Wednesday, March 30, 2022

भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे की विजय है पांच राज्यों का जनसमर्थन


डॉ. सौरभ मालवीय 
योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. मुख्यमंत्री के रूप में यह उनकी दूसरी पारी है. जब वर्ष 2017 में वह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब उनके पास शासन का कोई अनुभव नहीं था, परन्तु इस बार उन्हें पांच वर्ष सत्ता में बने रहने का अनुभव है. वह पांच वर्ष की योजनाएं नहीं बना रहे हैं, अपितु वह डेढ़ दशक तक भाजपा को राज्य एवं केंद्र सत्ता स्थापित रखने की रणनीति पर कार्य कर रहे हैं. योगी-दो कैबिनेट में गुजरात मॉडल की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुझाव पर यूपी के मंत्रिमंडल को आगामी लोकसभा चुनाव के दृष्टिगत बनाया गया है. इसलिए भाजपा आगामी पन्द्रह वर्षों की रणनीति बनाकर चल रही है. 

देश के पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव में प्राप्त हुई विजय ने भाजपा में नई ऊर्जा का संचार कर दिया है. इस विजय ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि यह भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे की विजय है। जनता ने भाजपा में विश्वास जताया है तथा भाजपा की नीतियों का समर्थन किया है। वर्ष 2024 के  लोकसभा चुनाव में अब अधिक समय नहीं बचा है. उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था, क्योंकि यही चुनाव आगे के लोकसभा चुनाव की दिशा निर्धारित करता है। भाजपा ने सेमीफाइनल तो जीत लिया है, अब फाइनल जीतना शेष है. इसलिए भाजपा फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.
इसलिए योगी-दो के मंत्रिमंडल में सूझबूझ से काम लिया गया है. योगी के कुल 52 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 16 कैबिनेट, 14 स्वतंत्र प्रभार एवं 20 राज्य मंत्री हैं. पिछली सरकार में मंत्री रहे दिनेश शर्मा, श्रीकांत शर्मा, सतीश महाना, नीलकंठ तिवारी, सिद्धार्थ नाथ सिंह, जय प्रताप सिंह पटेल, सतीश महाना, मोहसिन रजा एवं आशुतोष टंडन सहित 20 लोगों को इस बार योगी मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया गया. 

ओबीसी नेता व एमएलसी केशव मौर्य दूसरी बार उप मुख्यमंत्री बनाए गए हैं, यद्यपि वह सिराथू से चुनाव हार गए थे. उनके साथ ही बृजेश पाठक को भी उप मुख्यमंत्री बनाया गया है. पिछली सरकार में वह कानून मंत्री थे। उन्होंने दिनेश शर्मा का स्थान लिया है. सुरेश कुमार खन्ना को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. वह शाहजहांपुर से नौवीं बार विजयी होकर सदन पहुंचे हैं. पिछली कैबिनेट में वह वित्त मंत्री थे. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. वह पिछली सरकार में कृषि मंत्री थे. प्रदेश अध्यक्ष व एमएलसी स्वतंत्र देव सिंह को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. वह पिछली सरकार में भी मंत्री थे. नंद गोपाल नंदी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. वह पिछली सरकार में भी मंत्री थे. धर्मपाल सिंह को भी कैबिनेट में स्थान मिला है. वह पिछली सरकार में सिंचाई मंत्री थे. उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को भी कैबिनेट में स्थान दिया गया है. जात नेता लक्ष्मी नारायण चौधरी को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. वह बहुजन समाज पार्टी से भाजपा में आए हैं.
 समाजवादी पार्टी के गढ़ मैनपुरी से विजयी हुए जयवीर सिंह को भी कैबिनेट में स्थान दिया गया है. अनिल राजभर को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, वह पिछली सरकार में भी मंत्री थे. वह सपा सरकार में भे रह चुके हैं. राकेश सचान को भी कैबिनेट में स्थान दिया गया है. भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष अरविंद कुमार शर्मा को भी योगी कैबिनेट में स्थान दिया गया है. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खास माने जाते हैं. वह आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए थे. तीसरी बार वियाधक बने योगेंद्र उपाध्याय को भी कैबिनेट में स्थान दिया गया है.
एमएलसी भूपेन्द्र चौधरी को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. वह पिछली सरकार में पंचायती राज मंत्री थे.एमएलसी जितिन प्रसाद को भी कबिनेट में स्थान दिया गया है. वह कांग्रेस से भाजपा में आए हैं. एमएलसी आशीष पटेल को भी कैबिनेट में स्थान दिया गया है. वह अपना दल एस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. एमएलसी संजय निषाद को भी कैबिनेट में स्थान मिला है. वह निषाद पार्टी के अध्यक्ष हैं.

भाजपा पिछड़ा मोर्चा के अध्यक्ष नरेंद्र कश्यप एवं पूर्व आइपीएस असीम अरुण को स्वतंत्र प्रभार मंत्री बनाया गया है. एमएलसी धर्मवीर प्रजापति, संदीप सिंह लोधी, अजीत पाल, रवीन्द्र जायसवाल को भी स्वतंत्र प्रभार मंत्री बनाया गया है. ये पिछली सरकार में भी मंत्री थे. कपिलदेव अग्रवाल, गुलाब देवी, गिरीश चंद्र यादव, जयंत राठौर, दयाशंकर सिंह, अरुण कुमार सक्सेना, कांग्रेस से भाजपा में आए दया शंकर दयालु, सपा से भाजपा में आए नितिन अग्रवाल एवं एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह को भी स्वतंत्र प्रभार मंत्री बनाया गया है.

