Wednesday, October 31, 2018

विश्व का सबसे ऊंचा स्टैच्यू

डॊ. सौरभ मालवीय
हमारे देश में अनेक धर्म, अनेक भाषाएं भी हैं, लेकिन हमारी संस्कृति एक ही है। हर भारतीय का प्रथम कर्त्यव्य है की वह अपने देश की आजादी का अनुभव करे कि उसका देश स्वतंत्र है और इस आजादी की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। जनशक्ति ही राष्ट्र की एकता शक्ति है। ये विचार देश को राष्ट्रीय एकता सूत्र में पिरोने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल के हैं, जो आज भी बेहद प्रासंगिक हैं. 31 अक्टूबर, 1875 गुजरात के नाडियाद में जन्मे सरदार पटेल को भारत का लौह पुरुष भी कहा जाता है। उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई और देश के प्रथम गृहमंत्री बने। यह विडम्बना ही है कि बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में केवल 15 भागों को एकत्र करके जर्मनी राष्ट्र खड़ा करने वाले बिस्मार्क नाम के जर्मन राजनीतिज्ञ को विश्व में अभूतपूर्व राजनेता मान लिया गया, परंतु साढ़े 32 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बसे 565 राज्यों को मिलाकर एक महान भारत का निर्माण करने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान को भुला दिया गया। वास्तव में देश के दुर्भाग्य और राजनीतिक कुचक्र के कारण सरदार वल्लभ भाई पटेल को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे अधिकारी थे।

वर्ष 2009 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल को उनकी गरिमा के अनुरूप सम्मानित करने के लिए विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा बनवाने के बारे में विचार किया। गुजरात विधानसभा में 182 सदस्य चुने जाते हैं, अतएव 182 मीटर ऊंची प्रतिमा बनवाने का निर्णय गुजरात सरकार ने लिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 अक्टूबर, 2013 को सरदार पटेल की 138वीं वर्षगांठ के अवसर पर गुजरात में नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध के समीप केवड़िया नामक स्थान पर प्रतिमा का शिलान्यास किया। उस समय भारतीय जनता पार्टी ने प्रतिमा के लिए लोहा एकत्रित करने के लिए देशव्यापी अभियान चलाया था। विशेष बात यह है कि नरेंद्र मोदी अब प्रधानमंत्री के रूप में कल इस प्रतिमा का अनावरण करेंगे। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी नामक सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 237.35 मीटर है। लगभग 2,989 करोड़ रुपये की लागत से बनी इस प्रतिमा के भीतर एक लिफ्ट लगाई गई है, जिससे पर्यटक सरदार पटेल के हृदय तक जा सकेंगे।  यहां से प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य को देखा जा सकेगा। प्रतिमा के निर्माण में इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि प्राकृतिक आपदाएं इसे हानि न पहुंचा पाएं। इसमें चार प्रकार की धातुओं का उपयोग किया गया है, जिससे इसे जंग न लग पाए। प्रतिमा का निर्माण भूकंपरोधी तकनीक से किया गया है। इस पर 6.5 तीव्रता के भूकंप का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके अतिरिक्त 220 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलने वाली वायु पर इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत रविवार को आकाशवाणी से प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात‘ के 49वें संस्करण में कहा था कि इस बार सरदार पटेल की जयंती विशेष होगी, क्योंकि उस दिन गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर स्थापित उनकी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया जाएगा। यह प्रतिमा अमेरिका के स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से दो गुनी ऊंची है। यह विश्व की सबसे ऊंची गगनचुम्बी प्रतिमा है। हर भारतीय इस बात पर अब गर्व कर पाएगा कि दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा भारत की धरती पर है। यह उन सरदार पटेल की मूर्ति है जो जमीन से जुड़े थे और अब आसमान की भी शोभा बढ़ाएंगे। मुझे आशा है कि देश का हर नागरिक ‘मां-भारती’ की इस महान उपलब्धि को लेकर विश्व के सामने गर्व के साथ सीना तानकर, सर ऊंचा करके इसका गौरवगान करेगा। मुझे विश्वास है हिन्दुस्तान के हर कोने से लोग, अब इसे भी अपने एक बहुत ही प्रिय गंतव्य स्थल के रूप में पसंद करेंगे। उन्होंने कहा कि जब देश आजाद हुआ था, उस समय हमारे सामने एक ऐसे भारत का नक्शा था जो कई भागों में बंटा हुआ था। भारत को लेकर अंग्रेजों की रुचि खत्म हो चुकी थी, लेकिन वो इस देश को छिन्न-भिन्न करके छोड़ना चाहते थे। देश के लिए उनकी ईमानदारी और प्रतिबद्धता ऐसी थी कि किसान, मजदूर से लेकर उद्योगपति तक, सब उन पर भरोसा करते थे। गांधी जी ने सरदार पटेल से कहा कि राज्यों की समस्याएं इतनी विकट हैं कि केवल आप ही इनका हल निकाल सकते हैं और सरदार पटेल ने एक-एक कर समाधान निकाला और देश को एकता के सूत्र में पिरोने के असंभव कार्य को पूरा कर दिखाया। उन्होंने सभी रियासतों का भारत में विलय कराया। चाहे जूनागढ़ हो या हैदराबाद, त्रावणकोर हो या फिर राजस्थान की रियासतें, वे सरदार पटेल ही थे जिनकी सूझबूझ और रणनीतिक कौशल से आज हम एक हिन्दुस्तान देख पा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि सरदार पटेल ने माहात्मा गांधी से प्रेरित होकर देश स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।
जब खेड़ा क्षेत्र में सूखा पड़ा और लोग भूखमरी के शिकार हो गए, तो वहां के किसानों ने ब्रिटिश सरकार से कर में छूट देने की मांग की। परंतु सरकार ने इस मांग को ठुकरा दिया। सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की अगुवाई में अन्य लोगों के साथ मिलकर किसानों के पक्ष में आंदोलन चलाया। अंत में आंदोलन सफल रहा और सरकार को झुकना पड़ा। बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिए उन्हें सरदार कहा गया। बाद में ’सरदार’ शब्द उनके नाम के साथ जुड़ गया।

