Monday, December 23, 2024

सहृदय कवि अटलजी

 

अटल जी के जन्म दिवस 25 दिसंबर पर विशेष
डॊ. सौरभ मालवीय 
पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक राजनीतिज्ञ के रूप में जाना जाता है. राजनीतिज्ञ होने के अलावा वह साहित्यकार भी हैं. उन्हें साहित्य विरासत में मिला था. वह कहते हैं, ‘रामचरितमानस’ तो मेरी प्रेरणा का स्रोत रहा है. जीवन की समग्रता का जो वर्णन गोस्वामी तुलसीदास ने किया है, वैसा विश्व-साहित्य में नहीं हुआ है. बचपन से ही उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं. स्वदेश-प्रेम, जीवन-दर्शन, प्रकृति तथा मधुर भाव की कविताएं उन्हें बाल्यावस्था से ही आकर्षित करती रही हैं. उनकी कविताओं में प्रेम है, करुणा है, वेदना है. एक पत्रकार के रूप में वे बहत गंभीर दिखाई देते हैं. वे कहते हैं, मेरे भाषणों में मेरा लेखक ही बोलता है, पर ऐसा नहीं कि राजनेता मौन रहता है. मेरे लेखक और राजनेता का परस्पर समन्वय ही मेरे भाषणों में उतरता है. यह जरूर है कि राजनेता ने लेखक से बहुत कुछ पाया है. साहित्यकार को अपने प्रति सच्चा होना चाहिए. उसे समाज के लिए अपने दायित्व का सही अर्थों में निर्वाह करना चाहिए. उसके तर्क प्रामाणिक हो. उसकी दृष्टि रचनात्मक होनी चाहिए. वह समसामयिकता को साथ लेकर चले, पर आने वाले कल की चिंता जरूर करे. वे भारत को विश्वशक्ति के रूप में देखना चाहते हैं. वे कहते हैं, मैं चाहता हूं भारत एक महान राष्ट्र बने, शक्तिशाली बने, संसार के राष्ट्रों में प्रथम पंक्ति में आए.

जब वह पांचवीं कक्षा में थे, तब उन्होंने प्रथम बार भाषण दिया था. लेकिन बड़नगर में उच्च शिक्षा की व्यवस्था न होने के कारण उन्हें ग्वालियर जाना पड़ा. उन्हें विक्टोरिया कॉलेजियट स्कूल में दाख़िल कराया गया, जहां से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की. इस विद्यालय में रहते हुए उन्होंने वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया तथा प्रथम पुरस्कार भी जीता. उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण की. कॉलेज जीवन में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया था. वह 1943 में कॉलेज यूनियन के सचिव रहे और 1944 में उपाध्यक्ष भी बने. ग्वालियर की स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद वह कानपुर चले गए. यहां उन्होंने डीएवी महाविद्यालय में प्रवेश लिया. उन्होंने कला में स्नातकोत्तर उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त की. इसके बाद वह पीएचडी करने के लिए लखनऊ चले गए. पढ़ाई के साथ-साथ वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य भी करने लगे. परंतु वह पीएचडी करने में सफलता प्राप्त नहीं कर सके, क्योंकि पत्रकारिता से जुड़ने के कारण उन्हें अध्ययन के लिए समय नहीं मिल रहा था. उस समय राष्ट्रधर्म नामक समाचार-पत्र पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संपादन में लखनऊ से मुद्रित हो रहा था. तब अटलजी इसके सह सम्पादक के रूप में कार्य करने लगे. पंडित दीनदयाल उपाध्याय इस समाचार-पत्र का संपादकीय स्वयं लिखते थे और शेष कार्य अटलजी एवं उनके सहायक करते थे. राष्ट्रधर्म समाचार-पत्र का प्रसार बहुत बढ़ गया. ऐसे में इसके लिए स्वयं की प्रेस का प्रबंध किया गया, जिसका नाम भारत प्रेस रखा गया था. वह मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म के प्रथम संपादक रहे हैं. वह प्रथमांक से 26 अक्टूबर, 1950 तक इसके संपादक रहे.
अटल जी कहते हैं कि छात्र जीवन से ही मेरी इच्छा संपादक बनने की थी. लिखने-पढ़ने का शौक और छपा हुआ नाम देखने का मोह भी. इसलिए जब एमए की पढ़ाई पूरी की और कानून की पढ़ाई अधूरी छोड़ने के बाद सरकारी नौकरी न करने का पक्का इरादा बना लिया और साथ ही अपना पूरा समय समाज की सेवा में लगाने का मन भी. उस समय पूज्य भाऊ राव देवरस जी के इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया कि संघ द्वारा प्रकाशित होने वाले राष्ट्रधर्म के संपादन में कार्य करूंगा, श्री राजीवलोचन जी भी साथ होंगे. अगस्त 1947 में पहला अंक निकला और इसने उस समय के प्रमुख साहित्यकार सर सीताराम, डॉ. भगवान दास, अमृतलाल नागर, श्री नारायण चतुर्वेदी, आचार्य वृहस्पति व प्रोफेसर धर्मवीर को जोड़कर धूम मचा दी.

कुछ समय के पश्चात 14 जनवरी 1948 को भारत प्रेस से मुद्रित होने वाला दूसरा समाचार पत्र पांचजन्य भी प्रकाशित होने लगा. अटलजी इसके प्रथम संपादक बनाए गए. इस समाचार-पत्र का संपादन पूर्ण रूप से वही करते थे. 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र हो गया था. कुछ समय के पश्चात 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हुई. इसके बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित कर दिया. इसके साथ ही भारत प्रेस को बंद कर दिया गया, क्योंकि भारत प्रेस भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभाव क्षेत्र में थी. भारत प्रेस के बंद होने के पश्चात अटलजी इलाहाबाद चले गए. यहां उन्होंने क्राइसिस टाइम्स नामक अंग्रेज़ी साप्ताहिक के लिए कार्य करना आरंभ कर दिया. परंतु जैसे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगा प्रतिबंध हटा, वह पुन: लखनऊ आ गए और उनके संपादन में स्वदेश नामक दैनिक समाचार-पत्र प्रकाशित होने लगा. परंतु हानि के कारण स्वदेश को बंद कर दिया गया. वर्ष 1949 में काशी से सप्ताहिक ’चेतना’ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ. इसके संपादक का कार्यभार अटलजी को सौंपा गया. उन्होंने इसे सफलता के शिखर तक पहुंचा दिया.

फिर वर्ष 1950 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रतिबंध हटने क बाद दैनिक स्वदेश का पुन: प्रकाशन शुरू हो गया. दुर्भाग्यवश वर्ष 1952 में प्रथम लोकसभा चुनाव के बाद आर्थिक संकट के कारण स्वदेश को बंद करना पड़ा. उस समय अटलजी ने इसका अंतिम संपादकीय लिखा, जिसका शीर्षक था अलविदा. यह संपादकीय बहुत चर्चित हुआ. इसके बाद वह दिल्ली आ गए और यहां से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र वीर अर्जुन में कार्य करने लगे. यह दैनिक एवं साप्ताहिक दोनों आधार पर प्रकाशित हो रहा था.
अपने संपादक कार्यकाल के बारे में अटलजी कहते हैं, उन दिनों संपादन का कार्य बड़े दायित्व का कार्य समझा जाता था. उसके साथ प्रतिष्ठा भी जुड़ी होती थी. वेतन तथा अन्य सुविधाओं पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता था. हम तो अवैतनिक संपादक ही रहे. केवल जरूरी खर्च भर के लिए ही पैसे लेते थे. सुविधाएं नाममात्र कीं, किंतु विचारधारा के प्रचार का एक अदभुत संतोष था. दैनिक समाचार-पत्रों के संपादन के बारे में वे कहते हैं, दैनिक पत्र के संपादन का आनंद तो और ही है. उसका अपना अलग ही आनंद होता है. मुझे याद है, शाम से जो कार्य प्रारंभ होता था कि कौन कितनी देर रात समाचारों को खोजता है और उनके प्रकाशन में आगे रहता है. प्राय: प्रतिदिन भोर में जब चिड़ियां चहचहाने लगती थीं, तो थकान से चूर होकर खाट पर लेटते थे. और ऐसी गहरी नींद आती थी कि उसका स्मरण कर इस समय भी मन पुलकित हो जाता है.

