अर्चित गुप्ता
नई दिल्ली: किताब का नाम: राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी
लेखक: डॉ सौरभ मालवीय
कीमत: 595 रुपये
कवर: हार्ड
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनीतिज्ञ, कवि और पत्रकार थे. अटल जी राजनेता और कवि दोनों के रूप में आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं. लेकिन अटल जी राजनेता और कवि के साथ-साथ राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष भी थे. राजनेता बनने से पहले अटल जी एक पत्रकार थे. उन्होंने राष्ट्रवादी पत्रकारिता को बढ़ावा देने और पत्रकारों की आवाज बुलंद करने में अपना खास योगदान दिया था. अटल जी के जीवन पर कई किताबें लिखी गई हैं. लेकिन आज हम एक ऐसी किताब कि बात कर रहें हैं, जिसमें उनके पत्रकारीय जीवन पर प्रकाश डाला गया है. डॉ. सौरभ मालवीय की किताब ‘राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी’ में अटल जी के पत्रकारीय जीवन के बारें में बखूबी लिखा गया है. इस किताब में अटल जी के जीवन से जुड़ी कई रोचक बातें लिखी गई है. किताब की विषय सूची को देखकर ही इसे पढ़ने का मन करता है. लेकिन इस किताब में कई बातें ऐसी हैं, जो ज्यादातर लोगों को पहले से मालूम हैं.
लेखक: डॉ सौरभ मालवीय
कीमत: 595 रुपये
कवर: हार्ड
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनीतिज्ञ, कवि और पत्रकार थे. अटल जी राजनेता और कवि दोनों के रूप में आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं. लेकिन अटल जी राजनेता और कवि के साथ-साथ राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष भी थे. राजनेता बनने से पहले अटल जी एक पत्रकार थे. उन्होंने राष्ट्रवादी पत्रकारिता को बढ़ावा देने और पत्रकारों की आवाज बुलंद करने में अपना खास योगदान दिया था. अटल जी के जीवन पर कई किताबें लिखी गई हैं. लेकिन आज हम एक ऐसी किताब कि बात कर रहें हैं, जिसमें उनके पत्रकारीय जीवन पर प्रकाश डाला गया है. डॉ. सौरभ मालवीय की किताब ‘राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी’ में अटल जी के पत्रकारीय जीवन के बारें में बखूबी लिखा गया है. इस किताब में अटल जी के जीवन से जुड़ी कई रोचक बातें लिखी गई है. किताब की विषय सूची को देखकर ही इसे पढ़ने का मन करता है. लेकिन इस किताब में कई बातें ऐसी हैं, जो ज्यादातर लोगों को पहले से मालूम हैं.
किताब के अनुसार, अटल जी मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ के प्रथम संपादक रहे हैं. अटल जी छात्र जीवन से ही संपादक बनना चाहते थे. अटल जी ने पांचजन्य, स्वदेश, वीर अर्जुन और कई अन्य समाचार पत्रों और पत्रिकारओं के लिए कार्य किया था. 20 जनवरी 1982 में ‘तरुण भारत’ की रजत जयंती पर अटल जी ने कहा था, ‘समाचार पत्र के ऊपर एक बड़ा राष्ट्रीय दायित्व है. भले हम समाचार पत्रों की गणना उद्योग में करें, कर्मचारियों के साथ न्याय करने की दृष्टि से आज यह आवश्यक भी होगा, लेकिन समाचार पत्र केवल उद्योग नहीं है, उससे भी कुछ अधिक है.’
अटल जी कहते थे कि समाचार पत्र खरीद कर पढ़ें, मांग कर नहीं. उनका कहना था कि जब हम खाना मांग कर खाना पसंद नहीं करते, हम मांगा हुआ कपड़ा पसंद नहीं करते, तो हम मांगा हुआ अखबार पढ़ने से संकोच क्यों नहीं करते हैं? उनका कहना था कि समाचार पत्रों की बिक्री होना जरूरी है. समाचार पत्र घाटे में न चले, इसका प्रबंधन भी बहुत आवश्यक है.
लेखक ने अपनी इस किताब में अटल जी के पत्रकारीय सफर का बखूबी वर्णन किया है. इस किताब की कीमत 595 रुपये है. किताब की कीमत ज्यादा है और अटल जी पर कई अच्छी किताबें बाजार में पहले से मौजूद हैं. ऐसे में छात्रों को ये किताब महंगी पढ़ने वाली है. लेकिन अगर आप अटल जी के पत्रकारिय जीवन को जानने के लिए उत्सुक हैं, तो आप इस किताब को खरीद सकते हैं.
(एनडीटीवी इंडिया)
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