संजीव कुमार गौड़ को राज्य मंत्री बनाया गया है. वह पिछली सरकार में भी मंत्री थे. पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष जसवंत सैनी, मयंकेश्वर सिंह, दिनेश खटीक, बलदेव सिंह औलख, मनोहर लाल पंथ, राकेश निषाद, संजय गंगवार, बृजेश सिंह,  कृष्ण पाल मलिक, अनूप प्रधान वाल्मीकी, सोमेंद्र तोमर, सुरेश राही, राकेश राठौर, सतीश शर्मा, प्रतिभा शुक्ला, विजय लक्ष्मी गौतम एवं रजनी तिवारी को भी राज्य मंत्री बनाया गया है. एबीवीपी नेता दानिश आजाद अंसारी को भी राज्य मंत्री बनाया गया है. विशेष बात यह है कि वह न विधायक हैं और न एमएलसी. वह योगी मंत्रिमंडल का एकमात्र मुस्लिम चेहरा हैं.

इस मंत्रिमंडल की विशेष बात यह है कि योगी ने वर्ष 2024 के लोकसभा को ध्यान में रखते हुए जातीय समीकरण को साधने का प्रयास किया है. मंत्रिमंडल में सबसे अधिक 18 मंत्री ओबीसी, 10 ठाकुर, आठ ब्राह्मण, सात दलित, तीन जाट, तीन बनिया, दो पंजाबी और एक मुस्लिम चेहरा सम्मिलित है. दानिश आजाद अंसारी ऐसे समाज से आते हैं, जिनकी यूपी में बड़ी जनसंख्या है. पूर्वांचल अंसारियों का गढ़ है. भाजपा को इस चुनाव में मुसलमानों के आठ प्रतिशत वोट मिले हैं, जो कांग्रेस और बसपा को मिले मतों से भी अधिक हैं. इतना ही नहीं, भाजपा को मुस्लिम महिलाओं का भी समर्थन मिल रहा है. पिछले चुनाव में ‘तीन तलाक’ के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं ने भाजपा का खुलकर समर्थन किया था. इस बार ‘हिजाब प्रकरण’ के पश्चात भी भाजपा को मुस्लिम महिलाओं का भारी समर्थन मिला. आज मुस्लिम महिलाएं कुप्रथाओं की बेड़ियां तोड़कर आगे बढ़ रही हैं. वे देश की मुख्यधारा में सम्मिलित होना चाहती हैं. ऐसी स्थिति में वे उसी पार्टी का समर्थन करेंगी, जो उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करे.   

योगी सरकार अपनी जनहितैषी योजनाओं पर गंभीरता से कार्य कर रही है. योगी आदित्यनाथ ने शपथ लेने के अगले ही दिन कोरोना काल में आरंभ की गई नि:शुल्क राशन वितरण योजना को तीन महीने के लिए बढ़ा दिया है, जिससे राज्य के 15 करोड़ लोगों को लाभ होगा.
( लेखक- मीडिया प्राध्यापक एवं राजनीतिक विश्लेषक है। )
 

Monday, March 21, 2022

हैप्पीनेस पाठ्यक्रम की आवश्यकता


डॉ. सौरभ मालवीय 
किसी भी सभी समाज के लिए शिक्षा अति आवश्यक है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है। अत:विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए।” पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में- “शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। व्यक्तित्व के उत्तम विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आदर्शों से युक्त होना चाहिए। हमारी माटी में आदर्शों की कमी नहीं है। शिक्षा द्वारा ही हम नवयुवकों में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत कर सकते हैं।“ शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्रियां लेकर नौकरी प्राप्त करना नहीं है, अपितु इसका उद्देश्य मनुष्य का सर्वांगीण विकास करना है।
कोठारी आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार हमें पाठ्यचर्या में विज्ञान तथा तकनीकी विषयों को मुख्य स्थान देना होगा, परंतु इन विषयों से चारित्रिक विकास एवं मानवीय गुणों को क्षति पहुंचने की संभावना है। अत: परिचर्चा में वैज्ञानिक विषयों के साथ-साथ मानवीय विषयों को भी सम्मिलित किया जाए, जिससे औद्योगिक उन्नति के साथ-साथ मानवीय मूल्य भी विकसित होते रहें और नागरिक सामाजिक, नैतिकता तथा आध्यात्मिक मूल्यों को प्राप्त कर सकें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस बात पर गहरी चिंता प्रकट की जा रही है कि जीवन के लिए आवश्यक मूल्यों पर से ही लोगों का विश्वास उठता जा रहा है। इसलिए शिक्षाक्रम में ऐसे परिवर्तन की आवश्यकता है, जिससे सामाजिक और नैतिक मूल्यों के विकास में शिक्षा एक सशक्त माध्यम बन सके। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में में कहा गया है कि शैक्षिक प्रणाली का उद्देश्य अच्छे मनुष्यों का विकास करना है, जो तर्कसंगत विचार और कार्य करने में सक्षम हों, जिनमें करुणा और सहानुभूति, साहस और लचीलापन, वैज्ञानिक चिंतन और रचनात्मक कल्पना शक्ति, नैतिक मूल्य हों। नैतिकता, मानवीय और संवैधानिक मूल्य जैसे दूसरों के लिए सम्मान, स्वच्छता, शिष्टाचार, लोकतांत्रिक भावना, सेवा की भावना, सार्वजनिक संपत्ति के लिए सम्मान, स्वतंत्रता, दायित्व बोध, बहुलतावाद, समानता और न्याय का भाव।      
 