अटलजी कहते हैं, ‘रामचरितमानस’ तो मेरी प्रेरणा का स्रोत रहा है. जीवन की समग्रता का जो वर्णन गोस्वामी तुलसीदास ने किया है, वैसा विश्व-साहित्य में नहीं हुआ है. काव्य लेखन के बारे में उनका कहना है, साहित्य के प्रति रुचि मुझे उत्तराधिकार के रूप में मिली है. परिवार का वातावरण साहित्यिक था. मेरे बाबा पंडित श्यामलाल वाजपेयी बटेश्वर में रहते थे. उन्हें संस्कृत और हिन्दी की कविताओं में बहुत रुचि थी. यद्यपि वे कवि नहीं थे, परंतु काव्य प्रेमी थे. उन्हें दोनों ही भाषाओं की बहुत सी कविताएं कंठस्थ थीं. वे अकसर बोलचाल में छंदों को उदधृत करते थे. मेरे पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत के प्रसिद्ध कवि थे. वे ब्रज और खड़ी बोली में काव्य लेखन करते थे. उनकी कविता ’ईश्वर प्रार्थना’ विद्यालयों में प्रात: सामूहिक रूप से गाई जाती थी. यह सब देख-सुन कर मन को अति प्रसन्नता मिलती थी.  पिता जी की देखा-देखी मैं भी तुकबंदी करने लगा. फिर कवि सम्मेलनों में जाने लगा. ग्वालियर की हिंदी साहित्य सभा की गोष्ठियों में कविताएं पढ़ने लगा. लोगों द्वारा प्रशंसा मिली प्रशंसा ने उत्साह बढ़ाया.

अटलजी कहते हैं, सच्चाई यह है कि कविता और राजनीति साथ-साथ नहीं चल सकतीं. ऐसी राजनीति, जिसमें प्राय: प्रतिदिन भाषण देना जरूरी है और भाषण भी ऐसा जो श्रोताओं को प्रभावित कर सके, तो फिर कविता की एकांत साधना के लिए समय और वातावरन ही कहां मिल पाता है. मैंने जो थोड़ी-सी कविताएं लिखी हैं, वे परिस्थिति-सापेक्ष हैं और आसपास की दुनिया को प्रतिबिम्बित करती हैं.
अपने कवि के प्रति ईमानदार रहने के लिए मुझे काफी कीमत चुकानी पड़ी है, किंतु कवि और राजनीतिक कार्यकर्ता के बीच मेल बिठाने का मैं निरंतर प्रयास करता रहा हूं. कभी-कभी इच्छा होती है कि सब कुछ छोड़कर कहीं एकांत में पढ़ने, लिखने और चिंतन करने में अपने को खो दूं, किंतु ऐसा नहीं कर पाता.  मैं यह भी जानता हूं कि मेरे पाठक मेरी कविता के प्रेमी इसलिए हैं कि वे इस बात से खुश हैं कि मैं राजनीति के रेगिस्तान में रहते हुए भी, अपने हृदय में छोटी-सी स्नेह-सलिला बहाए रखता हूं.
अटलजी राजनीति में रहते हुए भी साहित्य से जुड़े रहे.  वे कहते हैं कि राजनीति और साहित्य दोनों ही जीवन के अंग हैं. वास्तव में ऐसा होता है कि जो लोग राजनीति से जुड़े हैं, वे साहित्य के लिए समय नहीं निकाल पाते. इसी तरह साहित्य से जुड़े लोग राजनीति के लिए समय नहीं दे पाते. किंतु ऐसे लोग भी हैं, जो दोनों से जुड़े होते हैं और दोनों के लिए ही समय देते हैं. परंतु आज के राजनेता साहित्य से दूर हैं, इसी कारण उनमें मानवीय संवेदना का स्रोत सूख-सा गया है. कवि संवेदनशील होता है. तानाशाहों में क्रूरता इसीलिए आ जाती है, क्योंकि वे संवेदनहीन होते हैं. एक कवि के हृदय में दया, क्षमा, करुणा और प्रेम होता है, इसलिए वह खून की होली नहीं खेल सकता. साहित्यकार को पहले अपने प्रति सच्चा होना चाहिए. इसके पश्चात उसे समाज के प्रति अपने दायित्य का सही अर्थों में निर्वाह करना चाहिए.  वह भले ही वर्तमान को लेकर चले, किंतु उसे आने वाले कल की भी चिंता करनी चाहिए. अतीत में जो श्रेष्ठ है, उससे वह प्रेरणा ले, परंतु यह कभी न बूले कि उसे भविष्य का सुंदर निर्माण करना है. उसे ऐसे साहित्य की रचना करनी है, जो मानव मात्र के कल्याण की बात करे.

अटलजी ने कई पुस्तकें लिखी हैं. इसके अलावा उनके लेख, उनकी कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं, जिनमें राष्टधर्म, पांचजन्य, धर्मयुग, नई कमल ज्योति, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कांदिम्बनी और नवनीत आदि सम्मिलित हैं. पत्रकार के रूप में अपना जीवन आरंभ करने वाले अटलजी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. राष्ट्र के प्रति उनकी समर्पित सेवाओं के लिए 25 जनवरी, 1992 में राष्ट्रपति ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 28 सितंबर 1992 को उन्हें ’हिंदी गौरव’ सए सम्मानित किया. इस अवसर पर उन्हें 51 हजार रुपये की धनराशि प्रदान की गई, परंतु उन्होंने उसी समय इसे सम्मान सहित संस्थान को अपनी ओर से भेंट कर दिया. अगले वर्ष 20 अप्रैल 1993  को कानपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि प्रदान की. उनके सेवाभावी और स्वार्थ त्यागी जीवन के लिए उन्हें 1 अगस्त 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार से सम्मानित किया गया.  इसके पश्चात 17 अगस्त 1994 को संसद ने उन्हें श्रेष्ठ सासंद चुना गया तथा पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया. इसके बाद 27 मार्च, 2015 भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इतने महत्वपूर्ण सम्मान पाने वाली अटलजी कहते हैं, मैं अपनी सीमाओं से परिचित हूं. मुझे अपनी कमियों का अहसास है. निर्णायकों ने अवश्य ही मेरी न्यूनताओं को नजरांदाज करके मुझे निर्वाचित किया है. सदभाव में अभाव दिखाई नहीं देता है. यह देश बड़ा है अदभुत है, बड़ा अनूठा है. किसी भी पत्थर को सिंदूर लगाकर अभिवादन किया जा सकता है.

अटलजी ने जीवन में अनेक कष्ट भी झेले, किंतु उन्होंने कभी हार नहीं मानी. हर समस्या को उन्होंने एक चुनौती के रूप में लेकर साहस से उसका सामना किया.

Sunday, December 15, 2024

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पुस्तकें भेंट कीं

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज को अपनी पुस्तकें अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश और भारतीय राजनीति के महानायक नरेन्द्र मोदी भेंट की।  

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पुस्तकें भेंट कीं

 

मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज को अपनी पुस्तकें अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश और भारतीय राजनीति के महानायक नरेन्द्र मोदी भेंट की।  

Monday, November 25, 2024

भारतीय संविधान, भारतीय जीवन दर्शन का ग्रंथ है

 

डॉ. सौरभ मालवीय
किसी भी देश के लिए एक विधान की आवश्यकता होती है। देश के विधान को संविधान कहा जाता है। यह अधिनियमों का संग्रह है। भारत के संविधान को विश्व का सबसे लम्बा लिखित विधान होने का गौरव प्राप्त है। भारतीय संविधान हमारे देश की आत्मा है। इसका देश से वही संबंध है, जो आत्मा का शरीर से होता है।