सरदार पटेल की यह प्रतिमा भारत की एकता का प्रतीक है, जो भारतीय गौरव को आने वाली पीढ़ियों से परिचित कराती रहेगी। यह प्रतिमा हमें सरदार पटेल के विचारों से अवगत कराती रहेगी। उनके बताए मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती रहेगी। सरदार पटेल वे कहा करते थे-हमारे देश की मिट्टी में कुछ अनूठा है तभी तो कठिन बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओ का निवास स्थान रहा है। वे यह भी कहते थे कि जब तक हमारा अंतिम ध्येय प्राप्त न हो तब तक हमें कष्ट सहने की शक्ति हमारे अंदर आती रहे यही हमारी सच्ची विजय है। त्याग के बारे में उनका कथन था- त्याग के सच्चे मूल्य का पता तभी चलता है, जब हमें अपनी सबसे कीमती चीज को भी त्यागना पड़ता है। जिसने अपने जीवन में कभी त्याग ही नहीं किया हो, उसे त्याग के मूल्य का क्या पता।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय एकता दिवस पहले नहीं था। नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल के जन्मदिवस 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाना प्रारंभ किया।

Wednesday, October 17, 2018

समारोह











 'प्रवक्‍ता डॉट कॉम' के 10 साल पूरे होने पर आयोजित इस समारोह में ढाई सौ से अधिक बुद्धिजीवियों, लेखकों और पत्रकारों का प्यार और स्नेह!
कार्यक्रम के अध्‍यक्ष सर्वश्री सच्‍चिदानंद जोशी, विशिष्‍ट अतिथि उदय सिन्‍हा एवं शिवाजी सरकार, वक्‍तागण- ब्रजेश सिंह, बालेंदु शर्मा दाधीच एवं सुश्री विनीता यादव तथा कार्यक्रम में उपस्‍थित सभी विशिष्‍ट जन का हार्दिक धन्‍यवाद, साथ ही, आज सम्‍मानित हुए सभी लेखकों को हार्दिक बधाई ! 
मुझे अवसर देने के लिए मित्र भारत भूषण और संजीव सिन्हा का आभार। शुभकामनाएं

