तन एवं लव जिहाद के विरुद्ध नए विधेयक को पारित करवाकर एक और इतिहास रच दिया है। इसमें अतिशयोक्ति नहीं है कि जब से योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं तभी से वे भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए गंभीरता से कार्य कर रहे हैं। अपनी संस्कृति एवं धर्म की रक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है तथा वह इसी का पूर्ण निष्ठा के साथ पालन कर रहे हैं।
 
विगत दीर्घ काल से लव जिहाद के प्रकरण सामने आ रहे हैं। प्रकरणों के अनुसार प्रेम प्रसंग में पड़कर लड़कियां दूसरे धर्म के पुरुषों से विवाह कर लेती हैं। विवाह के कुछ समय पश्चात् इन लड़कियों पर ससुराल पक्ष का धर्म स्वीकार करने का दबाव बढ़ने लगता है। बहुत सी लड़कियां ससुराल पक्ष का धर्म स्वीकार करने पर विवश हो जाती हैं, क्योंकि उनके पास इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता। जो लड़कियां ऐसा नहीं करतीं, उनका जीवन नारकीय बन जाता है। उन्हें ससुराल में यातना एवं अपमान का सामना करना पड़ता है। अनेक प्रकरणों में पति अथवा ससुराल पक्ष द्वारा लड़कियों को बेच देने के मामले भी प्रकाश में आए हैं। ऐसे प्रकरणों में लड़कियों की हत्याओं के मामले भी प्रकाश में आए हैं। नि:संदेह ऐसे प्रकरण किसी भी सभ्य समाज के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।              
अब उत्तर प्रदेश में नया कानून बनने से कुछ संतोषजनक होने की आशा जगी है। उत्तर प्रदेश में जबरन धर्म परिवर्तन एवं लव जिहाद की रोकथाम के लिए ऐतिहासिक निर्णय लिया गया है। उल्लेखनीय है कि सोमवार को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में जबरन धर्म परिवर्तन एवं लव जिहाद के विरुद्ध नया विधेयक प्रस्तुत किया, जो मंगलवार को पारित हो गया। इसे उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक-2024 नाम दिया गया है। इस नए विधेयक के अनुसार नाबालिग लड़की का लव जिहाद के लिए अपहरण करने तथा उसे बेचने पर आजीवन कारावास एवं एक लाख रुपए तक के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है। यदि किसी नाबालिग, दिव्यांग अथवा मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्ति, महिला, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो दोषी को आजीवन कारावास के साथ-साथ एक लाख रुपए का आर्थिक दंड भी दिया जा सकता है। इसी प्रकार सामूहिक रूप से जबरन धर्म परिवर्तन पर भी आजीवन कारावास एवं एक लाख रुपए के आर्थिक दंड का प्रावधान है।
 
ऐसे प्रकरण भी सामने आते रहते हैं कि भारत में धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए विदेशों से भारी मात्रा में धनराशि आती है। योगी सरकार की दूरदर्शिता के कारण अब इस पर भी रोकथाम लग सकेगी। इस विधेयक में विदेशों से धर्म परिवर्तन के लिए आने वाले धन पर भी अंकुश लगाने हेतु कठोर प्रावधान किए गए हैं। विदेशी अथवा अपंजीकृत संस्थाओं से धन प्राप्त करने पर 14 वर्ष तक का कारावास तथा 10 लाख रुपए के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है। यदि कोई धर्म परिवर्तन के लिए किसी व्यक्ति के जीवन अथवा उसकी धन-संपत्ति को भय अथवा हानि में डालता है, उस पर बल प्रयोग करता है, उसे विवाह का झांसा देता है, लालच देकर किसी नाबालिग, महिला या व्यक्ति को बेचता है, तो उसके लिए न्यूनतम 20 वर्ष के कारावास का प्रावधान किया गया है। प्रकरण की गंभीरता के अनुसार इसमें वृद्धि भी की जा सकती है। दोषी को पीड़ित के उपचार एवं पुनर्वास के लिए भी आर्थिक दंड चुकाना होगा। अब जबरन धर्म परिवर्तन के संबंध में कोई भी व्यक्ति प्राथमिकी दर्ज करवा सकता है। इससे पूर्व केवल पीड़ित व्यक्ति, उसके परिवारजन अथवा संबंधी ही प्राथमिकी दर्ज करवा सकते थे।
इस प्रकार योगी सरकार ने जबरन धर्म परिवर्तन रोकने की दिशा में प्रथम पग उठा लिया है। अब इस विधेयक को विधानसभा से पारित होने के पश्चात विधान परिषद भेजा जाएगा। तत्पश्चात इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। उसके पश्चात् इसे राष्ट्रपति को भेजा जाएगा।
 
