Saturday, March 29, 2025

भारतीय नववर्ष उत्सव का उमंग


डॉ. सौरभ मालवीय
भारतीय नववर्ष के साथ अनेक त्यौहार आते हैं। इनमें चैत्र शुक्लादि, नवरेह, गुड़ी पड़वा, उगादि, साजिबु नोंगमा पांबा अथवा साजिबु चेराओबा एवं चेटीचंड आदि सम्मिलित हैं। चैत्र शुक्लादि विक्रम संवत के नववर्ष के प्रारम्भ का प्रतीक है। इसे वैदिक अथवा हिन्दू कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन से नवरात्रि का प्रारम्भ होता है। भारतीय नववर्ष के साथ वसंत ऋतु का भी आगमन होता है। इसलिए ये सब त्यौहार वसंत के उत्सव हैं।

नवरेह
जम्मू कश्मीर में नवरेह का त्यौहार हर्ष एवं उल्लास से मनाया जाता है। नव चंद्रवर्ष के रूप में मनाया जाने वाला यह त्यौहार उत्साह एवं रंगों का उत्सव है। यह कश्मीरी पंडितों का विशेष त्यौहार माना जाता है। त्यौहार से एक दिन पूर्व वे पवित्र विचर नाग के झरने की यात्रा करते हैं। इसके पश्चात वे पवित्र जल में स्नान करके अपनी समस्त मलिनताओं का त्याग करते हैं। इसके पश्चात् वे पूजा-अर्चना करके प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह प्रसाद चावल एवं विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों से बनाया जाता है। नवरेह के प्रातःकाल में वे लोग सर्वप्रथम चावल से भरे पात्र को देखते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से घर में समृद्धि आती है, क्योंकि चावल धन-धान्य एवं समृद्धि का प्रतीक है।

गुड़ी पड़वा
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। गुड़ी का अर्थ है विजय पताका तथा पड़वा का अर्थ है चंद्रमा का प्रथम दिवस। इस दिन लोग बांस के ऊपर चांदी, तांबे अथवा पीतल के कलश को उल्टा रखते हैं। कलश पर स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है। बांस पर केसरिया रंग का पताका लगाया जाता है। तदुपरान्त इसे नीम एवं आम की पत्तियां और पुष्पों से सुसज्जित किया जाता है। इसे घर के सबसे उच्च स्थान पर लगाया जाता है। गृह द्वारों पर आम के पत्तों का तोरण लगाया जाता है। मान्यता है कि आम के पत्ते पवित्र होते हैं। इसके लगाने से नकारात्मक शक्तियां घर में प्रवेश नहीं कर पाती हैं तथा घर इनसे सुरक्षित रहता है।  

इस दिन भोजन में गुड़ एवं नीम परोसा जाता है। गुड़ की मिठास सुख एवं नीम की कड़वाहट दुःख का प्रतीक है अर्थात जीवन के सुख- दुःख को समान भाव से अपनाना चाहिए, क्योंकि मानव की परीक्षा दुःख में ही होती है।   
देश के विभिन्न भागों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा गोवा में संवत्सर पड़वा के रूप में मनाया जाता है। केरल में इसे संवत्सर पड़वो के रूप में मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक एवं तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों में इसे उगादी के रूप में मनाया जाता है। राजस्थान में इसे थापना एवं मणिपुर में साजिबु चेराओबा अथवा साजिबु नोंगमा पांबा के रूप में मनाया जाता है।

सिन्धी समुदाय के लोग चेटीचंड का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाते हैं। यह त्यौहार भगवान झूलेलाल के जन्म दिवस के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म पाकिस्तान के सिंध प्रांत के ग्राम नसरपुर में हुआ था। उनका वास्तविक नाम उदयचंद था। वे वरुण देव के अवतार माने जाते हैं। उन्हें उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से भी जाना जाता है। वह सद्भावना के प्रतीक माने जाते हैं।

विक्रम सम्वत् का इतिहास
30 मार्च से विक्रम सम्वत् 2082 का प्रारम्भ चुका है। विक्रम सम्वत् को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर पांच प्रकार के होते हैं, जिनमें सौर, चन्द्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास सम्मिलित हैं। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ एवं मीन नामक बारह राशियां सूर्य वर्ष के महीने हैं। सूर्य का वर्ष 365 दिन का होता है। इसका प्रारम्भ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने से होता है।  चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अग्रहायण, पौष, माघ और फाल्गुन चन्द्र वर्ष के महीने हैं। चन्द्र वर्ष 355 दिन का होता है। इस प्रकार इन दोनों वर्षों में दस दिन का अंतर हो जाता है। चन्द्र माह के बढ़े हुए दिनों को ही अधिमास या मलमास कहा जाता है। नक्षत्र माह 27 दिन का होता है, जिन्हें अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र कहा जाता है। सावन वर्ष में 360 दिन होते हैं। इसका एक महीना 30 दिन का होता है।   
 