शिक्षा के दो ही उद्देश्य समझ आते हैं, प्रथम व्यक्ति पढ़-लिखकर खुशहाल जीवन जिये और द्वितीय वह दूसरों के खुशी से जीने में सहयोग देने की स्थिति में आ जाए। छोटी कक्षाओं से लेकर कॉलेज और विश्वविद्यालय तक की शिक्षा का कुल उद्देश्य इतना ही है। जब गणित, विज्ञान, भूगोल, इतिहास, साहित्य, भाषा आदि सभी की शिक्षा का उद्देश्य खुशहाली ही है तो फिर अनुभूति अथवा हैप्पीनेस करिकुलम की आवश्यकता क्यों है? विद्यार्थियों के लिए वर्तमान जीवन में और भविष्य में उनके जीवन में खुशी का क्या अर्थ है? दूसरों के खुशी से जीने में सहयोग का क्या अर्थ है? क्या खुशी को मापा जा सकता है? क्या खुशी की तुलना की जा सकती है? दूसरों से तुलना में मिलने वाली खुशी और अपने अंदर से प्रकट होने वाली खुशी का विज्ञान क्या है? कहीं हम सुविधाओं को ही तो खुशी नहीं मान बैठे हैं? वास्तव में इन सब और इन जैसे एनी प्रश्नों के वैज्ञानिक उत्तर अपने अंदर से, अपने आसपास से खोजने के पाठ्यक्रम का नाम है हैप्पीनेस करिकुलम। इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य बच्चों में खुशी की समझ पैदा करना है।
 
आज जब पूरे विश्व में आतंकवाद, ग्लोबल वॉर्मिंग और भ्रष्टाचार जैसी विकट समस्याओं के समाधान प्रशासन और शासन के माध्यम से खोजने का प्रयास हो रहा है, उस समय यह करिकुलम इस बात का प्रमाण बनेगा कि मानवीय व्यवहार के कारण उत्पन्न समस्याओं का स्थायी समाधान केवल शिक्षा से ही संभव है। एक अच्छा विद्यालय भवन, आधुनिक कक्ष, पढ़ाने के लिए आधुनिकतम तकनीक का उपयोग करना शिक्षा व्यवस्था की उपलब्धियां नहीं हैं। यह सब अनिवार्य आवश्यकताएं हैं, परंतु शिक्षा की वास्तविक उपलब्धि यह है कि क्या वह वर्तमान और भविष्य की संभावित समस्याओं का समाधान खोजकर आने वाली पीढ़ियों को उसके लिए तैयार करती है अथवा नहीं। हैप्पीनेस पाठ्यक्रम इस संभावना की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम दिखाई देता है।
 
आज जब अनेक देशों में सोशल इमोशनल लर्निंग के नाम से इस पाठ्यक्रम को लाया जा रहा है या लाने की तैयारी हो रही हो, तो ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा यह पहल बहुत ही महत्त्वपूर्ण लगती है। उत्तर प्रदेश में शीघ्र ही सभी विद्यालयों में कक्षा एक से आठ तक हैप्पीनेस पाठ्यक्रम लागू किया जाएगा। इसका प्रारम्भ राज्य के 16 जिलों में किया जा रहा है, जिनमें वाराणसी, देवरिया, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, प्रयागराज, अमेठी, अयोध्या, लखनऊ, मुरादाबाद, मेरठ, गाजियाबाद, आगरा, मथुरा, झांसी एवं चित्रकूट आदि सम्मिलित हैं। यदि इस पायलट प्रोजेक्ट को सफलता प्राप्त होती है, तो इसे पूरे राज्य में लागू किया जाएगा। राज्य शैक्षिक अनुंसधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने शिक्षकों के साथ बैठक कर पाठ्यक्रम की तैयारी पर कार्य आरंभ कर दिया है। इससे पूर्व हापुड़ एवं बुलंदशहर में कक्षा एक से आठ तक के विद्यालयों में इसका पायलट प्रोजेक्ट भी चलाया गया था और पूरे राज्य में लागू करने के आदेश भी हुए थे, परंतु इस बीच शिक्षकों ने सुझाव दिए थे कि पाठ्यक्रम को राज्य की परिस्थिति के अनुसार किया जाना चाहिए। देश में हैप्पीनेस पाठ्यक्रम को लेकर चर्चा उस समय बढ़ी, जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी पत्नी मेलानिया ट्रंप के साथ भारत दौरे पर आए थे। इस दौरान मेलानिया ट्रंप ने दिल्ली के सरकारी विद्यालयों का दौरा किया था। इस दौरे में मेलानिया ने विद्यालयों में हैप्पीनेस क्लास उसके पाठ्यक्रम समेत कई जानकारियां ली थीं, जिसके बाद से लगातार हैप्पीनेस पाठ्यक्रम पर चर्चा हो रही है।
प्रदेश सरकार महापुरुषों के इन विचारों को मूर्त रूप देने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हो रहे हैं। बात चाहे प्राथमिक शिक्षा की हो, माध्यमिक शिक्षा की हो, व्यावसायिक शिक्षा की हो या उच्च शिक्षा की, सभी क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किए जा रहे हैं। आशा की जानी चाहिए कि राज्य के शिक्षकों और शिक्षाविदों की सुयोग्य टीम के माध्यम से हैप्पीनेस पाठ्यक्रम विकसित भी होगा, संचालित भी होगा और अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त भी करेगा। साथ ही अभिभावकों, विद्यार्थियों और प्रशासकों के साथ-साथ समाज के प्रत्येक वर्ग की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा। इस पाठ्यक्रम की सफलता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि शिक्षक किस हद तक इसे अपने जीवन में आत्मसात कर सकेंगे, क्योंकि जब तक शिक्षक स्वयं इसे आत्मसात नहीं करते, तब तक वे बच्चों को भी इसे ठीक प्रकार से नहीं समझा पाएंगे।
(लेखक हैप्पीनेस पाठ्यक्रम के प्रभारी हैं)

Sunday, March 20, 2022

हिजाब प्रकरण : अलग दिखने की जिद क्यों ?