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व नवंबर 2020 में योगी सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया था। इसके पश्चात् फरवरी 2021 में उत्तर प्रदेश विधानमंडल के दोनों सदनों ने इस विधेयक को पारित कर दिया था। इस प्रकार उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम- 2021 अस्तित्व में आया था। इस विधेयक के अंतर्गत दोषी को एक से 10 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान था। इस विधेयक के अंतर्गत केवल विवाह के लिए किया गया धर्म परिवर्तन ही अमान्य था। किसी से झूठ बोलकर अथवा उसे धोखा देकर धर्म परिवर्तन को अपराध माना गया था। यदि कोई स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करता है तो उसे दो माह पूर्व मजिस्ट्रेट को सूचित करने का प्रावधान था। विधेयक के अनुसार जबरन अथवा धोखे से धर्म परिवर्तन के लिए 15 हजार रुपए आर्थिक दंड के साथ एक से डेढ़ वर्ष के कारावास का प्रावधान था। यदि दलित लड़की का धर्म परिवर्तन होता है तो 25 हजार रुपए के आर्थिक दंड के साथ तीन से 10 वर्ष के कारावास का प्रावधान था।
 
उल्लेखनीय है कि जबरन धर्मांतरण के दृष्टिगत देश के कई राज्यों में जबरन धर्म परिवर्तन विरोधी कानून लागू हैं। इनमें ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, हिमाचल प्रदेश एवं हरियाणा सम्मिलित हैं। महारष्ट्र में भी जबरन धर्म परिवर्तन के विरुद्ध विधेयक लाने की बात कही जाती रही है, किंतु इस संबंध में कोई विशेष प्रगति नहीं हो सकी है।   
 
पूर्व के कानून की तुलना में नए कानून को अधिक सशक्त एवं कठोर बनाया है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लव जिहाद के प्रकरण रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। हिन्दुत्ववादी संगठन लम्बे समय से कठोर कानून की मांग करते आ रहे हैं। उनका तर्क है कि कठोर कानून से ही उनकी बहन-बेटियां सुरक्षित रह सकेंगी। देश में एक वर्ग ऐसा भी है जो लव जिहाद को ‘मिथ्या’ की संज्ञा देता है। इस वर्ग का कहना है कि देश में ‘लव जिहाद’ नाम की कोई चीज नहीं है। प्रश्न यह भी है कि यदि ऐसा है तो फिर यही वर्ग इस प्रकार के कानूनों की आलोचना क्यों करता है?     
 
वास्तव में यह विधेयक किसी समुदाय या वर्ग विशेष के विरुद्ध नहीं है, अपितु यह केवल जबरन धर्म परिवर्तन के विरुद्ध है। स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करने पर कोई रोक नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर का कहना है- "कानून में जो संशोधन और सुधार हो रहा है उसके पीछे यह मकसद है कि और कड़ाई से नियम लागू हों और इस तरह की चीजें न हो। विपक्ष जो कह रहा है कि यह सिर्फ मुसलमानों के लिए है, यह कानून सभी धर्मों के लोगों के लिए बनाया गया है, सिर्फ एक धर्म के लिए नहीं, वे इसका विरोध सिर्फ इसलिए करते हैं ताकि मुसलमान उनका गुलाम बना रहे और उन्हें वोट देता रहे, वे सरकार बनाते रहें और मुसलमानों को धोखा देते रहें।"
 
कुछ लोग कहते हैं कि प्रेम धर्म नहीं देखता है। यदि प्रेम की बात की जाए, तो प्रेम त्याग का दूसरा रूप है। प्रेम की बात करने वाले लोगों को त्याग के नाम पर सांप सूंघ जाता है। यह कैसा प्रेम है, जो केवल लड़की से उसकी धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान छीन लेता है। यदि पुरुष इतना ही प्रेम करने वाला है, तो वह लड़की का धर्म स्वीकार क्यों नहीं करता? यह कैसा एक पक्षीय प्रेम है?  प्रेम के नाम पर धोखा, छल और साजिश तो नहीं ?
(लेखक – राजनीतिक विश्लेषक हैं)
 

