यह पुस्तक एक थाती है
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अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व किसी एक दिशा में नहीं देखा जा सकता। वे एक
राजनीतिज्ञ, संसदीय परंपराओं के ज्ञाता, लोकमर्यादा के आदर्श और देश की
विभिन्न स...
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अमरकंट। कलोक श्रुति है कि नर्मदा माँ नाराज़ होकर जा रही थी तो मुनिवर ने यहाँ तप कर के माँ को प्रसन्न किया, तभी से नर्मदा माँ के इस स्वरूप का नाम कपिलधारा से ख्याति हो गया। कपिल मुनि सांख्य दर्शन की रचना इसी स्थान पर की थी, यहां अनेक गुफाएं है जहां साधु संत ध्यान करते दिखते है। घने जंगल,प र्वत और प्रकृति के सुंदर दृश्य मन को सुकून देता है। आइये आप भी इस पवित्र स्थान का दर्शन कीजिए।
दिल्ली के कन्सटीट्यूशन क्लब (डिप्टी चेयरमैन हॉल) में आज शाम लेखिका श्रीमती अलका सिंह के काव्य संग्रह ’बिखरने से बचाया जाए’ का लोकार्पण प्रख्यात साहित्यकार एवं आलोचक डॊ. नामवर सिंह ने किया. इस मौक़े पर उन्होंने कहा कि हिंदी में ग़ज़ल लिखना मुश्किल काम है. बहुत कम लोग ही लिखते हैं, लेकिन अलका सिंह की किताब एक उम्मीद जगाती है कि कविता, ग़ज़लें और मुक्तक को आने वाली पीढ़ी ज़िंदा रखेंगी. यह अनूठा काव्य संग्रह है. उन्होंने कहा कि लोकार्पण कार्यक्रम में इतने लोगों का जुटना अपने आप में मायने रखता है. राजनीति करने वालों ने दिल्ली को उजाड़ दिया है, यह केवल राजधानी बन कर न रहे, बिखरने से बचे. इसके लिए कविताएं ज़रूरी हैं. ’ज़रूरी तो नहीं खुशियां ही मिलें दामन में, कुछ ग़मो को भी तो सीने से लगाया जा’ बेहतरीन शेअर है.
समीक्षक अनंत विजय ने कहा कि यह संग्रह कॉकटेल है, जिसमे ग़ज़लें, कविताएं और मुक्तक हैं. हिंदी साहित्य में प्रेम का भाव है, लेकिन इस संग्रह ने नई उम्मीद जगाई है. रिश्तों को लेकर लेखिका की बेचैनी साफ़ झलकती है.
’दाग़ अच्छे है’ में अंग्रेज़ी के शब्दो का प्रयोग धूप में मोती की तरह है. आधुनिक युग की त्रासदी ’सुख बेच दिए, सुविधाओं की ख़ातिर’ में साफ़ झलकती है. शब्दों के साथ ठिठोली क़ाबिले-तारीफ़ है.
कवयित्री अनामिका ने कहा कि लेखिका की सोच व्यापक है, समावेशी है समेटने की कोशिश है. स्पष्ट और मुखर होकर बेबाकी से हर बात कही गई है. कई आयामों को छूती ये रचनाएं सीधे मन को छूती हैं.
अमरनाथ अमर ने कहा की कविता कई सवाल उठाती है और समाधान देती है. "अपना कफ़न ओढ़ कर सोने लगे हैं लोग" विश्व स्थिति को व्यक्त करती है. मंच संचालन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक प्राध्यापक डॊ. सौरभ मालवीय ने किया. सार्थक पहल का यह आयोजन प्रवक्ता डॉट कॉम तथा नया मीडिया मंच के संयुक्त तत्वावधान में हुआ. इस अवसर पर साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र की जानी मानी हस्तियां मौजूद थीं.
मैं कभी मेधावी छात्र नहीं रहा जबकि बारहवी तक विज्ञान संकाय का विद्यार्थी था फिर स्नातक हिन्दी साहित्य में, स्नातकोत्तर प्रसारण पत्रकारिता में और PhD भी मीडिया में ही पूर्ण की. उन दिनों उदंडता, कुतर्क और विवाद यह मेरे स्वभाव का अंग था. प्रायः किसी न किसी से बहसबाजी हो ही जाती और उसका अंत विवाद के साथ होता. इस कारण मेरी छवि ठीक नहीं बन रही थी. इसी बीच मुझे संघ कार्यालय पर रहने का अवसर मिला. यहां यह बताना चाहूँगा कि संघ कार्यालय अर्थात संघ के पूर्णकालिक प्रचारक का निवास (प्रचारक वह होता है, जो अपना पूरा जीवन संघ कार्य के लिए देता है) कार्यालय की दिनचर्या सुनिश्चित है. प्रातः जागरण मंत्र से प्रारम्भ होकर जलपान, भोजन, संध्या और रात्रि भोजन, विश्राम तक सब कुछ समयबद्ध रहता. अनुशासन और आध्यात्मिक वातावरण के कारण लगता की कार्यालय एक मन्दिर है.