संविधान दिवस का इतिहास
भारत का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर पूर्ण हुआ था। चूंकि डॉ. भीमराव आम्बेडकर संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, इसलिए भारत सरकार द्वारा उनकी 125वीं जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को प्रथम बार संविधान दिवस संपूर्ण देश में मनाया गया। उसके पश्चात 26 नवम्बर को प्रत्येक वर्ष संविधान दिवस मनाया जाने लगा। इससे पूर्व इसे राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में मनाया जाता था। संविधान सभा द्वारा देश के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में पूर्ण किया गया था। इस पर 114 दिन तक चर्चा हुई तथा 12 अधिवेशन आयोजित किए गए। भारतीय संविधान को बनाने में लगभग एक करोड़ की लागत आई थी। भारतीय संविधान में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 11 दिसंबर 1946 में स्थाई अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। भारतीय संविधान पर 284 लोगों ने हस्ताक्षर किए थे। यह 26 नवम्बर 1949 को पूर्ण कर राष्ट्र को समर्पित किया गया। इसके पश्चात 26 जनवरी 1950 से देश में संविधान लागू किया गया। इससे पूर्व देश में भारत सरकार अधिनियम-1935 का कानून लागू था। कोई भी वस्तु पूर्ण नहीं होती है। समय के अनुसार उसमें परिवर्तन होते रहते हैं। भारतीय संविधान लागू होने के पश्चात इसमें 100 से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं। ऐसा भविष्य में भी होने की पूर्ण संभावना है।

भारतीय संविधान में सरकार के अधिकारियों के कर्तव्य एवं नागरिकों के अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया गया है। संविधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या 389 थी। इनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के 4 चीफ कमिश्नर थे, जबकि 93 सदस्य देशी रियासतों के थे। विशेष बात यह है कि देश की स्वतंत्रता के पश्चात संविधान सभा के सदस्य ही देश की संसद के प्रथम सदस्य बने थे। देश की संविधान सभा का चुनाव भारतीय संविधान के निर्माण के लिए ही किया गया था। भारतीय संविधान के अनुसार केंद्रीय कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति होता है। भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन 19 जुलाई 1946 को किया गया था। संविधान के कुछ अनुच्छेदों को 26 नवंबर 1949 को पारित किया गया, जबकि शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
 
संविधान की विशेषता
भारत एक विशाल देश है। इसमें विभिन्न संस्कृतियों के लोग निवास करते हैं। यहां विभिन्न संप्रदायों, पंथों, जातियों आदि के लोग हैं। उनके रीति-रिवाज, भाषाएं, रहन-सहन एवं खान-पान भी भिन्न-भिन्न हैं। इस सबके मध्य वे आपस में मिलजुल कर रहते हैं। वास्तव में यही भारत का स्वभाव है। भारतीय संविधान में भारत के नागरिकों को छह मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जिनका वर्णन अनुच्छेद 12 से 35 के मध्य किया गया है। इनमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार,  धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा से संबंधित अधिकार एवं संवैधानिक उपचारों का अधिकार सम्मिलित है। उल्लेखनीय है कि पहले संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, जिसे ‘44वें संविधान संशोधन- 1978 के अंतर्गत हटा दिया गया। सातवां मौलिक अधिकार संपति का अधिकार था। मूल अधिकार का एक दृष्टांत है- "राज्य नागरिकों के बीच परस्पर विभेद नहीं करेगा।“ भारतीय संविधान में भी किसी के साथ किसी भी प्रकार का भेद नहीं किया जाता। यही इसकी विशेषता है।  
 
ऋषि परम्परा का धर्मशास्त्र
भारतीय संविधान "हम भारत के लोगों" के लिए हमारी अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत जनित स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्श मूल्यों के प्रति एक राष्ट्र के रूप में हमारी प्रतिबद्धता का परिचायक है। वर्तमान के आधुनिक भारत की संकल्पना के समय संविधान निर्माताओं ने इसी सांस्कृतिक विरासत को उसके मूल स्वरूप में अक्षुण्ण रखने के ध्येय से भारतीय संविधान की मूल प्रतिलिपि में सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व के रुचिकर चित्रों को स्थान दिया, जो मूलतः भारतीय संविधान के भारतीय चैतन्य को ही परिभाषित करते हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा के अलोक में निर्मित भारतीय संविधान भारत की ऋषि परम्परा का धर्मशास्त्र है। भारतीय जीवन दर्शन का ग्रंथ है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां सबका सम्मान किया जाता है। वसुधैव कुटुम्बकम भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। यह सनातन धर्म का मूल संस्कार है। यह एक विचारधारा है। महा उपनिषद सहित कई ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां वसुधैव कुटुम्बकम् ।।
अर्थात यह मेरा अपना है और यह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो संपूर्ण धरती ही परिवार है। कहने का अभिप्राय है कि धरती ही परिवार है। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।
निसंदेह भारत के लोग विराट हृदय वाले हैं। वे सबको अपना लेते हैं। विभिन्न संस्कृतियों के पश्चात भी सब आपस में परस्पर सहयोग भाव बनाए रखते हैं। एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते हैं। यही हमारी भारतीय संस्कृति की महानता है।      
 
उल्लेखनीय है कि भारत का संविधान बहुत ही परिश्रम से तैयार किया गया है। इसके निर्माण से पूर्व विश्व के अनेक देशों के संविधानों का अध्ययन किया गया। तत्पश्चात उन पर गंभीर चिंतन किया गया। इन संविधानों में से उपयोगी संविधानों के शब्दों को भारतीय संविधान में सम्मिलित किया गया। आजादी के बाद भारत का वैचारिक दृष्टिकोण भारतीय ज्ञान परम्परा के आलोक में विकास के पाठ पर खड़ा करने का प्रयास होना चाहिए था।
भारतीय संविधान की उद्देशिका
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में,
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
 
भारतीय संविधान की इस उद्देशिका में भारत की आत्मा निवास करती है। इसका प्रत्यके शब्द एक मंत्र के समान है। हम भारत के लोग- से अभिप्राय है कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है तथा भारत के लोग ही सर्वोच्च संप्रभु है। इसी प्रकार संप्रभुता- से अभिप्राय है कि भारत किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं है। समाजवादी- से अभिप्राय है कि संपूर्ण साधनों आदि पर सार्वजनिक स्वामित्व या नियंत्रण के साथ वितरण में समतुल्य सामंजस्य। ‘पंथनिरपेक्ष राज्य’ शब्द का स्पष्ट रूप से संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। लोकतांत्रिक- से अभिप्राय है कि लोक का तंत्र अर्थात जनता का शासन। गणतंत्र- से अभिप्राय है कि एक ऐसा शासन जिसमें राज्य का मुखिया एक निर्वाचित प्रतिनिधि होता है। न्याय- से आशय है कि सबको न्याय प्राप्त हो। स्वतंत्रता- से अभिप्राय है कि सभी नागरिकों को स्वतंत्रता से जीवन यापन करने का अधिकार है। समता- से अभिप्राय है कि देश के सभी नागिरकों को समान अधिकार प्राप्त हैं। इसी प्रकार बंधुत्व- से अभिप्राय है कि देशवासियों के मध्य भाईचारे की भावना।
विचारणीय विषय यह है कि भारतीय संविधान ने देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किए हैं तथा उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया। किन्तु देश में आज भी ऊंच-नीच, अस्पृश्यता आदि जैसे बुराइयां व्याप्त हैं। इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए कानून भी बनाए गए, परन्तु इनका विशेष लाभ देखने को नहीं मिला। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है। सामाजिक समरसता भारतीय समाज का सौंदर्य है, अस्पृश्यता से संबंधित अप्रिय घटनाएं भी चर्चा में रहती हैं। इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए जागरूक लोगों को ही आगे आना चाहिए तथा सभी लोगों को अपने देश के संविधान का पालन करना चाहिए।
(लेखक- मीडिया शिक्षक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Monday, November 11, 2024

 

डॉ. सौरभ मालवीय 
उत्तर प्रदेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध राज्य है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राज्य में धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को अत्यंत प्रोत्साहित कर रहे हैं। इसके अंतर्गत योगी सरकार ने महाकुंभ के भव्य आयोजन के लिए 2,600 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है। उन्होंने महाकुंभ के सफल आयोजन के लिए संबंधित अधिकारियों को विशेष निर्देश दिए हैं। प्रशासन द्वारा सभी आवश्यक तैयारियां की जा रही हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा स्नान के साथ कुंभ मेले का शुभारंभ होगा तथा 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के अंतिम स्नान के साथ इसका समापन होगा। शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर, 3 फरवरी को बसंत पंचमी पर, 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा पर तथा 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर होगा। 
 