विक्रम सम्वत् का महत्त्व
भारतीय संस्कृति में विक्रम सम्वत् का बहुत महत्त्व है। चैत्र का महीना भारतीय कैलेंडर के हिसाब से वर्ष का प्रथम महीना है। नवीन संवत्सर के संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। वैदिक पुराण एवं शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को आदिशक्ति प्रकट हुई थीं। आदिशक्ति के आदेश पर ब्रह्मा ने सृष्टि की प्रारम्भ की थी। इसीलिए इस दिन को अनादिकाल से नववर्ष के रूप में जाना जाता है। मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसी दिन सतयुग का प्रारम्भ हुआ था। मान्यता है कि इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने अपना राज्य स्थापित किया था। श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र भी इसी दिन से प्रारम्भ होते हैं। इसी तिथि को राजा विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी। विजय को चिर स्थायी बनाने के लिए उन्होंने विक्रम सम्वत् का शुभारंभ किया था, तभी से विक्रम सम्वत् चली आ रही है। इसी दिन से महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करके पंचांग की रचना की थी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्त्व भी है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी। इस दिन महर्षि गौतम जयंती मनाई जाती है। इस दिन संघ संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिवस भी मनाया जाता है।

उत्कृष्ट काल गणना
सृष्टि की सर्वाधिक उत्कृष्ट काल गणना का श्रीगणेश भारतीय ऋषियों ने अति प्राचीन काल से ही कर दिया था। तदनुसार हमारे सौरमंडल की आयु लगभग चार अरब 32 करोड़ वर्ष हैं। आधुनिक विज्ञान भी कार्बन डेटिंग और हॉफ लाइफ पीरियड की सहायता से इसे लगभग चार अरब वर्ष पुराना मान रहा है। इतना ही नहीं, श्रीमद्भागवद पुराण, श्री मारकंडेय पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार अभिशेत् बाराह कल्प चल रहा है और एक कल्प में एक हजार चतुरयुग होते हैं। जिस दिन सृष्टि का प्रारम्भ हुआ, वह आज ही का पवित्र दिन था। इसी कारण मदुराई के परम पावन शक्तिपीठ मीनाक्षी देवी के मंदिर में चैत्र पर्व मनाने की परंपरा बन गई। नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

महीनों का नामकरण
भारतीय महीनों का नामकरण भी बड़ा रोचक है अर्थात जिस महीने की पूर्णिमा जिस नक्षत्र में पड़ती है, उसी के नाम पर उस महीने का नामकरण किया गया है, उदाहरण के लिए इस महीने की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में हैं, इसलिए इसे चैत्र महीने का नाम दिया गया। क्रांति वृत पर 12 महीने की सीमाएं तय करने के लिए आकाश में 30-30 अंश के 12 भाग किए गए और उनके नाम भी तारा मंडलों की आकृतियों के आधार पर रखे गए। इस प्रकार बारह राशियां बनीं।

चूंकि सूर्य क्रांति मंडल के ठीक केंद्र में नहीं हैं, अत: कोणों के निकट धरती सूर्य की प्रदक्षिणा 28 दिन में कर लेती है और जब अधिक भाग वाले पक्ष में 32 दिन लगते हैं। इसलिए प्रति तीन वर्ष में एक मास अधिक हो जाता है।

