Monday, September 1, 2025

सर्वे भवंतु सुखिनः को साकार करेगा एकात्म मानवदर्शन


डॉ. सौरभ मालवीय
परमपावन भारत भूमि अजन्मा है यह देव निर्मित है और देवताओं के द्वारा इस धरा पर  विभिन्न अवसरों पर अलग अलग प्रकार की शक्तियां अवतरित होती रहती हैं।  जो देव निर्मित भू -भाग को अपनी ऊर्जा से  समाज का मार्गदर्शन करते हैं।  ऐसे महापुरूषों की अनंत श्रृंखला भारत में विराजमान है।

 श्रीकृष्ण की भूमि मथुरा के गाँव नगला चन्द्रभान के निवासी पंडित हरिराम उपाध्याय एक ख्यातिनाम ज्योतिषी थे।  उनके कुल में आचार और विचार संपन्न लोगों की एक आदरणीय परम्परा थी।  पंडित हरिराम उपाध्याय की समाज में इतनी प्रतिष्ठा थी की उनकी मृत्यु पर पूरे तहसील में समाज के लोगों ने अपना व्यापर और कार्य बंद करके श्रद्धांजलि अर्पित की थी। काल के कराल का उच्छेद करके विपरीत परिस्थितियों में ही तो परमात्मा जनमते हैं। इसी परम्परा में आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को जब पूरा जगत भगवान शिव की स्तुति में लीन था तो 25 सितम्बर 1916 श्री दीनदयाल जी का जन्म हुआ। पंडित हरिराम के घर में संयुक्त परम्परा थी।  अतएव बालपन से ही दीनदयाल जी के चित्त में सामूहिक जीवन शैली का विकास हुआ।  काल चक्र घूमता रहा और दीनदयाल जी की माँ फिर, पिता जी दिवंगत हो गए।  उनका पालन -पोषण ननिहाल में हुआ जो राजस्थान में था ।  पूत के पांव पालने में ही दिखने लगते हैं, दीनदयाल की प्रखर मेधा के धनी थे। हाईस्कूल और बारहवीं में राजस्थान प्रदेश में सर्वोच्च अंक प्राप्त किये। इसी बीच उनके नाना,नानी ,मामी और छोटा भाई भी संसार छोड़ कर चले गए। ऐसी भयंकर परिस्थितियों में दीनदयाल जी दृढ़ संकल्प के साथ निरंतर आगे बढ़ते रहे। कानपुर के सनातन धर्म कालेज में गणित विषय लेकर बी.ए प्रथम श्रेणी में सफल हुए। ई.सी.एस.की परीक्षा में चयनित होने के बाद भी नौकरी नहीं की। आगे की पढ़ाई के लिए प्रयाग चले आये। नियति ने कुछ और ही तय किया था यही पर उनका संपर्क माननीय भाऊराव देवरस से हुआ और वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बन गए और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।  दीनदयाल जी को बालपन से ही रामायण और महाभारत  के लगभग सभी प्रसंग कंठस्थ थे उपनिषदों के अथाह ज्ञान सागर में वे रमे रहते थे। उनके चित्त के विकास का मूल श्लोक ही "गृद्धः कस्यस्विद्धनम् " था। उन्होंने कानपुर में पढ़ते समय ही सबसे कम अंक पाने वाले विद्यार्थियों का एक संगठन बनाया था, जिसका नाम "जीरो एसोशिएसन" रखा था और अपने पढ़ाई से समय निकाल कर वे उन विद्यार्थियों की सहायता करते थे। उनमें से अनेक विद्यार्थी सफल हो कर बड़े उंचाई पर पहुंचे।