Saturday, July 27, 2024

साहित्य में मनभावन सावन


डॉ. सौरभ मालवीय 
वर्षा ऋतु कवियों की प्रिय ऋतु मानी जाती है। इस ऋतु में सावन मास का महत्व सर्वाधिक है। ज्येष्ठ एवं आषाढ़ की भयंकर ग्रीष्म ऋतु के पश्चात सावन का आगमन होता है। सावन के आते ही नीले आकाश पर काली घटाएं छा जाती हैं। जब वर्षा की बूंदें धरती पर पड़ती हैं, तो संपूर्ण वातावरण मिट्टी की सुगंध से भर जाता है। प्रकृति झूम उठती है। वृक्ष-पौधे झूमने लगते हैं। मनुष्य ही नहीं, अपितु सभी जीव-जंतु प्रसन्न हो जाते हैं। जिसे तन-मन अनुभव करता है, उस ऋतु का शब्दों में उल्लेख करना कोई सरल कार्य नहीं है। किंतु हमारे कवियों ने इस ऋतु को बहुत ही सुंदर शब्दों में बांधकर इसे काव्य के रूप में प्रस्तुत किया है। वेदों की ऋचाओं की अनुभूति सावन के मनोहर भाव को व्यक्त की है ।
 
कविता का कोई भी काल रहा हो, सभी काल के कवियों ने वर्षा ऋतु पर जमकर लिखा है। भक्तिकाल एवं रीतिकाल के संधि कवि सेनापति वर्षा ऋतु का चित्रण करते हुए कहते हैं कि मेघ बहुत जल बरसाते हैं एवं सारंग की भांति ध्वनि करते हैं। मोर अत्यंत सुंदर लगते हैं तथा वे मेघ के घिर आने पर प्रसन्नचित्त होते हैं। मेघ वर्षा जल देने के कारण जीवन के आधार माने जाते हैं। कवि सेनापति के शब्दों में-
सारंग धुनि सुनावै घन रस बरसावै,
मोर मन हरषावै अति अभिराम है।
जीवन अधार बड़ी गरज करनहार,
तपति हरनहार देत मन काम है।।
सीतल सुभग जाकी छाया जग सेनापति,
पावत अधिक तन मन बिसराम है।
संपै संग लीने सनमुख तेरे बरसाऊ,
आयौ घनस्याम सखि मानौं घनस्याम है।।
 
रीतिबद्ध काव्य के आचार्य कवि देव अपनी कविता में विरहिणी नायिका की मनोव्यथा का वर्णन करते हैं।
नायिका कह रही है कि मैंने रात्रि में एक स्वप्न देखा, जिसमें मुझे प्रतीत हुआ कि झरझर का शब्द करती हुई झीनी-झीनी बूंदे गिर रही हैं एवं गर्जना के साथ आकाश में घटाएं घिरी हुई हैं। उस वातावरण में श्रीकृष्ण ने आकर मुझसे कहा है कि चलो आज झूला झूलते हैं। प्रियतम का यह प्रस्ताव सुनकर मैं अत्यधिक प्रसन्न हो गई। कवि देव कहते हैं-
झहरि-झहरि झीनी बूंद है परति मानो,
घहरि-घहरि घटा घिरी है गगन में।
आनि कह्यो स्याम मो सों, चलो झूलिबे को आजु,
फूली ना समानी, भयी ऐसी हौं मगन मैं।।
चाहति उठ्योई, उड़ि गयी सो निगोड़ी नींद,
सोय गये भाग मेरे जागि वा जगन में।
आंखि खोलि देखौं तो मैं घन हैं न घनस्याम,
वेई छायी बूंदें मेरे आंसू ह्वै दृगन में।।
 
अयोध्या नरेश एवं रीतिकाल की स्वच्छंद काव्य-धारा के अंतिम कवि द्विजदेव ने भी वर्षा ऋतु का सुंदर वर्णन किया है। वे कहते हैं-
कारी नभ कारी निसि कारियै डरारी घटा,
झूकन बहत पौन आनंद को कंद री।
'द्विजदेव' सांवरी सलोनी सजी स्याम जू पै,
कीन्हौं अभिसार लखि पावस अनंद री।
नागरी गुनागरी सु कैसें डरै रैनि डर,
जाके संग सोहैं ए सहायक अमंद री।
बाहन मनोरथ उमाहिं संगवारी सखी,
मैन मद सुभट मसाल मुख चंद री।।
 