महाकुंभ का महत्व
प्रयागराज हिंदुओं का अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहां गंगा, यमुना एवं सरस्वती का अद्भुत संगम होता है जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेले के अवसर पर करोड़ों श्रद्धालु प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक में स्नान करके पुण्य अर्जित करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष तथा प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के मध्य छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ का शाब्दिक अर्थ घड़ा एवं मेले का अर्थ एक स्थान पर एकत्रित होना है। कुंभ मेला अमृत उत्सव के नाम से भी प्रसिद्ध है।
खगोल गणनाओं के अनुसार कुंभ मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारंभ होता है। उस समय सूर्य एवं चंद्रमा, वृश्चिक राशि में तथा वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिवस को अति शुभ एवं मंगलकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार खुल जाते हैं। इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु अमृत से भरा हुआ कुंभ लेकर जा रहे थे तभी असुरों ने उन पर आक्रमण कर दिया। अमृत प्राप्ति के लिए देव एवं दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध होता रहा। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के समान होते हैं। इसलिए कुंभ भी बारह होते हैं। इनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं तथा शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं। देव एवं दानवों के इस संघर्ष के दौरान भूमि पर अमृत की चार बूंदें गिर गईं। ये बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में गिरीं। जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं वहां पर तीर्थ स्थल का निर्माण किया गया। तीर्थ उस स्थान को कहा जाता है जहां मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस प्रकार जहां अमृत की बूंदें गिरीं, उन स्थानों पर तीन-तीन वर्ष के अंतराल पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इन तीर्थों में प्रयाग को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना एवं सरस्वती का संगम होता है। इन नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। 
 
भारत में महाकुंभ धार्मिक स्तर पर अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण आयोजन है। इसमें लाखों-करोड़ों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। इस बार के महाकुंभ में लगभग 40 करोड़ तीर्थयात्रियों के सम्मिलित होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। लगभग डेढ़ मास तक संचालित होने वाले इस आयोजन में तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए व्यवस्था की जाती है। उनके लिए टेंट लगाए जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि एक छोटी सी नगरी अलग से बसा दी गई है। यहां तीर्थयात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है। यह आयोजन प्रशासन, स्थानीय प्राधिकरणों एवं पुलिस की सहायता से आयोजित किया जाता है। इस मेले में दूर-दूर से साधु-संत आते हैं। कुंभ योग की गणना कर स्नान का शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। स्नान से पूर्व मुहूर्त में नागा साधु स्नान करते हैं। इन साधुओं के शरीर पर भभूत लिपटी रहती है। उनके बाल लंबे होते हैं तथा वे वस्त्रों के स्थान पर शरीर पर मृगचर्म धारण करते हैं। स्नान के लिए विभिन्न नागा साधुओं के अखाड़े भव्य रूप से शोभा यात्रा की भांति संगम तट पर पहुंचते हैं। ये साधू मेले का आकर्षण का केंद्र होते हैं। 
 
मंदिरों का जीर्णोद्धार
प्रदेश की योगी सरकार महाकुंभ से पूर्व ही प्रयागराज के ऐतिहासिक मंदिरों का जीर्णोद्धार करवा रही है। इसके साथ-साथ मंदिरों का नवीनीकरण भी किया जा रहा है। पर्यटन विभाग, स्मार्ट सिटी एवं प्रयागराज विकास प्राधिकरण जीर्णोद्धार एवं नवीनीकरण को शीघ्र से शीघ्र पूर्ण करने के लिए मिलकर कार्य कर रहे हैं। मेला प्रशासन श्रद्धालुओं और पर्यटकों की आस्था एवं सुविधा को प्राथमिकता दे रहा है, जिससे उन्हें स्मरणीय अनुभव प्राप्त हो सके तथा वे यहां से प्रसन्नतापूर्वक वापस जाएं। 
पर्यटन विभाग जिन कॉरिडोर एवं नवीनीकरण परियोजनाओं की देखरेख कर रहा है, उनमें से मुख्य रूप से भारद्वाज कॉरिडोर, मनकामेश्वर मंदिर कॉरिडोर, द्वादश माधव मंदिर, पड़िला महादेव मंदिर, अलोप शंकरी मंदिर आदि सम्मिलित हैं। स्मार्ट सिटी परियोजना के अंतर्गत अक्षयवट कॉरिडोर, सरस्वती कूप कॉरिडोर एवं पातालपुरी कॉरिडोर सम्मिलित हैं। प्रयागराज विकास प्राधिकरण नागवासुकी मंदिर का नवीनीकरण कार्य एवं हनुमान मंदिर कॉरिडोर का कार्य करवा रहा है।

हरित क्षेत्र का विस्तार
महाकुंभ मेले के दृष्टिगत उत्तर प्रदेश को हरभरा बनाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में हरित क्षेत्र के विस्तार के लिए संपूर्ण राज्य में 2.71 लाख पौधे लगाने का निर्देश दिया है। इसके लिए वन विभाग, नगर निगम एवं प्रयागराज विकास प्राधिकरण मिलकर कार्य कर रहे हैं तथा संयुक्त रूप से राज्यभर में अभियान चला रहे हैं। वन विभाग द्वारा 29 करोड़ रुपये की लागत से 1.49 लाख पौधे लगाए जाएंगे। वन विभाग संपूर्ण जिले में सड़कों के किनारे पौधे लगाएगा। नगर में आने वाली मुख्य सड़कों पर सघन पौधरोपण किया जा रहा है। सड़कों के किनारे नीम, पीपल, कदंब एवं अमलतास आदि के पौधे लगाए जा रहे हैं। इस अभियान के अंतर्गत सरस्वती हाईटेक सिटी में 20 हेक्टेयर में 87 हजार पौधे लगाए जाएंगे। इसके अतिरिक्त वन विभाग नगर के कुछ क्षेत्रों में पौधे लगाएगा। नगर में हरित पट्टी बनाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ के लिए प्रयागराज को स्वच्छता के मॉडल के रूप में स्थापित करने का भी निर्देश दिया है। वन विभाग, नगर निगम एवं प्रयागराज विकास प्राधिकरण द्वारा संपूर्ण क्षेत्र में एक मेगा पौधरोपण अभियान चलाया जा रहा है। 

प्राकृतिक उत्पादों को प्रोत्साहन  
योगी सरकार के मार्गदर्शन में कुंभ मेला प्रशासन के सभी विभाग मिलकर महाकुंभ के लिए स्वच्छता पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। क्षेत्रों को पॉलीथिन से मुक्त रखने का भी प्रयास किया जा रहा है। इसके अंतर्गत महाकुंभ में सिंगल यूज्ड प्लास्टिक पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध रहेगा। मेले में प्राकृतिक उत्पाद जैसे दोना, पत्तल, कुल्हड़ एवं जूट व कपड़े के थैलों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रयागराज मेला प्राधिकरण की ओर से महाकुंभ में प्राकृतिक उत्पादों का प्रयोग करने के स्टॉल लगाने की योजना है। महाकुंभ के दौरान दुकानदारों को भी प्राकृतिक उत्पादों का ही प्रयोग करने का निर्देश जारी किया गया है।
 
स्वच्छता पर बल  
महाकुंभ मेले में श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों की बड़ी संख्या में आने के दृष्टिगत क्षेत्र में डेढ़ लाख शौचालय एवं मूत्रालय स्थापित किए जा रहे हैं। इनको स्वच्छ बनाए रखने के लिए भी व्यापक तैयारी की गई है। इसमें तकनीकी का भी प्रयोग किया जा रहा है। इन सभी की निगरानी का दायित्व 1500 गंगा सेवा दूतों को सौंपा गया है। वे प्रातः एवं सायं इनकी जांच करेंगे। क्यूआर कोड से स्वच्छता की मॉनीटरिंग की जा रही है। यह ऐप बेस्ड फीडबैक देगा, जिसके माध्यम से शीघ्र से शीघ्र सफाई सुनिश्चित की जाएगी। इस बार मैनुअल शौचालय स्वच्छ करने की आवश्यकता नहीं होगी, अपितु जेट स्प्रे क्लीनिंग सिस्टम से कुछ क्षणों में पूरी तरह उन्हें स्वच्छ कर दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त सेसपूल ऑपरेशन प्लान भी तैयार किया गया है, जिसके माध्यम से मेला क्षेत्र में स्थापित शौचालयों के सेप्टिक टैंक को रिक्त किया जाएगा। सेप्टिक टैंक रिक्त करके यहां से वेस्ट को एसटीपी प्लांट या अन्य स्थान पर स्थानांतरित किया जाएगा।
 