उनके मन में जो मानवता के प्रति विचार थे उसे गति 1920 में प्रकाशित पण्डित बद्रीशाह कुलधारिया की पुस्तक ‘दैशिक शास्त्र’ से मिली। दैशिक शास्त्र की भावभूमि तो दीनदयाल जी के मन में पहले से ही थी और एक नया विचार उनके मन में उदित हुआ कि सम्पूर्ण विश्व के विचारों का अध्ययन कर के मानवता के लिए एक शास्वत जीवन प्रणाली दी जाए, यूँ तो ये शास्वत जीवन प्रणाली भारत में चिरकाल से ही विद्यमान है, परन्तु इसकी व्याख्या आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में करने लिए उन्होंने करीब करीब सवा सौ विदेशी विचारकों का गहन अध्ययन किया। सामान्यतः पाश्चात्य दर्शन के नाम पर हम लोग केवल यूरोप ,ब्रिटेन,अमेरिका को ही पूरा मान लेते हैं और इसके बाहर  के विचारकों  पर हमारी दृष्टि ही नही जाती दीनदयाल जी ने इस भ्रामक मिथक को तोड़ा वे ब्राजील के लुइपेरिया ,मेक्सिको के जुस्टोपिया और कविनोवारेड़ा पेरू के मरियनोकानेर्जो और आलेयांड्रोडस्तुवा ,चिली के लास्टरिया ,क्यूबा के अनरेकिक तोसेवारोना आदि अनेक विचारकों को सांगोपांग अध्ययन किया।
 रेन्डेकार्ड,स्पिनोजा,जानलाँक ,चीन जेम्स रुसो अनेक मुख्यधारा के विद्वान थे। सुकरात, प्लेटो, अरस्तु, अगस्टीन, ओरिजेन, अरेजिना, ओखैम, काम्पार्ज, वरनेट, जेल; जेलर आर्लिक आदि को दीनदयाल जी ने खंगाल डाला इन सभी का निहितार्थ यह पाये कि यह सभी विचारधाराएं अधिकतम ढाई हजार साल पुरानी है और खण्ड सः सोचती है।  कोई भी  खण्ड सः सोच का परिणाम शास्वत और मंगलकारी नहीं हो सकता है।  इस प्रकार के खण्ड सः सोच पर पिछले दो सौ वर्षों में बहुत बार विश्व को एकत्र करने का प्रयास किया गया और अनेक नामो से किया गया। जिसमें इंटनेशनल कम्युनलिजम,इंटरनेशनल सेक्टरिजम और इंटरनेशनल ह्युम्नलिजम प्रमुख रहे।  पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के समक्ष ये सभी प्रयास और इसके परिणाम थे। वह इस बात का भी अध्ययन किये थे कि इन प्रयासों में वैचारिक त्रुटि क्या रह गई है और इन प्रयासों के वैचारिक निहितार्थ क्या है ? अंत में वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सोच की संकीर्णता और अधूरापन ही इसका मुख्य कारण है और इस विचार के परिणाम की विफलता के पीछे चित्त का तालमेल नहीं होना भी है।  इस निदान हेतु वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जब तक समग्र मानव जाति की चेतना से एकीभूति नहीं हुआ जाये तब तक इस तरह के सभी प्रयास नक्कारखाने में तूती की आवाज ही सिद्ध होंगे।  यही से प्रारम्भ हो गया उनका मानव मन को जोड़ने का अद्भुत प्रयोग उन्होंने सहज ही अनुभव कर लिया की भारतीय मनीषा में इस तरह के प्रयोग की अपर सम्भावनाएं है।