सितारगढ़ के नरेश शंभुनाथ सिंह सोलंकी 'नृप शंभु ने सावन का अत्यंत मनोहारी चित्रण किया है। इन्हें शंभु कवि एवं नाथ कवि के नाम से भी जाना जाता है। वे मनभावान सावन का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
सावन के मास मनभावन के संग प्यारी,
अटा पर ठाढ़ी भई घटा अंधियारी में।
दामिनी के धोखे चक चौंझे दृग कवि नाथ,
छबिन सों मुरि दुरै पिय अंग वारी में।।
कोटि रति वारों ऐसी राधाजू के रूप पर,
रंभा रंक कहा शंक शची के निहारी में।
पागि रही रस जागि रही ज्योति लाजनि में,
नेह भीजो वेह मेह भीजो श्वेत सारी में।।
 
रीतिकाल के कवि घनश्याम शुक्ल सावन में उमड़-उमड़ कर आ रही घटाओं के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं-
उमड़ि घुमड़ि घन आवत अटान चोट,
घन-घन जोति छटा छटकि-छटकि जात।
सोर करें चातक चकोर पिक चहवार
मोर ग्रीव मोरि-मोरि मटकि-मटकि जात।।
सावन लौं आवन सुनो है घनश्याम जू को,
आंगन लौ आय-पांय पटकि-पटकि जात।
हिये बिरहानल की तपनि अपार उर,
हार गज मोतिन को चटकि-चटकि जात।।
 
रीतिकालीन कवि श्रीपति जल से भरे मेघों का वर्णन करते हैं कि किस प्रकार वे दसों दिशाओं से दामिनी साथ लाते हैं। वे कहते हैं-
जलभरे झूमैं मानो भूमै परसत आय,
दसहू दिसान घूमैं दामिनी लए लए।
धूरिधार धूमरे से, धूमसे धुंधारेकारे,
धुरवान धारे धावैं छबिसों छए छए।।
श्रीपति सुकवि कहै घेरि घेरि घहराहिं,
तकत अतन तन ताव तैं तए तए।
लाल बिनु केसे लाज चादर रहैगी आज,
कादर करत मोहिं बादर नए नए।।
 
अंबिकादत्त व्यास भी मेघों का अति चित्रण करते हुए कहते हैं-
मेघ देस-देस नट खट आसा पूरि आये,
कान्हर लै गूजरी हिंडोर छबि छाकी है।
दीप-दीप भैरव भये हैं नारि बृंदन सों,
ललित सुहाई लीला सारंग छटा की है।
श्यामल तमाल कोस कोस लौं कुमोद कीनों,
अंबादत्त सोहनी त्यों छाया बदरा की है।
कोऊ सुघरई सों श्रीकृष्ण को जु पाऔं तब,
आली या कल्यान की बहार बरसा की है।।
 
कवि कवींद्र 'उदयनाथ' सावन में ग्राम के वातावरण का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
लाग्यो यह सावन सनेह सरसावन,
सलिल बरसावन पटाधर ठटान को।
गोरी गांव गांवन लगी हैं गीत गावन,
हिंडोरो झूम लावन उठान छ्वै अटान को।।
भनत कबिंद्र बिरहीजन सतावन सो,
देखो चमकावनरी बिज्जुल छटान को।
प्यारे परौ पांवन लला को लीजै नावन सो,
देखो आजु आवन सुहावन घटान को।।
 
सुमित्रानंदन पंत सावन के अनुपम सौन्दर्य का चित्रण करते हुए कहते हैं-
झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरतीं बूंदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।
ऐसे पागल बादल बरसे नहीं धरा पर,
जल फुहार बौछारें धारें गिरतीं झर झर।
आंधी हर हर करती, दल मर्मर तरु चर् चर्
दिन रजनी औ पाख बिना तारे शशि दिनकर।
 
सुप्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ सावन के आगमन का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
जेठ नहीं, यह जलन हृदय की,
उठकर जरा देख तो ले;
जगती में सावन आया है,
मायाविन! सपने धो ले।
जलना तो था बदा भाग्य में
कविते! बारह मास तुझे;
आज विश्व की हरियाली पी
कुछ तो प्रिये, हरी हो ले।
 
जयशंकर प्रसाद सावन की रात्रि के सौन्दर्य को अपने शब्दों में बांधते हुए कहते हैं-
नव तमाल श्यामल नीरद माला भली
श्रावण की राका रजनी में घिर चुकी,
अब उसके कुछ बचे अंश आकाश में
भूले भटके पथिक सदृश हैं घूमते।
अर्ध रात्रि में खिली हुई थी मालती,
उस पर से जो विछल पड़ा था, वह चपल
मलयानिल भी अस्त व्यस्त हैं घूमता
उसे स्थान ही कहीं ठहरने को नहीं।
 
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना अपनी प्रेमिका को संबोधित करते हुए कहते हैं-
मेरी सांसों पर मेघ उतरने लगे हैं,
आकाश पलकों पर झुक आया है,
क्षितिज मेरी भुजाओं से टकराता है,
आज रात वर्षा होगी।
कहां हो तुम?
 
कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं-
लाए कौन संदेश नए घन!
अम्बर गर्वित,
हो आया नत,
चिर निस्पंद हृदय में उसके
उमड़े री पुलकों के सावन!
लाए कौन संदेश नए घन!
 
हरिवंशराय बच्चन वर्ष ऋतु में चलने वाली हवा को अनुभव करते हुए कहते हैं-
बरसात की आती हवा।
वर्षा-धुले आकाश से,
या चन्द्रमा के पास से,
या बादलों की सांस से;
मघुसिक्त, मदमाती हवा,
बरसात की आती हवा।
यह खेलती है ढाल से,
ऊंचे शिखर के भाल से,
अस्काश से, पाताल से,
झकझोर-लहराती हवा;
बरसात की आती हवा।
 
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' कहते हैं-
सखी ! बादल थे नभ में छाये
बदला था रंग समय का
थी प्रकृति भरी करूणा में
कर उपचय मेघ निश्चय का।
वे विविध रूप धारण कर
नभ–तल में घूम रहे थे
गिरि के ऊंचे शिखरों को
गौरव से चूम रहे थे।
 
त्रिलोक सिंह ठकुरेला सावन में कृषकों का उल्लेख करते हुए कहते हैं-
सावन बरसा जोर से, प्रमुदित हुआ किसान।
लगा रोपने खेत में, आशाओं के धान।।
आशाओं के धान, मधुर स्वर कोयल बोले।
लिये प्रेम-संदेश, मेघ सावन के डोले।
‘ठकुरेला’ कविराय, लगा सबको मनभावन।
मन में भरे उमंग, झूमता गाता सावन।।
 
दुष्यंत कुमार कहते हैं-
दिन भर वर्षा हुई
कल न उजाला दिखा
अकेला रहा
तुम्हें ताकता अपलक।
 
आती रही याद
इंद्रधनुषों की वे सतरंगी छवियां
खिंची रहीं जो
मानस-पट पर भरसक।
 
कलम हाथ में लेकर
बूंदों से बचने की चेष्टा की-
इधर-उधर को भागा
भींग गया पर मस्तक
(लेखक – स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
 

Wednesday, July 24, 2024

नये शिक्षा सत्र का उत्साह


डॉ. सौरभ मालवीय

शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र प्रारंभ हो चुका है। प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में प्राय: नया शिक्षा सत्र अप्रैल महीने में आरंभ हो जाता है, किन्तु उच्च शिक्षा के संस्थानों में जुलाई से ही नये शिक्षा सत्र का प्रारंभ होता है। यदि देखा तो वास्तव में सभी शिक्षण संस्थानों में नया शिक्षा सत्र जुलाई महीने में ही आरंभ होता है। इससे पूर्व का समय तो शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने, पुस्तकें, स्टेशनरी, बैग और यूनिफॉर्म आदि खरीदने में व्यतीत हो जाता है। जो समय मिलता है, उसमें विद्यार्थी अपनी नई पुस्तकों से परिचय करते हैं। प्राय: विद्यार्थी भाषा की पुस्तकें पढ़ते हैं, क्योंकि उनमें कथाएं होती हैं, जो बच्चों को अति प्रिय हैं।
 
कुछ समय विद्यालय जाने के पश्चात ग्रीष्म कालीन अवकाश आ जाता है। यह ग्रीष्म कालीन अवकाश ग्रीष्म ऋतु के मध्य में आता है। इस समयावधि में अत्यधिक भीषण गर्मी पड़ती है। प्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश मई के अंतिम सप्ताह से लेकर पूरे जून तक रहता है। इस समयावधि में उच्च तापमान के कारण सभी विद्यालय एवं महाविद्याल बंद रहते हैं।  
 