कार्यालय पर रहते हुए मेरे श्रद्धा के केन्द्र में अनेक ऋषितुल्य प्रचारक हैं, जिनका जिक्र अभी और करूँगा. इसी क्रम में उस समय देवरिया के जिला प्रचारक श्री बालमुकुन्द जी से परिचय हुआ. बालमुकुंद जी इतिहास में स्नातकोत्तर, बीएड और PhD हैं. स्वभावतया मिलनसार, मृदुभाषी, सरल-सहज हैं, जो प्रचारक वृत्ति होती ही है. मैं अपने गाँव देवरिया जाता रहता था. इस कारण इनसे आत्मीयता बढ़ती गई. पहली यात्रा वैष्णव देवी 1999 में बालमुकुंद जी के साथ हुई. समय की गति बढ़ती रही और अपने जीवन की यात्रा होती रही. इनके साथ कुशीनगर, मऊ, आजमगढ़ आदि जिलों मे मोटरसाइकिल से खूब घूमा.
एक घटना का जिक्र करना चाहूँगा. बालमुकुंद जी बस्ती में विभाग प्रचारक थे. नगर के एक कार्यकर्ता के पुत्र का विवाह सम्पन्न हुआ. पुत्र भी स्वयंसेवक है. दोनों लोग कार्यालय आए और इस खुशी के अवसर पर भाई साहब को एक घड़ी दी. अगले दिन जब मैं वापस आने लगा, तो बालमुकुंद जी ने वह घड़ी मुझे दी. मैं हतप्रभ था. भाई साहब बोले "आप विश्विद्यालय में पढ़ते हैं, समय को समझें." इसी मंत्र ने मुझे स्वयं को और समय को समझने की शक्ति विकसित की. और आज भी मैं समझने का सार्थक प्रयास कर रहा हूँ.
ऐसे सदगुरु का आज आशीर्वाद भोपाल में प्राप्त है. माननीय डॉ.बालमुकुन्द जी वर्तमान में इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन मंत्री हैं, केंद्र दिल्ली है.
Tuesday, May 24, 2016
कपिल मुनि तपोस्थली
अमरकंट। कलोक श्रुति है कि नर्मदा माँ नाराज़ होकर जा रही थी तो मुनिवर ने यहाँ तप कर के माँ को प्रसन्न किया, तभी से नर्मदा माँ के इस स्वरूप का नाम कपिलधारा से ख्याति हो गया। कपिल मुनि सांख्य दर्शन की रचना इसी स्थान पर की थी, यहां अनेक गुफाएं है जहां साधु संत ध्यान करते दिखते है। घने जंगल,प र्वत और प्रकृति के सुंदर दृश्य मन को सुकून देता है। आइये आप भी इस पवित्र स्थान का दर्शन कीजिए।
लेबल:
धर्म,
यात्रा संस्मरण,
संस्कृति
Monday, May 23, 2016
माता नर्मदा को समर्पित है बगिया
Sunday, May 22, 2016
पुण्य सलिला मां नर्मदा से साक्षात्कार
मातृत्व भारतीय संस्कृति में अतुलनीय स्थान है. मातृत्व केवल एक शरीर में नहीं बसता, अपितु एक भाव के रूप में संपूर्ण समाज में प्रभावित होता. मेकलसुता मां नर्मदा मातृत्व के भाव का एक ऐसा ही विराट प्रवाह है, जो अनंतकाल से अपनी भूमि और उस पर जन्म लेने वाली असंख्य संतानों को सभ्यता,संस्कारों, भक्ति, कला, प्रेम, स्वतंत्रता और समृद्धि के जीवन मूल्यों से पोषित करती है और अन्ततः अपनी सन्तानों के लिए मुक्ति का साधन भी बनती है.
Thursday, May 19, 2016
वैज्ञानिक वंदना शिवा से सुखद भेंट
दार्शनिक, पर्यावरण कार्यकर्ता, पर्यावरण संबंधी नारी अधिकारवादी एवं कई पुस्तकों की लेखिका हैं. वर्तमान में दिल्ली में स्थित, शिवा अग्रणी वैज्ञानिक और तकनीकी पत्रिकाओं में 300 से अधिक लेखों की रचनाकार हैं. उन्होंने 1978 में डॉक्टरी शोध निबंध: "हिडेन वैरिएबल्स एंड लोकैलिटी इन क्वान्टम थ्योरी" के साथ पश्चिमी ओंटेरियो विश्वविद्यालय, कनाडा से अपनी पीएचडी की उपाधि प्राप्त की.