काल गणना की वैज्ञानिक व्यवस्था
भारतीय काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि शताब्दियों तक एक क्षण का भी अंतर नहीं पड़ता, जबकि पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक चार वर्ष में फरवरी महीने को लीप ईयर घोषित कर देते हैं। तब भी नौ मिनट 11 सेकेंड का समय बच जाता है, तो प्रत्येक चार सौ वर्षों में भी एक दिन बढ़ाना पड़ता है, तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता। अभी कुछ वर्ष पूर्व ही पेरिस के अंतर्राष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक सेकेंड धीमा कर दिया गया। फिर भी 22 सेकेंड का समय अधिक चल रहा है। यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है, जहां के सीजीएस सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय किए जाते हैं। रोमन कैलेंडर में तो पहले 10 ही महीने होते थे। किंगनुमापाजुलियस ने 355 दिनों का ही वर्ष माना था, जिसे जुलियस सीजर ने 365 दिन घोषित कर दिया और उसी के नाम पर एक महीना जुलाई बनाया गया। उसके एक सौ वर्ष पश्चात किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट अर्थात अगस्त भी बढ़ाया गया। चूंकि ये दोनों राजा थे, इसलिए इनके नाम वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गए। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद बात है कि लगातार दो महीने के दिनों की संख्या समान हैं, जबकि अन्य महीनों में ऐसा नहीं है। जिसे हम अंग्रेजी कैलेंडर का नौवां महीना सितम्बर कहते हैं, दसवां महीना अक्टूबर कहते हैं, ग्यारहवां महीना नवम्बर और बारहवां महीना दिसम्बर हैं। इनके शब्दों के अर्थ भी लैटिन भाषा में 7,8,9 और 10 होते हैं। भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय काल गणना पूरे विश्व में व्याप्त थी और सचमुच सितम्बर का अर्थ सप्ताम्बर था, आकाश का सातवां भाग, उसी प्रकार अक्टूबर अष्टाम्बर, नवम्बर तो नवमअम्बर और दिसम्बर दशाम्बर है।

उल्लेखनीय है कि ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है। मान्यता है कि नव संवत्सर के दिन नीम की कोमल पत्तियों और पुष्पों का मिश्रण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, मिश्री, जीरा और अजवाइन मिलाकर उसका सेवन करने से शरीर स्वस्थ रहता है। इस दिन आंवले का सेवन भी बहुत लाभदायक बताया गया है। माना जाता है कि आंवला नवमीं को जगत पिता ने सृष्टि पर पहला सृजन पौधे के रूप में किया था। यह पौधा आंवले का था। इस तिथि को पवित्र माना जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।

वसंत का उल्लास
भारतीय नववर्ष में वातावरण अत्यंत मनोहारी रहता है। केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु जड़ चेतना नर-नाग यक्ष रक्ष किन्नर-गंधर्व, पशु-पक्षी लता, पादप, नदी नद, देवी, देव, मानव से समष्टि तक सब प्रसन्न होकर उस परम शक्ति के स्वागत में सन्नध रहते हैं। वृक्षों पर नए पत्ते आ जाते हैं। उपवनों में भी रंग- बिरंगे पुष्प दिखाई देते हैं।   
नववर्ष पर दिवस सुनहले, रात रूपहली, उषा सांझ की लाली छन-छन कर पत्तों में बनती हुई चांदनी जाली कितनी मनोहारी लगती है। शीतल मंद सुगंध पवन वातावरण में हवन की सुरभि कर देते हैं। ऐसे ही शुभ वातावरण में अखिल लोकनायक श्रीराम का अवतार होता है।

भारतीय नववर्ष वसंत का उल्लास साथ लाता है। जब भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ होता है तो प्रकृति चहक उठती है। हमारे गौरवशाली भारत देश की बात ही निराली है। हमारे तीज-त्यौहार, व्रत, उपवास, रामनवमी, जन्माष्टमी, गृह प्रवेश, विवाह तथा अन्य शुभ कार्यों के शुभमुहूर्त आदि सभी आयोजन भारतीय कैलेंडर अर्थात हिन्दू पंचांग के अनुसार ही देखे जाते हैं। इसलिए हमारे जीवन में इसका अत्यंत महत्त्व है।

भारतीय नववर्ष : सृष्टि की रचना का दिन


डॊ. सौरभ मालवीय
नव रात्र हवन के झोके, सुरभित करते जनमन को।
है शक्तिपूत भारत, अब कुचलो आतंकी फन को॥
नव सम्वत् पर संस्कृति का, सादर वन्दन करते हैं।
हो अमित ख्याति भारत की, हम अभिनन्दन करते हैं॥
30 मार्च विक्रम संवत 2082 का प्रारंभ हो रहा है. भारतीय पंचांग में हर नवीन संवत्सर को एक विशेष नाम से जाना जाता है. इस वर्ष इस नवीन संवत्सर का नाम विरोधकर्त है. भारतीय संस्कृति में विक्रम संवत का बहुत महत्व है. चैत्र का महीना भारतीय कैलंडर के हिसाब से वर्ष का प्रथम महीना है. नवीन संवत्सर के संबंध में अन्य पौराणिक कथाएं हैं. वैदिक पुराण एवं शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को आदिशक्ति प्रकट हुईं थी. आदिशक्ति के आदेश पर ब्रह्मा ने सृष्टि की प्रारंभ की थी. इसीलिए इस दिन को अनादिकाल से नववर्ष के रूप में जाना जाता है. मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था. इसी दिन सतयुग का प्रारंभ  हुआ था. इसी तिथि को राजा विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी. विजय को चिर स्थायी बनाने के लिए उन्होंने विक्रम संवत का शुभारंभ किया था, तभी से विक्रम संवत चली आ रही है. इसी दिन से महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और साल की गणना कर पंचांग की रचना की थी.