यातायात सुविधा 
योगी आदित्यनाथ की सरकार प्रदेश में आने वाले श्रद्धालुओं की प्रत्येक सुविधा का ध्यान रख रही है। इसलिए यातावात की भी समुचित व्यवस्था की जा रही है। प्रयागराज आने वाली बसों, रेलगाड़ियों एवं वायुयान की संख्या में वृद्धि की जा रही है। महाकुंभ के लिए रेलवे द्वारा लगभग 1200 रेलगाड़ियां तथा परिवहन विभाग द्वारा सात हजार बसों का संचालन किया जाएगा।
 
तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए योगी सरकार ने केंद्र की मोदी सरकार ने महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में प्रवेश करने पर सात टोल प्लाजा को टैक्स फ्री करने का अनुरोध किया था, जिसे स्वीकृत कर लिया गया है। महाकुंभ के दौरान 45 दिनों तक चित्रकूट मार्ग पर उमापुर टोल प्लाजा, रीवा राजमार्ग पर गन्ने टोल प्लाजा, मिर्जापुर मार्ग पर मुंगारी टोल प्लाजा, वाराणसी मार्ग पर हंडिया टोल प्लाजा, लखनऊ राजमार्ग पर अंधियारी टोल प्लाजा, अयोध्या राजमार्ग पर मऊआइमा टोल प्लाजा नि:शुल्क रहेगा। यहां से प्रवेश करने वाले यात्रियों से कोई भी टोल नहीं लिया जाएगा। यह सुविधा 13 जनवरी से 26 फरवरी तक रहेगी। यद्यपि यह सुविधा माल वाहक व्यवसायिक वाहनों को नहीं मिलेगी। इस समयावधि में सरिया, सीमेंट, बालू एवं इलेकट्रॉनिक्स सामान से भरे वाहनों से टोल लिया जाएगा। किंतु व्यवसायिक पंजीकृत जीप एवं कार आदि से भी टोल नहीं लिया जाएगा।
 
 

Sunday, November 10, 2024

शिक्षा से एक उज्जवल भविष्य का निर्माण

 

स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री और प्रमुख शिक्षाविद् मौलाना अबुल कलाम आजाद के सम्मान में हर साल 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है। यह दिन भारत के भविष्य को आकार देने में शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालता है। देश की 65% आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। ऐसे में उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास के अवसर प्रदान करना काफी महत्वपूर्ण है। भारत सरकार मजबूत शिक्षा बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए समर्पित है जो छात्रों के समग्र विकास को बढ़ावा देती है और युवाओं को राष्ट्र को प्रगति की ओर ले जाने के लिए सशक्त बनाती है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि  हम ऐसी शिक्षा व्यवस्था विकसित करना चाहते हैं, जिससे हमारे देश के युवाओं को विदेश जाने की जरूरत न पड़े। हमारे मध्यम वर्ग के परिवारों को लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करने की जरूरत नहीं पड़े। इतना ही नहीं हम ऐसे संस्थान भी बनाना चाहते हैं जो विदेशों से लोगों को भारत आने के लिए आकर्षित करें।

शिक्षा के माध्यम से भारत में बदलाव
भारत सरकार ने विभिन्न उपक्रमों और सांवैधानिक प्रावधानों के माध्यम से शिक्षा तक पहुंच को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। संविधान के 86वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21-ए के माध्यम से निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत को सुदृढ़ किया गया। यह छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मौलिक अधिकार के रूप में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है। शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 जो 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ, यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे को एक औपचारिक स्कूल में गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त हो जो निर्धारित मानदंडों को पूरा करती हो। सरकारी योजनाओं और पहलों द्वारा समर्थित ये कानूनी ढांचे सभी के लिए एक समावेशी और न्यायसंगत शिक्षा प्रणाली के निर्माण के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

एनईपी 2020 : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 जुलाई, 2020 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को मंजूरी दी। एनईपी 21वीं सदी की जरूरतों के साथ बेहतर तालमेल बनाने के लिए भारत की शिक्षा प्रणाली में सुधार करना चाहती है, जिससे अधिक समावेशी और आगे की सोच वाले दृष्टिकोण को बढ़ावा मिल सके।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 7 सितंबर 2022 को पीएम श्री स्कूल (पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) योजना को मंजूरी दी। इस पहल का उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के घटकों को प्रदर्शित करते हुए पूरे भारत में 14,500 से अधिक स्कूलों को मजबूत करना है। यह योजना छात्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, ज्ञान संबंधी विकास और 21वीं सदी के कौशल को बढ़ावा देगी। 27, 360 करोड़ रुपये की कुल परियोजना लागत के साथ इसे पांच वर्षों (2022-2027) में लागू किया जाएगा। जिसमें 18,128 करोड़ रुपये केंद्रीय हिस्सेदारी के रूप में दिया जाएगा।

समग्र शिक्षा : एनईपी 2020 की सिफारिशों के साथ अनुरूप समग्र शिक्षा का उद्देश्य सभी बच्चों के लिए एक समावेशी और न्यायसंगत कक्षा वातावरण के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है, जो उनकी विविध पृष्ठभूमि और जरूरतों को पूरा करता है। 1 अप्रैल 2021 को शुरू की गई यह योजना पांच साल तक जारी रहेगी। यह योजना 31 मार्च, 2026 को समाप्त होगी। यह विभिन्न छात्र समूहों में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने और शैक्षणिक क्षमताओं को बढ़ाने पर केंद्रित है।

प्रेरणा: 15 जनवरी, 2024 से 17 फरवरी, 2024 तक गुजरात के वडनगर के एक स्थानीय स्कूल में इसका प्रायोगिक चरण शुरू किया गया। यह पहल एक सप्ताह तक चलने वाला आवासीय कार्यक्रम है जो कक्षा IX से XII तक के चयनित छात्रों के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसका उद्देश्य अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से विरासत को नवाचार के साथ मिश्रित करते हुए एक अनुभवात्मक और प्रेरणादायक शिक्षण अनुभव प्रदान करना है। प्रत्येक सप्ताह देश भर से 20 छात्रों (10 लड़के और 10 लड़कियों) का एक बैच कार्यक्रम में भाग लेगा।

उल्लास : इसे नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (न्यू इंडिया लिटरेसी प्रोग्राम-एनआईएलपी) के रूप में भी जाना जाता है। उल्लास को भारत सरकार द्वारा वित्त वर्ष 2022-2027 की अवधि के लिए शुरू किया गया था। यह केंद्र प्रायोजित पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुरूप है। इसका उद्देश्य 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों को सशक्त बनाना है, विशेष रूप से उन लोगों को जो औपचारिक स्कूली शिक्षा से वंचित रह गए हैं। कार्यक्रम का उद्देश्य उनकी साक्षरता को बढ़ाना है, जिससे वे समाज में बेहतर ढंग से एकीकृत हो सकें और देश के विकास में सक्रिय रूप से योगदान कर सकें।

निपुण भारत : समझ के साथ पढ़ने और अंकगणित में दक्षता के लिए राष्ट्रीय पहल राष्ट्रीय पहल (निपुण भारत) 5 जुलाई 2021 को स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग द्वारा शुरू की गई थी। मिशन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश में प्रत्येक बच्चा ग्रेड 3 के अंत तक मूलभूत साक्षरता और अंकगणित में दक्षता प्राप्त करे। 2026-27 तक इसका लक्ष्य पूरा करना है।

विद्या प्रवेश : ग्रेड-I के बच्चों के लिए तीन महीने के खेल-आधारित स्कूल तैयारी मॉड्यूल के लिए विद्या प्रवेश दिशानिर्देश 29 जुलाई 2021 को जारी किए गए थे। इस पहल का उद्देश्य ग्रेड-I में प्रवेश करने वाले बच्चों के लिए एक गर्मजोशी भरा और स्वागत योग्य वातावरण प्रदान करना, सहज परिवर्तन सुनिश्चित करना और सकारात्मक सीखने के अनुभव को बढ़ावा देना है।