बच्चे ग्रीष्मकालीन अवकाश की वर्षभर प्रतीक्षा करते हैं, क्योंकि इसमें उन्हें सबसे अधिक दिनों का अवकाश प्राप्त होता है। बच्चों के लिए ग्रीष्म कालीन अवकाश किसी पर्व से कम नहीं होता। इस समयावधि में उन्हें कोई चिंता नहीं होती अर्थात उन्हें न तो प्रात:काल में शीघ्र उठकर विद्यालय जाने की चिंता होती है और न ही गृहकार्य करने की कोई चिंता होती है। प्राय: ग्रीष्म कालीन अवकाश में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपनी नानी के घर जाते हैं। वहां वे अपने ननिहाल के लोगों से मिलते हैं। सब उन्हें बहुत लाड़-प्यार करते हैं। नानी उन्हें बहुत सी कहानियां सुनाती हैं। नाना और मामा उन्हें घुमाने के लिए लेकर जाते हैं और उन्हें उनके पसंद के खिलौने दिलवाते हैं। आज के एकल परिवार के युग में बच्चे अपने माता- पिता के साथ अपने दादा-दादी के घर भी जाते हैं। वहां भी उन्हें बहुत ही लाड़- प्यार मिलता है। नानी की तरह दादी भी बच्चों को कहानियां सुनाती हैं। इन कथा- कहानियों के माध्यम से वे बच्चों में संस्कार पोषित करती हैं, जो उनके चरित्र का निर्माण करते हैं। यही संस्कार जीवन में उनका मार्गदर्शन करते हैं। अपने पैतृक गांव अथवा नगरों में जाने से वे वहां की संस्कृति से जुड़ते हैं। अपने सगे-संबंधियों से मिलते हैं। इससे उन्हें अपने संबंधों का पता चलता है। उनमें अपने संबंधियों के प्रति स्नेह का भाव पैदा होता है। वे अपने संबंधियों के प्रति अपने दायित्व को भी समझते हैं।
 
ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान बच्चे अपने माता- पिता के साथ पर्यटन स्थलों पर भी जाते हैं। अधिकतर लोग ऐसे स्थानों पर जाते हैं, जहां तापमान कम रहता है। ये पहाड़ी क्षेत्र होते हैं। इससे वे वहां की संस्कृति एवं रीति- रिवाजों के बारे में जान पाते हैं। इसके अतिरिक्त वे धार्मिक स्थलों एवं ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों पर भी घूमने जाते हैं। घूमने का अर्थ केवल सैर सपाटा और मनोरंजन करना नहीं है, अपितु पर्यटन से बहुत सी शिक्षाएं मिलती हैं। धार्मिक स्थलों पर जाने से मन को शान्ति प्राप्त होती है तथा बच्चे अपने गौरवशाली संस्कृति से जुड़ पाते हैं। उन्हें अपने ईष्ट देवी-देवताओं के बारे में जानने का अवसर मिलता है। उनमें आस्था का संचार होता है। उनका आत्मबल एवं आत्म विश्वास बढ़ता है। ऐतिहासिक स्थलों पर जाने से उन्हें अपने इतिहास को जानने का अवसर प्राप्त होता है। ये व्यवहारिक ज्ञान है, जो उन्हें आने- जाने से प्राप्त होता है। यह उनके लिए आवश्यक भी है। वे जिन चीजों के बारे में पुस्तकों में पढ़ते उनके बारे में उन्हें सहज जानकारी प्राप्त होती है। इसका उनके मन- मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।          
 
शिक्षकों द्वारा ग्रीष्मकालीन अवकाश के लिए भी विद्यार्थियों को गृहकार्य दिया जाता है। इस दौरान विद्यालय अवश्य बंद रहते हैं, किन्तु ट्यूशन सेंटर खुले रहते हैं। बच्चे ट्यूशन के लिए जाते हैं और अपना गृहकार्य भी करते हैं। इसके अतिरिक ग्रीष्म कालीन अवकाश के दौरान बहुत से संस्थान अनेक प्रकार के कम समयावधि वाले कोर्स प्रारंभ करते हैं, उदाहरण के लिए चित्रकला, संगीत, गायन, नृत्य, मिट्टी के खिलौने बनाने, सजावटी सामान बनाना आदि। इस समयावधि में बच्चों को अपनी रुचि के अनुसार कार्य करने एवं नई- नई चीजें सीखने का अवसर प्राप्त होता है। बहुत से बच्चे खेलों की ओर रुझान करते हैं। समय अभाव के कारण वे खेल नहीं पाते थे, किन्तु अवकाश में उन्हें अपनी पसंद के खेल खेलने का अवसर मिल जाता है। क्षेत्र के बच्चे अपनी-अपनी टीमें बना लेते हैं और आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं. इससे उनमें खेल भावना का विकास होता है। किसी भी खिलाड़ी के खेल का प्रारंभ इसी प्रकार होता है। पहले वे अपने मित्रों के साथ खेलता है. फिर इसी प्रकार वह खेल स्पर्धाओं में खेलने लगता है। इस प्रकार एक दिन वह देश के लिए पदक जीतने वाला खिलाड़ी बन जाता है। वास्तव में यह समय बच्चों के नैसर्गिक गुणों को निखारने का कार्य करता है।                     
 
