-डॉ. सौरभ मालवीय
आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे विवादास्पद एवं
अलोकतांत्रिक काल कहा जाता है। आपातकाल को 48 वर्ष बीत चुके
हैं, परन्तु हर वर्ष जून मास आते ही इसका स्मरण ताजा हो
जाता है। इसके साथ ही आपातकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका भी स्मरण हो
जाती है। संघ ने आपातकाल का कड़ा विरोध किया था। संघ के हजारों कार्यकर्ता जेल गए
थे एवं बहुत से कार्यकर्ताओं ने बलिदान दिया था।
उल्लेखनीय है कि 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया था कि इंदिरा
गांधी ने वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में अनुचित तरीके अपनाए। न्यायालय ने
उन्हें दोषी ठहराते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया था। इंदिरा गांधी के चुनाव
क्षेत्र रायबरेली से उनके प्रतिद्वंदी राज नारायण थे। यद्यपि चुनाव परिणाम में
इंदिरा गांधी को विजयी घोषित किया गया था। किन्तु इस चुनाव में पराजित हुए राज
नारायण चुनावी प्रक्रिया से संतुष्टं नहीं थे। उन्हों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय
में इंदिरा के विरुद्ध याचिका दाखिल करते हुए उन पर चुनाव जीतने के लिए अनुचित
साधन अपनाने का आरोप लगाया। उनका आरोप था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए
सरकारी मशीनरी का अनुचित उपयोग किया है।
25 जून 1975 को तत्कालीन
राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर
भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल
की घोषणा कर दी। यह आपातकाल 21 मार्च 1977 तक रहा। इस समयावधि में नागरिक अधिकारों को स्थगित कर दिया
गया। सभी स्तर के चुनाव भी स्थगित कर दिए गए। सत्ता विरोधियों को बंदी बना लिया
गया। प्रेस पर भी प्रतिबंधित लगा दिया गया। पत्रकार भी बंदी बनाए गए। श्रीमती
इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी के नेतृत्व में पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया।
कहा जाता है कि इस अभियान में अविवाहित युवकों की भी जबरन नसबंदी कर दी गई। इससे
लोगों में सत्ता पक्ष के प्रति भारी क्रोध उत्पन्न हो गया।
माणिकचंद्र वाजपेयी अपनी पुस्तक आपातकालीन संघर्ष गाथा में
लिखते हैं- “कांग्रेस ने 20 जून, 1975 के दिन एक विशाल
रैली का आयोजन किया तथा इस रैली में देवकांतबरुआ ने कहा था, “इंदिरा तेरी सुबह की जय, तेरी शाम की जय, तेरे काम की जय, तेरे नाम की जय”
और इसी जनसभा में अपने भाषण के दौरान इंदिरा गांधी ने घोषणा की कि वे प्रधानमंत्री
पद से त्यागपत्र नहीं देंगी।“
जयप्रकाश नारायण ने आपातकाल का विरोध किया। उन्होंने इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा। माणिकचंद्र वाजपेयी आगे लिखते हैं- “जयप्रकाश नारायण
जी ने रामलीला मैदान पर विशाल जनसमूह के सम्मुख 25 जून, 1975 को कहा, “सब विरोधी पक्षों
को देश के हित के लिए एकजुट हो जाना चाहिए अन्यथा यहां तानाशाही स्थापित होगी और
जनता दुखी हो जाएगी।” लोक संघर्ष समिति के सचिव नानाजी देशमुख ने वहीं पर उत्साह
के साथ घोषणा कर दी, “इसके बाद इंदिराजी के त्यागपत्र की मांग लेकर
गांव-गांव में सभाएं की जाएंगी और राष्ट्रपति के निवास स्थान के सामने 29 जून से प्रतिदिन सत्याग्रह होगा।” उसी संध्या को जब रामलीला
मैदान की विशाल जनसभा से हजारों लोग लौट रहे थे, तब प्रत्येक
धूलिकण से मानो यही मांग उठ रही थी कि “प्रधानमंत्री त्यागपत्र दें और वास्तविक
गणतंत्र की परम्परा का पालन करें।“
संघ के स्वयंसेवकों ने सत्ता की
नीतियों के विरोध में सत्याग्रह किया। इस कड़ी में 9 अगस्त,1975 को मेरठ नगर में सत्याग्रह किया गया। उसी दिन मुजफ्फरपुर
में जगह- जगह जोरदार ध्वनि करने वाले पटाखे फोड़े गए। तत्पश्चात 15 अगस्त,1975 को लाल किले पर
जब प्रधानमंत्री भाषण देने के लिए माइक की ओर बढीं उसी समय जनता के बीच से 50 सत्याग्रहियों ने नारे लगाए और पर्चे वितरित किए। इसके
पश्चात 2 अक्टूबर को प्रधानमंत्री के सामने महात्मा गांधी की
समाधि पर सत्याग्रह किया गया। 28 अक्टूबर, 1975 को राष्ट्रमंडल सांसदों का एक दल जब दिल्ली आया था, तब कार्यकर्ताओं ने उन्हें आपातकाल विरोधी साहित्य वितरित
किया। 14 नवंबर, 1975 को प्रधानमंत्री
के सामने नेहरू की समाधि के पास आपातकाल के विरोध में नारे लगाए गए। 24 नवंबर 1975 को अखिल भारतीय
शिक्षक सम्मेलन में प्रधानमंत्री के सामने मंच पर जाकर सत्याग्राहियों ने पर्चे बित्रित
किए और तानाशाही के विरोध में नारे लगाए। 7 दिसम्बर, 1975 को ग्वालियर में महान संगीतज्ञ तानसेन की समाधि पर
सत्याग्रह किया गया। उस दिन रजत जयंती के कार्यक्रम का आयोजन था। 12 दिसम्बर, 1975 को दिल्ली में
स्वामी श्रद्धानंद की मूर्ति के सामने सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल के नेतृत्व
में महिलाओं द्वारा सत्याग्रह किया गया। बंबई की मिलों में मजदूरों द्वारा
सत्याग्रह किया गया।
चुनाव में कांग्रेस पराजित हो गई। स्वयं इंदिरा गांधी अपने
क्षेत्र रायबरेली से चुनाव में पराजित हो गईं। जनता पार्टी को भारी बहुमत प्राप्त
हुआ। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। इस प्रकार स्वतंत्रता के पश्चात प्रथम बार
गैर कांग्रेसी सरकार बनी। नई केंद्र सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए निर्णयों की
जांच के लिए शाह आयोग का गठन किया। शाह कमीशन में अपनी रिपोर्ट में आपातकाल के
दौरान हुई घटनाओं का उल्लेख करते हुए शासन व्यवस्था को हुई हानि पर चिंता व्यक्त की।
वास्तव में आपातकाल कांग्रेस के लिए हानिकारक रहा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आपातकाल का जमकर विरोध किया। इसके कारण उसे सत्ता के
क्रोध का दंश झेलना पड़ा, किन्तु आपातकाल के दौरान संघ द्वारा किए गए विरोध
प्रदर्शनों ने लोगों में उसे विख्यात कर दिया। इस प्रकार लोकतंत्र की विजय घोष के साथ संघ बढ़ता गया।
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