विद्यांजलि: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 7 सितंबर 2021 को शुरू किए गए स्कूल स्वयंसेवक प्रबंधन कार्यक्रम का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना है। साथ ही देश भर में कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) पहल और निजी क्षेत्र से योगदान को प्रोत्साहित करके स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है।
दीक्षा: भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू द्वारा 5 सितंबर 2017 को इसे शुरू किया गया था। इस मंच का उद्देश्य शिक्षा में नवीन समाधानों और प्रयोगों में तेजी लाकर शिक्षक प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास को बढ़ाना है। दीक्षा राज्यों और शिक्षक शिक्षा संस्थानों (टीईआई) को उनकी विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए मंच को रुचि के अनुसार लचीलेपन के साथ सशक्त बनाती है। इससे देश भर के शिक्षकों, शिक्षािवद्ों और वैसे छात्र जो आगे चलकर शिक्षक बनना चाहते हैं उनको लाभ होता है।

स्वयं प्लस: स्वयं प्लस, जिसे आधिकारिक तौर पर 27 फरवरी 2024 को माननीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा शुरू किया गया था। यह पहल उच्च शिक्षा में क्रांति लाने और उद्योग-प्रासंगिक पाठ्यक्रमों के लिए एक अभिनव क्रेडिट मान्यता प्रणाली को लागू करके कौशल विकास, रोजगार क्षमता और मजबूत उद्योग साझेदारी बनाने पर जोर देकर रोजगार क्षमता में सुधार करना चाहती है।

निष्ठा: 21 अगस्त 2019 को शिक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू की गई निष्ठा (स्कूल प्रमुखों और शिक्षकों की समग्र उन्नति के लिए राष्ट्रीय पहल) का उद्देश्य 42 लाख प्राथमिक शिक्षकों और स्कूल प्रमुखों के व्यावसायिक विकास को बढ़ाना है। कोविड-19 महामारी को देखते हुए कार्यक्रम को 6 अक्टूबर 2020 को निष्ठा-ऑनलाइन में परिवर्तित कर दिया गया, जिसे दीक्षा प्लैटफॉर्म के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया गया। इस सफलता को देखते हुए 2021-22 में माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों के लिए निष्ठा 2.0 को शुरू किया गया था। वहीं, मूलभूत साक्षरता और अंकगणित पर ध्यान केंद्रित करते हुए 7 सितंबर 2021 को निष्ठा 3.0 पेश किया गया था।

एनआईआरएफ रैंकिंग: शिक्षा मंत्रालय द्वारा 29 सितंबर 2015 को शुरू की गई राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) ने भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। एनआईआरएफ ने विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों के मूल्यांकन और रैंकिंग, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और शिक्षा और बुनियादी ढांचे में सुधार को प्रोत्साहित करने के लिए एक संरचित और पारदर्शी प्रणाली शुरू की है।

पीएम-विद्यालक्ष्मी योजना: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके मेधावी छात्रों का सहयोग करने के लिए पीएम-विद्यालक्ष्मी योजना को मंजूरी दी। यह योजना भारत भर के शीर्ष 860 संस्थानों में प्रवेश पाने वाले छात्रों के लिए शिक्षा ऋण प्रदान करती है, जिससे हर साल 22 लाख से अधिक छात्र लाभान्वित होते हैं। 2024-25 से 2030-31 तक 3,600 करोड़ रुपये के बजट आवंटन के साथ इस योजना का लक्ष्य अतिरिक्त 7 लाख छात्रों की सहायता करना है। पूरी तरह से डिजिटल, पारदर्शी और छात्र-केंद्रित प्लेटफॉर्म के माध्यम से कार्यान्वित पीएम-विद्यालक्ष्मी देश भर के छात्रों के लिए आसान पहुंच और सुचारू अंतरसंचालनीयता (पारस्परिकता) सुनिश्चित करता है।

उज्जवल भविष्य के लिए शिक्षा में निवेश
वैश्विक नेतृत्व के लिए भारत का मार्ग इसकी शिक्षा प्रणाली की ताकत से निकटता से जुड़ा हुआ है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच का विस्तार करने और एक सुदृढ़ शिक्षण वातावरण तैयार करने के लिए वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग को रिकॉर्ड 73,498 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। यह वित्त वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमान की तुलना में 12,024 करोड़ रुपये (19.56%) की पर्याप्त वृद्धि दर्शाता है, जो शिक्षा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को उजागर करता है।

विशेष रूप से प्रमुख स्वायत्त निकायों को अब तक का सबसे अधिक आवंटन किया गया है। इसमें केंद्रीय विद्यालयों (केवीएस) को 9,302 करोड़ रुपये और नवोदय विद्यालयों (एनवीएस) को 5,800 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह पर्याप्त निवेश भारत की शिक्षा प्रणाली को और ऊपर उठाने के स्पष्ट इरादे को रेखांकित करता है।
वित्त वर्ष 2024-25 के लिए उच्च शिक्षा विभाग का बजट आवंटन 47,619.77 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है, जिसमें 7,487.87 करोड़ रुपये योजनाओं के लिए और 40,131.90 करोड़ रुपये गैर-योजना व्यय के लिए समर्पित हैं। यह पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 3,525.15 करोड़ रुपये या 7.99% की उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है। विशेष रूप से विशिष्ट योजनाओं के लिए आवंटन में 1,139.99 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है, जो उच्च शिक्षा के भीतर लक्षित पहलों पर मजबूत ध्यान केंद्रित करता है।

उच्च शिक्षा संस्थानों में नामांकन में वृद्धि : एआईएसएचई रिपोर्ट 2021-22
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने जनवरी 2024 में उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) 2021-2022 जारी किया। 2011 में अपनी स्थापना के बाद से एआईएसएचई देश भर के सभी पंजीकृत उच्च शैक्षणिक संस्थानों (एचईआई) से व्यापक डेटा एकत्र कर रहा है, जिसमें छात्र नामांकन, संकाय (फैकल्टी) और बुनियादी ढांचे जैसे प्रमुख मापदंडों को शामिल किया गया है। सर्वेक्षण में पिछले कुछ वर्षों में हुए महत्वपूर्ण सुधारों पर प्रकाश डाला गया है, जो भारत के शिक्षा क्षेत्र में सकारात्मक प्रगति को दर्शाता है। इसमें नामांकन में बढ़ोतरी, समावेशिता में वृद्धि और मजबूत बुनियादी ढांचा शामिल है, जो एक अधिक मजबूत और गतिशील उच्च शिक्षा व्यवस्था में योगदान देता है।

महिला नामांकन में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। 2014-15 में 1.57 करोड़ से बढ़कर 2021-22 में 2.07 करोड़ हो गई है। इसमें 32% की वृद्धि दर्ज की गई है। एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों सहित वंचित समूहों के छात्रों के नामांकन में काफी वृद्धि हुई है, जिसमें सभी श्रेणियों में महिला नामांकन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई है। 2021-22 में लिंग समानता सूचकांक (जीपीआई) 1.01 तक पहुंच गया, जो पुरुषों की तुलना में उच्च शिक्षा में अधिक महिला छात्रों के नामांकन की निरंतर प्रवृत्ति को उजागर करता है।

अध्ययन के क्षेत्रों के संदर्भ में एसटीईएम विषयों में नामांकन में लगातार वृद्धि देखी गई है। 2021-22 में यूजी, पीजी और पीएचडी स्तरों पर 98.5 लाख छात्रों ने दाखिला लिया है। तमाम चुनौतियों के बावजूद महिलाएं चिकित्सा विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और कला जैसे विषयों में अग्रणी हैं। माध्यमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने की दर भी 2013-14 में 21% से घटकर 2021-22 में 13% हो गई है।

वित्त वर्ष 2024-25 में उच्च शिक्षा विभाग ने वित्त वर्ष 2023-24 की तुलना में 3,525.15 करोड़ रुपये (7.99%) की बजट वृद्धि देखी जो उच्च शिक्षा क्षेत्र को और मजबूत करने और समावेशी विकास का समर्थन करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।

शिक्षा बाधाओं को तोड़ने, अवसरों के द्वार खोलने और व्यक्तियों को समाज में सार्थक योगदान करने के लिए सशक्त बनाने की शक्ति रखती है। निरंतर नवाचार और व्यापक सुधारों के माध्यम से एक मजबूत प्रणाली का निर्माण करते हुए भारत का शैक्षिक परिदृश्य महत्वपूर्ण रूप से विकसित हुआ है। नए विचारों, प्रौद्योगिकियों और शिक्षण विधियों को एकीकृत करने वाले समग्र 360-डिग्री दृष्टिकोण को अपनाकर भारत एक ऐसा वातावरण बना रहा है जहां युवा आगे बढ़ सकते हैं और उन्हें देश के विकास के लिए प्रमुख संपत्ति में बदल सकते हैं।
जैसा कि हम मौलाना अबुल कलाम आजाद की विरासत का सम्मान करते हैं, आइए हम सभी के लिए एक उज्जवल, अधिक समावेशी भविष्य की आधारशिला के रूप में शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को साबित करें।
स्रोत PIB 