 

डॉ. सौरभ मालवीय
भारत एक लोकतांत्रिक देश है. यहां सभी धर्मों और संप्रदायों के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. सभी को अपने-अपने धर्म के अनुसार धार्मिक कार्य करने एवं जीवन यापन करने का अधिकार प्राप्त है. परन्तु कुछ अलगाववादी शक्तियों के कारण देश में किसी न किसी बात को लेकर प्राय: विवाद होते रहते हैं. इन विवादों के कारण जहां शान्ति का वातावरण अशांत हो जाता है, वहीं लोगों में मनमुटाव भी बढ़ जाता है. ताजा उदाहरण है हिजाब प्रकरण. कर्नाटक के उडुपी से प्रारंभ हुआ हिजाब प्रकरण थमने का नाम ही नहीं ले रहा है.

मंगलवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को खारिज कर दिए जाने के पश्चात यह मामला अब सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया है. कर्नाटक उच्च न्यायालय का कहना है कि छात्रों को स्कूलों में हिजाब नहीं, यूनिफॉर्म पहननी होगी. न्यायालय का कहना है कि हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है. हिजाब मामले में राज्य के एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवादगी ने कर्नाटक उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के सामने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है और इसके उपयोग पर रोक लगाना संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं है। उन्होंने कहा कि हिजाब धर्म के पालन के अधिकार के अंतर्गत दिखावे का भाग है. पूर्ण पीठ में न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी, न्यायाधीश जेएम काजी एवं न्यायाधीश कृष्णा एम दीक्षित सम्मिलित हैं. एडवोकेट जनरल ने कहा कि सरकार का आदेश संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन भी नहीं करता. यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है. उन्होंने यह भी कहा कि यूनिफॉर्म के बारे में सरकार का आदेश पूरी तरह शिक्षा के अधिकार कानून के अनुरूप है और इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है. उन्होंने कहा कि उडुपी के सरकारी प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज में यूनिफॉर्म का नियम वर्ष 2018 से लागू है, परन्तु समस्या तब प्रारंभ हुई जब विगत दिसंबर में कुछ छात्राओं ने प्राचार्य से हिजाब पहनकर कक्षा में जाने की अनुमति मांगी. इस पर उनके अभिभावकों को कॉलेज में बुलाया गया और यूनिफॉर्म लागू होने की बात कही गई, परन्तु छात्राएं नहीं मानीं और उन्होंने विरोध आरंभ कर दिया. जब मामला सरकार के संज्ञान में आया, तो उसने मामले को तूल न देने की अपील करते हुए एक उच्च स्तरीय समिति बनाने की बात कही. किन्तु छात्राओं पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ. जब मामला बढ़ गया, तो सरकार ने 5 फरवरी को आदेश देकर ऐसे किसी भी वस्त्र को पहनने से मना कर दिया, जिससे शांति, सौहार्द्र एवं कानून व्यवस्था प्रभावित हो रही हो.

विशेष बात यह भी है कि उच्च न्यायालय ने पर्दा प्रथा पर भीमराव आंबेडकर की टिप्पणी का भी का उल्लेख करते हुए कहा- "पर्दा, हिजाब जैसी चीजें किसी भी समुदाय में हों तो उस पर बहस हो सकती है. इससे महिलाओं की आजादी प्रभावित होती है. यह संविधान की उस भावना के विरुद्ध है, जो सभी को समान अवसर प्रदान करने, सार्वजनिक जीवन में हिस्सा लेने और पॉजिटिव सेक्युलरिज्म की बात करती है.“

भारत में व्याप्त अनेक कुप्रथाओं ने महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित रखा है. पर्दा प्रथा भी उनमें से एक है. इस प्रथा के कारण महिलाओं को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ा. उन्हें घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया गया. पुनर्जागरण के युग में समाज सुधारकों ने इन कुप्रथाओं के विरोध में जनजागरण आन्दोलन चलाया. इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले. समय के साथ-साथ समाज में परिवर्तन आया. हिन्दू व अन्य समुदायों के साथ-साथ मुसलमान भी अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने लगे, परन्तु उनका अनुपात अन्य समुदायों की तुलना में बहुत ही कम है, जो चिंता का विषय है. देश में सबको समान रूप से अधिकार दिए गए हैं. शिक्षण संस्थानों में भी सबके साथ समानता का व्यवहार किया जाता है. प्रश्न यह है कि कुछ लोग स्वयं को दूसरों से पृथक क्यों रखना चाहते हैं?   

वास्तव में हिजाब प्रकरण मुस्लिम समाज की लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने का एक षड्यंत्र है. चूंकि शिक्षा ही मनुष्य को अज्ञानता के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाती है, इसलिए रूढ़िवादी मानसिकता के लोग महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखने के लिए ऐसे षड्यंत्र रचते रहते हैं, ताकि वे अपने अधिकारों के लिए आवाज न उठा सकें. मुस्लिम समाज में महिलाओं की जो स्थिति है, वह किसी से छिपी नहीं है. जब मुस्लिम बहन-बेटियों के हक में भाजपा सरकार ‘तीन तलाक’ पर रोक लगाने का कानून लाई थी, तो शिक्षित और जागरूक मुस्लिम महिलाओं ने इसका खुले दिल से स्वागत किया था. उस समय भी रूढ़िवादी लोगों ने जमकर इसका विरोध किया था, परन्तु उनकी एक न चली. इस कानून ने मुस्लिम महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने का कार्य किया. अब कोई भी व्यक्ति ‘तीन तलाक’ कहकर अपनी पत्नी को घर से नहीं निकाल सकता. ऐसा करने पर उसे दंड दिए जाने का प्रावधान है.