   एकात्म मानव दर्शन प्राचीन अवधारणा है। यह सांस्कृतिक चेतना है। इस विचार दर्शन में राष्ट्र की संकल्पना स्पष्ट है कि राष्ट्र वही होगा, जहां संस्कृति होगी। जहां संस्कृति विहीन स्थिति होगी, वहां राष्ट्र की कल्पना भी बेमानी है। भारत में आजादी के बाद शब्दों की विलासिता का जबरदस्त दौर कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने चलाया। इन्होंने देश में तत्कालीन सत्ताधारियों को छल-कपट से अपने घेरे में ले लिया। परिणामस्वरूप राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत जीवनशैली का मार्ग निरन्तर अवरूद्ध होता गया। अब अवरूद्ध मार्ग खुलने लगा है। संस्कृति से उपजा संस्कार बोलने लगा है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का आधार हमारी युगों पुरानी संस्कृति है, जो सदियों से चली आ रही है। यह सांस्कृतिक एकता है, जो किसी भी बन्धन से अधिक मजबूत और टिकाऊ है, जो किसी देश में लोगों को एकजुट करने में सक्षम है और जिसमें इस देश को एक राष्ट्र के सूत्र में बांध रखा है। भारत की संस्कृति भारत की धरती की उपज है। उसकी चेतना की देन है। साधना की पूंजी है। उसकी एकता, एकात्मता, विशालता, समन्वय धरती से निकला है। भारत में आसेतु-हिमालय एक संस्कृति है । उससे भारतीय राष्ट्र जीवन प्रेरित हुआ है। अनादिकाल से यहां का समाज अनेक सम्प्रदायों को उत्पन्न करके भी एक ही मूल से जीवन रस ग्रहण करता आया है यही एकात्म मानव दर्शन की दृष्टि है।

राष्ट्र को आक्रांत करने वाली समस्याओं की अलग -अलग समाधान खोजने की जगह एक ऐसे दर्शन की बात एकात्म मानव दर्शन में है जहां एकात्म दृष्टि से कार्य करने की संकल्पना है।  शरीर ,मन और बुद्धि प्रत्येक इंसान की आत्मा पर बल देकर राजनीति के आध्यात्मीकरण की दृष्टि एकात्म मानव दर्शन में दिखती है। पंडित दीनदयाल जी का मुख्य विचार उनकी भारतीयता ,धर्म ,राज्य और अंत्योदय की अवधारणा से स्पष्ट है। भारतीय से उनका आशय था वह भारतीय संस्कृति जो पश्चिमी विचारों के विपरीत एकात्म संपूर्णता में जीवन को देखती है। उनके अनुसार भारतीयता राजनीति के माध्यम से नहीं बल्कि संस्कृति से स्वयं को प्रकट कर सकती है।  किसी भी समस्या को खंड -खंड रूप में न देखें,क्योंकि खंड -खंड पाखंड है और वहीं एकात्म दर्शन संपूर्णता से परिपूर्ण है। दीनदयाल जी का चिंतन था कि वसुधैव कुटुम्बकम के इस मूल सिद्धांत को हम अपनाते तो पूरा विश्व एक ही सूत्र में जुड़ा हुआ मिलता। एक दूसरे के पूरक के रूप में काम करते और सर्वे भवन्तु सुखिनः की अवधारणा को परिपूर्ण करते। 

समाचार-पत्रों में

  







Sunday, August 31, 2025

मूल्य-आधारित और समावेशी शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण : डॉ सौरभ मालवीय

 











बस्ती। विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान आज देश के सबसे बड़े शैक्षणिक आंदोलनों में से एक है, जो गुणवत्तापूर्ण (गुणात्मक) और संस्कृति-युक्त शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। विद्या भारती मूल्य-आधारित और समावेशी शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में रत है। विद्या भारती का मूल उद्देश्य भारतीय संस्कृति, संस्कार और राष्ट्रीयता आधारित शिक्षा प्रणाली का प्रचार प्रसार करना है। 
1952 में गोरखपुर में एक विद्यालय से प्रारंभ कर यह संस्था आज 684 जिलों में 12,118 विद्यालयों का संचालन कर रही है। उपरोक्त बातें डॉ सौरभ मालवीय, क्षेत्रीय मंत्री पूर्व उत्तर प्रदेश क्षेत्र ने सरस्वती विद्या मन्दिर रामबाग बस्ती में विद्या भारती गोरक्ष प्रान्त के प्रचार विभाग की एक दिवसीय कार्यशाला के दौरान आयोजित पत्रकार वार्ता में कहीं।