1982 में उन्होंने विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं परिस्थिति विज्ञान के लिए अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना की, जिसने नवदान्य की रचना की. उनकी पुस्तक "स्टेयिंग अलाइव" ने तीसरी दुनिया की महिलाओं के संबंध में धारणा को पुन: परिभाषित करने में सहायता की. शिवा ने अंतर्राष्ट्रीय वैश्वीकरण मंच, महिलाओं के पर्यावरण एवं विकास संगठन एवं तीसरी दुनिया के नेटवर्क सहित भारत एवं विदेशों में सरकारों तथा गैर-सरकारी संगठनों के सलाहकार के रूप में भी कार्य किया है.
1982 में उन्होंने विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं परिस्थिति विज्ञान के लिए अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना की, जिसने नवदान्य की रचना की. उनकी पुस्तक "स्टेयिंग अलाइव" ने तीसरी दुनिया की महिलाओं के संबंध में धारणा को पुन: परिभाषित करने में सहायता की. शिवा ने अंतर्राष्ट्रीय वैश्वीकरण मंच, महिलाओं के पर्यावरण एवं विकास संगठन एवं तीसरी दुनिया के नेटवर्क सहित भारत एवं विदेशों में सरकारों तथा गैर-सरकारी संगठनों के सलाहकार के रूप में भी कार्य किया है.
लेबल:
चित्र पेटिका से,
विविध,
व्यक्तित्व
Saturday, May 7, 2016
काव्य संग्रह ’बिखरने से बचाया जाए’ का लोकार्पण
दिल्ली के कन्सटीट्यूशन क्लब (डिप्टी चेयरमैन हॉल) में आज शाम लेखिका श्रीमती अलका सिंह के काव्य संग्रह ’बिखरने से बचाया जाए’ का लोकार्पण प्रख्यात साहित्यकार एवं आलोचक डॊ. नामवर सिंह ने किया. इस मौक़े पर उन्होंने कहा कि हिंदी में ग़ज़ल लिखना मुश्किल काम है. बहुत कम लोग ही लिखते हैं, लेकिन अलका सिंह की किताब एक उम्मीद जगाती है कि कविता, ग़ज़लें और मुक्तक को आने वाली पीढ़ी ज़िंदा रखेंगी. यह अनूठा काव्य संग्रह है. उन्होंने कहा कि लोकार्पण कार्यक्रम में इतने लोगों का जुटना अपने आप में मायने रखता है. राजनीति करने वालों ने दिल्ली को उजाड़ दिया है, यह केवल राजधानी बन कर न रहे, बिखरने से बचे. इसके लिए कविताएं ज़रूरी हैं. ’ज़रूरी तो नहीं खुशियां ही मिलें दामन में, कुछ ग़मो को भी तो सीने से लगाया जा’ बेहतरीन शेअर है.
समीक्षक अनंत विजय ने कहा कि यह संग्रह कॉकटेल है, जिसमे ग़ज़लें, कविताएं और मुक्तक हैं. हिंदी साहित्य में प्रेम का भाव है, लेकिन इस संग्रह ने नई उम्मीद जगाई है. रिश्तों को लेकर लेखिका की बेचैनी साफ़ झलकती है.
’दाग़ अच्छे है’ में अंग्रेज़ी के शब्दो का प्रयोग धूप में मोती की तरह है. आधुनिक युग की त्रासदी ’सुख बेच दिए, सुविधाओं की ख़ातिर’ में साफ़ झलकती है. शब्दों के साथ ठिठोली क़ाबिले-तारीफ़ है.
कवयित्री अनामिका ने कहा कि लेखिका की सोच व्यापक है, समावेशी है समेटने की कोशिश है. स्पष्ट और मुखर होकर बेबाकी से हर बात कही गई है. कई आयामों को छूती ये रचनाएं सीधे मन को छूती हैं.
अमरनाथ अमर ने कहा की कविता कई सवाल उठाती है और समाधान देती है. "अपना कफ़न ओढ़ कर सोने लगे हैं लोग" विश्व स्थिति को व्यक्त करती है. मंच संचालन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक प्राध्यापक डॊ. सौरभ मालवीय ने किया. सार्थक पहल का यह आयोजन प्रवक्ता डॉट कॉम तथा नया मीडिया मंच के संयुक्त तत्वावधान में हुआ. इस अवसर पर साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र की जानी मानी हस्तियां मौजूद थीं.
लोकार्पण समारोह की एक झलक
आयोजन के व्यवस्था पक्ष में पीछे खड़े अनिल पांडेय जी साथ ही प्रवक्ता डॉट काम के भारत भूषण और संजीव सिन्हा साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता अमरनाथ झा सहित अन्य साथी.