उल्लेखनीय है कि यूरोप के अनेक देशों ने हिजाब अर्थात बुर्का पहनने पर आंशिक या पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया हुआ है, जिसमें ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड एवं स्विट्जरलैंड आदि सम्मिलित हैं। इटली और श्रीलंका में भी बुर्का पहनने पर प्रतिबंध है. इन सभी देशों में आदेश का उल्लंघन करने पर भारी आर्थिक दंड दिए जाने का प्रावधान है.

कुछ लोग हिजाब के मामले में कुरआन की दुहाई देते हुए कहते हैं कि इसमें कई स्थान पर हिजाब का उल्लेख किया गया है, परन्तु वे इस बात पर चुप्पी साध लेते हैं कि ड्रेस कोड के संदर्भ में ऐसा कुछ नहीं कहा गया. इस्लाम के पांच मूलभूत सिद्धांतों में भी हिजाब सम्मिलित नहीं है. वास्तव में धर्म का संबंध आस्था एवं विश्वास से होता है, जबकि वस्त्रों का संबंध क्षेत्र विशेष एवं आवश्यकताओं से होता है. उदाहरण के लिए किसी भी ठंडे स्थान पर रहने वाले लोग जो भारी भरकम गर्म वस्त्र पहनते हैं, वे किसी गर्म क्षेत्र में रहने वाले लोग नहीं पहन सकते. ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि भारत में कहीं भी हिजाब अथवा बुर्का पहनने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, परन्तु जिन संस्थानों में ड्रेस कोड लागू है, वहां हिजाब पहनने की जिद क्यों की जा रही है ?

Wednesday, March 16, 2022

भाजपा की सांस्कृतिक अधिष्ठान की जीत

 

डॉ. सौरभ मालवीय
देश के पांच राज्ज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव में प्राप्त हुई विजय ने सिद्ध कर दिया है कि यह भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे की विजय है। जनता ने भाजपा में विश्वास जताया है, भाजपा की नीतियों का समर्थन किया है। वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था, क्योंकि यही चुनाव आगे के लोकसभा चुनाव की दिशा निर्धारित करता है। यह चुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ था। उनका दावा था कि राज्य की जनता उनके विकास कार्यों को देखते हुए उन्हें पुन: सत्ता का बागडोर सौंपेगी। उनका यह दावा सत्य सिद्ध हुआ।

कारण स्पष्ट है कि भाजपा अपने चाल चरित्र, चेहरे के अनुसार निरंतर हिंदुत्व की छवि को और सुदृढ़ करने का प्रयास कर रही है। प्राचीन शहरों के नाम बदलना तथा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण इसका उदाहरण है। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का कार्य चल रहा है। सरकार नमामि गंगे योजना के अंतर्गत गंगा को स्वच्छ एवं निर्मल करने पर विशेष बल दे रही है। गंगा का प्रदूषण कम करने के लिए स्मार्ट गंगा सिटी परियोजना पर कार्य जारी है। योगी सरकार राज्य में पर्यटन को भी बढ़ावा दिया है। गौ संरक्षण और संवर्धन के लिए मुख्यमंत्री निराश्रित गौवंश सहभागिता योजना प्रारम्भ की गई है।

चार राज्यों विशेषकर उत्तर प्रदेश में मिली विजय से भाजपा नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं और समर्थकों में अपार हर्षोल्लास है। भाजपा इस विजय रथ को आगे बढ़ाने पर ध्यान दे रही है। भाजपा लगभग साढ़े तीन दशक के पश्चात पहली बार उत्तर प्रदेश में दोबारा सरकार में आई है। इसी प्रकार उत्तराखंड में भी पहली बार भाजपा सरकार दोहराई गई है। गोवा में तो विजयश्री की हैट्रिक लगी है। भाजपा को प्रत्येक दिशा से अपार जनसमर्थन मिला है। इस विजय ने 2024 के परिणामों को लगभग निश्चित कर दिया है। वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 325 सीटों पर विजय प्राप्त की थी। उस समय चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया था। इस बार भाजपा ने 255 सीटों पर विजय प्राप्त की है, परन्तु पिछली बार की तुलना में भाजपा को 57 सीटों की हानि हुई है। किन्तु भाजपा ने इस बार उत्तर प्रदेश में लगभग 42 प्रतिशत मत प्राप्त किए हैं, जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 39.67 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ाना पार्टी नेताओं के लिए हर्ष का विषय है, परन्तु लोकसभा चुनाव में विजय का मार्ग प्रशस्त करने के लिए भाजपा को अपना जनाधार बढ़ाने के लिए जमीनी स्तर पर कार्य करना होगा। पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा को लगभग 50 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। इस दृष्टि से देखा जाए, तो भाजपा को लोकसभा चुनाव में अपने घटे मत प्रतिशत को पुन: प्राप्त करने के लिए कड़ा परिश्रम करना होगा।

उत्तर प्रदेश में भाजपा का मुकाबला समाजवादी पार्टी से है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसे लगभग 28 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। इस बार समाजवादी पार्टी ने 32 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त किए हैं, जो भाजपा के लिए चिंता का विषय है। इस बार सपा ने 111 सीटें प्राप्त की हैं। इस प्रकार उसे 64 सीटों का लाभ हुआ है। बहुजन समाज पार्टी से भाजपा को कोई विशेष खतरा नहीं है, क्योंकि बसपा के मतदाता अच्छी तरह समझ चुके हैं कि मायावती ने उनके नाम पर केवल सत्ता प्राप्त कर उसका सुख भोगा। उन्हें दलित समाज के दुःख-सुख से कोई सरोकार नहीं है। इसलिए इस बार बसपा को केवल एक ही सीट से संतोष करना पड़ा है। पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में उसे 18 सीटों की हानि हुई है। कांग्रेस की बात करें, तो पार्टी की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी के वर्षों के कड़े प्रचार के पश्चात भी उसे केवल दो ही सीटें प्राप्त हो सकीं। पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में उसे पांच सीटों की हानि हुई है। कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता भी नहीं बचा, जो उसके लिए विजय का मार्ग प्रशस्त कर सके। कांग्रेस कहीं भी मुकाबले में दिखाई नहीं देती। पिछले विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी और कांग्रेस के स्टार प्रचारकों के प्रचार के पश्चात कांग्रेस केवल सात ही सीटें जीत पाई थी।            
इस बार के विधानसभा चुनाव ने कई मिथक तोड़े हैं। विपक्षी दल जिन मुद्दों को सरकार के विरुद्ध मान रहे थे, उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने एक लंबे समय तक आंदोलन किया। देशभर में प्रदर्शन हुए और रैलियां निकाली गईं। विपक्षी दलों ने खुलकर किसानों का समर्थन किया। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों का साथ दिया। इसके पश्चात भी पंजाब की जनता ने आम आदमी पार्टी को चुनकर राजनीति में एक नये अध्याय का प्रारंभ किया। स्थिति तो यह है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी सीट तक नहीं बचा पाए।

इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और आरएलडी के अध्यक्ष जयंत चौधरी व अन्य दलों ने किसान आन्दोलन का समर्थन किया था। अखिलेश यादव को विश्वास था कि माय अर्थात मुस्लिम और यादवों के वोट बैंक के साथ उन्हें जाटों का भी भरपूर समर्थन मिलेगा, इसलिए उन्होंने आरएलडी के साथ गठबंधन किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने सुभासपा और अपना दल जैसे कई छोटे दलों से भी गठबंधन किया, परन्तु गठबंधन सफल नहीं हुआ। भाजपा ने किसान आन्दोलन के पश्चात पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 136 विधानसभा सीटों में से 93 पर विजय प्राप्त करके सिद्ध कर दिया कि किसान आन्दोलन निष्प्रभावी रहा। साथ ही लखीमपुर खीरी की उन आठ विधानसभा सीटों पर भी भाजपा ने विजय पाई, जो उसके लिए कठिन मानी जा रही थीं।

वास्तव में भाजपा की विजय भाजपा की नीतियों और उसकी सरकार के विकास कार्यों की विजय है। उत्तर प्रदेश मंह योगी श्री आदित्य नाथ ने मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण करने के पश्चात राज्य में विकास कार्यों की गंगा बहा दी।
राज्य में बेघरों को आवास देने के लिए उत्तर प्रदेश आवास विकास योजना प्रारम्भ की गई। निर्धन परिवारों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना आरम्भ की गई। प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने के लिए आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार अभियान प्रारम्भ किया गया। बेरोजगारों को स्वरोजगार के लिए ऋण उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना आरम्भ की गई। बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षण दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन तथा मुख्यमंत्री शिक्षुता प्रोत्साहन योजना प्रारम्भ की गई। राज्य के युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुख्यमंत्री ग्रामोद्योग रोजगार योजना प्रारम्भ की गई। बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता प्रदान करने के लिए उत्तर प्रदेश बेरोजगारी भत्ता नामक योजना आरम्भ की गई।
राज्य के श्रमिकों को सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ देने के लिए श्रमिक पंजीकरण योजना प्रारम्भ की गई। श्रमिकों के भरण पोषण के लिए राज्य में श्रमिक भरण पोषण योजना आरम्भ की गई है। इसके साथ ही राज्य की समृद्धि के लिए उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

योगी सरकार ने कृषि क्षेत्र पर भी विशेष ध्यान दिया है। राज्य में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए परम्परागत खेती विकास योजना चलाई जा रही है। खेतों को पर्याप्त सिंचाई जल उपलब्ध कराने के लिए उत्तर प्रदेश नि:शुल्क बोरिंग योजना तथा उत्तर प्रदेश किसान उदय योजना संचालित की जा रही है। इनके अतिरिक्त बीज ग्राम योजना के अंतर्गत किसानों को धान एवं गेहूं के बीज पर विशेष अनुदान दिया जा रहा है। पारदर्शी किसान सेवा योजना के अंतर्गत किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित बीमा योजना के अंतर्गत किसानों को समुचित उपचार की सुविधा प्रदान की जा रही है। किसानों को ऋण के बोझ से मुक्त करने के लिए किसान ऋण मोचन योजना प्रारम्भ की गई। मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना कल्याण योजना के अंतर्गत किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। 

राज्य में अनाथ बच्चों को आसरा देने के लिए मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना प्रारम्भ की गई। महिला सशक्तिकरण के लिए भी सरकार अनेक योजनाएं चला रही है। मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना के अंतर्गत निर्धन परिवारों की पुत्रियों को शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। उत्तर प्रदेश भाग्यलक्ष्मी योजना के अंतर्गत पुत्री की शिक्षा और विवाह के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। इसके अतिरिक्त लोगों को घर बैठे बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए बैंकिंग संवाददाता सखी योजना प्रारम्भ की गई है। इससे जहां लोगों को घर पर बैंकिंग सुविधाएं प्राप्त हो रही हैं, वहीं महिलाओं को भी रोजगार प्राप्त हुआ है।

राज्य में अनेक पेंशन योजनाएं संचालित की जा रही हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश पेंशन योजना, विधवा पेंशन योजना तथा उत्तर प्रदेश दिव्यांगजन पेंशन योजना सम्मिलित हैं। सरकार लड़कियों और दिव्यांगों के विवाह के लिए अनुदान प्रदान कर रही है। उत्तर प्रदेश विवाह अनुदान योजना के अंतर्गत लड़कियों के विवाह के लिए सरकार द्वारा अनुदान प्रदान किया जाता है। दिव्यांगजन विवाह प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत दिव्यांगजनों के विवाह लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।