डॉ मालवीय ने कहा कि विद्या भारती के विद्यालय देश के अनेक दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित हैं, इनमें जनजातीय इलाके और सीमावर्ती जिले शामिल हैं। भारत की सीमाएँ पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, चीन और म्यांमार से लगती हैं, और इन 127 सीमावर्ती जिलों के 167 विकास खण्डों में विद्या भारती ने 211 विद्यालय स्थापित किए हैं। इसके अतिरिक्त, संस्था देशभर में 8,000 से अधिक अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र भी संचालित कर रही है, जो समाज के वंचित वर्ग को नि:शुल्क शिक्षा सुविधा प्रदान कर रहे हैं। वर्तमान में 35.33 लाख से अधिक छात्र- छात्राएं विद्या भारती के स्कूलों में अध्ययनरत हैं और उन्हें 1.53 लाख से अधिक शिक्षक शिक्षित कर रहे हैं।
कार्यशाला के समापन सत्र में क्षेत्रीय संगठन मंत्री हेमचन्द्र जी ने कहा कि यदि हम विद्या भारती जैसे संगठनों की बात करें तो प्रचार विभाग विद्यालयों में हो रहे सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक कार्यों को समाज के सामने लाता है। इससे समाज को प्रेरणा मिलती है और विद्यार्थी, शिक्षक तथा अभिभावक सभी को गर्व की अनुभूति होती है। 

इससे पूर्व प्रान्त की दोनों समितियों की एक दिवसीय प्रान्तीय कार्यशाला का उद्घाटन हेमचन्द्र जी (क्षेत्रीय संगठन मंत्री, विद्या भारती पूर्वी उ०प्र०) डॉ० सौरभ मालवीय (क्षेत्रीय मंत्री, विद्या भारती पूर्वी उ०प्र०) के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन व पुष्पार्चन के साथ किया गया। द्वितीय सत्र में प्रो. किरणलता डंगवाल जी के द्वारा ए० आई० के प्रयोग के संदर्भ में प्रशिक्षण प्रदान किया गया। तृतीय सत्र में संगठनात्मक रचना एवं अष्ट बिन्दु पर डॉ० योगेन्द्र प्रताप सिंह, क्षेत्र संयोजक, प्रचार विभाग) ने एवं अंकित गुप्ता (प्रान्त संयोजक, प्रचार विभाग) ने कार्य योजना के महत्व को रेखांकित किया। समापन सत्र को हेमचन्द्र जी ने संबोधित किया। अतिथि परिचय प्रधानाचार्य गोविन्द सिंह जी ने कराया। इस अवसर पर प्रान्त की दोनों समितियों के मंत्री डॉ० शैलेश कुमार सिंह व डॉ दुर्गा प्रसाद अस्थाना, प्रदेश निरीक्षक राम सिंह व जियालाल, प्रधानाचार्य सरस्वती शिशु मन्दिर भानु प्रकाश मिश्र, प्रधानाचार्य बालिका विद्या मन्दिर प्रियंका सिंह, प्रान्त संवाददाता प्रेमशरण मिश्र व सोशल मीडिया प्रमुख नरेन्द्र चन्द कौशिक, अशोक मिश्र, डॉ उपेन्द्र नाथ द्विवेदी, लव कुमार, रमेश सिंह, योगेश कुमार, शम्भू नारायण कुशवाहा, चन्द्रप्रकाश सिंह, सहित सभी संकुलों के प्रचार, सोशल मीडया व संवाददाता प्रमुख उपस्थित रहे।

Saturday, August 30, 2025

भ्रमण

 सरस्वती बालिका इंटर कॉलेज सूर्यकुण्ड गोरखपुर की बहनें विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्रीय कार्यालय निरालानगर, लखनऊ का भ्रमण किया और उनके साथ संवाद का अवसर.







बीजेपी उत्तर प्रदेश मुखपत्र कमल ज्योति के विशेष अंक में प्रकाशित लेख

  




टीवी पर लाइव



राजनीति में छोटी लोकप्रियता के लिए बोल का बेलगाम होना एक शौक बन गया है. पार्टियों की अपनी एक लक्षण रेखा होनी चाहिए.


Friday, August 29, 2025

सप्तशक्ति




सप्तशक्ति संगम कार्यशाला - अवध प्रान्त, लखनऊ 


भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है