सृष्टि की सर्वाधिक उत्कृष्ट काल गणना का श्रीगणेश भारतीय ऋषियों ने अति प्राचीन काल से ही कर दिया था. तदनुसार हमारे सौरमंडल की आयु चार अरब 32 करोड़ वर्ष हैं. आधुनिक विज्ञान भी, कार्बन डेटिंग और हॉफ लाइफ पीरियड की सहायता से इसे चार अरब वर्ष पुराना मान रहा है. यही नहीं हमारी इस पृथ्वी की आयु भी 29 मार्च को, एक अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार एक सौ 30 वर्ष पूरी हो गई. इतना ही नहीं, श्रीमद्भागवद पुराण, श्री मारकंडेय पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार अभिशेत् बाराह कल्प चल रहा है और एक कल्प में एक हजार चतुरयुग होते है. इस खगोल शास्त्रीय गणना के अनुसार हमारी पृथ्वी 14 मनवंतरों में से सातवें वैवस्वत मनवंतर के 28वें चतुरयुगी के  अंतिम चरण कलयुग भी. आज 51 सौ 25 वर्ष में प्रवेश कर लिया.जिस दिन सृष्टि का प्रारंभ हुआ, वह आज ही का पवित्र दिन है. इसी कारण मदुराई के परम पावन शक्तिपीठ मीनाक्षी देवी के मंदिर में चैत्र पर्व की परंपरा बन गई.

भारतीय महीनों के नाम जिस महीने की पूर्णिमा जिस नक्षत्र में पड़ती है, उसी के नाम पर पड़ा. जैसे इस महीने की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में हैं, इसलिए इसे चैत्र महीने का नाम हुआ. श्रीमद्भागवत के द्वादश  स्कंध के द्वितीय अध्याय के अनुसार जिस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र पर यह उसी समय से कलयुग का प्रारंभ हुआ, महाभारत और भागवत के इस खगोलीय गणना को आधार मान कर विश्वविख्यात डॉ. वेली ने यह निष्कर्ष दिया है कि कलयुग का प्रारंभ 3102 बी.सी. की रात दो बजकर 20 मिनट 30 सेकेंड पर हुआ था. डॉ. बेली महोदय आश्चर्य चकित है कि अत्यंत प्रागैतिहासिक काल में भी भारतीय ऋणियों ने इतनी सूक्ष्तम और सटीक गणना कैसे कर ली. क्रांति वृंत पर 12 हो महीने की सीमाएं तय करने के लिए आकाश में 30-30 अंश के 12 भाग किए गए और नाम भी तारा मंडलों की आकृतियों के आधार पर रखे गए. जो मेष, वृष, मिथुन इत्यादित 12 राशियां बनीं.

चूंकि सूर्य क्रांति मंडल के ठीक केंद्र में नहीं हैं, अत: कोणों के निकट धरती सूर्य की प्रदक्षिणा 28 दिन में कर लेती है और जब अधिक भाग वाले पक्ष में 32 दिन लगता है. प्रति तीन वर्ष में एक मास अधिक मास कहलाता है. संयोग से यह अधिक मास अगले महीने ही प्रारंभ हो रहा है.