योगी सरकार शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य कर रही है। राज्य में विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं व्यवसायिक प्रशिक्षण केंद्रों एवं उनके नये भवनों की स्थापना की जा रही है। गोरखपुर में आयुष विश्वविद्यालय का निर्माण किय जा रहा है। उत्तर प्रदेश छात्रवृत्ति योजना के अंतर्गत छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जा रही है।
सरकार सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी गंभीर है। महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सेफ सिटी योजना प्रारम्भ की गई है। विद्युत क्षेत्र में भी योगी सरकार उत्कृष्ट कार्य किया है। परिवहन के क्षेत्र में भी सरकार ने सराहनीय कार्य किए हैं। राज्य ने स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में भी बहुत उन्नति की है।

योगी आदित्यनाथ दावा करते हैं कि अपने कार्यकाल में राज्य में रोजगार के अवसर तीव्रगति से बढ़े हैं। स्टार्टअप नीति के अंतर्गत पांच लाख युवाओं को रोजगार मिला है, जबकि मनरेगा के माध्यम से डेढ़ करोड़ से अधिक श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। इसी प्रकार 10 लाख स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से एक करोड़ महिलाओं को रोजगार मिला है। इतना ही नहीं साढ़े चार लाख युवाओं को सरकारी नौकरी प्रदान की गई, जबकि साढ़े तीन लाख युवाओं की संविदा पर नियुक्ति हुई है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम को 2.16 हजार करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया।
नि:संदेह भाजपा अपने विकास कार्यों के कारण ही पुन: सत्ता में आई है।
(लेखक- मीडिया प्राध्यापक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं )
 

Monday, March 14, 2022

उत्तर प्रदेश चुनाव मे सौरभ मालवीय की पुस्तक छाई रही

 

योगी सरकार की नीतियों पर लिखी पुस्तक ‘अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश’ छाई रही
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी ने विजय प्राप्त की है। इस चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की नीतियों पर लिखी पुस्तक ‘अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश’ छाई रही। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले साल 29 अक्टूबर को लखनऊ में डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक ‘अंत्योदय को साकार करता उत्तर प्रदेश’ का विमोचन किया था। इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, संगठन मंत्री सुनील बंसल सहित शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर , केन्द्रीय मंत्री महेंद्र पांडेय, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या एवं दिनेश शर्मा सहित अनेक वरिष्ठ नेता उपस्थित थे।

लेखक डॉ. सौरभ मालवीय का कहना है कि इस पुस्तक का उद्देश्य लोगों को सरकार की उन योजनाओं से अवगत कराना है, जो उनके कल्याण के लिए चलाई जा रही हैं ताकि वे उनका लाभ उठा सकें। प्राय: देखने में आया है कि अज्ञानता और अशिक्षा के कारण लोगों को सरकार की जनहितैषी योजनाओं की जानकारी नहीं होती, जिसके कारण वे इन योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं। केंद्र और राज्य सरकारें नागरिकों के आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक विकास के लिए अनेक योजनाएं संचालित कर रही हैं। प्रत्येक योजना का यही उद्देश्य होता है कि उसका लाभ सभी पात्र व्यक्तियों तक पहुंचे। जब योजना का लाभ प्रत्येक पात्र व्यक्ति तक पहुंचता है, तो वह योजना सफल हो जाती है। इस समय देश में लगभग डेढ़ सौ योजनाएं चल रही हैं। इनमें कई ऐसी पुरानी योजनाएं भी हैं, जिनके नाम परिवर्तित कर दिए गए हैं। इनमें कई ऐसी योजनाएं भी हैं, जो लगभग बंद हो चुकी थीं और उन्हें पुन : प्रारम्भ किया गया है। इनमें कुछ नई योजनाएं भी सम्मिलित हैं। देश में दो प्रकार की सरकारी योजनाएं चल रही हैं। पहली योजनाएं वे हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाती हैं। इस तरह की योजनाएं पूरे देश या देश के कुछ विशेष राज्यों में संचालित की जाती हैं। दूसरी योजनाएं वे हैं, जो राज्य सरकारें चलाती हैं। राज्य में संचालित अधिक योजनाएं केंद्र द्वारा ही चलाई जाती हैं। इनके कार्यान्वयन पर व्यय होने वाली राशि का एक बड़ा भाग केंद्र सरकार वहन करती है और एक भाग राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है।   
पुस्तक में भाजपा-नीत सरकार के संकल्प तथा उस संकल्प को पूर्ण करने के अथक प्रयास को दर्शाया है। योगी आदित्य नाथ के मुख्यमंत्रित्व काल में उत्तर प्रदेश के अंतिम व्यक्ति तक के जीवन को सुखी एवं समृद्ध करने के सपने को साकार करने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। भाजपा शासन के पांच वर्ष की समयावधि में उत्तर प्रदेश ने लगभग सभी क्षेत्रों में उन्नति की है। कृषि, उद्योग, रोजगार, आवास, परिवहन, बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा व्यवस्था, धर्म, संस्कृति, पर्यावरण आदि क्षेत्रों में योगी सरकार ने सराहनीय कार्य किए हैं। विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दी जा रही है। वृद्धजन, विधवा एवं दिव्यांगजन को पेंशन के रूप में आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। अनाथ बच्चों के भरण-पोषण की भी व्यवस्था की गई है। जिन परिवारों में कोई कमाने वाला व्यक्ति नहीं है, सरकार उन्हें भी वित्तीय सहायता उपलब्ध करा रही है। निर्धन परिवार की लड़कियों एवं दिव्यांगजन के विवाह लिए अनुदान प्रदान किया जा रहा है। निराश्रित गौवंश के संरक्षण पर भी योगी सरकार विशेष ध्यान दे रही है। सरकार की इन्हीं जन हितैषी योजनाओं के कारण लोगों ने उन्हें पुन: सत्ता सौंपी है। इस पुस्तक में जन साधारण के हित को सर्वोपरि रखा है।