ग्रीष्म कालीन अवकाश व्यतीत होने के पश्चात विद्यालय व अन्य शिक्षण संस्थान पुन: खुल जाते हैं। विद्यार्थियों की दिनचर्या पुनः पूर्व की भांति हो जाती है। वे प्रात:काल में शीघ्र उठ जाते हैं। नित्य कर्म से निपटने के पश्चात विद्यालय जाने के लिए तैयार होते हैं। वे नाश्ता करके घर से निकल जाते हैं। दिनचर्या केवल बच्चों की ही परिवर्तित नहीं होती, अपितु उनके साथ- साथ उनके माता- पिता की दिनचर्या भी परिवर्तित हो जाती है। उनकी माता प्रातः काल में शीघ्र उठकर उनके लिए नाश्ता बनाती है। उनके लिए टिफिन तैयार करती है। उन्हें विद्यालय या स्कूल बस तक छोड़ने जाती है। बहुत सी माताएं बच्चों को विद्यालय लेकर भी जाती हैं और उन्हें वापस भी लाती हैं। बहुत से विद्यालयों के बाहर दोपहर में महिलाएं अपने बच्चों की प्रतीक्षा में खड़ी रहती हैं। बहुत से बच्चों को उनके पिता विद्यालय छोड़ने जाते हैं।                             
 
नये शिक्षा सत्र में बच्चे बहुत प्रसन्न दिखाई देते हैं। उनकी कक्षा का एक स्तर बढ़ जाता है। वे स्वयं को पहले से श्रेष्ठ अनुभव करते हैं। पिछली कक्षा में भी उन्होंने कड़ा परिश्रम किया था। उसके कारण ही परीक्षा में वे सफलता प्राप्त कर पाए। परिणामस्वरूप अब वह उससे अगली कक्षा में अर्थात उससे ऊंची कक्षा में हैं। जब विद्यालय खुले थे, तब बहुत अधिक गर्मी थी। बच्चे गर्मी से व्याकुल थे, किन्तु उनके चेहरे पर उत्साह के भाव दिखाई दे रहे थे। बहुत से विद्यालयों में रोली एवं तिलक लगाकर बच्चों का स्वागत किया गया है। यह एक अच्छी पहल है। इससे बच्चों में अपनी संस्कृति के प्रति लगाव उत्पन्न होता है।

Monday, May 27, 2024

छात्र संवाद

  



Thursday, May 23, 2024

लखनऊ विश्वविद्यालय में हुआ देवर्षि नारद जयंती समारोह का आयोजन

  





देवर्षि नारद जयंती के पावन अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय और विश्व संवाद केन्द्र के संयुक्त तत्वाधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन एपी सेन सभागार में किया गया। संगोष्ठी कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों को पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया गया। देवर्षि नारद जयंती के पावन अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग और विश्व संवाद केन्द्र के संयुक्त तत्वाधान में लखनऊ विश्वविद्यालय के एपी सेन सभागार में राष्ट्रीय संगोष्ठी का देवर्षि नारद जी की वेदसम्मत नीतियां और वर्तमान भारतीय पत्रकारिता विषय पर आयोजन हुआ। 

राष्ट्रीय संगोष्ठी की प्रस्तावना को आरंभ करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अवध प्रान्त के प्रांत प्रचार प्रमुख डॉ. अशोक दुबे ने कहा कि देवर्षि नारद जी  के संचार के विविध सोपानो  के माध्यम से हम जानते हैं। देवर्षि नारद ने हमेशा लोकमंगल की पत्रकारिता की। डॉ. दुबे ने बताया की पत्रकारिता शब्द भारत का नहीं है बल्कि भारत में तो भौतिक समृद्धि के साथ साथ आध्यात्मिकता अधिष्ठान पर भी बल दिया गया है। हमारे यहां सामाजिक कार्यों में कार्य करते हुए विशेष पूजन होता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में देवर्षि नारद हमारी संस्कृति में पूजनीय है। हजारों वर्षों के इतिहास काल में हमारे यहां विभिन्न संघर्षों के साथ अपने विचारो पर अडिग रहे। पत्रकारिता जगत में समाचार का विशेष योगदान है। 

राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्र प्रचार प्रमुख और मुख्य वक्ता सुभाष जी ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि देवर्षि नारद भगवान के मन है, विद्वान है और संचारक है। पत्रकारिता का मूल तत्व जिज्ञासा है। जिज्ञासा होगी तो जानकारी प्राप्त हो सकती है। सुभाष ने किसी भी प्राणिपाति व्यक्ति को स्वयं को जानना है। नारद संवाद शैली में पारंगत के साथ साथ समाज कल्याण के लिए आदर्श है। हमें अपनी पत्रकारिता के माध्यम से जनकल्याण की सूचनाओं को सामने लाना ही आदर्श पत्रकारिता है। सत्य की आराधना करने से जन कल्याण संभव हैं। सत्य के लिए भारत में कहा भी जाता है कि सत्यमेव जयते। देवर्षि नारद सत्य का आचरण, निष्ठा और आग्रह करना है। भारत के पत्रकारों ने सत्याग्रही बनकर अपनी लेखनी से समाज को जागरण का कार्य करते रहे। जिससे भारत के सफल लोकतंत्र की स्थापना हुई। सुभाष ने कहा कि हमारे यहां चिंतन व्यवहारिक होना चाहिए। देवर्षि नारद का शील ही संदेश है। नारद केवल संचारक ही नहीं उद्धारक भी है। नारद जी का जीवन लोक कल्याण के लिए है। बहुजन समाज के लिए है। नारद जी चरवैति- चरवैति के द्योत हैं। सुंदरता के साथ दिव्यता होनी चाहिए जिसके बाद ही पूर्णता संभव है। हमें पत्रकारिता की पूर्णता तक जाना चाहिए। समन्वय का आधार ही संगीत है कहा भी गया है मिले स्वर मेरा तुम्हारा तो स्वर बने हमारा। यह सभी समन्वय का रूप है। पत्रकारिता एक दीपक के समान है जिसका कार्य अन्तत चलते रहना है। 

राष्ट्रीय संगोष्ठी के सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय ने कहा कि आज की पत्रकारिता में द्वंद है। पहले की पत्रकारिता मिशन थी जबकि आज की पत्रकारिता अधर में ही लटकी हुई है। देवर्षि नारद की संचार शैली आज की संचार शैली से अलग है। आज की पत्रकारिता में समन्वय और संतुलन बनाए रखना है। आज लगभग नकारात्मक खबरें ही लीड खबर बनती है। दुनिया में भी लीड खबर की मूल अवधारणा में नकारात्मकता है। भारत के मीडिया को इस नैरेटिव से बाहर आने की आवश्यकता है। मानव सभ्यता का विकास विविधता में होता है। हमें देवर्षि नारद के सत्यान्वेषण की ओर ले जाना चाहिए। 

संगोष्ठी के अन्तिम सत्र में लेखक, वरिष्ठ पत्रकार और विश्व संवाद केंद्र के अध्यक्ष नरेंद्र भदौरिया ने कहा कि भारत के दर्शन और संस्कृति को पाश्चात्य देशों द्वारा हमेशा नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया। हमें अपनी संस्कृति पर संशय नहीं करना है। आज की पत्रकारिता ने सोशल मीडिया के सामने घुटने टेक दिए हैं। भदौरिया ने कहा की भारत का विज्ञान सबसे उत्तम है। हमें पाश्चत्य मीडिया के सामने नहीं झुकना है। हमें साहस से दिशा मोड़नी है। राष्ट्रीय संगोष्ठी के इस कार्यक्रम का आभार अशोक सिन्हा ने किया।

 राष्ट्रीय संगोष्ठी कार्यक्रम का संचालन डॉ. सौरभ मालवीय ने किया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अवध के सह प्रचार प्रमुख डॉ. शचीन्द्रनाथ , डॉ लोकनाथ, प्रांत सह संपर्क प्रमुख डॉक्टर हरनाम सिंह, प्रांत धर्म जागरण प्रमुख सुरेंद्र, भाषा विश्वविद्यालय के उपकुलानुशाक डॉ.मनीष कुमार, वरिष्ठ पत्रकार भारत सिंह, बृजनंदन राजू, डॉ. संतोष आदि  विभिन्न संस्थाओं के पत्रकार और विभिन्न संस्थाओं के पत्रकारिता के विद्यार्थी उपस्थित रहे।

Wednesday, May 22, 2024

पुस्तक 'अं'त्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश' भेंट की




कुशीनगर विधानसभा के लोकप्रिय विधायक श्री पी एन पाठक जी को उनके जन्मदिन पर हार्दिक बधाई दी। इस  अवसर पर उन्हें अपनी पुस्तक 'अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश' भेंट की। 

भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है