भारतीय काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि सदियों-सदियों तक एक पल का भी अंतर नहीं पड़ता, जबकि पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते हैं. इस प्रकार प्रत्येक चार वर्ष में फरवरी महीने को लीप ईयर घोषित कर देते हैं फिर भी. नौ मिनट 11 सेकेंड का समय बच जाता है, तो प्रत्येक चार सौ वर्षों में भी एक दिन बढ़ाना पड़ता है, तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता है. अभी 10 साल पहले ही पेरिस के अंतर्राष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक सेकेंड स्लो कर दिया गया. फिर भी 22 सेकेंड का समय अधिक चल रहा है. यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है, जहां के सीजीएस सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय किए जाते हैं. रोमन कैलेंडर में तो पहले 10 ही महीने होते थे. किंगनुमापाजुलियस ने 355 दिनों का ही वर्ष माना था, जिसे जुलियस सीजर ने 365 दिन घोषित कर दिया और उसी के नाम पर एक महीना जुलाई बनाया गया. उसके एक सौ साल बाद किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट भी बढ़ाया गया. चूंकि ये दोनों राजा थे, इसलिए इनके नाम वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गए. आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद बात है कि लगातार दो महीने के दिन समान हैं, जबकि अन्य महीनों में ऐसा नहीं है. यदि नहीं जिसे हम अंग्रेजी कैलेंडर का नौवां महीना सितंबर कहते हैं, दसवां महीना अक्टूबर कहते हैं, ग्यारहवां महीना नवंबर और बारहवां महीना दिसंबर हैं. इनके शब्दों के अर्थ भी लैटिन भाषा में 7,8,9 और 10 होते हैं. भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय काल गणना पूरे विश्व में व्याप्त थी और सचमुच सितंबर का अर्थ सप्ताम्बर था, आकाश का सातवां भाग, उसी प्रकार अक्टूबर अष्टाम्बर, नवंबर तो नवमअम्बर और दिसंबर दशाम्बर है.

सन् 1608 में एक संवैधानिक परिवर्तन द्वारा एक जनवरी को नव वर्ष घोषित किया गया. जेनदअवेस्ता के अनुसार धरती की आयु 12 हजार वर्ष है, जबकि बाइबिल केवल दो हजार वर्ष पुराना मानता है. चीनी कैलेंडर एक करोड़ वर्ष पुराना मानता है, जबकि खताईमत के अनुसार इस धरती की आयु 8 करोड़ 88 लाख 40 हजार तीन सौ 18 वर्षों की है. चालडियन कैलेंडर धरती को दो करोड़ 15 लाख वर्ष पुराना मानता है. फीनीसयन इसे मात्र 30 हजार वर्ष की बताते हैं. सीसरो के अनुसार यह 4 लाख 80 हजार वर्ष पुरानी है. सूर्य सिद्धांत और सिद्धांत शिरोमाणि आदि ग्रंथों में चैत्रशुक्ल प्रतिपदा रविवार का दिन ही सृष्टि का प्रथम दिन माना गया है.

संस्कृत के होरा शब्द से ही, अंग्रेजी का आवर (Hour) शब्द बना है. इस प्रकार यह सिद्ध हो रहा है कि वर्ष प्रतिपदा ही नव वर्ष का प्रथम दिन है. एक जनवरी को नव वर्ष मनाने वाले दोहरी भूल के शिकार होते हैं, क्योंकि भारत में जब 31 दिसंबर की रात को 12 बजता है, तो ब्रिटेन में सायंकाल होता है, जो कि नव वर्ष की पहली सुबह हो ही नहीं सकता. और जब उनका एक जनवरी का सूर्योदय होता है, तो यहां के Happy New Year वालों का नशा उतर चुका रहता है. सनसनाती हुई ठंडी हवायें कितना भी सुरा डालने पर शरीर को गरम नहीं कर पाती हैं. ऐसे में सवेरे सवेरे नहा धोकर भगवान सूर्य की पूजा करना तो अत्यंत दुष्कर रहता है. वही पर भारतीय नव वर्ष में वातावरण अत्यंत मनोहारी रहता है. केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु जड़ चेतना नर-नाग यक्ष रक्ष किन्नर-गंधर्व, पशु-पक्षी लता, पादप, नदी नद, देवी, देव, मानव से समष्टि तक सब प्रसन्न होकर उस परम शक्ति के स्वागत में सन्नध रहते हैं.
दिवस सुनहले रात रूपहली उषा सांझ की लाली छन-छन कर पत्तों में बनती हुई चांदनी जाली. शीतल मंद सुगंध पवन वातावरण में हवन की सुरभि कर देते हैं. ऐसे ही शुभ वातावरण में जब मध्य दिवस अतिशित न धामा की स्थिति बनती है, तो अखिल लोकनायक श्रीराम का अवतार होता है. आइए इस शुभ अवसर पर हम भारत को पुन: जगतगुरू के पद पर आसीन करने में कृत संकल्प हों.