Friday, October 25, 2024

कायम रहेगा योगी राज


 
डॉ. सौरभ मालवीय
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संबंध में दिए गए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान के पश्चात प्रदेश में सियासी पारा बढ़ गया है। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने लखनऊ में पुनः दावा किया है कि यदि भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता में आ गई तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमित शाह को पीएम बनाने के लिए पिछले डेढ़-दो वर्षों से लगे हुए हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवराज सिंह चौहान, वसुन्धरा राजे सिंधिया, देवेंद्र फडणवीस, रमन सिंह और मनोहर लाल खट्टर को पहले ही हटा दिया है। अब अमित शाह के प्रधानमंत्री बनने की राह में केवल योगी आदित्यनाथ ही अंतिम कांटा बचे हैं। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले वर्ष 17 सितंबर को जैसे ही 75 वर्ष के हो जाएंगे, वे प्रधानमंत्री पद छोड़कर अमित शाह को प्रधानमंत्री बना देंगे। इसके पश्चात दो से तीन महीने में योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। अरविंद केजरीवाल के इस बयान की प्रासंगिकता पर चर्चा हो रही है या चर्चा में रहने के लिए यह राजनीतिक जुमला मात्र है।

वास्तव में अरविंद केजरीवाल भी जानते हैं कि उनका यह बयान असत्य एवं भ्रामक है। वे इस प्रकार के बयान देकर एक ओर तालियां बटोरना चाहते हैं तो दूसरी ओर ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपना रहे हैं।
यद्यपि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केजरीवाल को कड़े शब्दों में उत्तर दे दिया है। उन्होंने बांदा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा- “केजरीवाल की बु्द्धि जेल जाने के बाद फिर गई है। अन्ना हजारे के सपनों पर पानी फेरने वाले केजरीवाल अब मेरा नाम लेकर बातें कर रहे हैं। अन्ना ने जिस कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन किया था, केजरीवाल ने उसे ही अपने गले का हार बना लिया है। जेल जाकर उन्हें पता चल गया है कि अब वह कभी जेल के बाहर नहीं आने वाले हैं।“

इस बयानबाजी के मध्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेतों के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि योगी आदित्यनाथ अपना कार्यकाल पूर्ण करेंगे। उन्होंने कहा - "आने वाले पांच सालों में मोदी-योगी पूर्वांचल की तस्वीर और तकदीर दोनों बदलने वाले हैं।" सियासी गलियारे में इस बयान को अरविंद केजरीवाल के बयान से जोड़कर देखा जा रहा है। इस प्रकार श्री नरेंद्र मोदी ने केजरीवाल के बयान को भ्रामक एवं असत्य सिद्ध कर दिया है।

इससे पूर्व गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना कार्यकाल पूर्ण करेंगे तथा वर्ष 2029 के पश्चात् भी वे भाजपा का नेतृत्व करते रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी 75 वर्ष की आयु के पश्चात् भी अपने पद पर बने रहेंगे। इस प्रकार अमित शाह ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि उनका प्रधानमंत्री बनने का अभी कोई विचार नहीं है। इसके अतिरिक्त पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी स्पष्ट कर चुके हैं कि 75 वर्ष के पश्चात् सेवानिवृति वाली बात पार्टी के संविधान में नहीं है। इस प्रकार की बातें केवल दुष्प्रचार के लिए बोली जा रही हैं। इसमें दो मत नहीं कि भाजपा का संगठन अत्यंत सुदृढ़ है। इसलिए अरविंद केजरीवाल की भ्रामक बयानबाजी से पार्टी को कोई हानि नहीं होगी।  
वास्तव में प्रधानमंत्री भली भांति जानते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में सराहनीय विकास कार्य किए हैं। उनके मुख्यमंत्री काल में प्रदेश ने दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति की है। प्रदेश की जनता भी उनके विकास एवं जनहित के कार्यों से अति प्रसन्न एवं संतुष्ट है, तभी उसने उन्हें द्वितीय बार भी मुख्यमंत्री चुना।   
 
सर्विदित है कि उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जाता है, क्योंकि यही चुनाव आगे के लोकसभा चुनाव की दिशा निर्धारित करता है। इसीलिए उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रहता है। अपने उत्कृष्ट कार्यों एवं सुशासन के कारण उन्होंने दो बार भारतीय जनता पार्टी को विजयश्री दिलाई है। भारतीय जनता पार्टी ने भी योगी आदित्यनाथ के कार्यों को सराहा तथा उन्हें प्रदेश की बागडोर सौंप दी।

लोकसभा चुनाव 2024 पाचवें चरण तक आते-आते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 49 दिनों में कुल  144 जनसभाएं की हैं। इसके अलावा योगी अबतक आठ राज्यों में भी चुनाव प्रचार कर चुके है। मुख्यमंत्री ने 27 मार्च को मथुरा में प्रबुद्ध सम्मेलन कर प्रदेश की चुनावी कमान संभाल ली थी। 27 मार्च से 19 मई तक कुल 50 दिनों में मुख्यमंत्री लगातार चुनाव प्रचार में लगे हुये है। अब तक उन्होंने 15 प्रबुद्ध सम्मेलन और 12 रोड शो किए हैं। योगी की जनसभाओं में अपार भीड़ उनको सुनने के लिए प्रचण्ड गर्मी में भी जुट रही है।    
  
इसमें दो मत नहीं है कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व काल में प्रदेश ने लगभग सभी क्षेत्रों में प्रशंसनीय उन्नति की है। प्रदेश में कृषि, उद्योग, रोजगार, आवास, परिवहन, बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा व्यवस्था, संस्कृति, धर्म एवं पर्यावरण आदि क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किए गए हैं। मेधावी विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान दी जा रही है। वृद्धजन, विधवा एवं दिव्यांगजन को पेंशन के रूप में आर्थिक सहायता दी जा रही है। सरकार ने अनाथ बच्चों के भरण-पोषण की भी व्यवस्था की है। जिन परिवारों में कमाने वाला कोई नहीं है उन्हें भी आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। निर्धन परिवार की लड़कियों एवं दिव्यांगजन के विवाह लिए अनुदान दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त योगी सरकार निराश्रित गौवंश के संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दे रही है।

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ पार्टी के चाल, चरित्र एवं चेहरे के अनुसार प्रदेश में हिंदुत्व की छवि को और सुदृढ़ करने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं। उनके कार्य इस बात को सिद्ध करते हैं। चाहे प्राचीन नगरों के नाम परिवर्तित करना हो या काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण करना हो। उनके सभी कार्य इसका साक्षात प्रमाण हैं। उनकी देखरेख में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण का कार्य चल रहा है। योगी सरकार राज्य के धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थलों के विकास एवं सौन्दर्यीकरण पर विशेष ध्यान दे रही है। योगी सरकार ने बौद्ध सर्किट में श्रावस्ती, कपिलवस्तु, कुशीनगर तथा रामायण सर्किट में चित्रकूट एवं श्रृंगवेरपुर में पर्यटन सुविधाओं का विकास करवाया है। इसी प्रकार बृज तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, नैमि षारण्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, विन्ध्य तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद, शुक्र धाम तीर्थ विकास परिषद, चित्रकूट तीर्थ विकास परिषद एवं देवीपाटन तीर्थ विकास परिषद का गठन किया गया, ताकि यहां के विकास कार्य सुचारू रूप से हो सकें।सरकार तीर्थ यात्रियों एवं पर्यटकों को अनेक सुविधाएं उपलब्ध करवा रही है। योगी सरकार तीर्थ यात्रियों को कई सुविधाएं प्रदान कर रही है। इसके अंतर्गत कैलाश मानसरोवर के तीर्थ यात्रियों की अनुदान राशि 50 हजार रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये प्रति यात्री की गई है। इसी प्रकार सिंधु दर्शन के लिए अनुदान राशि 20 हजार रुपये की गई।