Thursday, May 5, 2016
सदगुरु का सानिध्य
मैं कभी मेधावी छात्र नहीं रहा जबकि बारहवी तक विज्ञान संकाय का विद्यार्थी था फिर स्नातक हिन्दी साहित्य में, स्नातकोत्तर प्रसारण पत्रकारिता में और PhD भी मीडिया में ही पूर्ण की. उन दिनों उदंडता, कुतर्क और विवाद यह मेरे स्वभाव का अंग था. प्रायः किसी न किसी से बहसबाजी हो ही जाती और उसका अंत विवाद के साथ होता. इस कारण मेरी छवि ठीक नहीं बन रही थी. इसी बीच मुझे संघ कार्यालय पर रहने का अवसर मिला. यहां यह बताना चाहूँगा कि संघ कार्यालय अर्थात संघ के पूर्णकालिक प्रचारक का निवास (प्रचारक वह होता है, जो अपना पूरा जीवन संघ कार्य के लिए देता है) कार्यालय की दिनचर्या सुनिश्चित है. प्रातः जागरण मंत्र से प्रारम्भ होकर जलपान, भोजन, संध्या और रात्रि भोजन, विश्राम तक सब कुछ समयबद्ध रहता. अनुशासन और आध्यात्मिक वातावरण के कारण लगता की कार्यालय एक मन्दिर है.
कार्यालय पर रहते हुए मेरे श्रद्धा के केन्द्र में अनेक ऋषितुल्य प्रचारक हैं, जिनका जिक्र अभी और करूँगा. इसी क्रम में उस समय देवरिया के जिला प्रचारक श्री बालमुकुन्द जी से परिचय हुआ. बालमुकुंद जी इतिहास में स्नातकोत्तर, बीएड और PhD हैं. स्वभावतया मिलनसार, मृदुभाषी, सरल-सहज हैं, जो प्रचारक वृत्ति होती ही है. मैं अपने गाँव देवरिया जाता रहता था. इस कारण इनसे आत्मीयता बढ़ती गई. पहली यात्रा वैष्णव देवी 1999 में बालमुकुंद जी के साथ हुई. समय की गति बढ़ती रही और अपने जीवन की यात्रा होती रही. इनके साथ कुशीनगर, मऊ, आजमगढ़ आदि जिलों मे मोटरसाइकिल से खूब घूमा.
एक घटना का जिक्र करना चाहूँगा. बालमुकुंद जी बस्ती में विभाग प्रचारक थे. नगर के एक कार्यकर्ता के पुत्र का विवाह सम्पन्न हुआ. पुत्र भी स्वयंसेवक है. दोनों लोग कार्यालय आए और इस खुशी के अवसर पर भाई साहब को एक घड़ी दी. अगले दिन जब मैं वापस आने लगा, तो बालमुकुंद जी ने वह घड़ी मुझे दी. मैं हतप्रभ था. भाई साहब बोले "आप विश्विद्यालय में पढ़ते हैं, समय को समझें." इसी मंत्र ने मुझे स्वयं को और समय को समझने की शक्ति विकसित की. और आज भी मैं समझने का सार्थक प्रयास कर रहा हूँ.
ऐसे सदगुरु का आज आशीर्वाद भोपाल में प्राप्त है. माननीय डॉ.बालमुकुन्द जी वर्तमान में इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन मंत्री हैं, केंद्र दिल्ली है.
मेरे प्रेरणास्रोत: स्वामी विवेकानंद

गिरकर उठना, उठकर चलना... यह क्रम है संसार का... कर्मवीर को फ़र्क़ न पड़ता किसी जीत और हार का... क्योंकि संघर्षों में पला-बढ़ा... संघर्ष ही मेरा जीवन है...
-डॉ. सौरभ मालवीय
डॉ. सौरभ मालवीय
अपनी बात
सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र-निर्माण की तीव्र आकांक्षा के कारण छात्र जीवन से ही सामाजिक सक्रियता। बिना दर्शन के ही मैं चाणक्य और डॉ. हेडगेवार से प्रभावित हूं। समाज और राष्ट्र को समझने के लिए "सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया" विषय पर शोध पूर्ण किया है, परंतु सृष्टि रहस्यों के प्रति मेरी आकांक्षा प्रारंभ से ही है।
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संप्रति
डॉ. सौरभ मालवीय
2/564, अवधपुरी खण्ड 2
खरगापुर, निकट प्राथमिक विद्यालय, गोमतीनगर विस्तार
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लखनऊ, उत्तर प्रदेश
पिन- 226010
मो- 8750820740
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ईमेल - malviya.sourabh@gmail.com
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डॉ. सौरभ मालवीय
एसोसिएट प्रोफेसर
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
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