Tuesday, October 16, 2018

अखबार अगर अपनी विश्वसनीयता कायम रखेंगे तो कभी खत्म नहीं होंगे






उदय सिन्हा (समूह संपादक, अमर उजाला)
मौका था प्रवक्ता. काॅम के 10 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में रखे गए विमर्श का और विमर्श का विषय था 'न्यू मीडिया के आगे नतमस्तक मेनस्ट्रीम मीडिया' जिसकी अध्यक्षता डॉ सच्चिदानंद जोशी (सदस्य सचिव आईजीएनसीए) कर रहे थे, बतौर विशिष्ट अतिथि उदय सिन्हा (समूह संपादक अमर उजाला) और शिवाजी सरकार (डीन, पत्रकारिता विभाग मंगलापतन विश्वविद्यालय) मौजूद थे। वहीं इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश सिंह, बालेन्दु शर्मा दाधीच और वरिष्ठ पत्रकार विनीता यादव को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ।
पूरे कार्यक्रम के माॅडरेटर हमारे गुरूदेव डॉ Sourabh Malviya सर थे और मैं इस बात को लेकर आश्वस्त रहता हूँ कि जिस कार्यक्रम में सौरभ सर हों वो निश्चित रूप से सार्थक और उत्साह से भरा होगा और आज भी एैसा ही हुआ।
भारत के प्रिंट मीडिया ने वेब मीडिया से दोस्ती कर ली, वेब मीडिया के माध्यम से लोगों तक सूचनाएं तेजी से पहुँच रही हैं और यहीं से मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए चुनौती खड़ी हो जाती है। भारत में एक समय एैसा भी रहा जब लोग न्यू मीडिया को गंभीरता से नहीं लेते थे पर 2008 के बाद स्थितियों में बदलाव आया और न्यू मीडिया ने ना सिर्फ खुद को स्थापित किया बल्कि मेनस्ट्रीम मीडिया कई सारी चुनौतियां भी खड़ा रहा है। पर ये सुखद है कि भारत के मेनस्ट्रीम मीडिया ने न्यू मीडिया से दोस्ती कर ली।
(बालेन्दु शर्मा दाधीच)
जब न्यू मीडिया शुरू में आया था तब हमें ये अनुमान नहीं था कि ये इतना आगे जाएगा। मैं एक टीवी पत्रकार हूँ पर इमानदारी से कहना चाहूंगीं कि मैं खुद टीवी नहीं देखती क्योंकि फोन पे आसानी से सूचनाएं मिल जाती है। न्यू मीडिया ने टीवी और अखबार के सामने एक चुनौती पेश की है।
(वरिष्ठ पत्रकार, विनीता यादव)
आज के समय में अखबार की हार्ड कॉपी पढ़ने वाले लोग कम मिलते हैं क्योंकि उनके फेन पर आसानी से खबरें पहुंच जाती हैं। मैं ये मानता हूँ कि न्यू मीडिया ने मेनस्ट्रीम मीडिया के सामने एक चुनौती पेश की है। 5 साल बाद मीडिया डिजिटल होगा और मेजर इनवेस्टमेंट डिजिटल में होगा।
(वरिष्ठ पत्रकार, ब्रजेश सिंह)
हमें इस बहस में नहीं पड़ना चाहिए कि मेनस्ट्रीम मीडिया के सामने न्यू मीडिया कितनी चुनौती पेश कर रही है। हम सब कुल मिलाकर एक व्यापक मीडिया परिदृश्य का हिस्सा है।
(सच्चिदानंद जोशी)

Saturday, October 13, 2018

राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी

 


दिल्ली प्रवास के दौरान 7 अक्टूबर को अग्रज डॉ. सौरभ मालवीय का सान्निध्य प्राप्त हुआ। उनकी विशेषता है कि उनके साथ समय का पता नहीं चलता। खूब खुशमिजाज हैं। आप एक पल भी बोर नहीं हो सकते। इस खूबी के चलते उनकी प्रसिद्धि लोकव्यापी है। वो जहां उपस्थित नहीं होते, वहां भी उनकी उपस्थिति रहती है। 

दिव्य भोजन
दो दिन से बाहर का खाना खा-खाकर परेशान थे। जब उनसे मिलने घर जा रहा था तब ही उन्होंने फोन पर कह दिया था कि भोजन साथ में होगा। "भूखा क्या चाहे दो रोटी।" सब्जी-रोटी और भाई साहब के हाथ के बने दाल-चावल के स्वाद ने दिन बना दिया था। भाँति-भाँति प्रकार की चर्चा का स्वाद भी लिया।
 
पुस्तक चर्चा 
इस अवसर पर उन्होंने अपनी नई किताब "राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी" भेंट की। जल्द ही हम अपने यूट्यूब चैनल में इस पुस्तक की चर्चा करेंगे।-लोकेन्द्र सिंह राजपूत 
भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है