Friday, March 4, 2022

 

Uttar Pradesh 2022: यूपी में लागू होने जा रही अनुभूति पाठ्यचर्या, जानिए कैसे अलग है हैप्पीनेस करिकुलम से

एजुकेशन डेस्क, अमर उजाला Published by: राहुल मानव Updated Tue, 21 Dec 2021 02:37 PM IST

सार

यूपी के पहली से आठवीं कक्षा के छात्रों के लिए जल्द शुरू होने जा रहा है अनुभूति पाठ्यचर्या। अगले शैक्षणिक सत्र 2022 से उत्तर प्रदेश सरकार की शुरू करने की योजना है। नीचे जाने क्या सीखेंगे छात्र? 
स्कूलों में पाठ्यचर्या का जायजा लेते विशेषज्ञ।
स्कूलों में पाठ्यचर्या का जायजा लेते विशेषज्ञ। - फोटो : Dr Saurabh Malviya

विस्तार

उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों के छात्रों के लिए 'अनुभूति पाठ्यचर्या' जल्द ही शुरू होने वाला है। इसकी तैयारियां तेज हो गई हैं। यूपी सरकार की ओर से छात्रों को समाज, प्रकृति और देश से अधिक जुड़ाव महसूस कराने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इस पाठ्यक्रम को शुरू करने का फैसला लिया गया। इस पाठ्यक्रम को उत्तर प्रदरेश राज्य के करीब 150 प्राथमिक विद्यालयों में सबसे पहले जल्द शुरू करने पर काम किया जा रहा है।


रिव्यू कमेटी की समीक्षा के बाद तैयार हुई अनुभूति पाठ्यचर्या

पाठ्यक्रम के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए अनुभूति पाठ्यचर्या के राज्य प्रभारी डॉ सौरभ मालवीय ने बताया कि पिछले महीने 23 से 26 नवंबर को पांच सदस्यों की रिव्यू कमेटी ने देश के अलग-अलग राज्यों में शुरू हुए हैप्पीनेस करिकुलम की समीक्षा की थी। इसमें कमेटी के सदस्यों ने विस्तार से जानकारी जुटाकर यह देखा कि उन राज्यों से किस तरह से विपरीत उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में अनुभूति पाठ्यचर्या को लागू किया जा सकता है। क्या-क्या अलग हम कर सकते हैं। यूपी एक बड़ा राज्य है, जिसकी सांस्कृतिक और भौगोलिक रचना बहुत विशाल है। इन बातों को ध्यान में रखकर अच्छी तरह से अनुभूति पाठ्यचर्या के विभिन्न विषयों को तैयार किया जा रहा है। 

सांस्कृतिक और भौगोलिक स्थिति के आधार पर बनेगा पाठ्यक्रम

इस पाठ्यक्रम को राज्य की सांस्कृतिक और भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए हुए तैयार किया जा रहा है। अगले शैक्षणिक सत्र 2022-23 से इसे शुरू करने की तैयारी है। हमने पांच सदस्यों की रिव्यू कमेटी बनाई थी, जिसने पिछले महीने 23 से 26 नवंबर, 2021 मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, दिल्ली समेत कई राज्यों में शुरू हुए हैप्पीनेस करिकुलम की समीक्षा की थी। हमने यह देखा कि उत्तर प्रदेश में क्या अलग करेंगे? क्योंकि उत्तर प्रदेश की भौगोलिक रचना ज्यादा विस्तृत है। उत्तर प्रदेश में अनुभूति पाठ्यचर्या शुरू करेंगे।
 
यह अनुभूति पाठ्यचर्या पहली से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों को व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, प्राकृतिक, सांस्कृतिक अंर्त-संबंधों को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखने और आत्मसात करने के लिए प्रेरित करेगी। - डॉ सौरभ मालवीय, राज्य प्रभारी, अनुभूति पाठ्यचर्या 

अनुभूति पाठ्यचर्या में क्या सीखेंगे छात्र ?

पहली से आठवीं कक्षा के छात्रों के लिए अनुभूति पाठ्यचर्या शुरू की जा रही है। इसमें छात्र चिंतन करेंगे। अनुभूति पाठ्यचर्या के माध्यम से समाज, प्रकृति, परिवार और देश के साथ विद्यार्थियों को अच्छी तह से जोड़ने में सक्षम बनाया जाएगा। पाठ्यक्रम के अनुसार, कक्षा पहली से पांचवीं तक के छात्रों के लिए कुल पांच पुस्तकें तैयार की जाएंगी। राज्य में 32 शिक्षकों की एक कार्यशाला आयोजित की जा रही है, जिसके तहत पाठ्यक्रम के विषयों पर अहम फैसला लिया जाएगा। अप्रैल 2022 शैक्षणिक सत्र से अनुभूति पाठ्यचर्या को शुरू करने की योजना है। 

योजना पर राज्य के स्कूल कर रहे काम

उत्तर प्रदेश राज्य के विभिन्न जिलों में कुल 150 स्कूल इस पहल की दिशा में काम कर रहे हैं। स्कूलों में शिक्षकों के साथ बैठकें भी की जा रही हैं, जिसमें पाठ्यचर्या को लेकर विभिन्न आयामों पर चर्चाएं हो रही हैं। एक अधिकारी के अनुसार राज्य में एक लाख 30 हजार प्राथमिक स्कूल हैं और सभी स्कूलों में अनुभूति पाठ्यचर्या को लागू करने के लिए राज्य सरकार द्वारा मूल्यांकन किया जा रहा है। 

भारत की राष्‍ट्रीयता हिंदुत्‍व है