योगी सरकार प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यथासंभव प्रयास कर रही है। इसके अंतर्गत गोरखपुर के रामगढ़ ताल में वाटर स्पोर्ट्स, पीलीभीत टाइगर रिजर्व एवं चंदौली में देवदारी राजदारी वाटरफॉल का विकास किया गया। स्पिरिचुअल सर्किट के अंतर्गत गोरखपुर, देवीपाटन, डुमरियागंज में पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। जेवर, दादरी, नोएडा, खुर्जा एवं बांदा में भी पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया। आगरा में शाहजहां पार्क एवं महताब बाग-कछपुरा का कार्य एवं वृन्दावन में बांके बिहारी जी मंदिर क्षेत्र में पर्यटन का विकास किया गया। दुधवा टाइगर रिजर्व एवं पीलीभीत टाइगर रिजर्व स्थलों का विकास किया गया है। सरकार ने महाभारत सर्किट के अंतर्गत महाभारत से संबंधित स्थलों का विकास करवाया है। शक्तिपीठ सर्किट एवं आध्यात्मिक सर्किट से संबंधित स्थलों का भी विकास करवाया गया है। विपक्षी सरकार पर भेदभाव के आरोप लगाते रहते हैं, परन्तु सत्य यही है कि भाजपा सरकार बिना किसी भेदभाव के समान रूप से विकास कार्य करवा रही है। जैन एवं सूफी सर्किट के अंतर्गत आगरा एवं फतेहपुर सीकरी में पर्यटन सुविधाओं का विकास करवाया जाना इस बात का प्रमाण है।  

योगी सरकार द्वारा अयोध्या में दीपोत्सव, मथुरा में कृष्णोत्सव, बरसाना में रंगोत्सव, वाराणसी में शिवरात्रि एवं देव दीपावली का आयोजन किया जा रहा है। देश ही नहीं, अपितु विदेशों में भी इसकी चर्चा हो रही है। इसके साथ-साथ सरकार कला एवं साहित्य को भी प्रोत्साहित कर रही है। राज्य में साहित्यकारों एवं कलाकारों को उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान प्रदान किए जाने का निर्णय लिया गया।          

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ के शासन में प्रदेश ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पृथक पहचान बनाई है। लगभग सभी क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश देश में अग्रणी रहा है। आज देश में उत्तर प्रदेश मॉडल की चर्चा की जा रही है। ये सब योगी आदित्यनाथ के प्रयास से ही संभव हो सका है। 
(लेखक लखनऊ विश्विद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं) 

Sunday, October 20, 2024

समाचार-पत्रों में



सरस्वती विद्या मंदिर, दिव्यापुर, जिला औरय्या में #विद्या_भारती द्वारा आयोजित वैदिक गणित एवं संस्कृति महोत्सव का आयोजन.
पूर्वी क्षेत्र उत्तर प्रदेश

Saturday, October 19, 2024

क्षेत्रीय वैदिक गणित एवं संस्कृति महोत्सव 2024 का हुआ शुभारंभ









औरैया-दिबियापुर

सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में क्षेत्रीय वैदिक गणित एवं संस्कृति महोत्सव 2024 का शुभारंभ हुआ, कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि योगेंद्र उपाध्याय उच्च शिक्षा मंत्री, विशिष्ट अतिथि मुकुल चतुर्वेदी उपाध्यक्ष उच्च शिक्षा परिषद, डॉ इंद्रमणि त्रिपाठी जिलाधिकारी औरैया, हेमचंद्र जी क्षेत्रीय संगठन मंत्री विद्या भारती, मुख्य वक्ता सौरभ मालवीय मंत्री विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश, कार्यक्रम के अध्यक्ष राजकुमार दुबे पूर्व ब्लॉक प्रमुख, प्रबन्धक डॉ नरेंद्र त्रिपाठी,  नगर अध्यक्ष राघव मिश्र ने मां वीणावादिनि के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित व पुष्पार्चन किया।
मुख्य अतिथि उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि विद्या भारती भारतीय संस्कृति को बच्चों   और समाज में जीवन्त कर रहीं है, इसलिए इस प्रकार के आयोजनों के द्वारा बच्चों में परस्पर सौहाद्र की भावना विकसित होती है और परस्पर प्रतिस्पर्धा की भावना का विकास होता है। भारतीय अतीत बहुत ही गौरवशाली है।
डीएम औरैया ने कहा कि विद्या भारती अदम्य साहस का परिचय कराती है, उन्होंने अंत में कहा कि "चाहता हो देश की धरती तुझे कुछ और भी दो" ।
मंत्री विद्या भारती पूर्वी उ०प्र० डॉ सौरभ मालवीय जी ने बताया कि विद्या भारती के विद्यालय वैदिक गणित को कक्षा कक्ष से लेकर समाज तक पहुंचाती हैं और भारतीय संस्कृति को संस्कृति महोत्सव के द्वारा समाज तक पहुंचाने का कार्य करती हैं।
इस महोत्सव में पूर्वी उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के 450 छात्र, छात्राओं तथा अपने संरक्षक आचार्य के साथ प्रतिभाग करने के लिए स्थानीय विद्यालय में प्रतियोगिता के लिए सम्मिलित हुए। क्षेत्रीय प्रतियोगिता में अपने अपने प्रांतों से प्रथम स्थान प्राप्त छात्र सम्मिलित हो रहे हैं।
इस अवसर पर प्रांतीय संगठन मंत्री रजनीश जी, प्रदेश निरीक्षक अयोध्या प्रसाद मिश्र, विभिन्न संभागों के संभाग निरीक्षक, समस्त प्रतियोगिताओं के प्रमुख, नगर व क्षेत्र के गणमान्य नागरिक, आचार्य बंधु, आचार्या बहिनें, भैया बहिन उपस्थित रहें।

Thursday, October 17, 2024

समाचार-पत्रों में

  



टीवी पर लाइव

  



योगी सरकार मतलब न्याय 

Wednesday, October 16, 2024

कमल ज्योति

बीजेपी मुखपत्र कमलज्योति में मेरा लेख पथनीय स्वरूप प्रस्तुत है।
कमल ज्योति अक्टूबर प्रथम 2024





 




शरद पूर्णिमा



अमृतमयी 'शरद पूर्णिमा' के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं!
स्थान - जागरण पार्क, कुशल बस्ती ,गोमतीनगर विस्तार - खरगापुर - लखनऊ

Tuesday, October 15, 2024

संचार-पत्रों में

  विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित क्षेत्रीय विज्ञान मेला आज से 







क्षेत्रीय विज्ञान मेला उदघाटन समारोह









विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित क्षेत्रीय विज्ञान मेला उदघाटन समारोह
मुख्य अतिथि - मा. अजीत पाल जी (मंत्री विज्ञान एवं  प्रौद्योगिकी उ.प्र. सरकार)
श्रीमान हेमचंद्र जी - क्षेत्रीय संगठन मंत्री विद्या भारती
श्रीमान दिव्यकान्त जी - अध्यक्ष विद्या भारती पूर्वी क्षेत्र

समाचार-पत्र में

  


Monday, October 7, 2024

छात्र संवाद







महात्मा गांधी अंतरारष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय. वर्धा (क्षेत्रीय परिसर - प्रयागराज) द्वारा आयोजित छात्र संवाद कार्यक्रम में भारतीय ज्ञान परम्परा और मीडिया संचार विषय पर वक्तव्य का अवसर.

खेलकूद प्रतियोगिता का शुभारंभ

 




विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित 35वीं क्षेत्रीय खेलकूद प्रतियोगिता के शुभारम्भ पर मुख्य अतिथि मा.गिरीश चन्द्र यादव राज्य मंत्री - खेल एवं युवा कल्याण विभाग , श्री प्रवीण पटेल जी , सांसद - फूलपुर लोकसभा, प्रयागराज, क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री हेम चन्द्र जी के साथ का सुअवसर मिला।

Thursday, October 3, 2024

पंडित विष्णुप्रसाद चतुर्वेदी राष्ट्रीय संस्कृति शिक्षा सम्मान

 

लखनऊ विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के सह प्राध्यापक डॉ. सौरभ मालवीय जी को 'पं. विष्णुप्रसाद चतुर्वेदी राष्ट्रीय संस्कृति शिक्षा सम्मान-2024' मिलने की हार्दिक मंगलकामनाएं....

समाचार-पत्र में

  





भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है