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस वर्ष के राजा सूर्य हैं और शनि मंत्री होंगे. यह वर्ष सभी के लिए काफी सुखद रहेगा. उल्लेखनीय है कि ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है. मान्यता है कि नव संवत्सर के दिन नीम की कोमल पत्तियों और पुष्पों का मिश्रण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, मिश्री, जीरा और अजवाइन मिलाकर उसका सेवन करने से शरीर स्वस्थ रहता है. इस दिन आंवले का सेवन भी बहुत लाभदायद बताया गया है. माना जाता है कि आंवला नवमीं को जगत पिता ने सृष्टि पर पहला सृजन पौधे के रूप में किया था. यह पौधा आंवले का था. इस तिथि को पवित्र माना जाता है. इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है.
निसंदेह, जब भारतीय नववर्ष का प्रारंभ होता है, तो चहुंओर प्रकृति चहक उठती है. भारत की बात ही निराली है.
कवि श्री जयशंकर प्रसाद के शब्दों में-
अरुण यह मधुमय देश हमारा
जहां पहुंच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा
अरुण यह मधुमय देश हमारा



विकास के पथ पर उत्तर प्रदेश

 



Friday, March 28, 2025

टीवी पर लाइव

  



Thursday, March 20, 2025

नैतिक शिक्षा

 




प्रान्त संयोजक नैतिक शिक्षा - दो दिवसीय बैठक के उद्घाटन सत्र में रहने का सुखद अवसर !!
निरालानगर - लखनऊ

Tuesday, March 18, 2025

मेरी पुस्तकें

 1 राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी


2 विकास के पथ पर भारत

3 भारत बोध

4 राष्ट्रवाद और मीडिया (सम्पादन) 

5 अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश

6 भारतीय राजनीति के महानायक नरेन्द्र मोदी


7 भारतीय पत्रकारिता के स्वर्णिम हस्ताक्षर 


डॉ. सौरभ मालवीय


गिरकर उठना, उठकर चलना... यह क्रम है संसार का... कर्मवीर को फ़र्क़ न पड़ता किसी जीत और हार का... क्योंकि संघर्षों में पला-बढ़ा... संघर्ष ही मेरा जीवन... 
-डॉ. सौरभ मालवीय
डॉ. सौरभ मालवीय हिंदी पत्रकारिता एवम् साहित्य के सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। वह राष्ट्रवादी विचारों के प्रहरी हैं। उनका वैचारिक धरातल सुस्पष्ट है। उनकी लेखनी धर्म, संस्कृति, समाज, पर्यावरण, राष्ट्रबोध एवं मानवदर्शन से ओतप्रोत है। वह देशभर के विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं अन्तर्जाल पर समसामयिक विषयों पर तार्किक लेखन करते हैं। वह ज्वलंत एवं राजनीतिक विषयों पर प्रायः टीवी चर्चाओं में अपने विचार रखते हुए देखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त वह विभिन्न कार्यक्रमों एवं गोष्ठियों में वक्ता के में रूप में बोलते हुए दिखाई देते हैं। आपको उत्कृष्ट पत्रकारिता एवं लेखन हेतु अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।    
वह जनसेवा कार्यों से भी जुड़े हैं। 

नाम : डॉ. सौरभ मालवीय
जन्म तिथि : 28 जुलाई, 1982 
जन्म स्थान : ग्राम पटनजी, जनपद देवरिया, उत्तर प्रदेश 
 
शैक्षिक योग्यता
* स्नातकोत्तर (प्रसारण पत्रकारिता) माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय                * पीएचडी (विषय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया)

कार्यभार  
मंत्री : विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश (वर्तमान)

लेखन कार्य 
विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं एवं अंतर्जाल पर नियमित लेखन   

प्रकाशित पुस्तकें 
1 राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी
2 विकास के पथ पर भारत
3 भारत बोध
4 राष्ट्रवाद और मीडिया (सम्पादन) 
5 अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश
6 भारतीय राजनीति के महानायक नरेन्द्र मोदी
7 भारतीय पत्रकारिता के स्वर्णिम हस्ताक्षर 2024

सम्मान 
1 विष्णु प्रभाकर पत्रकारिता सम्मान
2 प्रवक्ता डॉट कॉम लेखक सम्मान
3 लखनऊ रत्न सम्मान
4 अटल बिहारी वाजपेयी संवाद सम्मान
5 अटल श्री सम्मान
6 सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान
7 पंडित प्रताप नारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान

सम्प्रति : 
एसोसिएट प्रोफेसर, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ , उत्तर प्रदेश 

मोबाइल : 8750820740
ईमेल : malviya.sourabh@gmail.com
भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है